कर्मनिष्ठ जन को कभी, मिले नहीं आराम।
दोहे
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
कर्मनिष्ठ जन को कभी, मिले नहीं आराम।
शुचिता से पूरित रखें, तन-मन आठों याम।।
अपराधी बचते रहे, कर अपराध जघन्य।
राजनीति का खेल यह, कभी नहीं अनुमन्य।।
तर्कहीन बातें करें, लड़ते मूढ़ समान।
प्रश्नों के उत्तर नहीं, रखते थोथा ज्ञान।।
नहीं वैद्य से कम कभी, अपनेपन का भाव।
मुश्किल पल में शक्ति दे, सबसे रखे लगाव।।
पीहर की हर बात पर, भावुक होते नैन।
जड़ें जुड़ीं जिस धाम में, मिले कहाँ वह चैन।।
सावन भादो तीज में, आती घर की याद।
आँखों में चलचित्र से, चलते वर्षों बाद।।
कजरी गाती है पवन, बूँदें राग मल्हार।
सुधियों में भीगे नयन, रह रह ता के द्वार।।
सुधियों की बदरी घुमड़, आती बारंबार।
बरसे हैं चंचल नयन, भीगा प्रिय का प्यार।।
चंद्रमुखी को ताकता, विकल पपीहा नित्य।
विरही को दुख सुख लगे, यही प्रेम-लालित्य।।
डॉ. दीक्षा चौबे
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