असम की मुखौटा निर्माण की अनूठी परंपरा को बयां करती है लघुफिल्म ‘मास्क आर्ट ऑफ माजुली'
नयी दिल्ली। असम का माजुली जितना विश्व के सबसे बड़े आबाद नदी द्वीप के रूप में प्रसिद्ध है उतनी ही इसकी ख्याति यहां स्थित वैष्णव मठों के लिए है, लेकिन इसके साथ-साथ यह असम की वर्षों पुरानी मखौटा बनाने की परंपरा को भी जीवित रखे हुए है। यही (मखौटा निर्माण की परंपरा) नए वृत्तचित्र ‘मास्क आर्ट ऑफ माजुली' का विषय है। राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म निर्माता उत्पल बोरपुजारी द्वारा लिखित और निर्देशित ‘मास्क आर्ट ऑफ माजुली' की शुक्रवार को दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) में 'स्क्रीनिंग' की गई। अंग्रेजी में 'सब-टाइटल' के साथ 55 मिनट की असमिया लघु फिल्म ने हाल ही में मुंबई में पूर्वोत्तर फिल्म महोत्सव (24-26 मार्च) में सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र श्रेणी में कांस्य पुरस्कार जीता। बोरपुजारी ने कहा कि एक फिल्म निर्माता के रूप में उनका प्रयास पूर्वोत्तर भारत की विभिन्न कहानियों को बताने का रहा है। बोरपुजारी ने बताया, “मुखौटा कला एक ऐसा विषय है जिसे मैं प्रलेखित करना चाहता था क्योंकि यह वृहद असमिया संस्कृति का एक आंतरिक हिस्सा है और यह कला अब सिकुड़ रही है।” उन्होंने उम्मीद जताई कि यह लघु फिल्म मुखौटा बनाने की कला को दुनिया के सामने लाने में एक अहम भूमिका निभाएगी, भले ही छोटे स्तर पर। नॉर्थ ईस्ट रीजनल सेंटर (एनईआरसी) और आईजीएनसीए द्वारा निर्मित इस वृत्तचित्र का फिल्मांकन चिदा बोरा ने किया है संगीत सौरव महंत ने संगीत दिया है। इस वृत्तचित्र को फ्रांस के वेसौल में 29वें फेस्टिवल इंटरनेशनल सिनेमाज डी'आसी, 11वें चेन्नई इंटरनेशनल डॉक्यूमेंट्री एंड शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल जैसे विभिन्न महोत्सव के लिए भी चुना गया है।
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