अस्पताल के अकेलेपन में अमिताभ को आई पिता की याद, उनकी कविता का वीडियो किया ट्वीट
रायपुर। महानायक अमिताभ बच्चन इस समय मुंबई के एक अस्पताल में कोरोना संक्रमण का इलाज करा रहे हैं और उनके प्रशंसक उनके जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे हैं। इसी बीच आज अमिताभ बच्चन ने एक वीडियो ट्वीट किया है जिसमें वे अपने पिता हरिवंशराय बच्चन को याद करते हुए उनकी लिखी एक कविता का पाठ करते नजर आ रहे हैं।
यह वीडियो अपै्रल में वायरल हुआ था। यूजर्स अमिताभ के कविता पढऩे के अंदाज के कायल हो गए थे। उस वक्त इस वीडियो के कैप्शन में अमिताभ बच्चन ने लिखा, मैं अपने बाबूजी और उनकी कविता को याद करता हूं, जो आशा और ताकत को दर्शाती है। उसी तरह गा रहा हूं, जैसे बाबूजी कवि सम्मेलन में गाया करते थे, जिसमें मैं उनके साथ जाया करता था।
अब इस वीडियो को पुन: जारी करते हुए अमिताभ ने लिखा- बाबूजी की कविता के कुछ पल । वो इसी तरह गाया करते थे कवि सम्मेलनों में । अस्पताल के अकेलेपन में उनकी बहुत याद आती है, और उन्हीं के शब्दों से अपनी सूनी रातों को आबाद करता हूं।
पूरी कविता है-
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था
भावना के हाथ ने जिसमें वितानों को तना था
स्वप्न ने अपने करों से था जिसे रुचि से सँवारा
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों से, रसों से जो सना था
ढह गया वह तो जुटाकर ईंट, पत्थर, कंकड़ों, को
एक अपनी शांति की कुटिया बनाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
बादलों के अश्रु से धोया गया नभऌनील नीलम
का बनाया था गया मधुपात्र मनमोहक, मनोरम
प्रथम ऊषा की किरण की लालिमाऌसी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती नव घनों में चंचला सम
वह अगर टूटा मिलाकर हाथ की दोनों हथेली
एक निर्मल स्रोत से तृष्णा बुझाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
क्या घड़ी थी, एक भी चिंता नहीं थी पास आई
कालिमा तो दूर, छाया भी पलक पर थी न छाई
आँख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती
थी हँसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई
वह गई तो ले गई उल्लास के आधार, माना
पर अथिरता पर समय की मुस्कुराना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
हाय वे उन्माद के झोंके कि जिनमें राग जागा
वैभवों से फेर आँखें गान का वरदान माँगा
एक अंतर से ध्वनित हों दूसरे में जो निरंतर
भर दिया अंबरऌअवनि को मत्तता के गीत गा गा
अंत उनका हो गया तो मन बहलने के लिये ही
ले अधूरी पंक्ति कोई गुनगुनाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
हाय वे साथी कि चुंबक लौहऌसे जो पास आए
पास क्या आये, हृदय के बीच ही गोया समाये
दिन कटे ऐसे कि कोई तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा जिंदगी का गीत गाए
वे गये तो सोच कर यह लौटने वाले नहीं वे
खोज मन का मीत कोई लौ लगाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
क्या हवाएं थी कि उजड़ा प्यार का वह आशियाना
कुछ न आया काम तेरे शोर करना, गुल मचाना
नाश की उन शक्तियों के साथ चलता ज़ोर किसका
किंतु ऐ निर्माण के प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना
जो बसे हैं वे उजड़ते हैं प्रकृति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को फिर बसाना कब मना है
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है।
- हरिवंश राय बच्चन
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