साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन
रायपुर। हिंदी के एक प्रसिद्ध और सम्मानित साहित्यकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का रायपुर में निधन हो गया। वे बीते कुछ दिनों से एम्स में एडमिट थे। 89 वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल की तबीयत काफी नाजुक बनी हुई थी और मंगलवार को उन्होंने एम्स में ही आखिरी सांस ली। एम्स प्रबंधन के अनुसार शुक्ल दो दिसंबर से भर्ती थे। वह गंभीर श्वसन रोग से ग्रसित थे। वह इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आईएडी) से भी पीड़ित थे और गंभीर निमोनिया भी हो गया था। शुक्ल को टाइप-2 मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएं भी थीं।
उन्हें हाल ही में 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और वे छत्तीसगढ़ के पहले लेखक हैं जिन्हें यह सम्मान मिला। विनोद कुमार शुक्ल हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ थे, जिन्होंने अपनी अनूठी शैली और सामाजिक यथार्थ को छूने वाली रचनाओं से पाठकों और आलोचकों पर गहरी छाप छोड़ी। उनके उपन्यास 'नौकर की कमीज', 'दीवार में एक खिडक़ी रहती थी' और 'खिलेगा तो देखेंगे' तथा सरल भाषा और गहरी संवेदनशीलता के लिए जाने जाते हैं.
प्रमुख बातें:
जन्म: 1 जनवरी, 1937, राजनांदगांव, छत्तीसगढ़.
निधन: 23 दिसंबर, 2025, रायपुर, छत्तीसगढ़.
सम्मान: 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार (2024), साहित्य अकादमी पुरस्कार, पेन अमेरिका व्लादिमीर नाबाकोव अवॉर्ड (2023).
पहचान: सरल भाषा, गहरी संवेदनशीलता, यथार्थवादी लेखन और प्रयोगधर्मी शैली के लिए प्रसिद्ध.
प्रमुख रचनाएँ:
उपन्यास: 'नौकर की कमीज', 'दीवार में एक खिडक़ी रहती थी', 'खिलेगा तो देखेंगे'.
कविता संग्रह: 'लगभग जयहिंद' (पहला), 'हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था'.
योगदान: हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं, विशेषकर 'नौकर की कमीज' ने कहानी और उपन्यास की धारा को नया मोड़ दिया और इस पर फिल्म भी बनी।





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