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 कोविड-19 : कई दंपती ने आखिरी सांस तक और उसके बाद भी जीवनसाथी का साथ निभाया और संसार से विदा ले ली
- जीवनसाथी के निधन की खबर अक्सर ही उसके साथी को 'ब्रोकेन हार्ट सिंड्रोम' से ग्रसित कर देती है- विशेषज्ञ
नई दिल्ली। भारत के महान फर्राटा धावक मिल्खा सिंह की पत्नी निर्मल कौर की कोविड-19 से मृत्यु होने के पांच दिन बाद मिल्खा सिंह का भी निधन हो गया। इस महामारी ने पूरे भारत को अपनी चपेट में लिया, जिसमें कई अन्य दंपती की भी जान चली गई। वे लोग दशकों से एक दूसरे के साथी थे, या शायद साथ में अपने जीवन का सफर शुरू किया था और हफ्तों के अंदर तथा कभी-कभी कुछ दिनों के अंतराल पर दुनिया को अलविदा कह गये। 
मनोचिकित्सकों ने इसके लिए एक शब्दावली-'ब्रोकेन हार्ट सिंड्रोम' दी है और महान मिल्खा सिंह दंपती संभवत: इसके प्रतीक हैं। कोविड-19 से 91 वर्ष की आयु में लंबी लड़ाई लडऩे के बाद भारत के महान खेल विभूतियों में शामिल मिल्खा सिंह का निधन शुक्रवार को चंडीगढ़ में हो गया। वहीं, उनकी पत्नी एवं राष्ट्रीय वॉलीबॉल खिलाड़ी रह चुकी निर्मल कौर का 13 जून को निधन हो गया था। उन दोनों का विवाह 58 साल पहले हुआ था और 65 साल पहले वे एक दूसरे से पहली बार मिले थे। उनकी तीन बेटियों और बेटे जीव मिल्खा सिंह ने अपने माता-पिता के सच्चे प्रेम और साहचर्य की सराहना की।
 परिवार ने एक बयान में कहा, ''उन्होंने बहुत हौसला दिखाया, लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था और शायद यह उनका सच्चा प्रेम और साहचर्य ही था कि दोनों ही लोग, हमारी मां निर्मल जी और अब पिता पांच दिनों के अंतराल पर गुजर गए।'' इस तरह से निधन होने वाले लोगों में सिर्फ वे ही एकमात्र नहीं हैं।
 राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाडिय़ा (89) और उनकी पत्नी शांति पहाडिय़ा (पूर्व विधायक एवं राज्यसभा सदस्य) का निधन भी कुछ ही दिनों के अंतराल पर हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री का निधन गुडगांव के अस्पताल में 20 मई को हुआ था, जबकि उनसे दो साल छोटी उनकी पत्नी का निधन उसी अस्पताल में तीन दिन बाद हुआ। उनके बेटे ओम प्रकाश पहाडिय़ा ने कहा, ''वे दोनों जीवनभर साथ रहे और राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे तथा एक साथ दुनिया को अलविदा कह गये।''
 वरिष्ठ पत्रकार कल्याण बरूआ और नीलाक्षी भट्टाचार्य का भी कोविड से मई में गुडग़ांव के अस्पताल में निधन हो गया। उनका भी निधन एक दूसरे से तीन दिन के अंतराल पर हुआ था। लंबे समय तक साथ रहने के बाद राजस्थान के बीकानेर निवासी दंपती ओम प्रकाश और मंजू देवी भी एक दूसरे से अलग नहीं रह सके। पिछले साल नवंबर में 15 दिनों के अंतराल पर उनका निधन हो गया। उनके भतीजे ने कहा कि उनकी चाची अपने पति के निधन के सदमे को सहन नहीं कर सकी।
 ऐसे मामलों में, जिनमें किसी दंपती में एक का इलाज के दौरान निधन हो जाता है जबकि दूसरा अब भी रोग से उबर रहा होता है, उस बारे में मेडिकल विशेषज्ञों की यह सलाह है कि निधन की खबर जीवनसाथी की स्थिति खतरे से बाहर होने के बाद ही साझा की जाए। मुंबई के मनोचिकित्सक हरीश शेट्टी के मुताबिक निधन की खबर नहीं मिलने पर रोग से उबरने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा, ''जब दंपती में एक शारीरिक रूप से बहुत ही कमजोर हो जाता है तब उसे इस तरह की सूचना देने पर उसका मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है और स्थिति बहुत ही खराब हो जाती है।'' शेट्टी ने कहा, ''मैं उन टीमों में शामिल रहा हूं, जिसने जीवनसाथी को रोग से उबरने के बाद (दुखद) सूचना दी। परिवार, चिकित्सक और सलाहकार की मौजूदगी जरूरी है।'' अर्पिता बसु रॉय के माता-पिता का चार दिनों के अंतराल पर निधन हो गया। दोनों एक साथ अस्पताल में भर्ती थे। उन्होंने बताया, ''वे दोनों एक दूसरे के बगैर भोजन भी नहीं करते थे। ''
उन्होंने बताया, ''जब उनकी मां का निधन हो गया, तब उनके पिता के जीने की इच्छा भी नहीं रही। वे दोनों जीवनसाथी थे और शायद एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते थे।'' गुडग़ांव की मनोचिकित्सक ज्योति कपूर ने कहा कि जीवनसाथी के निधन की खबर अक्सर ही उसके साथी को 'ब्रोकेन हार्ट सिंड्रोम' से ग्रसित कर देती है। यह हृदय की एक ऐसी अस्थायी स्थिति है, जो काफी तनाव और अत्यधिक भावुक होने से पैदा होती है।  अपने माता-पिता को कोविड-19 के कारण गंवा चुके कॉमेडियन भुवन बाम ने कहा , आई और बाबा के बिना पहले जैसा कुछ नहीं रहेगा। एक महीने में सब बिखर चुका है। घर, सपने, सब कुछ। '' मुंबई के इस कलाकार ने पिछले हफ्ते इंस्टाग्राम पर लिखा, ''क्या मैं एक अच्छा बेटा था? क्या मैंने उन्हें बचाने की पर्याप्त कोशिश की? ये सवाल हमेशा ही मेरे मन में बने रहेंगे।'

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