मांसाहारी नहीं, शाकाहारी है मनुष्य: आचार्य धनंजय शास्त्री
0-महाराष्ट्र मंडल में चल रहे भागवत कथा के चौथे दिन भक्त प्रह्लाद और ध्रुव की सुनाई गई कथा
रायपुर। मनुष्य का शरीर बना ही शाकाहार के लिए है। मांसाहार करने से तामसी वृत्ति बनती है। इससे पाप बढ़ता है। यही बीमारियों का कारण भी बनता है। मांसाहार करने वाला व्यक्ति उन्मत्त होगा, क्रोधी होगा, रोगी होगा। जिस देश में चावल की 12 हजार प्रजातियां पाई जाती हैं, 18 प्रकार के तो आम पाए जाते हैं, उस देश में मांसाहार की जरूरत ही नहीं है। धर्मसभा विद्वतसंघ श्रीश्री जगतगुरु शंकराचार्य पीठम के राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रह्मचारी निरंजनानंद आचार्य वेदमूर्ति धनंजय शास्त्री ने महाराष्ट्र मंडल में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन इस आशय का प्रवचन किया।
आचार्य धनंजय ने कहा कि अंग्रेजों ने भ्रांतियां फैलाई थी कि भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, शिवाजी महाराज भी मांसाहारी थे, जबकि क्षत्रिय होने के बाद भी उन्होंने कभी भी मांसाहार नहीं किया। भ्रांति फैलाई गई कि भगवान श्रीराम ने पिता राजा दशरथ के श्राद्ध में मांस भक्षण किया था। वेदों में लिखित माष की जान बूझकर गलत व्याख्या की गई। जबकि माष का अर्थ उडद की दाल और गाय के दूध से है। आचार्य शास्त्री ने कहा कि आजकल लोग अंडा को मांसाहार नहीं मानते, जबकि उसमें भी एक प्राणि का जन्म होता है और वह मांसाहार ही होता है।
भक्त प्रह्लाद और ध्रुव का कथा सुनाते हुए आचार्य शास्त्री ने कहा कि मनुष्य को अपने से अधिक गुणवान व्यक्ति के साथ हमेशा प्रीति का भाव रखना चाहिए। कम गुणवान वाले व्यक्ति के प्रति करुणा और समान गुण वाले से मैत्री का भाव होना चाहिए। आचार्य ने कहा कि अपने से अधिक योग्य और गुणवान व्यक्तियों के प्रति स्नेह और आदर का भाव रखना चाहिए। जो व्यक्ति गुण में कम हैं, उनके प्रति दया और करुणा रखनी चाहिए। अपने समान या मिलते-जुलते गुणों वाले लोगों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखना चाहिए।
आचार्य शास्त्री ने ऋषभ देव जी कथा सुनाने के दौरान कहा कि जो जन्म देती है वो जननी है और जो जनम देता है वह जनक है। दोनों संतति को जन्म देते हैं। धर्मानुसार जो शादी करके संतान की उत्पति करते हैं, वो माता- पिता होते हैं। माता- पिता होना कठिन है और वे पुत्र- पूत्री को जन्म देते हैं। पुत्र वो, जो माता- पिता की सेवा करे और पितरों को तार दे। धर्म का पालन करने से ही माता- पिता मिलते हैं। पाश्चात्य देशों में यह संस्कृति नहीं होने के कारण वहां के बच्चे ‘ये मेरी मम्मी है, ये मेरे पापा है और ये मेरे बॉयोलॉजिकल पापा’ का परिचय देते हैं। वहां दादा-दादी, नाना- नानी जैसे रिश्ते नहीं होते, बल्कि सिर्फ ग्रेंड मॉम और ग्रेड पा होते हैं।
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