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  चंद्रमा सदृश मुख वाली मां चंद्रहासिनी
 छत्तीसगढ़ में मां शक्ति के प्राचीन मंदिरों की एक लंबी श्रृंखला है।  शारदीय और चैत्र नवरात्र पर इन मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है। इस दौरान इन मंदिरों को आकर्षक रूप से संवारा जाता है। मां शक्ति की कृपा पाने और उनके दर्शनों के लिए दूर- दूर से लोग पहुंचते हैं।
इन्हीं प्राचीन मंदिरों में से एक हैं मां चंद्रहासिनी देवी मंदिर, जो  राजधानी रायपुर से करीब 221 किमी की दूर जांजगीर-चाम्पा जिले के डभरा तहसील में चंद्रपुर में स्थित है। मांड नदी, लात नदी और महानदी के त्रिवेणी संगम पर स्थित होने के कारण इस मंदिर की महत्ता और बढ़ गई है। इस मंदिर को भक्तगण मां शक्ति के 52 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक मानते हैं। चंंद्रमा की आकृति जैसा मुख होने के कारण इसकी प्रसिद्धि चंद्रहासिनी और चंद्रसेनी मां के रूप में हुई है। प्राचीन ग्रंथों में संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि मां सती का वामकपोल (वामगण्ड) महानदी के पास स्थित पहाड़ी में गिरा, जो बाराही मां चंद्रहासिनी का मंदिर बना और मां की नथनी नदी के बीच टापू में गिरी, जिससे मां नाथलदाई के नाम से मंदिर बना।
मंदिर परिसर में लगातार विस्तार हो रहा है। परिसर में अब आकर्षक रूप से पौराणिक और धार्मिक कथाओं की झाकियां, समुद्र मंथन, महाबलशाली पवन पुत्र, कृष्ण लीला, चीरहरण, महिषासुर वध, नवग्रह की मूर्तियां, शेष शैश्या , सर्वधर्म सभा, चारों धाम की  झांकियां तथा अन्य देवी-देवताओं की भव्य मूर्तियां स्थापित की गई हैं, जो इस मंदिर की शोभा में चार चांद लगा रही है। भक्तों की सुविधा के लिए मंदिर तक पहुंचने के लिए छोटी- छोटी सीढ़ी बनाई गई हैं। वैसे तो यहां पर साल भर भक्तों का आना होता है, लेकिन नवरात्र के मौके पर यहां पर बड़ी संख्या में भक्त माता के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। दूसरे राज्यों से भी लोग मां चंद्रहासिनी के दर्शनों के लिए आते हैं। पूरा मंदिर परिसर माता के जयकारों और भजनों से गूंजता रहता है। भक्त माता के दरबार में नारियल,अगरबत्ती, फूलमाला भेंटकर पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।
 नवरात्र में लोग अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए यहां पर ज्योतिकलश प्रज्ज्वलित करते हैं।  चंद्रहासिनी मंदिर के कुछ दूर आगे महानदी के बीच मां नाथलदाई का मंदिर स्थित है जो  रायगढ़ जिले की सीमा अंतर्गत आता है। मान्यता है कि मां चंद्रहासिनी के दर्शन के बाद माता नाथलदाई के दर्शन भी जरूरी है। मां नाथलदाई को मां चंद्रहासिनी की छोटी बहन माना जाता है।
  किंवदंतियों के अनुसार हजारों वर्षो पूर्व माता चंद्रसेनी देवी सरगुजा की भूमि को छोड़कर उदयपुर और रायगढ़ से होते हुए चंद्रपुर में महानदी के तट पर आ गई। महानदी की पवित्र शीतल धारा से प्रभावित होकर माता यहां पर विश्राम करने लगती हैं। वर्षों व्यतीत हो जाने पर भी उनकी नींद नहीं खुलती।
 एक बार संबलपुर के राजा की सवारी यहां से गुजरती है, तभी अनजाने में चंद्रसेनी देवी को उनका पैर लग जाता है और माता की नींद खुल जाती है। फिर स्वप्न में देवी उन्हें यहां मंदिर निर्माण और मूर्ति स्थापना का निर्देश देती हैं। संबलपुर के राजा चंद्रहास द्वारा मंदिर निर्माण और देवी स्थापना का उल्लेख मिलता है।   राजपरिवार ने मंदिर की व्यवस्था का भार यहां के एक जमींदार को सौंप दिया। उस जमींदार ने माता को अपनी कुलदेवी स्वीकार करके पूजा अर्चना की। इसके बाद से माता चंद्रहासिनी की आराधना जारी है। (छत्तीसगढ़आजडॉटकॉमविशेष)
 

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