भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप क्या है? क्या माया को हटाना हमारा लक्ष्य है या फिर कुछ और? वह लक्ष्य कैसे प्राप्त होगा?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 379
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उद्भूत ज्ञान 'कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के नाम से जाना जाता है। जो वेदों, शास्त्रों, पुराणों, गीता, भागवत, रामायण तथा अन्यान्य धर्मग्रंथों का सार है। जो जाति-पाँति, देश-काल की सीमा से परे है। सभी धर्मों के अनुयायियों के लिये मान्य है, सार्वभौमिक है। आज के युग के अनुरुप है। सर्वग्राह्य है। सनातन है। समन्वयात्मक सिद्धान्त है। सभी मतों, सभी ग्रंथों, सभी आचार्यों के परस्पर विरोधाभाषी सिद्धान्तों का समन्वय है। निखिलदर्शनों का समन्वय है। भौतिकवाद, आध्यात्मवाद का समन्वय है, जो आज के युग की माँग है। विश्व शांति और विश्व बन्धुत्व की भावनाओं को दृढ़ करते हुये शाश्वत शान्ति और सुख का सर्वसुगम सरल मार्ग है। आइये आज के 379-वें अंक में प्रकाशित श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा हमारे लक्ष्य के संबंध में तत्वज्ञान पर विचार करें....
★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)
सर्वशक्ति प्राकट्य हो, लीला विविध प्रकार।
विहरत परिकर संग जो, तेहि भगवान पुकार।।
भावार्थ - जिस स्वरूप में समस्त शक्तियों का पूर्ण प्राकट्य हो एवं अनंत नाम , रूप, गुण, लीला, धाम तथा परिकर भी हों। नित्य विहार भी करते हों। वह भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप है।
• सन्दर्भ ग्रन्थ ::: भक्ति-शतक, दोहा संख्या 24
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★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)
...जब प्रेमानन्द मिलेगा तो माया-निवृत्ति तो अपने आप हो जायेगी। माया-निवृत्ति तुम्हारा एम (लक्ष्य) नहीं है। तुम्हारा एम है श्रीकृष्ण सम्बन्ध होने के नाते श्रीकृष्ण की सेवा और सेवा कैसे होती है? हाथ से, पैर से, आँख से, कान से, नासिका से? न, न, न। ये सेवा नहीं है। ये तो आजकल की सर्विस है। आजकल जो बोलते हैं न सर्विस। सर्विस में क्या होता है? यह शरीर से क्रिया। यह नहीं चलेगा उधर, उधर मन का सरेण्डर हो, फिर इन्द्रियों से सेवा करो। यानी प्रेम में मेन श्रीकृष्ण की सेवा किससे होगी? प्रेम से। इसलिये प्रयोजन बताया गया प्रेम...
• सन्दर्भ पुस्तक ::: नारद भक्ति दर्शन, पृष्ठ संख्या 81
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ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
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