91 साल पहले शुरू हुआ था बोरोलिन का सफर.. आज तक नहीं बदला स्वरूप...
नई दिल्ली। आज भी हम एंटीसेप्टिक क्रीम के रूप में बोरोलिन का इस्तेमाल करते हैं। कई पीढिय़ों से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इतने बरसों में इस क्रीम का कोई स्वरूप नहीं बदला है। आइये आज जानते हैं इस क्रीम के बारे में ...
इस क्रीम का सफर 91 साल पहले शुरू हुआ था। उस वक्त भी इसकी ट्यूब हरे रंग की ही हुआ करती थी। आजादी के पहले भारत में इम्पोर्टेड और महंगी क्रीम केवल रईसों की पहुंच में थी। वर्ष 1929 में कोलकाता के गौर मोहन दत्त ने लोगों के लिए भारतीय ब्रांड में एंटीसेप्टिक क्रीम बनाने का फैसला किया। श्री दत्त की सोच थी कि हर भारतीय तक इसकी पहुंच हो और ऐसा ही हुआ। बोरोलिन बनाने वाली कंपनी का नाम रखा गया- जीडी फार्मास्युटिकल्स।
जब देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था तब इस खुशी के मौके पर आम जनता में कंपनी की तरफ से एक लाख से भी ज्यादा बोरोलिन ट्यूब मुफ्त बांटी गई थी। कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक, फिलहाल कंपनी के दो प्लांट हैं- एक कोलकाता और दूसरी गाजियाबाद (मोहन नगर) में है।
कैसे पड़ा नाम
बोरोलिन में तीन तरह के केमिकल- बोरिक एसिड, जिंक ऑक्साइड और एनहायड्रस लेनोसलिन शामिल हैं। बोरोलिन नाम भी इसमें पाए जाने वाले केमिकल से ही निकला है। बोरो शब्द दरअसल, बोरिक पावडर से लिया गया है जो एक एंटी सेप्टिक प्रॉपर्टीज है, वहीं दूसरा ओलिन शब्द लैटिन शब्द ओलियन का वेरिएंट है जिसका मतलब होता है तेल। इस तरह इस क्रीम का नाम बोरोलिन रखा गया।
ग्रीन ट्यूब वाली बोरोलिन में आज भी हाथी का एक लोगो छपा होता है। दरअसल इसमें हाथी को शामिल इसलिए किया गया है क्योंकि हाथी हर भारतीय के लिए विशाल भारतीय संस्कृति के महत्व का परिचायक है। साथ ही यह स्थिरता को भी दर्शाता है। बोरोलिन की स्थिरता आज भी कायम है। आज बाजार में अनेक प्रकार की एंटीसेप्टिक क्रीम मौजूद हैं, लेकिन बोरोलिन का स्थान कोई नहीं ले पाया।
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