रबीन्द्रनाथ टैगोर और उनकी किताब गीतांजलि, जिसके अंग्रेजी अनुवाद को दुनिया भर में सराहा गया
( 7 अगस्त-पुण्यतिथि पर विशेष)
आधुनिक भारत के निर्माण में अपने साहित्य द्वारा प्रमुख भूमिका निभाने वाले बांग्ला कवि, नाटककार, दार्शनिक, साहित्यकार और चित्रकार रबीन्द्रनाथ टैगोर (जन्म-7 मई 1861-निधन 7 अगस्त 1941) एशिया से पहले व्यक्ति थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह सम्मान उन्हें उनकी काव्य रचना गीतांजलि के लिए वर्ष 1913 में मिला।
गीतांजलि 103 कविताओं का संग्रह है। इस रचना का मूल संस्करण बंगला भाषा में था, जिसमें अधिकांशत: भक्तिप्रधान गीत थे। गीतांजलि शब्द गीत और अंजली को मिलाकर बना है, जिसका अर्थ है- गीतों का उपहार अथवा भेंट । विभिन्न भाषाओं में हुए इसके अनुवादों के माध्यम से विश्व भर के सहृदय पाठक इसका रसास्वादन कर चुके हैं। इसके अंग्रेजी अनुवाद को ही नोबेल पुरस्कार मिला था। यह अनुवाद खुद गुरुदेव ने किया था। 51 वर्ष की उम्र में वे अपने बेटे के साथ समुद्री मार्ग से इंग्लैंड जा रहे थे। वहीं उन्होंने अपने कविता संग्रह गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद करना प्रारंभ किया। इसके पीछे कोई खास उद्देश्य नहीं था। उन्होंने एक नोटबुक में अपने हाथ से गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद किया। लंदन में जहाज से उतरते समय उनका पुत्र उस सूटकेस को ही भूल गया जिसमें वह नोटबुक रखी थी। लेकिन सूटकेस जिस व्यक्ति को मिला उसने स्वयं उस सूटकेस को रबींद्रनाथ टैगोर तक अगले ही दिन पहुंचा दिया।
लंदन में टैगोर के अंग्रेज मित्र चित्रकार रोथेंस्टिन को जब यह पता चला कि गीतांजलि को स्वयं रबीद्रनाथ टैगोर ने अनुवादित किया है तो उन्होंने उसे पढऩे की इच्छा जाहिर की। गीतांजलि पढऩे के बाद रोथेंस्टिन उस पर मुग्ध हो गए। उन्होंने अपने मित्र डब्ल्यू.बी. यीट्स को गीतांजलि के बारे में बताया और वहीं नोटबुक उन्हें भी पढऩे के लिए दी। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। यीट्स ने स्वयं गीतांजलि के अंग्रेजी के मूल संस्करण की प्रस्तावना लिखी। सितंबर सन् 1912 में गीतांजलि के अंग्रेजी अनुवाद की कुछ सीमित प्रतियां इंडिया सोसायटी के सहयोग से प्रकाशित की गई।
लंदन के साहित्यिक गलियारों में इस किताब की खूब सराहना हुई। गीतांजलि के प्रकाशित होने के एक साल बाद सन् 1913 में रवींद्रनाथ टैगोर को इस किताब के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
गीतांजलि का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित होने के एक सप्ताह के अंदर लंदन से प्रकाशित होने वाले प्रसिद्ध साप्ताहिक टाइम्स लिटरेरी सप्लीमेंट में उसकी समीक्षा प्रकाशित हुई थी और बाद में आगामी तीन माह के अंदर तीन समाचार पत्रों में भी उसकी समीक्षा प्रकाशित हुई। रवीन्द्रनाथ ठाकुर को नोबेल पुरस्कार मिलने के संबंध में ब्रिटिश समाचार पत्रों में मिश्रित प्रतिक्रिया हुई। इस संबंध में द टाइम्स ने लिखा था कि स्वीडिश एकेडेमी के इस अप्रत्याशित निर्णय पर कुछ समाचार पत्रों में आश्चर्य व्यक्त किया गया है पर इस पत्र के स्टॉकहोम स्थित संवाददाता ने अपने डिस्पेच में लिखा था कि स्वीडन के प्रमुख कवियों और लेखकों ने स्वीडिश कमेटी के सदस्यों की हैसियत से नोबेल कमेटी के इस निर्णय पर पूर्ण संतोष व्यक्त किया है। इसी संबंध में ब्रिटेन के प्रतिष्ठित समाचार पत्र मेन्चेस्टर गार्डियन ने लिखा था कि रवीन्द्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार मिलने की सूचना पर कुछ लोगों को आश्चर्य अवश्य हुआ पर असंतोष नहीं। टैगोर एक प्रतिभाशाली कवि हैं। बाद में द केरसेण्ट मून की समीक्षा करते हुए एक समाचार पत्र ने लिखा था कि इस बंगाली (यानी रवीन्द्रनाथ ठाकुर) का अंग्रेज़ी भाषा पर जैसा अधिकार है वैसा बहुत कम अंग्रेज़ों का होता है।
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