गुजरात-छत्तीसगढ़ की मिली जुली संस्कृति में रचा-बसा चंपारण
आलेख-मंजूषा शर्मा
गुजरात-छत्तीसगढ़ की मिली जुली संस्कृति में रचा-बसा चंपारण
छत्तीसगढ़ में वैष्णव और शैव सम्प्रदाय का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है चंपारण। यह वैष्णव सम्प्रदाय के पुष्टि मार्ग के संस्थापक संत वल्लभाचार्य का जन्मस्थान है। इस नगर को एक छोटा गुजरात कहें, तो गलत नहीं होगा। यहां पर हर साल बड़ी संख्या में गुजरात से श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण और संत वल्लभाचार्य के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। छोटे से इस नगर के कोने-कोने में गुजरात की संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती है।
हरे भरे जंगलों से घिरा और गुजरात और छत्तीसगढ़ की मिली जुली संस्कृति में रचा बसा चंपारण काफी शांत इलाका है। राजधानी रायपुर से करीब 46 किमी दूर और राजिम से 15 किमी. की दूरी पर स्थित चंपारण प्रसिद्ध वैष्णव पीठ है। चंपारण को पहले चंपाझर के नाम से जाना जाता था। संत वल्लभाचार्य के सम्मान में यहां दो मंदिर बने हुए हैं। ये हैं- प्राकट्य बैठकजी मंदिर और मूल प्राकट्य मंदिर, जो छठी बैठक कहलाता है।
यहां का संत वल्लभाचार्य मंदिर मुख्य आकर्षण है। यह विशाल मंदिर चांदी के बड़े-बड़े दरवाजों से सुसज्जित है। मंदिर का भव्य प्रवेश द्वार विशेष रूप से लोक कलात्मक अभिव्यक्ति का परिचायक है। मंदिर के अंदर की सांस्कृतिक छटा विशेष आकर्षण का केंद्र है। मंदिर परिसर का भीतरी भाग संगमरमर से बना हुआ है, जहां की नक्काशी और कलात्मकता में गुजरात की झलक मिलती है। मंदिर के अंदर मन को सुकून देने वाली शांति का अहसास होता है। मंदिर परिसर की दीवारें भगवान श्रीकृष्ण की रास लीला और उनके जीवन से जुड़ी कथाओं का सचित्र वर्णन करती नजर आती हैं।
मंदिर परिसर में गुजरात से आए श्रद्धालु भजन-कीर्तन करते नजर आ जाते हैं। मंदिर के बाहर रंगीन स्तम्भ और मेहराबें बनी हुई हैं। यहां भगवान श्रीनाथ जी की प्रतिमा द्वारिका के मंदिर की याद ताजा कर देती है। मंदिर में नित्य पूजा के अलावा विभिन्न विशेष पूजा और अनुष्ठान भी संपन्न होते हैं। यहां हिन्दुओं के लिए निर्धारित उपनयन संस्कार भी किया जाता है।
मंदिर प्रांगण में एक संग्रहालय भी है। जहां गुजराती भाषा में लिखित अनेक धार्मिक पुस्तकें मिल जाती हैं।
यहां पेड़ पौधों को नहीं काटा जाता, इसका उदाहरण मंदिर के अंदर देखा जा सकता है। जहां बिना पेड़ को क्षति पहुंचाए मंदिर का निर्माण किया गया है। यहां की मंदिर समिति के द्वारा यात्रियों के रुकने के लिए सुदामापुरी नाम से एक सुंदर धर्मशाला का निर्माण भी किया गया है।
चंपारण में प्राचीन चंपेश्वर भोलेनाथ का मंदिर भी विशेष आकर्षण का केंद्र है, जो छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध पंचकोशी यात्रा का एक हिस्सा है। इसका उल्लेख 108 ज्योर्तिलिंगों में मिलता है। यहां भगवान भोलेनाथ माता पार्वती और पुत्र गणेश के साथ विराजमान हंै।
चंपारण का सबसे बड़ा आकर्षण यहां का वार्षिक मेला है, जो माघ के महीने (फरवरी से जनवरी) में बड़ी धूमधाम के साथ आयोजित किया जाता है। इसके अलावा संत वल्लभाचार्य के जन्मदिन समारोह में भी यहां हजारों की संख्या में भीड़ जुटती है। यह समारोह बैसाख (अप्रैल - मई) में 11 दिनों के लिए आयोजित किया जाता है।
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