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खरीफ बुवाई में देरी के लिए असमान मानसून जिम्मेदार, लेकिन घबराने की जरूरत नहीं: विशेषज्ञ

नयी दिल्ली. मौसम विज्ञानियों और कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि असमान मानसून ने भले ही देश में खरीफ फसलों की बुवाई को प्रभावित किया हो, लेकिन उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और मुद्रास्फीति को लेकर घबराना या चिंता करना जल्दबाजी होगी। केंद्रीय कृषि मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि 15 जुलाई तक धान की खेती का रकबा 17.38 प्रतिशत घटकर 128.50 लाख हेक्टेयर रह गया, जो पिछले साल 155.53 लाख हेक्टेयर था। हालांकि, मंत्रालय ने कहा है कि खरीफ फसलों के रकबे में अभी तक की कमी चिंता का विषय नहीं है और इस महीने मानसून की बारिश की प्रगति के साथ इस अंतर को पाटा जाएगा। मानसून देश की वार्षिक वर्षा का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा है और इससे शुद्ध बुवाई के रकबों के 60 प्रतिशत भाग की सिंचाई होती है। भारत की लगभग आधी आबादी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। मौसम विभाग ने इस साल सामान्य मॉनसून रहने की भविष्यवाणी की है। एक जून को मानसून के मौसम की शुरुआत के बाद से अब तक देश में 14 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई है, लेकिन वितरण असमान रहा है। जहां दक्षिण और मध्य भारत में अतिरिक्त बारिश हुई, वहीं पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में कमी दर्ज की गई है। स्काईमेट वेदर के उपाध्यक्ष (मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन) महेश पलावत ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड के चावल उत्पादक राज्यों में कम बारिश हुई है।'' उत्तर प्रदेश में सामान्य से 65 प्रतिशत कम बारिश हुई है। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 15 जुलाई तक क्रमश: 42 प्रतिशत, 49 प्रतिशत और 24 प्रतिशत बारिश की कमी दर्ज की गई है। बारिश की कमी ने इस क्षेत्र में मुख्य खरीफ फसल धान की बुवाई को प्रभावित किया है।
पलावत ने कहा कि अधिक बारिश से मध्य भारत में कई स्थानों पर बाढ़ जैसी स्थिति पैदा हो गई है और तिलहन, अनाज और दालों को नुकसान पहुंचा है। गुजरात में एक जून से अब तक 86 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। महाराष्ट्र में 46 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है, जबकि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में क्रमश: 12 प्रतिशत और 18 प्रतिशत अधिक बारिश हुई है। महाराष्ट्र, गुजरात और छत्तीसगढ़ में 30 जून तक, क्रमशः 30 प्रतिशत, 54 प्रतिशत और 27 प्रतिशत बारिश की कमी थी। पलावत ने कहा, ‘‘मध्य भारत में जुलाई में बंगाल की खाड़ी में एक के बाद एक कम दबाव वाले क्षेत्रों के उत्पन्न होने के कारण अधिक वर्षा हुई, जिसने मानसून को असामान्य रूप से लंबी अवधि के लिए उत्तर की ओर नहीं बढ़ने दिया। इससे उत्तर भारत शुष्क बना रहा।'' उन्होंने कहा कि ओडिशा और महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और गुजरात में बारिश की तीव्रता आने वाले दिनों में कम होने का अनुमान है क्योंकि मॉनसून उत्तर भारत की ओर बढ़ रही है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने कहा, ‘‘हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, उप-हिमालयी पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर में 18 जुलाई से अगले पांच दिनों तक बारिश बढ़ेगी।'' पंजाब किसान आयोग के पूर्व अध्यक्ष अजय वीर झाखड़ ने कहा कि खरीफ की बुवाई में देरी चिंताजनक है लेकिन अभी स्थिति गंभीर नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘मानसून की विफलता का मुद्रास्फीति पर भारी प्रभाव पड़ेगा, लेकिन अभी इसे विफल नहीं कहा जा सकता है। कुछ जगहों पर यह अनिश्चित हो सकता है लेकिन इसे प्रबंधित किया जा सकता है। हमें घबराने की जरूरत नहीं है।'' खाद्य एवं व्यापार नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने  बताया कि धान की बुआई में देरी हो सकती है, लेकिन अभी भी समय है। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी मान्यता है कि, अगर मानसून अप्रत्याशित रहता है, तो यह उपज को प्रभावित करने वाला है। बारिश की कमी या ऐसे समय में बारिश नहीं होना जब आपको इसकी अधिक आवश्यकता होती है, निश्चित रूप से उत्पादन को प्रभावित करता है।'' गर्म लू के एक शुरुआती हमले ने पहले ही रबी फसलों को प्रभावित किया है, जिससे सरकार को गेहूं के निर्यात पर अंकुश लगाने और उत्पादन पूर्वानुमानों में लगभग 5 प्रतिशत की कटौती करने के लिए प्रेरित किया गया है। यह अनुमान 11.13 करोड़ टन से घटाकर 10.64 करोड़ टन किया गया है। शर्मा ने कहा कि इसीलिए विशेषज्ञ सरकार से गेहूं के निर्यात को विनियमित करने के लिए कह रहे हैं ताकि धान की पैदावार में गिरावट की स्थिति में किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से बचा जा सके। उन्होंने कहा, ‘‘दुनिया एक ऐसे चरण में प्रवेश कर रही है जहां मौसम अतिरेक की घटनाएं अक्सर होती हैं। तापमान और बारिश उबड़ खाबड़ रास्ते पर जा रही है और हमें हमेशा पर्याप्त बफर स्टॉक (खाद्यान्नों का) बनाए रखने की जरूरत है। ये अप्रत्याशित समय हैं जो हमारी खाद्य सुरक्षा के लिए जोखिम पैदा कर सकते हैं।'' उन्होंने कहा, ‘‘हमें राष्ट्रीय हित के बारे में सोचना चाहिए और उद्योग की बातों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।'' भारत चावल का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है, जिसका वैश्विक चावल व्यापार में 37 प्रतिशत से अधिक का योगदान है। उपज में कमी सरकार को अपने निर्यात को विनियमित करने के लिए प्रेरित कर सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के माइक्रोबायोलॉजी डिवीजन के प्रमुख के अन्नपूर्णा ने कहा कि फसल की बुवाई पूरी होने तक सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘कुल उत्पादन पिछले साल के बराबर हो सकता है, भले ही कुल रकबा थोड़ा कम हो जाए। अधिकांश राज्यों में किसान धान की अधिक उपज वाली और रोग प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करेंगे। किस्में अपनी क्षमता का महत्तम उपयोग तब कर पायेंगी जब जलवायु अनुकूल हो और कोई बीमारी का प्रकोप नहीं हो।'' उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अभी कोई चिंता नहीं है। अगर जुलाई के अंत तक रोपाई नहीं की जाती है तो यह चिंता का कारण होगा।'' उन्होंने कहा कि अत्यधिक गर्मी की वजह से उत्पादन में गिरावट की खबरों के बावजूद भारत के पास पर्याप्त गेहूं का भंडार है। आईएआरआई विशेषज्ञ ने कहा, ‘‘हमें इस पर निर्णय लेने की आवश्यकता है कि हम बगैर किसी नुकसान के कितना निर्यात कर सकते हैं। सरकार को एक संतुलन खोजने की जरूरत है। आप निर्यात को पूरी तरह से रोक नहीं सकते हैं। यदि आप करते हैं तो आप (तेल और गैस) आयात नहीं कर पाएंगे। आपका राजस्व कम हो जाएगा। आपको विदेशी मुद्रा की आवश्यकता है।'' पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कृषि मौसम विज्ञान विभाग के के के गिल ने कहा कि राज्य का 98 प्रतिशत फसल क्षेत्र सुनिश्चित सिंचाई के तहत है। ऐसे में किसान मानसून पर निर्भर नहीं हैं।

 

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