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 नायडू ने 'मुफ्त उपहार संस्कृति' को लेकर आगाह किया, राज्यों की वित्तीय स्थिति के लिए खराब बताया
 नयी दिल्ली/हैदराबाद।  उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा वोट बटोरने के लिए किए जाने वाले लोकलुभावन वादों के प्रति आगाह करते हुए मंगलवार को कहा कि ‘‘मुफ्त उपहार की संस्कृति'' के कारण कई राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब हुई है। उन्होंने कहा, "सरकार को निश्चित रूप से गरीबों और जरूरतमंदों का समर्थन करना चाहिए, लेकिन साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा तथा बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए।" इस बीच, तेलंगाना की सत्तारूढ़ पार्टी टीआरएस ने कहा कि समाज के गरीब वर्गों का कल्याण मुफ्त उपहार नहीं होता और सरकारों द्वारा किए गए कल्याणकारी उपाय जारी रहने चाहिए। वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को "मुफ्त उपहार" कहने वालों पर नए सिरे से निशाना साधा और सभी के लिए मुफ्त शिक्षा, विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सेवा और रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने की वकालत करते हुए कहा कि ये मुफ्त उपहार नहीं, बल्कि एक जिम्मेदार सरकार का कर्तव्य है। इस बीच, उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की गई जिसमें कहा गया कि मुफ्त उपहार वितरण से पहले एक आर्थिक प्रभाव मूल्यांकन आवश्यक है, और बजटीय प्रावधानों की पर्याप्तता के बिना संबंधित कवायद की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित की जानी चाहिए। नायडू यहां 2018 और 2019 बैच के भारतीय सूचना सेवा के अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे।
 उपराष्ट्रपति की टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लोगों को 'रेवड़ी संस्कृति' के खिलाफ आगाह किए जाने की पृष्ठभूमि में आई। मोदी ने कहा था कि यह देश के विकास के लिए खतरनाक हो सकती है। उच्चतम न्यायालय ने तीन अगस्त को केंद्र, नीति आयोग, वित्त आयोग और रिजर्व बैंक जैसे हितधारकों से चुनाव के दौरान घोषित किए जाने वाले मुफ्त उपहारों के "गंभीर" मुद्दे पर विचार-मंथन करने और इस चलन से निपटने के लिए रचनात्मक सुझाव देने को कहा था। उपराष्ट्रपति ने विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा वोट हासिल करने के लिए लोकलुभावन वादे किए जाने के प्रति आगाह करते हुए कहा कि मुफ्त उपहार की संस्कृति ने कई राज्यों की वित्तीय स्थिति को खराब कर दिया है। उन्होंने कहा, "सरकार को निश्चित रूप से गरीबों और जरूरतमंदों का समर्थन करना चाहिए, लेकिन साथ ही स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के विकास को प्राथमिकता देनी चाहिए।” हैदराबाद में जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी एवं टीआरएस की विधान परिषद सदस्य कविता कल्वाकुंतला ने कहा कि गरीबों की देखभाल करना राज्य या केंद्र की चुनी हुई सरकार की जिम्मेदारी है। यह उल्लेख करते हुए कि अब कल्याणकारी योजनाओं को मुफ्त उपहार करार देने का चलन है, उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र, राज्य सरकार पर योजनाओं को रोकने के लिए दबाव डाल रहा है। उन्होंने कहा कि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) इसका विरोध कर रही है। कविता ने यह भी कहा कि तेलंगाना सरकार लगभग 250 कल्याणकारी योजनाएं चला रही है। टीआरएस नेता ने कहा, "क्योंकि किसी भी गरीब व्यक्ति का कल्याण सरकार की जिम्मेदारी है और कल्याण को मुफ्त उपहार बताकर आज पूरे देश में जो माहौल बनाया जा रहा है, वह सही नहीं है।" उन्होंने केंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा कि करोड़ों रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डालना ही वास्तविक मुफ्त उपहार है। कविता ने कहा, "मेरा मानना ​​​​है कि मुफ्त उपहार वह है जो अब भाजपा सरकार ने किया है। उसने धोखाधड़ी करने वाली एजेंसियों के 10 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को माफ कर दिया है। वह मुफ्त उपहार है। कमजोर वर्गों के लिए कल्याण कभी भी मुफ्त उपहार नहीं होता। यह हमारा सामाजिक दायित्व है, सरकार का भी।" उन्होंने कहा कि देश विविधता भरा है और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह गरीब तबके की गरीबी के चक्र को तोड़ने तथा उनकी प्रगति में मदद करे। कविता ने कहा कि राज्य सरकारें गरीबों की मदद करने की दिशा में काम कर रही हैं और केंद्र सरकार को इसमें बाधा नहीं डालनी चाहिए। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कल्याणकारी योजनाओं पर अपना विचार तब दोहराया जब उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी में आप सरकार द्वारा स्थापित 500 वां राष्ट्रीय ध्वज फहराया। उन्होंने एक कार्यक्रम में कहा, "हमें ऐसी प्रणाली विकसित करने का संकल्प लेना है जहां मुफ्त उत्कृष्ट शिक्षा, विश्व स्तरीय स्वास्थ्य सेवा और 100 प्रतिशत रोजगार नागरिकों के मौलिक अधिकार बन जाएं।" देश के हर नागरिक को बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने और युवाओं को रोजगार देने पर जोर देते हुए केजरीवाल ने कहा कि जब तक ये बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं होंगी, तब तक देश आगे नहीं बढ़ सकता। आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख केजरीवाल ने कहा, "लेकिन मुझे यह देखकर दुख होता है कि लोग यह कहकर इस विचारधारा की निंदा करते हैं कि मुफ्त शिक्षा का प्रावधान बंद किया जाना चाहिए। मैं यह कहना चाहता हूं कि मुफ्त में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा या सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल देना मुफ्त उपहार नहीं है। यह एक जिम्मेदार सरकार का कर्तव्य है।” उन्होंने कहा कि अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और रोजगार को मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए, न कि मुफ्त उपहार। शीर्ष अदालत में वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका में तर्कहीन मुफ्त उपहार देने के मामले में राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई का आग्रह किया गया। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा कि देश के दो सर्वोच्च आर्थिक निकायों ने उचित वित्तीय और बजटीय प्रबंधन के बिना राज्यों द्वारा मुफ्त उपहार वितरण के दीर्घकालिक प्रभाव को लेकर चिंता व्यक्त की है।

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