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 ऋग्वेद में हैं सरस्वती की स्तुति के 75 मंत्र
विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी प्राचीन भारत की जीवनधारा थी। वैदिक काल में वह सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय से अवतरित होकर सागर में समाहित होती थी। प्राचीन ऋषि-महर्षियों को वेदों जैसे अनमोल ग्रंथों की रचना करने के लिए प्रेरित करने वाली सरस्वती, महाभारत की भी साक्षी रही थी। उत्तर महाभारत काल में उसके जल स्तर में कमी होने लगी। पौराणिक काल में वह पवित्र सरोवरों का रूप धारण कर लघुरूपधारिणी वंदनीय नदी बनकर रह गयी। कालांतर में सरस्वती जलशून्य होकर विस्मृत हो गयी।
भारत के अधिकांश प्राचीन ग्रंथों में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, मनुस्मृति और महाभारत में सरस्वती का वर्णन किया गया है।
ऋग्वेद में सरस्वती की सर्वाधिक जानकारी है। सरस्वती की स्तुति में 75 मंत्र हैं, जो ऋग्वेद  के नौ मण्डलों में समाहित हैं। इन मंत्रों की रचना विभिन्न ऋषियों ने काल एवं परिस्थितियों के अनुरूप की है। ऋग्वेद में कहा गया है,  एकमेव चैतन्यमयी पवित्र सरस्वती नदी पर्वतों से अवतरित होकर सागर में समाहित होती है। वह इस भूलोक में राजा नहुष की प्रजा को पौष्टिक तत्व, दूध एवं घी प्रदान करती है ।  ऋग्वेद में स्तुति की गयी है,  हे सरस्वती! आप माताओं में श्रेष्ठ माता, नदियों में उत्तम महानदी और देवियों में अग्रगण्य देवी हो। हे माता ! हम सब अज्ञानी हैं। आप हमें ज्ञान प्रदान करें।
ऋग्वेद  में वर्णन मिलता है कि सरस्वती माता से सुखमय जीवन का आश्रय प्राप्त होता है। साथ ही वे अन्न तथा बल प्रदान कर सत्य के मार्ग पर चलने वाली हैं। ऋग्वेद  में एक स्थान पर सरस्वती को सात बहनों वाली और सिन्धु नदी की माता कहा गया है। इन मंत्रों से प्रकट होता है कि ऋग्वेदिक काल में सरस्वती सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय की हिमाच्छादित शिखाओं से अवतरित होकर आज के पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, सिंध प्रदेश व गुजरात क्षेत्र को सिंचित कर शस्य-श्यामला बनती थी। इस सन्दर्भ में ऋग्वेद के एक मंत्र के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शतुद्री (सतलज), परुशणी (रावी), असिक्नी (चेनाब), वितस्ता, आर्जीकीया (व्यास) एवं सिन्धु, पंजाब की ये सभी नदियां सरस्वती की सहायक नदियां थीं।
 मनुस्मृति  के अनुसार  देवनदी सरस्वती व दृषद्वती के मध्य देवताओं द्वारा निर्मित जो भूप्रदेश है उसे ब्रह्मावर्त कहते हैं । स्पष्ट: ब्रह्मावर्त का निर्माण सरस्वती और दृषद्वती द्वारा संचित मृदा से हुआ होगा। यही स्थल महाभारत काल में कुरुक्षेत्र कहलाया।
 ब्राह्मण ग्रंथों में सरस्वती नदी के शिथिल होकर सर्पाकार मार्ग से पश्चिम दिशा में बहने का वर्णन मिलता है। ताण्डय ब्राह्मण  के एक मन्त्र सरस्वती नदी के वृद्धावस्था में प्रवेश होने का संकेत करते हैं। इन ग्रंथों में पहली बार सरस्वती के उद्गम स्थल प्लक्षप्रसवण एवं विनशन, राजस्थान के मरुस्थल का वह स्थान जहां सरस्वती विलुप्त हुई, का उल्लेख मिलता है। इन मंत्रों से ज्ञात होता है कि सरस्वती का उदय हिमालय से होता था। ब्राह्मण काल में सरस्वती राजस्थान के मरुस्थल में विनशन में आकर सूख चुकी थी।
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