अखाड़े और शास्त्रीय गायकी के महीन सुर में खूूब तालमेल बिठाया था मन्ना दा ने
जयंती पर विशेष
भारतीय फिल्म संगीत के सबसे सुरीले गायक मन्ना डे का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता रहा है। मन्ना डे की आवाज हर दौर में पसंद की गई। अनेक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पुरस्कार जीतने के बाद उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के लिए भी चुना गया। यह बात अलग है कि इतने सुरीले गायक को वो मुकाम नहीं मिल पाया जिसके वे वास्तव में हकदार थे।
1950 से 1970 के दशक को हिंदी फिल्म संगीत का स्वर्णिम युग कहा जाता है और इसे स्वर्णिम बनाने में मन्ना डे की सुनहरी आवाज का बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्हें रवीन्द्र संगीत का भी चितेरा माना जाता था। उनके गाए मीठे गीतों की बानगी देखिए।
ए भाई जरा देख के चलो, कस्मे वादे प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या, ए मेरी जोहरा जबीं, पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई, ए मेरे प्यारे वतन आदि गीतों के बोल, मूड और माहौल भले ही अलग-अलग है लेकिन इन सब में एक बात समान है कि इन्हें भारतीय फिल्म संगीत के सबसे सुरीले गायक मन्ना डे ने अपनी आवाज से संवारा है ।
कई राष्टï्रीय पुरस्कारों , राज्य सरकारों के सम्मान और श्रेष्ठ गायक के ढेरों पुरस्कारों से सम्मानित मन्ना डे को 1971 में पद्मश्री और 2005 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया । संगीत को उनके योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 2007 का दादा साहब फालके पुरस्कार देने की घोषणा की गई।
मन्ना डे ने 1943 में तमन्ना फिल्म में पहली बार पाश्र्वगायक के तौर पर अपनी आवाज दी और उसके बाद वह धीरे-धीरे हिंदी फिल्म संगीत के एक ठोस स्तंभ बनते चले गए। 1950 से 1970 के दशक को हिंदी फिल्म संगीत का स्वर्णिम युग कहा जाता है और इसे स्वर्णिम बनाने में मन्ना डे की सुनहरी आवाज का बहुत बड़ा योगदान रहा । उन्होंने मोहम्मद रफी, किशोर कुमार और मुकेश के साथ मिलकर भारतीय फिल्म संगीत की एक मजबूत नींव रखी । किसी भी फिल्म का संगीत इन चारों की पुरसोज आवाज के बिना अधूरा माना जाता था और इनमें भी मन्ना डे को शास्त्रीय संगीत का पारंगत कहा जाए तो गलत नहीं होगा ।
एक मई 1919 को पूरण चंद्र और महामाया डे के यहां जन्मे प्रबोध चंद्र डे को आप और हम मन्ना डे के नाम से जानते हैं। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मन्ना डे को बचपन में पहलवानी और मुक्केबाजी का शौक हुआ करता था। कहां रफ टफ पहलवानों का अक्खड़ मिजाज और कहां गायकी के महीन सुर, दोनों में कहीं कोई समानता नहीं लेकिन मन्ना डे ने इन दोनों में बेहतरीन तरीके से तालमेल बिठाया। स्काटिश चर्च कॉलेज के दिनों में मन्ना डे अपने सहपाठियों की फरमाइश पर अकसर गाया करते थे। उनके चाचा संगीताचार्य के सी डे ने बहुत छुटपन में ही उन्हें संगीत की बारीकियों से अवगत कराया और उनकी मीठी आवाज ने उन्हें हर गीत को चाशनी बना देने का हुनर बख्शा।
1942 में मन्ना डे अपने चाचा के पास मुंबई गए और वहां उनके सहायक के तौर पर काम करना शुरू कर दिया। कुछ समय तक वह सचिन देव बर्मन के सहायक रहे और बाद में कुछ अन्य संगीत निर्देशकों के साथ भी काम किया। इस दौरान वह उस्ताद अमन अली खान और उस्ताद अब्दल रहमान खान से गायकी की बारीकियां सीखते रहे ।
उन्होंने 1943 में तमन्ना फिल्म में सुरैया के साथ युगल गीत गाया। यह गाना खूब सफल रहा और उनकी ठहरी हुई पुरकशिश आवाज को खूब पसंद किया गया । इसके बाद उन्होंने राम राज्य, कविता, महाकवि, विक्रमादित्य, प्रभु का घर, वाल्मीकी और गीत गोविंद जैसी फिल्मों के लिए अपनी आवाज दी। उन दिनों फिल्में बहुत कम बनती थीं इसलिए वह भी साल में एकाध फिल्म में ही गीत गा पाते थे।
50 के दशक तक मन्ना डे एक मंझे हुए पाश्र्व गायक के तौर पर स्थापित हो गए और उन्होंने आवारा, दो बीघा जमीन, हमदर्द, परिणीता, चित्रांगदा, बूट पालिश और श्री 420 जैसी फिल्मों के लिए पाश्र्व गायन किया। आमतौर पर राजकपूर की फिल्मों में मुकेश अपनी आवाज दिया करते थे लेकिन कुछ गीतों के लिए राज कपूर ने मन्ना डे की आवाज पर भरोसा किया । श्री 420 का मुड़ मुड़ के न देख, मुड़ मुड़ के, मेरा नाम जोकर का ए भाई जरा देख के चलो और बॉबी फिल्म का ना मांगू सोना चांदी आदि ऐसे ही कुछ गीत हैं।
मन्ना डे की आवाज हर दौर में पसंद की गई। उन्होंने शोले, लावारिस, सत्यम शिवम सुंदरम, चोरों की बारात, क्रांति, कर्ज, सौदागर, हिंदुस्तान की कसम, बुडढ़ा मिल गया जैसी तमाम फिल्मों के गीतों को स्वर दिया । उन्होंने देश के महान शास्त्रीय गायकों में शुमार भीमसेन जोशी के साथ फिल्म बसंत बहार में केतकी गुलाब जूही, चंपक बन फूले जैसा शुद्ध शास्त्रीय राग पर आधारित गीत गाकर अपनी सुर साधना का परिचय दिया । उन्हें रवीन्द्र संगीत का भी चितेरा माना जाता था और उन्होंने करीब 3500 से अधिक गीत गाए।
दादा साहब फालके पुरस्कार से पहले मन्ना डे को 1969 में फिल्म मेरे हुजूर के लिए और 1971 में बांग्ला फिल्म निशी पद्मा के लिए राष्टï्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें 1985 में लता मंगेशकर पुरस्कार दिया। इसके अलावा भी उन्हें पाश्र्वगायन के लिए अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उनके गाए सदाबहार गीत आज भी लोगों के दिलों में गहरे तक उतरने की क्षमता रखते हैं।
आलेख- मंजूषा शर्मा
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