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रात में देर तक मोबाइल स्क्रीन को देखने से बढ़ सकता है आपका ब्लड शुगर लेवल
कई अध्ययनों के बाद साबित हुआ वैज्ञानिक तथ्य है कि मोबाइल से निकलने वाली ब्लू लाइट, साथ ही लैपटॉप, एलईडी आदि के स्क्रीन से रेडिएट होने वाली रौशनी से शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ता है और रात में मीठा खाने की ज्यादा क्रेविंग होती है। 
स्ट्रासबर्ग  यूनिवर्सिटी और एम्सटर्डम यूनिवसिटी के डॉक्टरों ने चूहों पर एक शोध के दौरान यह पाया कि जब उन चूहों को रात के समय आर्टिफिशियल लाइट के दायरे में रखा गया तो उनके शरीर का ब्लड शुगर का स्तर और मीठे का कंजम्पशन बढ़ गया था।  साथ ही लंबे समय तक इस लाइट के एक्सपोजर में रहने के बाद उनके वजन में भी इजाफा हुआ।  यहां यह बात अलग से बताना जरूरी है कि चूहों के शरीर का 80 फीसदी हॉर्मोनल और फिजियॉजिकल फंक्शन मनुष्यों से बहुत मिलता-जुलता है, इसलिए मनुष्य के शरीर से पहले वैज्ञानिक कई सौ सालों से चूहों पर प्रयोग करते रहे हैं।  चूहों पर किए गए तकरीबन 100 फीसदी प्रयोग मनुष्यों पर भी सही साबित हुए। 
 हालांकि आर्टिफिशियल ब्लू लाइट और रेडिशन के हमारे ब्लड शुगर लेवल और वजन पर पडऩे वालों प्रभावों पर स्ट्रासबर्ग और एम्सटर्डम यूनिवर्सिटी की ये एकमात्र रिसचज़् नहीं है।  अगर आप गूगल पर आर्टिफिशियल ब्लू लाइट और शुगर क्रेविंग कीवड्र्स डालकर सर्च करेंगे तो आपको ऐसी 10 से ज्यादा साइंटिफिक स्टडी मिलेंगी, जो ये कह रही हैं कि रात के समय आर्टिफिशियल  ब्लू लाइट का ज्यादा एक्सपोजर ब्लड शुगर से लेकर मीठे की क्रेविंग और मोटापे को बढ़ाने का काम करता है क्योंकि मोटापे का सीधा संबंध शुगर कंजम्पशन और उससे जुड़े इंसुलिन के उतार-चढ़ाव से है।
इसलिए यदि आपने भी ऐसा महसूस किया है कि आपको रात में देर तक जगने, टीवी देखने और मोबाइल के स्क्रीन के सामने ज्यादा वक्त बिताने पर मीठा और कार्ब खाने की इच्छा होती है, रात में आप स्नैकिंग करते हैं तो इसकी मुख्य वजह आर्टिफिशियल  ब्लू लाइट है। आपको अपना स्क्रीन टाइम कम करने की जरूरत है। यदि लैपटॉप या मोबाइल देखना आपके काम की मजबूरी है तो ब्लू लाइट रेडिएशन से बचने के लिए एंटी ग्लेयर ग्लासेस का इस्तेमाल जरूर करें।  स्टनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी कहती है कि एंटी ग्लेयर ग्लासेस के इस्तेमाल से नीली रौशनी सीधे हमारी आंखों को प्रभावित नहीं करती. ये सौ फीसदी प्रूफ तरीका नहीं है, लेकिन एंटी ग्लेयर ग्लासेस के इस्तेमाल से आर्टिफिशियल  लाइट के प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

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