कैसे की जाती है कोरोना वायरस की जांच?
कोरोना वायरस की जांच के लिए 3 तरह की जांच की जा रही है। इनमें ब्लड टेस्ट, स्वाब टेस्ट और सलाइवा टेस्ट शामिल हैं। ऐंटिबॉडी और ऐंटिजन टेस्ट ब्लड टेस्ट का ही हिस्सा हैं। जबकि स्वाब टेस्ट को ही आरटी-पीसीआर टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है। कोरोना जांच के लिए किए जाने वाले ब्लड टेस्ट, स्वाब टेस्ट और सलाइवा टेस्ट में अंतरऐंटिबॉडी और ऐंटिजन टेस्ट दोनों को करने का तरीका लगभग समान होता है। बस इन टेस्ट के दौरान ब्लड के अंदर ऐंटिजन और ऐंटिबॉडी को जांचने के लिए जो कल्चर का होता है, वह कल्चर एक-दूसरे से अलग होता है। कल्चर उस रासायनिक बेस को कहते हैं, जिसमें ऑर्गेनिज़म की जांच की जाती है।
स्वाब टेस्ट- इस टेस्ट में नाक का पिछले हिस्सा से स्वाब लिया जाता है। नाक और गले के बीच के जिस हिस्से से स्वाब निकाला जाता है उसे नेज़ोफ्रेंजयि़ल एरिया कहते हैं। साथ ही स्वाब एक तरह का इंस्ट्रूमेंट होता है, जिसमें एक पतली रॉड पर रुई लगाकर उसके जरिए नेज़ोफ्रेंजयि़ल से ऑर्गेनिज़म (वायरस) लिया जाता है। क्योंकि नेज़ोफ्रेंजयि़ल शरीर का वह हिस्सा होता है, जहां वायरस या वैक्टीरिया लोड सबसे अधिक होता है।
ऐंटिबॉडी और एंटीजन टेस्ट- ऐंटिबॉडी और एंटीजन टेस्ट दोनों को करने का तरीका लगभग समान होता है।
सलाइवा टेस्ट- -सलाइवा टेस्ट को हाल ही एफडीए की तरफ से कोविड-19 की जांच के लिए मजूरी दी गई। क्योंकि हेल्थ एक्सपट्र्स का मानना है कि कुछ पेंशट्स के लिए सलाइवा टेस्ट अधिक सुरक्षित होता है क्योंकि इस टेस्ट में मुंह से सलाइवा लेकर ही जांच की जा सकती है।
नेज़ोफ्रेंजयि़ल टेस्ट (स्वाब टेस्ट) की तुलना में सलाइवा टेस्ट कहीं अधिक सहज भी होता है। हेल्थ एक्सपट्र्स सलाइवा टेस्ट का एक और लाभ बताते हुए यह भी कहते हैं कि सलाइवा टेस्ट के जरिए ना केवल कोविड-19 से संक्रमित पेशंट की जांच की जा सकती है। बल्कि उन लोगों के बारे में भी आराम से पता चल जाता है, जो किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं।
सलाइवा के लिए भी उसी तरह के प्रोटोकॉल को फॉलो किया जाता है, जिस तरह के प्रोटोकॉल का ध्यान नेज़ोफ्रेंजयि़ल टेस्ट के समय किया जाता है। परीक्षण के समय शरीर में वायरस की उपस्थिति का पता लगाने के लिए उसके जेनेटिक कोड के एक सेग्मेंट को बढ़ाया जाता है।
सलाइवा टेस्ट की तुलना में स्वाब टेस्ट को उन प्रोफेशनल्स के स्वास्थ्य की दृष्टि से अधिक सुरक्षित माना जाता है, जो संक्रमित रोगियों के लगातार संपर्क में आते रहते हैं और जिन्हें परीक्षण के लिए रोगियों के सवाइवा का सैंपल लेना होता है।
क्या हैं एंटीजन
अब बात करें एंटीजन की, तो ये वो बाहरी पदार्थ है जो कि हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबॉडी पैदा करने के लिए एक्टिवेट करता है। एंटीबॉडी बीमारियों से लडऩे में कारगर साबित होता है। एंटीजन वातावरण में मौजूद कोई भी तत्व हो सकता है, जैसे कि कैमिकल, बैक्टीरिया या फिर वायरस। एंटीजन नुकसानदेह है, शरीर में इसका पाया जाना ही इस बात का संकेत है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को एक बाहरी हमले से लडऩे के लिए एंटीबॉडी बनाने पर मजबूर होना पड़ा है।
क्या है ऐंटिबॉडी टेस्ट
इसी तरह ऐंटिबॉडी टेस्ट खून का सैंपल लेकर किया जाता है। इसलिए इसे सीरोलॉजिकल टेस्ट भी कहते हैं. इसके नतीजे जल्द आते हैं और ये आरटी-पीसीआर (RT-PCR test (Real-time reverse transcription-polymerase chain reaction) के मुकाबले कम खर्चीला है। ये टेस्ट ऑन लोकेशन पर किया जा सकता है।
हालांकि एंटीबॉडी टेस्ट की कुछ सीमाएं हैं। इसलिए इसे अंतिम नहीं माना जाता है। इस टेस्ट में संक्रमण के बाद एंटीबॉडी बनने का लक्षण पता चलता है। एंटीबॉडी शरीर का वो तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है। संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज बनने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग सकता है, इसलिए अगर इससे पहले एंटीबॉडी टेस्ट किए जाएं तो सही जानकारी नहीं मिल पाती है। इसके अलावा इस टेस्ट से कोरोना वायरस की मौजूदगी की सीधी जानकारी भी नहीं मिल पाती है। इसलिए अगर मरीज का एंटी बॉडी टेस्ट निगेटिव आता है तो भी मरीज का आरटी-पीसीआर टेस्ट करवाया जाता है।
इस टेस्ट को कोरोना की पहचान के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने गोल्ड स्टैंडर्ड फ्रंटलाइन टेस्ट कहा है। इसमें संभावित मरीज के नाक के छेद या गले से स्वाब लिया जाता है. ये टेस्ट लैब में ही किया जाता है। इस टेस्ट में रिबोन्यूक्लीयर एसिड यानी कि आरएनए की जांच की जाती है। आरएनए वायरस का जेनेटिक मटीरियल है।
अगर मरीज से लिए गए सैंपल का जेनेटिक सीक्वेंस SARS-CoV-2 वायरस के जेनेटिक सीक्वेंस से मेल खाता है तो मरीज को कोरोना पॉजिटिव माना जाता है। इस टेस्ट में निगेटिव रिजल्ट तभी आता है जबकि मरीज के शरीर में वायरस मौजूद नहीं रहते हैं।
बता दें कि आरटी-पीसीआर कोरोना टेस्टिंग की महंगी प्रणाली है। इसमें सैंपल से आरएनए निकालने वाली मशीन की जरूरत पड़ती है। इसके लिए एक प्रयोगशाला और प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की भी जरूरत पड़ती है। इस टेस्ट को करने में लैब में ही 4 से 5 घंटे का समय लगता है। इसकी लागत भारत म साढ़े चार हजार रुपये के करीब आती है। हालांकि कोरोना टेस्टिंग की ये सबसे विश्वसनीय पद्धति है।
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