ये है मुर्दों का टीला
मुर्दों का टीला यानी मोहन जोदड़ो वह स्थान है, जहां सिंधु घाटी सभ्यता के अंश मिले हैं। इसका उत्खनन कार्य 1922 में राखालदास बनर्जी के द्वारा किया गया। सिंध के लरकाना जिले में इसका आकार लगभग एक वर्गमील में है। यह दो खंडों में पश्चिमी और पूर्वी विभाजित है। पश्चिमी खंड छोटा है। इसका संपूर्ण क्षेत्र गारे और कच्ची ईटों का चबूतरा बनाकर ऊंचा उठाया गया है। सारा निर्माण कार्य इस चबूतरे के ऊपर किया गया है। इसके आसपास कच्ची ईटों से किलेबंदी की दीवार बनी है, जिसमें मीरारें और बुर्ज बने हैं। इस पश्चिमी खंड में अनेक सार्वजनिक भवन स्थित हैं। जैसे अन्न भंडार, पुरोहित वास। इनमें से कोई भी भवन साधारण आवास का स्थान नहीं था।
इस खंड की सबसे संरचनात्मक विशेषता लगभग 39 x 23 फीट का एक तालाब है, जिसमें ईंटों की तह लगाकर ऊपर से बिटुमन का लेप कर दिया गया है, ताकि पानी उससे बाहर न निकल सके । इसे विशाल स्नानागार कहा गया है। एक स्तंभयुक्त भवन का अवशेष मिला है, जिसका प्रयोग संभवत: बाजार या सभास्थल के रूप में किया जाता था। मोहन जोदड़ो के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को स्तूप टीला भी कहा जाता है, क्योंकि यहां पर कुषाण शासकों ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था।
मोहन जोदड़ो में भी हड़प्पा की तरह दुर्ग प्राचीर का बाहरी भाग पक्की ईटों की तिरछी चिनाई से सुरक्षित था। स्नानागार के पश्चिम में स्थित अन्नागार मोहन जोदड़ो के दुर्ग क्षेत्र का विशालतम महत्वपूर्ण भवन है। कुल क्षेत्रफल 2035 वर्ग किलोमीटर है। पूर्वीय खंड, पश्चिमी खंड की अपेक्षा बड़ा है और यह चारों ओर एक दीवार से घिरा था।
नगर योजना में सड़कों को महत्वपूर्ण स्थान मिला था, जिनका निर्माण पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण दिशा में किया गया था। एक दूसरे को समकोण पर काटती चौड़ी सड़कों द्वारा मोहनजोदड़ो को बारह विशाल आयताकार खंडों में विभक्त किया गया था। मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़कें 9.15 मीटर चौड़ी तथा उसकी सहायक सड़कें 3 मीटर चौड़ी थीं। नालियों में ईंटों की तह लगाई जाती थी और बहुत सी नालियां ऊपर से ढंकी थीं। मुख्य सार्वजनिक मार्ग के साथ-सथ जल निकाल के कुछ गड्ढïे पहचाने गए हैं। कुछ कुएं मिले हैं, जिनमें ईटों की तह लगी थीं। लगभग प्रत्येक घर में कुएं प्राप्त होते हैं। प्रत्येक मकान के बीच में आंगन होता था, जिसके तीन ओर छोटे-बड़े आकार के अनेक कमरे बने होते थे। प्रत्येक घर के आंगन का एक कोना स्नानागार के रूप में प्रयुक्त होता था।
मकानों के दरवाजे और खिड़कियां सड़कों की ओर न होकर गलियों की ओर होती थीं। निवासग्रहों का निर्माण पक्की ईंटों से किया था। मोहन जोदड़ो से प्राप्त अन्य अवशेषों में कांस्य की नर्तकी की मूर्ति, दरारों में गेहूं और जौ के दाने, बुना हुआ सूती कपड़ा, गले हुए तांबे के ढेर, हाथी का कपास खंड। सीपी की बनी हुई पटरी, कुभकारों के छह भ_ïों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यहां प्राप्त ईंटों का आकार 4:2:1 है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त किसी भी बर्तन पर लेख नहीं मिला है। मोहनजोदड़ो में नगर के अंदर शव-विसर्जन के दो प्रकार के साक्ष्य मिले हैं- पहला आंशिक शवाधान और दूसरा पूर्ण समाधिकरण।
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