विलेन से हीरो फिर अध्यात्म और फिर राजनीति... ऐसे रहा विनोद खन्ना का जीवन
जन्मदिन पर विशेष
(सुस्मिता मिश्रा)
70 के दशक के जाने माने और दिग्गज अभिनेता विनोद खन्ना का जन्म आज ही के दिन साल 1946 में हुआ था। वे पाकिस्तान के पेशावर में पैदा हुए थे। फिल्मी दुनिया में अपनी शुरुआत विलेन के तौर पर करने वाले विनोद खन्ना के लुक्स ने उन्हें हीरो बना दिया। एक समय ऐसा आया कि ने बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ को टक्कर देने लगे। आज जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...
विनोद खन्ना ने शुरुआती पढ़ाई करने के बाद कॉमर्स से ग्रेजुएशन की। उन्होंने मुंबई के सिडेनहैम कॉलेज से स्नातक परीक्षा पास की। विनोद खन्ना ने सुनील दत्त की साल 1968 में आई फिल्म मन के मीत से बड़े पर्दे पर एंट्री ली। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। विनोद खन्ना ने अपने कॅरिअर की शुरुआती फिल्मों में निगेटिव किरदार निभाए थे। इनमें सच्चा झूठा, आन मिलो सजना, पूरब और पश्चिम, रेश्मा, परवरिश और शेरा जैसी फिल्में शामिल हैं। बाद में उनके लुक्स के कारण उन्हें हीरो के रोल ऑफर होने लगे। उनके जीवन में मोड़ तब आया जब उनका ध्यान आध्यात्म की ओर मुड़ गया। यह 70 का दशक खत्म होने का दौर था। इस दौरान विनोद खन्ना आचार्य रजनीश (ओशो) के शिष्य बन चुके थे। उस दौरान वे हर हफ्ते मुंबई में शूटिंग करने के बाद वीकेंड में पुणे स्थित ओशो मेडिटेशन रेसॉर्ट चले जाते। उस वक्त वे फिल्म कुर्बानी और द बर्निंग ट्रेन की शूटिंग कर रहे थे। 80 के दशक में अमिताभ बच्चन हिट फिल्मों की गारंटी थे। हर डायरेक्टर उनके साथ काम करना चाहते थे। साल 1980 में आई फिल्म कुर्बानी के मेकर्स पहले अमिताभ बच्चन को लेना चाहते थे, लेकिन अमिताभ से बात नहीं बन पाई तो उनकी जगह विनोद खन्ना के साथ फिल्म बनी। फिल्म में विनोद के अपॉजिट जीनत अमान थीं। फिल्म का गाना आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में आए लोगों को आज भी याद है और फिल्म उस दौर की ब्लॉकबस्टर साबित हुई।
80 के दशक में ओशो अमेरिका गए तो विनोद खन्ना भी उनके साथ चले गए। वहां पर वे माली का काम करते थे। उस वक्त उनकी शादी बचपन की प्रेमिका गीतांजलि से हो चुकी थी। हालांकि खबरों की मानें तो अमेरिका में रहने के दौरान विनोद की ओशो के साथ अनबन हुई और फिर 4 साल अमेरिका में रहकर उन्हें वापस मुंबई आना पड़ा। इस दौरान उनके पास ना पैसा था और ना परिवार। पत्नी से भी तलाक हो चुका था। 1990 में जब वे वापस भारत आए तो उन्होंने कविता से शादी की। कविता से उनके एक बेटा साक्षी और बेटी श्रद्धा है।
ओशो से अनबन के बाद वापस भारत आने पर विनोद ने देखा कि काफी कुछ बदल चुका है। जब वे वापस मुंबई आए तो यहां श्रीदेवी नंबर 1 एक्ट्रेस थीं। उनके साथ काम करने के लिए एक्टर्स लाइन लगाते थे। विनोद को किसी ने सलाह दी कि श्रीदेवी के साथ काम करने से ही वे फिर से फिल्मी जगत का हिस्सा बन सकते हैं। ऐसे में उन्होंने श्रीदेवी से बात की, लेकिन उधर से जवाब नहीं आया। बाद में जब उन्हें पता चला कि डायरेक्टर यश चोपड़ा श्रीदेवी के साथ फिल्म चांदनी बना रहे हैं तो वे उनके पास गए और कहा कि उन्हें रोल चाहिए। हालांकि यश ने पहले ही ऋषि कपूर को बतौर हीरो चुन लिा था। फिर एक छोटे से रोल के लिए विनोद को कहा गया और विनोद ने हामी भर दी। फिल्म सुपरहिट साबित हुई और विनोद खन्ना का कॅरिअर फिर चल निकला।
केवल फिल्मी इंडस्ट्री ही नहीं बल्कि राजनीति में भी विनोद खन्ना का सिक्का चला। साल 1997 में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी जॉइन की। वह चार बार (1998, 1999, 2004 और 2014) पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट से सांसद रहे। साल 2002 में उन्हें अटल बिहारी सरकार ने संस्कृति और पर्यटन मंत्री बनाया। 6 महीने बाद ही उन्हें विदेश राज्यमंत्री बनाया गया।
उन्हें कई अवॉड्र्स मिले। साल 2018 में उन्हें दादा साहब फाल्के जैसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड से नवाजा गया। इसके अलावा उन्होंने 6 बार फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीता था। सुपरस्टार विनोद खन्ना ने कई हिट फिल्मों में काम किया। फिल्मों में निभाए गए उनके किरदार और उनकी फिल्मों के गाने आज भी लोगों को याद हैं। उनकी हिट फिल्मों की लिस्ट काफी लंबी है। इनमें अमर अकबर एंटोनी, मेरा गांव मेरा देश, दयावान, चांदनी, कुर्बानी, मेरे अपने, मुकद्दर का सिकंदर, परवरिश, जुर्म, खून पसीना, हाथ की सफाई, कच्चे धागे, वॉन्टेड और दबंग, दबंग- 2 जैसी बड़ी फिल्में शामिल हैं। उनके करिअर की आखिरी बड़ी फिल्म की बात करें तो वे शाहरुख खान की दिलवाले जैसी बड़ी फिल्म में नजर आए थे।
27 अप्रैल 2017 को कैंसर की बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। उन्होंने मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। उन्होंने कई सालों तक अपनी कैंसर की बात सबसे छिपाई रखी। इस बात का खुलासा उन्होंने राजनेता बनने के बाद एक इंटरव्यू के दौरान किया।
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