जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी की जन्मस्थली भक्तिधाम मनगढ़ स्थित 3 दिव्य स्मारकों/मन्दिरों की विशेषता कैसी है?
'जगदगुरुत्तम जयन्ती विशेष' • 20 अक्टूबर
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के पावनातिपरम दिव्य चरित एवं उनके द्वारा प्रदत्त दिव्योपहारों, उपकारों का संस्मरण..)
भाग (1)
• जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त विश्व-प्रेमोपहार
सनातन वैदिक धर्म के अनुसार, यद्यपि भगवान् सर्वव्यापक है तथापि हम साधारण मायिक मनुष्यों को उनका प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता किन्तु मंदिरों एवं विग्रहों में श्री सच्चिदानंदघन प्रभु की उपस्थिति में हमारा विश्वास हो ही जाता है। इसी कारण जीवों के आध्यात्मिक कल्याणार्थ और वास्तविक सिद्धांत के प्रचार हेतु रसिकाचार्यों ने ऐसे भव्य मंदिरों की स्थापना की है। बस इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर सम्पूर्ण जगत में भक्ति तत्व को प्रकाशित करने के लिए पंचम मूल जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने कुछ दिव्योपहार विश्व को समर्पित किये हैं, यथा; वृन्दावन स्थित श्री प्रेम मंदिर, बरसाना स्थित श्री कीर्ति मंदिर तथा अपनी जन्मस्थली मनगढ़ स्थित श्री भक्ति मंदिर। इनमें से एक है, आज हम उनकी जन्मस्थली मनगढ़ जो कि भक्तिधाम के नाम से विख्यात है, वहाँ के 'श्री भक्ति मन्दिर' तथा 'भक्ति भवन' और 'कृपालुं वंदे जगदगुरुं (गुरुधाम) मंदिर' के विषय में जानेंगे :::::::
★ (1) भक्ति मंदिर, श्री भक्तिधाम मनगढ़
० शिलान्यास समारोह : 26 अक्टूबर 1996
० कलश स्थापना : 14 अगस्त 2005
० उदघाटन समारोह : 16-17 नवम्बर 2005
भूतल पर श्री राधाकृष्ण एवं आठ दिशाओं में अष्ट महासखियों के विग्रह, जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज एवं उनके पूज्यनीय माता-पिता जी के विग्रह। प्रथम तल में श्री सीताराम तथा श्री हनुमान जी के विग्रह, साथ ही श्री राधा रानी एवं श्री कृष्ण-बलराम जी के विग्रह। मंदिर के दोनों ओर बने स्मारकों में एक ओर श्रीकृष्ण की प्रमुख लीलाओं की झाँकी है तो दूसरी ओर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के जीवन की प्रमुख घटनाओं की झाँकी है।
धन्यातिधन्य है मनगढ़ भूमि! जिसे गुरुदेव ने अपनी लीलास्थली बनाया. केवल 9 वर्षों में यहाँ इस प्रकार के भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा हो गया। मंदिर की भव्यता, शिल्पकला तथा पच्चीकारी के काम को देखकर दर्शनार्थी आश्चर्य चकित हो जाते हैं। निःसंदेह यह किसी अलौकिक शक्ति का ही कार्य है. अन्यथा इस प्रकार के भव्य मंदिर का निर्माण छोटे से ग्राम में इतने कम समय में असंभव ही है।
इस भक्तिधाम में भक्ति की अजस्र धारा प्रवाहित होती रहती है। एक ओर तीर्थराज प्रयाग परम पावनी गंगा के जल से तो दूसरी ओर श्रीराम जी की लीलास्थली अयोध्या नगरी सरयू के पवित्र जल से प्रक्षालित करके इस मनगढ़ धाम की महिमा व पवित्रता को द्विगुणित करती रहती है। यहाँ का यह भक्ति मन्दिर कलियुग में दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से संतप्त जीवों के लिए एक अनुपम आध्यात्मिक केंद्र है। गुलाबी सफ़ेद पत्थर से निर्मित भक्ति मंदिर में काले ग्रेनाइट के खम्भे बनाये गए हैं। मंदिर की दीवारों पर बहुमूल्यवान पत्थर से श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'भक्ति-शतक' के सौ दोहे लिखे गए हैं, इस ग्रन्थ का एक एक दोहा इतना मार्मिक है कि इस ग्रन्थ रूपी मानसरोवर में अवगाहन करने वाला बरबस प्रेमरस में सराबोर हो जाता है। इसके अलावा 'प्रेम रस मदिरा' के भी कुछ पद अंकित किये गए हैं। यह भक्ति मंदिर श्री राधाकृष्ण एवं श्री कृपालु महाप्रभु का साक्षात् स्वरुप ही है।
★ (2) 'कृपालुं वंदे जगदगुरुं - भक्ति मंदिर (गुरुधाम)'
० उदघाटन समारोह : 13-15 मार्च 2021
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के सर्वधर्म समन्वयाचार्य भक्तियोगरसावतार स्वरूप को प्रकाशित करता हुआ यह भव्यातिभव्य ऐतिहासिक दिव्य मन्दिर, उनके ही श्रीचरणों में उनकी तीनों सुपुत्रियों द्वारा हार्दिक समर्पित है। उनके अनगिनत अनुयायियों के लिये यह स्मारक, केवल स्मारक ही नहीं, वरन अपने परमाराध्य प्रिय गुरुवर के अनन्त उपकारों, उनके दिव्य नाम, रूप, लीला, गुण, धाम के सतत स्मरण का दिव्य आधार है।
★ (3) भक्ति-भवन, भक्तिधाम मनगढ़
० 270 फुट व्यास गोलाकार
० 10000 साधकों के लिए बैठने का स्थान
० बाहर की दीवारों पर भागवत में वर्णित श्री कृष्ण लीलाओं के दर्शन
० भीतर के प्रमुख मंच पर श्री राधाकृष्ण एवं श्री सीताराम जी के विग्रह तथा अष्ट महासखियों के विग्रह
भक्तिधाम में स्थित इस भवन का शिलान्यास 27 फरवरी 2009 एवं उदघाटन 29 अक्टूबर 2012 को हुआ था। इस वातानुकूलित गुम्बदाकार भवन में लगभग 10000 साधक एक साथ बैठकर साधना कर सकते हैं। भारत में शायद इस प्रकार का भवन कहीं भी नहीं है। इसका निर्माण किस प्रकार हुआ? यह आजकल के इंजीनियरिंग कॉलेज में विद्यार्थियों के लिए एक जिज्ञासा का विषय बन गया है।
गुरु पूर्णिमा इत्यादि विशेष पर्वों पर या खचाखच भर जाता है। यहाँ 'राधे' नाम का संकीर्तन इस प्रकार का वातावरण उत्पन्न कर देता है मानो ब्रज रस सिंधु में ज्वार आ गया हो, ऐसा प्रतीत होता है मानों समस्त दैवी शक्तियाँ श्री राधा सुमधुर नाम सुनने के लिए एकत्र हो गई हों। श्री महाराज जी ने कलियुग में भगवन्नाम संकीर्तन को ही भगवत्प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ सर्वसुगम साधन बताया है। उनके अनुसार साधना पद्धति को उजागर करने वाला यह भक्ति भवन उनके सभी साधकों को भक्तियोगरसावतार परम प्रिय गुरुवर की मधुर स्मृतियों के साथ उनके कठिन प्रयास की याद दिलाता है।
श्री कृपालु महाप्रभु जी ने समस्त साधकों की आध्यात्मिक उन्नति के लिये महीने भर की अखण्ड साधना का प्रारम्भ सन 1964 में ब्रजधाम के ब्रम्हाण्ड घाट में किया था। तब वह स्थल अत्यन्त घनघोर जंगल था। तब कहाँ ब्रम्हांड घाट का जंगल और अब कहाँ यह वातानुकूलित भक्ति भवन !! यह सब साधन श्री कृपालु महाप्रभु जी ने साधकों की सुविधा आदि को ध्यान में रखकर अपने कृपालु स्वभाव के वशीभूत होकर इस विश्व को प्रदान किये हैं। भक्ति को जन जन के घर में स्थापित करने वाले जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त भक्ति-भवन एवं भक्ति-मंदिर जैसे उपहारों के लिए सभी साधक उनके चिरकाल तक ऋणी रहेंगे।
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(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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