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शरद पूर्णिमा पर करें किसकी पूजा, क्या करें रात भर

रायपुर। शरद ऋतु प्रारंभ हो चुकी है और 13 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। राजधानी रायपुर सहित पूरे प्रदेश में इस बार परंपरा के अनुसार  शरद पूर्णिमा मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं।
घरों के अलावा मंदिरों और मठों में शरद पूर्णिमा के मौके पर प्रसाद के रूप में खीर का वितरण किया जाएगा। मां महामाया मंदिर में विधि विधान से पूजा अर्चना की जाएगी।  मंदिर में माता महामाया के साथ ही परिसर में स्थापित सभी श्री विग्रहों का भव्य सिंगार कर आरती उतारी जाएगी। साथ ही मंदिर परिसर में ही रात्रि में खुले आसमान के नीचे खीर बनाकर उसका भोग लगाया जाएगा। इसके बाद यही भोग भक्तों को वितरित किया जाएगा।
माता लक्ष्मी का करें आह्वान
इस त्यौहार का महत्व प्राचीन काल से चला आ रहा है। इस दिन भगवान चंद्र को खीर का भोग लगाकर उसका वितरण किया जाता है। लेकिन इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा का भी विधान है।   धर्म ग्रन्थों के अनुसार इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आती हैं। कहा जाता है कि माता लक्ष्मी देखती हैं कि कौन जाग रहा है इसलिये शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसलिए इस शरद पूर्णिमा को माता लक्ष्मी की पूजा का काफी महत्व है।
कैसे करें माता लक्ष्मी की पूजा
सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद घर में माता लक्ष्मी का आसन बनाएं और उनकी प्रतिमा या फिर तस्वीर को  विराजमान करें। इच्छानुसार उन्हें सुंदर वस्त्राभूषणों से सुभोभित कर उनकी आराधना करें।  विधि विधान से माता की पूजा करें और उन्हें गंध ,अक्षत, धुप, दीप, नैवैद्य, ताम्बूल आदि समर्पित करें। माता के सामने घी का अखंड दीप जलाएं जिसे रात भर जलाकर रखें। लक्ष्मी मंत्र और श्रीसूक्त का पाठ करें। माना जाता है कि लक्ष्मी माता के मंत्रों को कमलगट्टे के माला से जप करने से आर्थिक समस्या दूर होती है। इस दिन पूर्णिमा व्रत कर इस संबंध में  कहानी जरूर सुनें। इससे घर में सुख- शांति और समृिद्ध आती है।  इस दिन माता का कीर्तन तथा रात्रि जागरण करने से लक्ष्मी माता प्रसन्न होती है तथा सुख-समृद्धि का वरदान देती है।
श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है शरद पूर्णिमा
 रास शब्द का शाब्दिक अर्थ है - रसौ वै स: यानी-  एक रस, अनेक रसों में होकर अनन्त रस का रसास्वादन करें , उसे रास कहा जाता है। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास की शुरूआत की थी। इसलिए शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।  श्रीमद् भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध में  शरद पूर्णिमा का सर्वोत्तम वर्णन देखने को मिलता है । 
शरद पूर्णिमा का है चिकित्सीय महत्व
शरद पूर्णिमा के दिन चांद धरती के सबसे निकट होता है इसलिए वह काफी पास नजर आता है। इस वजह से इसका चिकित्सीय महत्व भी है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार वर्ष का मध्य काल होता है शरद ऋतु तथा  चन्द्रमा पूरे साल में केवल पूर्णिमा को ही 16 कलाओं का होता है। इस दिन चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र से संयोग करता है। जिसके स्वामी देवताओं के वैद्य अश्विनी कुमार है, जिन्होंने च्यवन ऋषि को दीर्घायु जीवन प्रदान किया था। माना जाता है  कि इस दिन चांद की किरणों से अमृत रूपी शीतलता बरसती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है। इसलिए इसे शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन खीर बनाकर उसे रात भर खुले आंगन में रखा जाता है तथा सुबह उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। अनेक असाध्य रोगों की दवाएं इस खीर में मिलाकर खिलाई जाती है।  माना जाता है कि प्राकृतिक औषधियों और जड़ी-बूटियोंं  में शरद पूर्णिमा के बाद आरोग्यदायी तत्वों की वृद्धि होती है इसलिए इन जड़ी बूटियों को शरद पूर्णिमा के बाद ही इक_ा किया जाता है।
भगवान वाल्मीकि का जन्म दिवस
शरद पूर्णिमा को आदि कवि भगवान वाल्मीकि का जन्म दिवस मनाया जाता है। भगवान वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की जो संसार का पहला लोककाव्य है।

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