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  हम समस्त जीव वास्तव में किस सम्प्रदाय से हैं? जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचन!!
 जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 398

(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज समन्वयवादी जगदगुरु हैं अर्थात उन्होंने अपना कोई पृथक वाद नहीं चलाया अपितु अपने पूर्ववर्ती समस्त मूल जगदगुरुओं के सिद्धांतों का समन्वय किया। उनकी समन्वयात्मक शैली उनके प्रवचनों व सिद्धान्तों में सर्वथा दृष्टिगोचर होती है। निम्नांकित प्रवचन-अंश में भी हम उनकी इसी विशेषता का दर्शन करते हुये मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे...)

...हम सुख चाहते हैं अपना। बाहर से मतलब नहीं है, अपना सुख चाहते हैं। सुख!! सुख चाहते हो? हाँ, सुख। सब सुख चाहते हैं। हाँ!! तो फिर सब आस्तिक हैं, सब भगवान के भक्त हैं। क्योंकि भगवान का तो नाम ही है सुख, आनन्द। (रसो वै सः - वेद)

इसलिये सब आस्तिक भी हैं, सब वैष्णव भी हैं, सब भगवान के हैं, यानी बस एक सम्प्रदाय है सारी दुनियाँ में। अगर कोई पूछे कि आप किस सम्प्रदाय के हैं? आनन्द सम्प्रदाय के, भगवत सम्प्रदाय के। क्यों? इसलिये कि हम केवल भगवान को चाहते हैं। केवल आनन्द चाहते हैं, हम दुःख नहीं चाहते। और अगर और डिटेल में जाओ, तो फिर ये कह सकते हो कि हम आनन्द चाहते हैं, लेकिन मिला नहीं है। तो भगवान में आनन्द मानने लगे। प्रयत्न कर रहे हैं कि हम आस्तिक बन जायें, वैष्णव बन जायें, शैव बन जायें।

तो विश्व में वर्तमान काल में जो मायाधीन हैं वो आस्तिक नहीं, वैष्णव नहीं बन सकता। जब माया चली जायेगी और भगवान गवर्न करेंगे हमको, तब हम आस्तिक हुये। हर समय रियलाइज करेंगे तब। अंदर बैठे हैं, अंदर बैठे हैं। अभी तो मुँह से बोलते हैं, सबके अंदर बैठे हैं। घट घट व्यापक राम। अरे घट घट है क्या? तुम्हारे घट (हृदय) में है, ये तुम महसूस करते हो? अगर करो तो न कोई गवर्नमेन्ट की जरुरत है, न कोर्ट की, न पुलिस की। हर समय यह फीलिंग रहे कि वो अंदर बैठे हैं।

अगर इसका प्रचार करे, हर दुनियाँ की, देश की गवर्नमेन्ट कि सबके अंदर भगवान बैठे हैं। इसका प्रचार करे, भरे लोगों के, बच्चों के दिमाग में। तो अपराध अपने आप कम हो जायें। सब डरेंगे कि हाँ! वो (भगवान) नोट कर लेंगे, फिर दण्ड देंगे भगवान, इसलिये गलत काम नहीं करना है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० संदर्भ/स्त्रोत : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'मैं कौन? मेरा कौन? विषय पर दिये गये ऐतिहासिक 103 प्रवचनों की श्रृंखला के 67 वें प्रवचन का एक अंश।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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