कभी पैसों से खेला करते थे भगवान दादा, अंतिम समय मुफलिसी में चॉल में बीता
भारतीय सिनेमा में बेहतरीन एक्टर और कॉमेडियन रहे भगवान दादा को लोग आज भी भूले नहीं हैं। आज के एक्टर भी उनकी डांस स्टाइल की नकल करते नजर आ जाते हैं। भगवान दादा को हिंदी सिनेमा के पहले एक्शन और डांसिंग स्टार के रूप में भी जाना जाता है। 4 फरवरी 2002 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा।
भगवान दादा के पिता एक टेक्सटाइल मिल में काम करते थे और उनके घर के हालात भी ठीक नहीं थे। ऐसे में बचपन से ही अभिनय के शौकीन भगवान दादा ने शुरुआती दिनों में घर में आर्थिक मदद के लिए मजदूरी का काम करना शुरू कर दिया था। हालांकि वह सिनेमा के प्रति अपने प्यार को नहीं भूला पाए और फिर मूक सिनेमा के दौर में 'क्रिमिनलÓ से अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की। उनकी पहली बोलती फिल्म 'हिम्मत-ए-मर्दाÓ थी, जो 1934 में रिलीज हुई थी। इसके बाद धीरे-धीरे वह अपने शानदार अभिनय के चलते लोगों के बीच मशहूर होने लगे।
भगवान दादा ने फिल्मों में एक्टिंग के साथ ही उन्हें प्रोड्यूस करना भी शुरू कर दिया था। साल 1951 में उन्होंने अलबेला का निर्माण किया, जिसका गाना शोला जो भड़के, आज भी काफी फेमस है। यही नहीं गाने में डांसर्स की कमी होने के बाद उन्होंने इसमें फाइटर्स का इस्तेमाल किया था। यह फिल्म 50 हफ्ते से ज्यादा सिनेमाघरों में चली। अभिनेता शेवरले कारों के इतने शौकीन थे कि उन्होंने शेवरले नाम की फिल्म में ही काम कर लिया था। उस दौर में उनके पास सात कार थीं, जिन्हें वो हफ्ते में एक-एक दिन सेट पर लेकर जाते थे। उन्होंने मुंबई के पॉश इलाके में सी-फेसिंग बंगला खरीद लिया, जिसमें 25 कमरे थे। आर्थिक तंगी से जूझ रहे भगवान दादा को अपना बंगला और कारें बेचनी पड़ीं। पूरा परिवार दादर के एक चॉल के दो कमरों में रहने लगा। अंतिम वक्त में भगवान दादा का ख्याल उनकी अविवाहित बेटी और छोटे बेटे के परिवार ने रखा।
भगवान दादा की संपत्ति बढ़ती जा रही थी और उनके फिल्में भी अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। एक फिल्म में तो नोटों की बारिश कराने के लिए भगवान दादा ने असली नोटों का इस्तेमाल किया था, जिसके प्रोड्यूसर वह खुद थे। हालांकि समय ने करवट ली और भगवान दादा की फिल्में असफल होने लगीं। इसका असर यह हुआ कि उन्हें अपना जुहू स्थित बंगला और कार बेचनी पड़ीं। धीरे-धीरे भगवान दादा की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई कि उन्हें अपना आखिरी समय चॉल में बिताना पड़ा। इसके बाद 4 फरवरी 2002 को दिल का दौरा पडऩे के बाद भगवान दादा का निधन हो गया। बताया जाता है कि जिंदगी के अंतिम कुछ सालों में उन्हें सिने आर्टिस्ट्स एसोसिएशन और इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन की ओर से 3000 और 5000 हजार रुपए का भुगतान किया गया था।
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