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  भूपिंदर सिंह ऐसे बने सुरों के सरताज
मुंबई।  गायक भूपिंदर सिंह ने फिल्मों के अलावा गजल गायकी में भी अपना एक अलग मुकाम हासिल किया। आज वे हमारे बीच नहींं् हैं, लेकिन उनकी शानदार गायकी ने उन्हें सदा के लिए अमर बना दिया है।  'करोगे याद तो हर बात याद आएगी  और 'कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता... जैसे बेहतरीन गानों को उन्होंने अपनी आवाज दी है। गजल गायक भूपिंदर सिंह को 'दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात दिन गाने से शोहरत मिली थी। 
मखमली आवाज वाले भूपिंदर सिंह का जन्म 6 फरवरी 1940 को अमृतसर में हुआ था।   भूपिंदर को दमदार आवाज विरासत में मिली थी। उनके पिता प्रोफेसर नत्था सिंह संगीतकार थे। उन्होंने अपने पिता से ही गिटार बजाना सीखा था। भूपिंदर कुछ समय बाद दिल्ली आए। यहां उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए गायक और गिटार वादक के तौर पर काम किया।
 भूपिंदर सिंह को पहला बड़ा ब्रेक संगीतकार मदन मोहन ने 1964 में दिया था। इसके बाद उन्होंने कई बॉलीवुड गानों में अपनी आवाज दी। मोहम्मद रफी, तलत महमूद और मन्ना डे के साथ गाया भूपिंदर सिंह का गीत 'होके मजबूर मुझे, उसने बुलाया होगा,  काफी पसंद किया गया था। उन्होंने अपनी पत्नी मिताली सिंह के साथ मिलकर 'दो दीवाने शहर में', 'कभी किसी को मुकम्मल जहां', 'एक अकेला इस शहर में' जैसे कई गाने को अपनी आवाज से जान डाल दी। भूपिंदर को सत्ते पे सत्ता, आहिस्ता-आहिस्ता, दूरियां, हकीकत जैसी फिल्मों के यादगार गानों के लिए भी याद किया जाता है।
 मशहूर लेखक और फिल्मकार गुलजार भी भूपिंदर की आवाज के कायल थे। भूपिंदर के बारे में गुलजार ने एक बार कहा था, 'भूपिंदर की आवाज किसी पहाड़ी से टकराने वाली बारिश की बूंदों की तरह है। उनकी मखमली आवाज आत्मा तक सीधे पहुंचती है। भूपिंदर सिंह ने बॉलीवुड के कई गानों में गिटार प्ले किया। उन्होंने पंचम दा के एक गाने 'दम मारो दम' में पहला सोलो गिटार बजाया, जिसे लोगों ने काफी पंसद किया। भूपिंदर के गिटार का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलता था।
 भूपिंदर के पिता काफी सख्त मिजाज के थे, जिसकी वजह से भूपिंदर को संगीत से नफरत हो गई थी। लेकिन, यह नफरत ज्यादा देर तक नहीं टिक पाई क्योंकि उनकी जिंदगी में एक सफल गायक बनना जो लिखा था। 
 भूपिंदर सिंह को उनके शानदार नगमे "नाम गुम जाएगा", "होंठों पर ऐसी बात", "मीठे बोल बोले", "खुश रहो अहले वतन", "करोगे याद तो", "मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रहे", "दिल ढूंढता है वही फुर्सत के लम्हे" के लिए जाना जाता है। 83 साल की उम्र में पिछले साल 18 जुलाई (2022) को उनका निधन हो गया। 

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