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-मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए की है विशेष पहल
-खिलाड़ियों को पर्याप्त सुविधा मुहैया कराने छत्तीसगढ़ सरकार उठा रही ठोस कदम-खेल अकादमियों का हो रहा निर्माण, बन रहा खेल के लिए माहौलरायपुर। छत्तीसगढ़ में साढ़े तीन साल पहले मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में गठित सरकार ने "गढ़बो नवा छत्तीसगढ़" का नारा दिया था और इसे राज्य का ध्येय वाक्य भी बनाया। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने और खेलों को प्रोत्साहित के लिए "खेलबो, जीतबो, गढ़बो नवा छत्तीसगढ़" का नारा भी दिया गया। इसी नारे के अनुरूप छत्तीसगढ़ में खेलों के लिए माहौल भी बनाने की कवायद भी तेज हो गई और निरंतर खेल व खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराने के लिए ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। इस कड़ी में छत्तीसगढ़ सरकार ने सबसे पहले छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया। वहीं राजधानी रायपुर से लेकर बिलासपुर और बस्तर के नारायणपुर तक में खेल अकादमी को लेकर काम शुरू हो गए।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सरकार में आते ही यह जाहिर कर दिया था कि वे छत्तीसगढ़ में हर वर्ग के लिए और हर क्षेत्र में काम करेंगे। महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को पूरा करने की दिशा में काम करते हुए उन्होंने सबसे पहला निर्णय किसानों के हित में लिया। वहीं गोधन न्याय योजना और ग्रामीण आजीविका पार्क जैसे निर्णयों ने ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का काम किया। मजदूरों के लिए मनरेगा के तहत सर्वाधिक दिवस रोजगार व राजीव गांधी ग्रामीण भूमिहीन कृषि मजदूर न्याय योजना लागू की गई। माताओं, बच्चों से लेकर बुजुर्गों के लिए भी समय-समय पर विभिन्न योजनाएं लायी गईं। इन सबके बीच युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में केन्द्रीत करने के लिए भी छत्तीसगढ़ सरकार ने कवायद की।राजीव युवा मितान क्लब का गठन :छत्तीसगढ़ राज्य की युवा शक्ति को मुख्य धारा से जोड़कर, गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना को साकार करने के उद्देश्य से राजीव युवा मितान क्लब योजना प्रारंभ की गई। इसमें प्रदेश के प्रत्येक ग्राम पंचायत एवं नगरीय निकायों के वार्डों में कुल 13269 राजीव युवा मितान क्लब गठित किए जाने का लक्ष्य है। अब तक कुल 9917 युवा मितान क्लबों का गठन हो चुका है। प्रति क्लब 25 हजार रुपये प्रति तिमाही दिए जाने का प्रावधान है। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 33.325 करोड़ रुपये जिलों को जारी कर दिए गए हैं। राजीव युवा मितान क्लब से जुड़कर युवा खेल, सांस्कृतिक, सामाजिक गतिविधियों एवं जन-जागरूकता बढ़ाने का काम कर रहे हैं।छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण :प्रदेश के सभी खेल अकादमियों के संचालन, खेल अधोसंरचनाओं का विकास एवं समुचित उपयोग तथा खेलों के समग्र विकास हेतु छत्तीसगढ़ खेल विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। खेलों को बढ़ावा देने समेत संबंधित अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए प्राधिकरण के गवर्निंग बॉडी और एक्जिक्यूटिव बॉडी की बैठकें भी हो चुकी हैं। इसके साथ ही खेल प्रशिक्षकों के 08 पदों पर संविदा भर्ती की कार्यवाही पूर्ण की जा चुकी है। वर्तमान में 15 खेल संघ विभाग से मान्यता प्राप्त हैं। वित्तीय वर्ष 2021-22 में 1.43 करोड़ रुपये अनुदान राशि भी जारी किया गया है। वहीं व्यायाम शाला निर्माण के लिए वित्तीय वर्ष 2021-22 में 40.17 लाख रुपये की राशि जारी की गई है।आवासीय खेल अकादमी का संचालन :छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पश्चात् पहली बार खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा आवासीय खेल अकादमी का संचालन प्रारंभ किया गया है। स्व. बी.आर. यादव राज्य खेल प्रशिक्षण केन्द्र बहतराई बिलासपुर में हॉकी, तीरंदाजी एवं एथलेटिक की आवासीय अकादमी की स्थापना की गई है, जिसे भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा खेलो इंडिया स्टेट सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस की मान्यता दी गई है। एक्सीलेंस सेन्टर के लिए मैनपॉवर के हाई परफॉर्मेंस मैनेजर, हेड कोच हॉकी, स्ट्रैंथ एण्ड कंडिशनिंग एक्सपर्ट, फिजियोथेरेपिस्ट, यंग प्रोफेशनल एवं मसाजर (महिला) की नियुक्ति की जा चुकी है तथा शेष की नियुक्ति प्रक्रियाधीन है। गौरतलब है कि 1 जून 2022 से हॉकी की आवासीय अकादमी संचालित है, जिसमें 36 बालक एवं 24 बालिकाएं इस तरह कुल 60 खिलाड़ी प्रशिक्षणरत् हैं। तीरंदाजी तथा एथलेटिक खेल की अकादमी के लिए खिलाड़ियों के चयन ट्रायल लिए जा चुके हैं। आवासीय बालिका कबड्डी अकादमी में प्रवेश हेतु खिलाड़ियों के चयन ट्रायल लिए जा चुके हैं। इसके साथ ही रायपुर में एनएमडीसी लिमिटेड के सहयोग से आवासीय तीरंदाजी अकादमी की स्थापना की जा रही है।गैर आवासीय खेल अकादमी की भी स्थापना :छत्तीसगढ़ में खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा राज्य के खिलाड़ियों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, ताकि राज्य का खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन कर पदक जीत सकें। राज्य के प्रत्येक जिले में विभिन्न खेलों की गैर आवासीय खेल अकादमियां स्थापित करने का लक्ष्य है। वर्तमान में तीरंदाजी प्रशिक्षण उपकेन्द्र शिवतराई (बिलासपुर), गैर आवासीय हॉकी एवं तीरंदाजी अकादमी, सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम रायपुर, गैर आवासीय बालिका फुटबॉल अकादमी स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा रायपुर, गैर आवासीय बालक एवं बालिका एथलेटिक अकादमी स्वामी विवेकानन्द स्टेडियम कोटा रायपुर का संचालन किया जा रहा है।खेलों के लिए बनेंगे सात लघु केन्द्र :मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा खेलों को बढ़ावा देने के लिए की जा पहल के बीच छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों से भारत सरकार की खेलो इंडिया योजना अंतर्गत विभिन्न खेलों के लिए सात लघु केन्द्र स्वीकृत किए गए हैं। इसमें जशपुर में हॉकी, बीजापुर में तीरंदाजी, राजनांदगांव में हॉकी, गरियाबंद में व्हॉलीबॉल, नारायणपुर में मलखम्ब, सरगुजा में फुटबॉल एवं बिलासपुर में तीरंदाजी के लिए खेल लघु केन्द्र की स्वीकृति मिली है। प्रत्येक लघु केन्द्र के लिए सात लाख रुपये के मान से कुल राशि 49 लाख रुपये संबंधित जिला कलेक्टरों को जारी किए जा चुके हैं। खेलो इंडिया लघु केन्द्र के माध्यम से स्थानीय सीनियर खिलाड़ी को प्रशिक्षक के रूप में रोजगार भी उपलब्ध कराया जाएगा।सिंथेटिक टर्फ और ट्रैक का निर्माण :जब से छत्तीसगढ़ में खेल को लेकर राज्य सरकार ने प्रयास तेज किए हैं, केन्द्र की ओर से भी इसमें स्वीकृति दी जा रही है। भारत सरकार की खेलो इंडिया योजना अंतर्गत जशपुर में सिंथेटिक टर्फ युक्त हॉकी मैदान के लिए 5.44 करोड़ रुपये, अम्बिकापुर में मल्टीपरपज इंडोर हॉल के लिए 4.50 करोड़ रुपये, जगदलपुर बस्तर में सिंथेटिक फुटबॉल ग्राउण्ड विथ रनिंग ट्रैक के लिए 05 करोड़ रुपये, महासमुंद में सिंथेटिक सतह युक्त एथलेटिक ट्रैक निर्माण के लिए 6.60 करोड़ की स्वीकृति प्राप्त हुई है। वहीं जगदलपुर बस्तर में निर्माण कार्य पूर्ण हो चुका है। उल्लेखनीय है कि खेलो इंडिया यूथ गेम्स में छत्तीसगढ़ राज्य के खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन कर 2 स्वर्ण, 3 रजत और 6 कांस्य पदक, इस प्रकार कुल 11 पदक हासिल किये हैं। - मनोज सिंह, सहायक संचालकभारतीय संस्कृति में पशु पूजा की परम्परा रही है, इसके प्रमाण सिन्धु सभ्यता में भी मिलते हैं। खेती किसानी में पशुधन के महत्व को दर्शाने वाला पोला पर्व छत्तीसगढ़ के सभी अंचलों में परम्परागत रूप से उत्साह के साथ मनाया जाता है। खेती किसानी में पशुधन का उपयोग के प्रमाण प्राचीन समय से मिलते हैं। पोला मुख्य रूप से खेती-किसानी से जुड़ा त्यौहार है। भादों माह में खेती किसानी का काम समाप्त हो जाने के बाद अमावस्या को यह त्यौहार मनाया जाता है। चूंकि इसी दिन अन्न माता गर्भ धारण करती है अर्थात धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है। इसीलिए यह त्यौहार मनाया जाता है। पोला पर्व महिलाओं, पुरूषों और बच्चों के लिए भी विशेष महत्व रखता है।पोला पर्व के पीछे मान्यता है कि विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आये थे, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है, तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे, कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहां रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था। एक बार कंस ने पोलापुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था और सबको अचंभित कर दिया था। वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था। इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा, इस दिन को बच्चों का दिन कहा जाता है।पोला पर्व के पहले छत्तीसगढ़ में विवाहित बेटियों को ससुराल से मायका लाने की परंपरा है। पोला के बाद बेटियां तीज का त्यौहार मनाती है। तीज के पर्व के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने सामान्य अवकाश की घोषणा की है। पोला त्यौहार किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। किसान इस दिन धान की फसल धान लक्ष्मी का प्रतीक मानकर, अच्छी और भरपूर फसल की कामना की कामना करते हैं। इस दिन सुबह से किसानों द्वारा बैलों को नहलाकर पूजा अर्चनाकर कृषि कार्य के लिए दुगने उत्साह से जुटने प्रण लेते हैं। बैलों की पूजा के बाद किसानों और ग्वालों के द्वारा बैल दौड़ का आयोजन जाता है। छोटे बच्चे भी मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। जहां उन्हें दक्षिणा मिलती हैं। गांवों में कबड्डी, फुगड़ी, खो-खो, पिट्टुल जैसे खेलकूद का आयोजन होता है। मिट्टी के बैलों को लेकर बच्चे घर-घर जाते हैं। यह त्योहार पशुधन संवर्धन और संरक्षण की आज भी प्रेरणा देता है।छत्तीसगढ़ धान की खेती सबसे ज्यादा होती है इसलिए यहां चावल और इससे बनने वाले छत्तीसगढ़ी पकवान विशेषरूप से बनाए जाते हैं। इस दिन चीला, अइरसा, सोंहारी, फरा, मुरखू, देहरौरी सहित कई अन्य पकवान जैसे ठेठरी, खुर्मी, बरा, बनाए जाते हैं। इन पकवानों को मिट्टी के बर्तन, खिलौने में भरकर पूजा की जाती है, इसके पीछे मान्यता है कि घर धनधान्य से परिपूर्ण रहे। बालिकाएं इस दिन घरों में मिट्टी के बर्तनों से सगा-पहुना का खेल भी खेलती हैं। इससे सामाजिक रीति रिवाज और आपसी रिश्तों और संस्कृति को समझने का भी अवसर मिलता है। इस दिन छत्तीसगढ़ में गेड़ी का जुलूस निकाला जाता है। गड़ी, बांस से बनाया जाता है जिसमें एक लम्बा बांस में नीचे 1-2 फीट ऊपर आड़ा करके छोटा बांस लगाया जाता है। फिर इस पर बैलेंस करके, खड़े होकर चला जाता है।पोला पर्व में मिट्टी के खिलौनों की खूब बिक्री होती है। गांव में परंपरागत रूप से कार्य करने वाले हस्तशिल्पी, बढ़ई एवं कुम्हार समाज के लोग इसकी तैयारी काफी पहले से करना शुरू कर देते हैं। इस त्योहार से उन्हें रोजगार भी मिलता है, लोग मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते हुए एक दूसरे के घरों में मिष्ठान पहुंचाते हैं। इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों में मितान बदने की भी परम्परा है। एक दूसरे के घरों में मेल मिलाप के लिए जाते हैं। यह पर्व सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी हमें मजूबत करता है।
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(मिनीमाता पुण्यतिथि-विशेष लेख)
ललित चतुर्वेदी, उप संचालकरायपुर। छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद मिनीमाता बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी थी। अपने प्रखर नेतृत्व क्षमता की बदौलत राष्ट्रीय नेताओं के बीच उनकी अलग पहचान थी। दलित शोषित समाज ही नहीं सभी वर्गो ने उनके नेतृत्व को मान्य किया था। उन्होंने संसद में अस्पृश्यता निवारण अधिनियम पारित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मिनीमाता समाज हितैषी कार्यो की वजह से लोकप्रियता के शीर्ष पर पहंुची।मिनीमाता ने समाजसुधार सहित सभी वर्गों की उन्नति और बेहतरी के कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने जन सेवा को ही जीवन का उद्ेश्य मानकर कार्य किया। उन्होंने नारी उत्थान, किसान, मजदूर, छूआ-छूत निवारण कानून, बाल विवाह, दहेज प्रथा, निःशक्त व अनाथों के लिए आश्रम, महिला शिक्षा और जनहित के अनेक फैसलों और समाज हितैषी कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। मिनीमाता की राजनीतिक सक्रियता और समर्पण से पीड़ितों के अधिकार हेतु संसद में अनेक कानून बने।मिनीमाता का मूल नाम मीनाक्षी देवी था। उनका जन्म 13 मार्च 1913 को असम राज्य के दौलगांव में हुआ। उन्हें असमिया, अंग्रेजी, बांगला, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषा का अच्छा ज्ञान था। वह सत्य, अहिंसा एवं प्रेम की साक्षात् प्रतिमूर्ति थीं। उनका विवाह गुरूबाबा घासीदास जी के चौथे वंशज गुरू अगमदास से हुआ। विवाह के बाद वे छत्तीसगढ़ आई, तब से उन्होंने इस क्षेत्र के विकास के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। गुरू अगमदास जी की प्रेरणा से स्वाधीनता के आंदोलन, समाजसुधार और मानव उत्थान कार्यों में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। स्वतंत्रता पश्चात लोकसभा का प्रथम चुनाव 1951-52 में सम्पन्न हुआ। मिनीमाता सन् 1951 से 1971 तक सांसद के रूप में लोकसभा की सदस्य रहीं। छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद के रूप में दलितों एवं महिलाओं के उत्थान के लिए किए गए कार्यों के लिए उन्हें सदा याद किया जाएगा। अविभाजित मध्यप्रदेश में बिलासपुर-दुर्ग-रायपुर आरक्षित सीट से लोकसभा की प्रथम महिला सांसद चुनी गईं। इसके बाद परिसीमन में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित जांजगीर लोकसभा क्षेत्र से चार बार चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंची।मिनीमाता की स्मृति में छत्तीसगढ़ सरकार ने असंगठित क्षेत्रों के कमज़ोर आय वर्ग की श्रमिक महिलाओं को प्रसूति के लिये आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाली भगिनी प्रसूति सहायता योजना का नाम बदलकर ‘मिनीमाता महतारी जतन योजना’ कर दिया है। मिनीमाता के योगदान को चिरस्थाई बनाने के लिए तत्कालीन मध्यप्रदेश में हसदेव बांगो बांध को मिनीमाता के नाम पर रखकर किसानों के हित में किए गए उनके कार्यो के प्रति श्रद्धांजलि दी गई। आज बिलासपुर और जांजगीर जिले के हजारों किसानों को सिंचाई की सुविधा मिल रही है। मिनीमाता ने उद्योगों में हमेशा स्थानीय लोगों को रोजगार दिए जाने की वकालत की। वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद छत्तीसगढ़ शासन द्वारा मिनीमाता की स्मृति में समाज एवं महिलाओं के उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए मिनीमाता सम्मान की स्थापना की गई। -
संस्कृत दिवस पर विशेष लेख:
ललित चतुर्वेदी ( उप संचालक)रायपुर। संस्कृत दिवस श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् द्वारा राज्य स्तर पर सप्ताह का आयोजन रक्षाबंधन के 3 दिन पूर्व और 3 दिवस बाद तक किया जाता है। विभिन्न जयंतियों - वाल्मिकि जयंती, कालीदास जयंती, गीता जयंती, गुरू पूर्णिमा का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के विद्यालयों की सक्रिय सहभागिता रहती है। संस्कृत दिवस के दिन वेद शास्त्रों की पूजा एवं महत्ता पर चर्चा एवं विद्वत्संगोष्ठी का आयोजन किया जाता है।भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत में भारत का सर्वस्व संन्निहित है। देश के गौरवमय अतीत को हम संस्कृत के द्वारा ही जान सकते हैं। संस्कृत भाषा का शब्द भण्डार विपुल है। यह भारत ही नहीं अपितु विश्व की समृद्ध एवं सम्पन्न भाषा है। भारत का समूचा इतिहास संस्कृत वाड्मय से भरा पड़ा है। आज प्रत्येक भारतवासी के लिए विशेषकर भावी पीढ़ी के लिए संस्कृत का ज्ञान बहुत ही आवश्यक है।संस्कृत भाषा ने अपनी विशिष्ट वैज्ञानिकता के कारण भारतीय विरासत को सहेजकर रखने में अपना अप्रतिम योगदान दिया है। संस्कृत ऐसी विलक्षण भाषा है जो श्रुति एवं स्मृति में सदैव अविस्मरणीय है। अतिप्राचीन काल में संरक्षित-संग्रहित भारत की यह विपुल ग्रंथ सम्पदा संस्कृत के कारण ही सुरक्षित रही है। संस्कृत की महत्ता को सम्पूर्ण विश्व ने स्वीकारा है। संस्कृत को भारतीय शिक्षा में अनिवार्य करना आवश्यक है। शिक्षा में इसकी अनिवार्यता को लेकर केन्द्रीय संस्कृत आयोग ने 1959 में - माध्यमिक स्कूलों में संस्कृत को अनिवार्य शिक्षा करने के साथ मातृभाषा तथा क्षेत्रीय भाषा पढ़ाई जाने की अनुसंशा की। संस्कृत शाला एवं संस्कृत महाविद्यालय प्रारंभ करने के लिए शासन द्वारा 90 प्रतिशत की छूट भी प्रदान की गई है।संस्कृत परिष्कृत, संस्कारित एवं वैज्ञानिक भाषा है। आदिकाल से वेद, रामायण, महाभारत सहित विशिष्ट विषयों को भारतीय मस्तिष्क में संस्कृत के संबल पर सहेज कर रखा है। वेद, रामायण, महाभारत आदि ग्रंथ श्रुति एवं स्मृति परिचारों में सुरक्षित रखते हुए आज लिपिबद्ध रूप में गोचर हो रहे हैं। इससे बड़ा प्रमाण कोई नहीं हो सकता।संस्कृत भाषा का अपना एक वैज्ञानिक महत्व है। नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार संस्कृत एक सम्पूर्ण वैज्ञानिक भाषा है। प्राचीन भारत में बोल-चाल की भाषा में संस्कृत का ही उपयोग किया जाता था। इससे नागरिक अधिक और मानसिक रूप से अधिक संतुलित रहा करते थे। संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण करते समय मानव स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव पड़ता है। मंत्रोच्चार के समय वाइब्रेशन से शरीर के चक्र जागृत होते हैं और मानव का स्वास्थ्य बेहतर रहता है। बहुत सी विदेशी भाषाएं भी संस्कृत से जन्मी हैं। फ्रेंच, अंग्रेजी के मूल में संस्कृत निहित है। संस्कृत में सबसे महत्वपूर्ण शब्द ‘ऊँ’ अस्तित्व की आवाज और आंतरिक चेतना एवं ब्रम्हाण्ड का स्वर है। प्राचीन धरोहर की खोज करने का मुख्य मापदण्ड संस्कृत है। संस्कृत की महत्ता को देखते हुए जर्मनी में 14 से अधिक विश्व विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन कराया जाता है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का कहना है कि हमारे वेद पुराण और गीता आदि संस्कृत में लिखे गए हैं। हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए राज्य शासन द्वारा हर संभव सहयोग दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार के प्रयास से संस्कृत शिक्षा की प्रगति हो रही है। संस्कृत अध्ययन प्रोत्साहन राशि संस्कृत शालाओं में पढ़ने वाले उत्तर मध्यमा स्कूल प्रथम वर्ष कक्षा 11वीं के विद्यार्थियों को दी गई। इससे कक्षा पहली, छठवीं और 9वीं को दी गई थी। गैर अनुदान प्राप्त संस्कृत शालाओं को स्तरवार वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इस वर्ष से गैर अनुदान प्राप्त विद्यालयों को उनके प्रत्येक स्तर को जोड़ते हुए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। प्रवेशिका प्राथमिक स्तर को 10 हजार रूपए प्रतिवर्ष, प्रथमा मिडिल स्तर को 20 हजार रूपए प्रतिवर्ष, पूर्व मध्यमा प्रथम एवं उत्तर मध्यमा प्रथम (हाईस्कूल और हायर सेकेण्डरी) को 40 हजार रूपए प्रतिवर्ष की दर से राशि प्रदान की जाती है। केन्द्रीय जेल रायपुर में संस्कृत पाठशाला संचालित की जा रही है और विगत तीन वर्षों से अम्बिकापुर में भी संस्कृत पाठशाला संचालित हो रही है। पन्द्रह वर्ष बाद संस्कृत उत्तर मध्यमा कक्षा को छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा कक्षा 12वीं के समकक्ष मान्यता प्रदान की गई।भारतीय विरासत के संरक्षण के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के दिग्दर्शन में आयुर्वेद, योग, प्रवचन, वेद, ज्योतिष जैसे संस्कृत के वैज्ञानिक विषयों का अध्ययन-अध्यापन संस्कृत पाठशालाओं में किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ की संस्कृत पाठशालाओं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को संस्कृत में शास्त्रों के अध्ययन के साथ-साथ आधुनिक विषयों जैसे गणित, विज्ञान, वाणिज्य आदि का समन्वित ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। प्रदेश में संस्कृत पढ़ने वाले विद्यार्थी किसी भी क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त करने में समर्थ हैं।प्रदेश में संस्कृत का अतीत समृद्ध है। यहां बलौदाबाजार में तुरतुरिया महर्षि वाल्मीकि और सरगुजा जिले के उदयपुर में रामगढ़ की पहाड़ियां महाकवि कालीदास का क्षेत्र माना जाता है। प्रदेश रामायणकालीन एवं महाभारतकालीन धरमकर्मों से जुड़ा हुआ है। यहां का बड़ा भू-भाग दण्डकारण्य क्षेत्र में आता है, जो ऋषियों का क्षेत्र कहा गया है। छत्तीसगढ़ वासियों का आचार-विचार, व्यवहार और संस्कार संस्कृत से पुरित हैं।प्रदेश के स्कूल शिक्षा मंत्री एवं अध्यक्ष छत्तीसगढ़ संस्कृत विद्यामण्डलम् डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम संस्कृत के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत् है। राज्य के पांच जिलों में संचालित आठ शासकीय अनुदान प्राप्त विद्यालयों को शासन के द्वारा सहायता प्रदान की जाती है। इनमें रायपुर के गोलबाजार में संचालित श्रीराम चन्द्र संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बिलासपुर में श्री निवास संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ जिले के लैलुंगा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय, रायगढ़ के गहिरा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय और गहिरा में ही श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जशपुर जिले दुर्गापारा में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सामरबार और श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत पूर्व माध्यमिक विद्यालय सामरबार, बलरामपुर जिले के जवाहर नगर में श्री रामेश्वर गहिरा गुरू संस्कृत उच्चतर माध्यमिक विद्यालय श्रीकोट शामिल हैं। प्रदेश में एक शासकीय संस्कृत विद्यालय गरियाबंद जिले के राजिम में संचालित है। -
9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष
- उप संचालक, ललित चतुर्वेदीछत्तीसगढ़ और आदिवासी एक-दूसरे के पर्याय हैं। छत्तीसगढ़ के वन और यहां सदियों से निवासरत आदिवासी राज्य की पहचान रहे हैं। प्रदेश के लगभग आधे भू-भाग में जंगल है, जहां छत्तीसगढ़ की गौरवशाली आदिम संस्कृति फूलती-फलती रही है। आज से साढ़े तीन साल पहले नवा छत्तीसगढ़ के निर्माण का संकल्प लेते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने आदिवासियों को उनके सभी अधिकार पहुंचाने की जो पहल शुरू की जिससे आज वनों के साथ आदिवासियों का रिश्ता एक बार फिर से मजबूत हुआ है और उनके जीवन में नई सुबह आई है। राज्य में 42 अधिसूचित जनजातियों और उनके उप समूहों का वास है। प्रदेश की सबसे अधिक जनसंख्या वाली जनजाति गोंड़ है जो सम्पूर्ण प्रदेश में फैली है। राज्य के उत्तरी अंचल में जहां उरांव, कंवर, पंडो जनजातियों का निवास हैं वहीं दक्षिण बस्तर अंचल में माडिया, मुरिया, धुरवा, हल्बा, अबुझमाडिया, दोरला जैसी जनजातियों की बहुलता है।छत्तीसगढ़ में निवासरत जनजातियों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत रही है, जो उनके दैनिक जीवन तीज-त्यौहार एवं धार्मिक रीति-रिवाज एवं परंपराओं के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। बस्तर के जनजातियों की घोटुल प्रथा प्रसिद्ध है। जनजातियों के प्रमुख नृत्य गौर, कर्मा, काकसार, शैला, सरहुल और परब जन-जन में लोकप्रिय हैं। जनजातियों के पारंपरिक गीत-संगीत, नृत्य, वाद्य यंत्र, कला एवं संस्कृति को बीते साढ़े तीन सालों में सहेजने-संवारने के साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार ने विश्व पटल पर लाने का सराहनीय प्रयास किया है। अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का भव्य आयोजन इसी प्रयास की एक कड़ी है। प्रदेश सरकार द्वारा आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान रायपुर में संग्रहालय की स्थापना वास्तव में आदिवासियों की समृद्ध कला एवं संस्कृति और उनके जीवन से सदियों से जुड़ी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का प्रयत्न है। छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद श्री वीरनारायण सिंह की स्मृति में लगभग 25 करोड़ 66 लाख रूपए की लागत से 10 एकड़ भूमि में स्मारक-सह-संग्राहलय का निर्माण नवा रायपुर अटल नगर में पुरखौती मुक्तांगन में किया जा रहा है। इसमें प्रदेश के जनजातीय वर्ग के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का जीवंत परिचय प्रदेश और देश के शोध छात्र और आम जनों को हो सकेगा।छत्तीसगढ़ राज्य के 28 जिलों में से 14 जिले संविधान की 5वीं अनुसूची में पूर्ण रूप से और छह जिले आंशिक रूप से शामिल हैं। राज्य के आदिवासी समुदाय का लिंगानुपात सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन् देश के लिए अनुकरणीय है। इस समुदाय में एक हजार पुरूष पर 1013 महिलाओं की स्थिति लिंगानुपात को लेकर सुखद एहसास है। छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासी क्षेत्रों और वहां के जनजीवन को खुशहाल और समृद्ध बनाने के लिए प्रयासरत है। यही वजह है कि आदिवासियों का भरोसा व्यवस्था में कायम हुआ है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का कहना है लोहण्ड़ीगुड़ा में किसानों की जमीन की वापसी, तेंदूपत्ता संग्रहण दर को 2500 रूपए प्रति मानक बोरा से बढ़ाकर 4 हजार रूपए प्रति मानक बोरा करके, 65 प्रकार के लघु वनोपज की समर्थन मूल्य पर खरीदी एवं वेल्यू एडीशन करके हमने न सिर्फ वनवासियों की आय में बढ़ोत्तरी की है, बल्कि रोजगार के अवसरों का भी निर्माण किया है। छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासी समुदाय के जुड़े हर मसले को पूरी संदेवनशीलता और तत्परता से निराकृत करने के साथ ही उनकी बेहतरी के लिए कदम उठा रही है। वनवासियों को वन भूमि का अधिकार पट्टा देने के मामले में छत्तीसगढ़ देश का अग्रणी राज्य है। अब तक राज्य में 4 लाख 54 हजार से अधिक व्यक्तिगत वनाधिकार पत्र, 45,847 सामुदायिक वन तथा 3731 ग्रामसभाओं को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र वितरित कर 38 लाख 85 हजार हेक्टेयर से अधिक की भूमि आवंटित की गई है, जो 5 लाख से अधिक वनवासियों के जीवन-यापन का आधार बनी है।वन अधिकार पट्टाधारी वनवासियों के जीवन को आसान बनाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा उनके पट्टे की भूमि का समतलीकरण, मेड़बंधान, सिंचाई की सुविधा के साथ-साथ खाद-बीज एवं कृषि उपकरण भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। वन भूमि पर खेती करने वाले वनवासियों को आम किसानों की तरह शासन की योजनाओं का लाभ मिलने लगा है। वनांचल में कोदो-कुटकी, रागी की बहुलता से खेती करने वाले आदिवासियों को उत्पादन के लिए प्रति एकड़ 9 हजार रूपए की इनपुट सब्सिडी देने का प्रावधान राजीव गांधी किसान न्याय योजना के अंतर्गत किया गया है। राज्य में पहली बार कोदो-कुटकी की तीन हजार तथा रागी की 3377 रूपए प्रति क्विंटल की दर से कुल 16 करोड़ 58 लाख रूपए की खरीदी की गई। कोदो-कुटकी, रागी जैसी फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने और वैल्यु एडिशन के माध्यम से किसानों की आय में बढ़ोत्तरी के लिए मिशन मिलेट शुरू किया गया है। वनोपज का आदिवासियों के जीवन से बड़ा ही गहरा ताल्लुक रहा है। बिचौलियों से सरकार ने अब वनवासियों को मुक्ति दिला दी है।बस्तर अंचल के तेजी से विकास के लिए नियमित हवाई सेवा शुरू की गई है। जगदलपुर एयरपोर्ट आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध करायी गई हैं। इस एयरपोर्ट का नामकरण बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के नाम पर किया गया है। अंबिकापुर में शीघ्र हवाई सेवा शुरू करने के लिए दरिमा स्थित मां महामाया एयरपोर्ट में हवाई पट्टी का विस्तार शुरू कर दिया गया है। बीजापुर से बलरामपुर तक सभी अस्पतालों में अत्याधुनिक उपकरणों से सुसज्जित किया गया है। इन अस्पतालों में प्रसुति सुविधा, जच्चा बच्चा देखभाल सहित पैथालाजी लेब और दंतचिकित्सा सहित विभिन्न रोगों के उपचार और परीक्षण की सुविधाएं उपलब्ध करायी गई है। हाट-बाजारों में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना में मेडिकल एम्बुलेंस के जरिए दुर्गम गांवों तक निःशुल्क जांच और उपचार की सुविधा के साथ दवाईयों का वितरण किया जा रहा है। मलेरिया के प्रकोप से बचाने के लिए बस्तर संभाग में विशेष अभियान चलाया गया, जिससे बस्तर अंचल में अब मलेरिया का प्रकोप थम सा गया है।सुकमा जिले के धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र जगरगुण्डा सहित 14 गांवों की एक पूरी पीढ़ी 13 वर्षों से शिक्षा से वंचित थी अब यहां स्कूल भवनों की मरम्मत कर दी गई है। बीजापुर और बस्तर संभाग के जिलों में भी सैकड़ों बंद स्कूलों को फिर से प्रारंभ किया गया है। वर्तमान में प्रदेश में 9 प्रयास आवासीय विद्यालय संचालित हैं, जहां से शिक्षा प्राप्त 97 विद्यार्थी आईआईटी, 261 विद्यार्थी एनआईटी एवं ट्रिपल आईटी, 44 विद्यार्थी एमबीबीएस तथा 833 विद्यार्थी इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन प्राप्त कर तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। राज्य में 73 एकलव्य आवासीय विद्यालय संचालित हैं। शैक्षणिक सत्र 2022-23 में एकलव्य विद्यालयों में 18 हजार 984 विद्यार्थी अध्ययनरत है।बस्तर अंचल के लोहांडीगुड़ा के 1707 किसानों की 4200 हेक्टेयर जमीन जो एक निजी इस्पात संयंत्र के लिए अधिगृहित की गई थी। यह भूमि किसानों को लौटा दी गई है। बस्तर संभाग के जिलों में नारंगी वन क्षेत्र में से 30 हजार 429 हेक्टेयर भूमि राजस्व मद में वापस दर्ज की गई है। इससे बस्तर अंचल में कृषि, उद्योग, अधोसंरचना के निर्माण के लिए भूमि उपलब्ध हो सकेगी। आजादी के बाद पहली बार अबूझमाड़ क्षेत्र के 2500 किसानों को मसाहती पट्टा प्रदान किया गया है। अबूझमाड़ के 18 गांवों का सर्वे पूरा कर लिया गया है, दो गांवों का सर्वे जारी है। -
जयंती पर विशेष
आलेख- मंजूषा शर्मा
महान गायक, संगीतकार, फिल्मकार और अभिनेता किशोर कुमार ने एक से बढ़कर एक गाने दिए हैं। कलाकारों की कई पीढिय़ों के लिए उन्होंने गाना गाया है। उनकी आवाज यदि सुनील दत्त पर अच्छी लगी तो उनके बेटे संजय दत्त के लिए भी उन्होंने गाने गाए। यदि वे आज जीवित होते तो नए युवा कलाकारों के लिए भी गा रहे होते, क्योंकि उन्होंने तो जैसे सिर्फ फिल्मों में गाने और अभिनय करने के लिए ही जन्म लिया था।
आज उनके जन्मदिन के मौके पर उनके गाए कुछ हिट गाने हम यहां पेश कर रहे हैं-
रूप तेरा मस्ताना- किशोर कुमार की आवाज अपने दौर के हर नायक के ऊपर अच्छी लगती है। रूप तेरा मस्ताना गाना राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर पर फिल्माया गया है। यह फिल्म थी आराधना, जो 1969 में प्रदर्शित हुई था। यह अपने दौर की सुपर हिट फिल्म थी। आज भी यह गाना बॉलीवुड का सबसे रोमांटिक गानों में शुमार किया जाता है। राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की शानदार केमेस्ट्री से सजी इस फिल्म में किशोर कुमार की आवाज राजेश खन्ना पर एकदम फिट बैठती है।
जाने जां ढूंढता फिर रहा- फिल्म जवानी दीवानी में यह गाना शामिल किया गया था। इस गाने में किशोर कुमार का साथ दिया था आशा भोंसले ने और यह गाना फिल्म के नायक रणधीर कपूर और नायिका जया बच्चन पर फिल्माया गया था। 1972 में आई इस फिल्म में आर. डी. बर्मन ने संगीत दिया था। फिल्म में जया भादुड़ी ग्लैमरस अवतार में नजर आई थीं। यह एक रोमांटिक फिल्म थी और यह पहला मौका था जब किसी फिल्म में रणबीर और जया की जोड़ी बनी थी। गाने का पिक्चराइजेशन भी काफी खूबसूरत है। नायिका, नायक के साथ लुका छिपी का खेल खेलती है और नायक उसे यह गाना गाकर ढूंढता फिर रहा है। गाने में आशा भोंसले ने भी अपनी आवाज के साथ कमाल का मॉड्यूलेशन किया है, जो पंचम दा की खास स्टाइल रही है।
फूलों के रंग से- किशोर कुमार ने देवआनंद के लिए भी काफी हिट गाने गाए हैं। हालांकि देव साहब की प्रारंभिक फिल्मों में उनके लिए प्लेबैक सिंगिग का काम हेमंत कुमार और रफी साहब ने किया था। लेकिन बाद की फिल्मों में तो किशोर कुमार जैसे देव साहब की ही आवाज बन गए थे। फूलों से रंग से ... गाना फिल्म प्रेम पुजारी का है जिसका निर्माण देव साहब ने अपनी ही फिल्म कंपनी नवकेतन के बैनर तले किया था। यह वह आखिरी फिल्म है जिसका निर्देशन उनके छोटे भाई विजय आनंद ने किया था। इसके बाद वे इस बैनर से हमेशा के लिए अलग हो गए थे। फूलों से रंग से ,,, गाने में देव साहब के साथ नायिका वहीदा रहमान की एक झलक मिलती है, साथ ही सह नायिका नादिया भी नजर आती हैं। गाने के बोल भी दिल को छू लेने वाले हैं। गाने का संगीत सचिन देव बर्मन ने तैयार किया था और यह फिल्म 1970 में रिलीज हुई थी।
मेरे सामने वाली खिड़की में- यह गाना इसलिए भी लोगों खास तौर से पसंद आता है, क्योंकि इसमें किशोर दा भी अपने खास अंदाज में नजर आते हैं। पड़ोसन फिल्म में नायक सुनील दत्त नायिका सायरा बानो को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन वे बेहद बेसुरे हैं। इसलिए गायक किशोर कुमार उनकी मदद के लिए सामने आते हैं और खिड़की के पीछे खड़े वे यह गाना गाते हैं और सुनील दत्त साहब केवल होंठ हिलाते हैं। साथ ही अभिनेता मुकरी, केस्ट्रो मुखर्जी और राजकिशोर टीपा, झाडू लिए म्यूजिक देते हैं। 1968 की इस फिल्म में भी पंचम दा का संगीत था। कॉमेडी से भरपूर इस फिल्म में किशोर कुमार, सुनील दत्त और मेहमूद ने लोगों को काफी हंसाया था। मेरे सामने वाली खिड़की गाने के अलावा फिल्म में कहना है... गीत भी हिट हुआ था।
ईना मीना डीका- यह गाना किशोर कुमार साहब पर ही फिल्माया गया है और यह फिल्म थी आस्था। इस फिल्म में किशोर कुमार की नायिका का रोल वैजयंतीमाला ने निभाया था। गाने में किशोर दा की हुडदंगी स्टाइल साफ झलकती है। गाने में काफी रोमांच है और एक ही सांस में इसे किशोर दा के जैसे इसे गाना किसी आम कलाकार के लिए सहज बात नहीं है। गाने के बोल काफी उटपटांग हैं, लेकिन इसका अपना मजा है। फिल्म में किशोर कुमार मुख्य भूमिका में थे। यह गाना आशा भोंसले की आवाज में भी है, लेकिन किशोर दा वाला वर्जन ज्यादा लोकप्रिय हुआ था। फिल्म का प्रदर्शन 1957 में हुआ था। फिल्म के गीतों को सुरों से सजाया था-सी. रामचंद्र ने।
कुछ तो लोग कहेंगे- राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की मुख्य भूमिका वाली फिल्म अमर प्रेम का यह गाना किशोर दा ने इतनी खूबी से गाया है कि आज भी इसे सुनकर सुकून मिलता है। फिल्म का प्रदर्शन 1972 में हुआ था। आर. डी. बर्मन साहब ने आनंद बख्शी के दिल को छू लेने वाले बोलों को इतने सुंदर ढंग से सुरों में पिरोया है कि आज भी इस फिल्म के गाने लोगों की जुबां पर हैं। इस गाने का फिल्मांकन कोलकाता में हुगली नदी पर बड़े ही पारंपरिक अंदाज में छोटी नाव यानी डोंगी पर हुआ है। इस गाने में किशोर कुमार की आवाज का जादू आज भी बरकरार है। गाने में रोमांस भी है और नायक, नायिका को उसके दुख से निकालने का प्रयास बड़ी ही सरलता से दुनियादारी का आईना दिखाते हुए करता है।
ये जो मोहब्बत है- 70 के दशक में राजेश खन्ना के साथ किशोर दा की आवाज की ऐसी स्पेशल बांडिंग हो गई थी कि हर निर्माता, इस जोड़ी को फिल्म में लेना पसंद कर रहा था। यदि इसमें पंचम दा यानी आर. डी हर्मन साहब भी जुड़े जाते थे, तो गाने तो शानदार बनने ही थे। ये जो मोहब्बत है, इसी तिकड़ी का एक हिट गाना है। यह गाना फिल्म फिल्म कटी पतंग में शामिल किया गया था। 1971 में प्रदर्शित इस फिल्म में राजेश खन्ना के अपोजिट आशा पारेख थीं। इस बार भी पंचम दा का संगीत लोगों के सिर चढ़कर बोला। फिल्म में हर मूड के गाने थे खासकर ये जो मोहब्बत है, में नायक राजेश खन्ना अपने टूटे हुए दिल का दुख बड़े ही बेफिक्री से झटकते हुए नजर आते हैं और प्यार करने से तौबा करते हैं। गाने में राजेश खन्ना की देवदास स्टाइल भी काफी पसंद की गई थी।
मेरे सपनों की रानी - किशोर कुमार और राजेश खन्ना के गानों की बात हो और मेरे सपनों की रानी... गाने का जिक्र न हो तो, बात अधूरी सी लगती है। यह गाना फिल्म आराधना का है। गाने में राजेश खन्ना के साथ अभिनेता सुजीत कुमार भी नजर आते हैं। फिल्म में सुजीत कुमार ने राजेश खन्ना के अच्छे दोस्त का रोल निभाया था। गाने में बॉलीवुड का टिपिकल मसाला एक्शन देखने को मिलता है। राजेश खन्ना खुली जीप में बैठे यह रोमांटिक गाना गाते हैं और सुजीत कुमार माउथऑर्गन पर उनका साथ देते हैं। गाने में नायिका शर्मिला टैगोर की एक झलक मिलती है जो ट्रेन में बैठी हुई है। गाने में खूबसूरत वादियां और पहाड़ों पर खासतौर से चलने वाली छोटी ट्रेन के दर्शन होते हैं। सचिन देव बर्मन साहब ने गाने में ऐसे- वाद्यों का प्रयोग किया है कि गाने के साथ- साथ चलती ट्रेन की आवाज भी संगीत में शामिल हो गई है।
किशोर दा के गाए और भी कई बेहतरीन गाने हैं, जिनकी चर्चा यदि करते जाएं तो न जाने कितने ही दिन बीत जाएं, लेकिन बात खत्म नहीं होगी। फिर कभी इन गानों से जुड़ी यादों को हम ताजा करेंगे। -
मोहम्मद रफी- पुण्यतिथि पर विशेष
आलेख -मंजूषा शर्मा
सुहानी रात ढल चुकी , न जाने तुम कब आओगे, यह गाना मोहम्मद रफी साहब ने गाया है और आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर इसी गाने और इस फिल्म तथा इसके कलाकारों की चर्चा हम यहां कर रहे हैं।
फिल्म थी दुलारी और इसका निर्माण 1949 में हुआ था। फि़ल्म के मुख्य कलाकार थे सुरेश, मधुबाला और गीता बाली। फि़ल्म का निर्देशन अब्दुल रशीद कारदार साहब ने किया था। 1949 का साल गीतकार शक़ील बदायूनी और संगीतकार नौशाद के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आया। 1949 में महबूब ख़ान की फि़ल्म अंदाज़ , ताजमहल पिक्चर्स की फि़ल्म चांदनी रात , तथा ए. आर. कारदार साहब की दो फि़ल्में दिल्लगी और दुलारी प्रदर्शित हुई थीं और ये सभी फि़ल्मों का गीत संगीत बेहद लोकप्रिय सिद्ध हुआ था। फिल्म दुलारी 1 जनवरी 1949 को प्रदर्शित हुई थी। पूरी फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट है।
आज जब दुलारी के इस गाने की चर्चा हो रही है, तो हम बता दें कि इसी फिल्म में लता मंगेशकर और रफ़ी साहब ने अपना पहला डुएट गीत गाया था और यह गीत था-मिल मिल के गाएंगे दो दिल यहां, एक तेरा एक मेरा । फिल्म में दोनों का गाया एक और युगल गीत था -रात रंगीली मस्त नज़ारे, गीत सुनाए चांद सितारे । लता और रफी की यह जोड़ी काफी पसंद की गई और उसके बाद तो उन्होंने ऐसे- ऐसे यादगार गाने दिए हैं कि यदि उनका जिक्र करते जाएं तो न जाने कितने ही दिन गुजर जाएंगे, लेकिन बातें खत्म नहीं होंगी।
फिल्म में मोहम्मद रफ़ी की एकल आवाज़ में नौशाद साहब ने सुहानी रात ढल चुकी गीत.. -राग पहाड़ी पर बनाया । इसी फि़ल्म का गीत तोड़ दिया दिल मेरा.. भी इसी राग पर आधारित है। राग पहाड़ी नौशाद साहब का काफी लोकप्रिय शास्त्रीय राग रहा है और उन्होंने इस पर आधारित कई गाने तैयार किए हैं। इसमें से जो गाने रफी साहब की आवाज में हैं, वे हैं-
1.. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (फिल्म-राम और श्याम)
2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)
3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)
4. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)
5. ओ दूर के मुसाफिऱ हम को भी साथ ले ले (उडऩ खटोला)
फिल्म दुलारी में कुल 12 गाने थे। 14 रील की इस फिल्म में ये गाने कहानी की तरह ही चलते हैं । नायिका मधुबाला के लिए लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी। वहीं गीता बाली के लिए शमशाद बेगम ने दो गाने गाए थे। जिसमें से शमशाद बेगम का गाया एक गाना - न बोल पी पी मोरे अंगना , पक्षी जा रे जा...काफी लोकप्रिय हुआ था। नायक सुरेश के लिए रफी साहब ने आवाज दी थी। इसमें से 9 गाने लता मंगेशकर ने गाए जिसमें रफी साहब के साथ उनका दो डुएट भी शामिल है। रफी साहब ने केवल एक गाना एकल गाया और वह है -सुहानी रात ढल चुकी जिसे आज भी रफी साहब के सबसे हिट गानों में शामिल किया जाता है। पूरा गाना इस प्रकार है-
सुहानी रात ढल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
जहां की रुत बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
अंतरा-1. नज़ारे अपनी मस्तियां, दिखा-दिखा के सो गये
सितारे अपनी रोशनी, लुटा-लुटा के सो गये
हर एक शम्मा जल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल...
अंतरा- 2- तड़प रहे हैं हम यहां, तुम्हारे इंतज़ार में
खिजां का रंग, आ-चला है, मौसम-ए-बहार में
हवा भी रुख बदल चुकी, ना जाने तुम कब आओगे
सुहानी रात ढल......
गाने में नायक की नायिका से मिलने की बैचेनी और इंतजार का दर्द शकील साहब ने अपनी कलम से बखूबी उतारा है, तो रफी साहब ने अपनी आवाज से इस गाने को जीवंत बना दिया है। गाने में शब्दों का भारी भरकम जाल नहीं है बल्कि बोल काफी सिंपल हैं, जो बड़ी सहजता से लोगों की जुबां पर चढ़ जाते हैं। गाने की यही खासियत इसे आज तक जिंदा रखे हुए है। गाने के शौकीन आज भी किसी कार्यक्रम में इसे गाना नहीं भूलते हैं। राग पहाड़ी के अनुरूप इसका फिल्मांकन भी हुआ है और दृश्य में नायक चांदनी रात में सुनसान जंगल में नायिका का इंतजार करते हुए यह गाना गाता है। दृश्य में एक टूटा फूटा खंडहर भी नजर आता है, तो नायक की विरान जिंदगी को दर्शाता है, जिसे बहार आने का इंतजार है।
दुलारी फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी-प्रेम शंकर एक धनी व्यावसायिक का बेटा होता है जिसकी शादी उसके माता-पिता रईस खानदान में करना चाहते हैं। प्रेम शंकर को एक बंजारन लड़की दुलारी से प्यार हो जाता है। यह लड़की बंजारन नहीं बल्कि एक रईस खानदान की बेटी शोभा रहती है, जिसे बंजारे लुटेरे बचपन में उठा लाए थे। यह रोल मधुबाला ने निभाया है। प्रेमशंकर इस लड़की को इस नरक से निकालने के लिए उससे शादी करने का फैसला लेता है। बंजारन की टोली में एक और लड़की रहती है कस्तूरी जिसका रोल गीता बाली ने निभाया है। वह इसी टोली के एक बंजारे लड़के से प्यार करती है, लेकिन उसकी नजर दुलारी पर होती है। प्रेमशंकर के पिता इस शादी के खिलाफ हैं। काफी जद्दोजहद के बाद प्रेमशंकर , दुलारी को इस नरक से निकालने में कामयाब हो जाता है और उनके पिता को भी इस बात का पता चल जाता है कि दुलारी और कोई नहीं उनके ही मित्र की खोई हुई बेटी है जिसे वे बचपन से ही अपनी बहू बनाने का फैसला कर चुके थे। फिल्म के अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है और नायक को अपना सच्चा प्यार मिल जाता है। फिल्म में मधुबाला से ज्यादा खूबसूरत गीता बाली नजर आई हैं, लेकिन उनके हिस्से में सह नायिका की भूमिका ही थी। लेकिन फिल्म के प्रदर्शन के एक साल बाद ही उन्हें फिल्म बावरे नैन में राजकपूर की नायिका बनने का मौका मिला और इसके कुछ 5 साल बाद उन्होंने शम्मी कपूर के साथ शादी कर ली। दुलारी फिल्म मधुबाला की प्रारंभिक फिल्मों में से है। मधुबाला ने जब यह फिल्म की उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल की थी।
फिल्म की पूरी कहानी चंद पात्रों के इर्द-गिर्द ही घूमती है। सुरेश के पिता के रोल में अभिनेता जयंत थे जिनका असली नाम जकारिया खान था, लेकिन उन्हें जाने-माने फिल्म निर्माता और निर्देशक विजय भट्ट ने जयंत नाम दिया था। विजय भट्ट आज की फिल्मों के निर्माता-निर्देशक विक्रम भट्ट के दादा थे। जयंत के बेटे अमजद खान हैं जिन्हें आज भी गब्बर सिंह के रूप में पहचाना जाता है। फिल्म दुलारी में नायक सुरेश की मां का रोल प्रतिमा देवी ने निभाया था, जो ज्यादातर फिल्मों में मां का रोल में ही नजर आईं। उनकी फिल्मों में अमर अकबर एंथोनी, पुकार प्रमुख हैं। आखिरी बार वे वर्ष 2000 में बनी फिल्म पलकों की छांव में दिखाई दी थीं। मधुबाला के पिता के रोल में अभिनेता अमर थे। अभिनेता श्याम कुमार ने खलनायक का रोल निभाया था, जो बाद में रोटी, जख्मी जैसी कई फिल्मों में खलनायक के रूप में नजर आए।
कभी फुरसत मिले तो इस फिल्म को जरूर देखिएगा, अपने दिलकश गानों की वजह से यह फिल्म दिल तो सुकून देती है। हालांकि अब इसके प्रिंट काफी धुंधले पड़ गए हैं। फिल्म की तकनीक और कहानी आज की पीढ़ी को भले ही पुरानी लगे, लेकिन अपने दौर की यह हिट और क्लासी फिल्म है। - -सावधानी रखकर बीमारियों से बचे-अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने समिति सदस्यों के साथ हरेली में गांवों मे किया रात्रि भ्रमणअंधविश्वास, पाखंड व सामाजिक कुरीतियों के निर्मूलन के लिए कार्यरत संस्था अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा हरियाली के प्रतीक हरेली अमावस्या की रात को ग्रामीणजनों के मन से टोनही, भूत-प्रेत का खौफ हटाने के लिए समिति ने गांवों मे रात्रि भ्रमण कर ग्रामीणजनों से संपर्क किया,,समिति के दल ने रात्रि 10.00 बजे से रात्रि 3.00 बजे तक रायपुरा, अमलेश्वर, अमलेश्वरडीह, कोपेडीह, मोहदा झीठ भटगांव, मुजगहन, ,ग्रामों का दौरा किया। रात्रि में नदी तट ,तालाब,श्मशान घाट पर भी गए.कहीं कहीं ग्रामीणों ने जादू-टोना, झाडफ़ूंक पर विश्वास होने की बात स्वीकार की। लेकिन किसी ने भी कोई अविश्वसनीय चमत्कारिक घटना की जानकारी नहीं दी। समिति के दल में शामिल डॉ. दिनेश,मिश्र डॉ.शैलेश जाधव, ज्ञानचंद विश्वकर्मा, डॉ. प्रवीण देवांगन, प्रियांशु पांडे, डॉ.बंछोर ने अनेक ग्रामीणों से चर्चा की.डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा ग्रामीण अंचल में हरियाली अमावस्या (हरेली) के संबंध में काफी अलग अलग मान्यताएं हैं। अनेक स्थानों पर इसे जादू-टोने से जोड़कर भी देखा जाता है, कहीं-कहीं यह भी माना जाता है कि इस दिन, रात्रि में विशेष साधना से जादुई सिद्वियां प्राप्त की जाती है जबकि वास्तव में यह सब परिकल्पनाएं ही हैं, जादू - टोने का कोई अस्तित्व नहीं है तथा कोई महिला टोनही नहीं होती। पहले जब बीमारियों व प्राकृतिक आपदाओं के संबंध में जानकारी नहीं थी तब यह विश्वास किया जाता था कि मानव व पशु को होने वाली बीमारियां जादू-टोने से होती है। बुरी नजर लगने से, देखने से लोग बीमार हो जाते हैं तथा इन्हें बचाव के लिए गांव, घर को तंत्र-मंत्र से बांध देना चाहिए तथा ऐसे में कई बार विशेष महिलाओं पर जादू-टोना करने का आरोप लग जाता है।वास्तव में सावन माह में बरसात होने से वातावरण का तापमान अनियमित रहता है। उमस, नमी के कारण बीमारियों को फैलाने वाले कारक बैक्टीरिया,फंगस वायरस अनुकूल वातावरण पाकर काफी बढ़ जाते हंै। इस समय विश्व में कोरोना के संक्रमण का प्रकोप है जिससे बचाव के लिए भी सावधानी रखना आवश्यक है ,मास्क पहनने ,बार बार हाथ धोने ,आपसी दूरी बनाए रखने सोशल डिस्टेन्स बनाये रखने से कोरोना से बचा जा सकता है वहीं दूसरी ओर गंदगी, प्रदूषित पीने के पानी, भोज्य पदार्थ के दूषित होने, मक्खियां, मच्छरों के बढऩे से बीमारियां एकदम से बढऩे लगती हैं जिससे गांव, गांव में आंत्रशोध, पीलिया, वायरल फिवर,डेंगू, मलेरिया के मरीज बढ़ जाते हंै तथा यदि समय पर ध्यान नहीं दिया गया हो तो पूरी बस्ती ही मौसमी संक्रामक रोगों की शिकार हो जाती है।वहीं हाल फसलों व पशुओं का भी होता है, इन मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए पीने का पानी साफ हो, भोज्य पदार्थ दूषित न हो, गंदगी न हो, मक्खिंया, मच्छर न बढ़े, जैसी बुनियादी बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां रखने से लोग पशु कोरोना तथा अन्य संक्रमणों व बीमारियों से बचे रह सकते हैं। इसे लिए किसी भी प्रकार के तंत्र-मंत्र से घर, गांव बांधने की आवश्यकता नहीं है। साफ-सफाई अधिक आवश्यक है, इसके बाद यदि कोई व्यक्ति इन मौसमी बीमारियों से संक्रमित हो तो उसे फौरन चिकित्सकों के पास ले जाये, संर्प दंश व जहरीले कीड़े के काटने पर भी चिकित्सकों के पास पहुंचे। बीमारियों से बचने के लिए साफ-सफाई, पानी को छानकर, उबालकर पीने, प्रदूषित भोजन का उपयोग न करने तथा गंदगी न जमा होने देने जैसी बातों पर लोग ध्यान देंगे तथा स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहेंगे तो तंत्र-मंत्र से बांधनें की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बीमारियों खुद-ब-खुद नजदीक नहीं फटकेंगी, मक्खियां व मच्छर किसी भी कथित तंत्र-मंत्र से अधिक खतरनाक हैं।डॉ. मिश्र ने कहा ग्रामीणजनों से अपील है कि वे अपने गांव में अंधविश्वास न फैलने दें तथा ध्यान रखें कि गांव में कोई महिला को जादू-टोने के आरोप में प्रताडि़त न किया जाये। कोई भी नारी टोनही नही होती। ग्रामीणों ने आश्वस्त किया कि उनके गांव में कभी भी किसी महिला को टोनही के नाम पर प्रताडि़त नहीं किया जाएगा तथा ध्यान रखेंगे कि आसपास में ऐसी कोई घटना न हो। कुछ ग्रामीणों ने कहा कि यह माना जाता है कि हरेली की रात टोनही बरती (जलती हुई) दिखाई देती है। लेकिन उन्होंने यह भी बताया कि यह सब सुनी सुनायी बातें हैंै। समिति को कोई भी ऐसा प्रत्यक्षदर्शी नहीं मिला जिसने ऐसी कोई चमत्कारिक घटना देखी हो। लेकिन रात्रि में लोग खौफजदा रहते हैं और घर से बाहर निकलने में डरते हैं। ग्रामीण टोनही के अस्तित्व पर या उसके कारगुजारियों पर चर्चा जरूर करते हैं पर यह नहीं बता पाते कि किसी ने हरेली के रात वास्तव में कुछ करते हुए देखा।डॉ. मिश्र ने कहा कि सुनी सुनायी बातों के आधार पर अफवाहें एवं भ्रम फैलता है, वास्तव में ऐसा कुछ भी चमत्कार न हुआ है और न संभव है। इसलिये किसी भी को ग्रामीण को कथित जादू-टोने अथवा टोनही भ्रम व भय में नहीं पडना चाहिए।डॉ. दिनेश मिश्रनेत्र विशेषज्ञअध्यक्ष, अंधश्रद्धा निर्मूलन समितिनयापारा, फूल चौक, रायपुर (छत्तीसगढ़)फोन : 0771-4026101 मो. 98274-00859
- छत्तीसगढ़ में कहा जाता है त्योहारों का द्वार हरेली तिहार। हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का सबसे पहला त्यौहार है, जो लोगों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था से परिचित कराता है। हरेली त्यौहार एक कृषि त्यौहार है। हरेली का मतलब हरियाली होता है, जो हर वर्ष सावन महीने के अमावस्या में मनाया जाता है। हरेली मुख्यतः खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ राज्य में ग्रामीण किसानों द्वारा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि संबंधी सभी यंत्रों जैसे - हल, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई कर उन्हें एक स्थान पर रखकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। घर में महिलाएं तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी व्यंजन खासकर गुड़ का चीला बनाती हैं। हरेली में जहाँ किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं, आपस में नारियल फेंक प्रतियोगिता करते हैं, वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का आनंद लेते हैं।इस लोकप्रिय त्यौहार का नाम हरेली, हिंदी के शब्द हरियाली से आया है श्रावण माह में भारत में मॉनसून रहता है जिसके कारण बारिश होने से चारों तरफ हरियाली होती है इस समय किसान अपनी अच्छी फसल की कामना करते हुए कुल देवता एवं ग्राम देवता की पूजा करते हैं।हरेली त्यौहार के दौरान लोग अपने-अपने खेतों में भेलवा के पेड़ की डाली लगाते हैं इसी के साथ घरों के प्रवेश द्वार पर नीम के पेड़ की शाखाएं भी लगाई जाती हैं। नीम में औषधीय गुण होते हैं जो बीमारियों के साथ-साथ कीड़ों से भी बचाते हैं। लोहार जाति के लोग इस दिन घरांे को अनिष्ट शक्तियों से बचाने के लिए घर के हर दरवाजे पर पाती ठोंकते ह,ैं जोे लोहे का एक नोकीला कील होता है। हरेली तिहार के बाद अनेक त्यौहारांे का सिलसिला शुरू हो जाता हैं।बस्तर क्षेत्र में हरियाली अमावस्या पर अमूस त्यौहार मनाया जाता है। बस्तर क्षेत्र के ग्रामीणों द्वारा अपने खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की पतली छड़ी गाड़कर अमुस त्यौहार मनाया जाता है। इस छड़ी के ऊपरी सिरे पर शतावर, रसना जड़ी, केऊ कंद को भेलवां के पत्तों में बांध दिया जाता है। खेतों में इस छड़ी को गाड़ने के पीछे ग्रामीणों की मान्यता यह है कि इससे कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है। इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है। इसके लिए किसानों द्वारा एक दिन पहले से ही तैयारी कर ली जाती है। जंगल से खोदकर लाई गई जड़ी बूटियों में रसना, केऊ कंद, शतावर की पत्तियां और अन्य वनस्पतियां शामिल रहती है, पत्तों में लपेटकर मवेशियों को खिलाया जाता है। इसी दिन रोग बोहरानी की रस्म भी होती है, जिसमें ग्रामीण इस्तेमाल के बाद टूटे-फूटे बांस के सूप-टोकरी-झाड़ू व अन्य चीजों को ग्राम के बाहर पेड़ पर लटका देते हैं। दक्षिण बस्तर में यह त्यौहार सभी गांवों में सिर्फ हरियाली अमावस्या को ही नहीं, बल्कि इसके बाद गांवों में अगले एक पखवाड़े के भीतर दिन निर्धारित कर मनाया जाता है।छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते साढ़े तीन वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें हरेली तिहार भी शामिल है। इसके पीछे राज्य सरकार की मंशा छत्तीसगढ़ के लोगों को अपनी परंपरा और संस्कृति से जोड़ना है, ताकि लोग छत्तीसगढ़ की समृद्ध कला-संस्कृति, तीज-त्योहार और परंपराओं पर गर्व महसूस कर सकें।छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान होने के कारण हरेली का त्यौहार का और भी महत्व बढ़ जाता है। राज्य सरकार द्वारा कृषि के विकास, पशुधन और इनसे संबंधित अनेक योजनाआंें को लागू किये हैं जिसमें से नरवा-गरवा-घुरवा और बारी प्रमुख हैं। जिसके तहत ग्राम पंचायतों में गौठानों का निमार्ण, गोबर क्रय, जैविक खाद का निमार्ण, पारंपरिक घरेलू बाड़ियों में सब्जियों में फल-फूल उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा हैं।राज्य शासन द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए दो वर्ष पूर्व हरेली के दिन ही गोधन न्याय योजना की शुरुआत की गई थी जिसका प्रतिफल अब देखने को मिल रहा है इस योजना का उद्देश्य लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना भूमि की उर्वरता में सुधार और सुपोषण को बढ़ावा देना है इस योजना से पशुपालको को आमदनी का अतिरिक्त जरिया मिला है। गोबर से वर्मी कंपोस्ट उत्पादन और उपयोग से राज्य में एक नई क्रांति शुरू हुई हैे महिला स्व सहायता समूह में स्वावलंबन के प्रति एक नया आत्मविश्वास जगा है गोबर से विद्युत उत्पादन और प्राकृतिक पेंट बनाए जा रहे हैं।इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए राज्य सरकार इस साल हरेली तिहार से गौठानो में 4 रुपये प्रति लीटर की दर से गोमूत्र खरीदी की शुरुआत करने जा रही है गोमूत्र से महिला स्व सहायता समूह द्वारा जीवामृत और कीट नियंत्रण उत्पाद तैयार यह जाएंगे जिससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और कृषि लागत कम होगी गोमूत्र से बने कीट नियंत्रक उत्पाद का उपयोग किसान रासायनिक कीटनाशक के बदले कर सकेंगे।राज्य सरकार द्वारा प्रकृति से जुड़कर पर्यावरण अनुकूल विकास की दिशा में आगे बढ़ने के लिए वृक्षारोपण प्रोत्साहन जैसी योजनाएं भी राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही है जिसके माध्यम से हरियाली बनाए रखने के लिए निजी भूमि पर नागरिकों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है जैविक खेती और आर्थिक सशक्तिकरण के नए प्रयोगों से आत्मनिर्भर गांवों के रूप में राज्य शासन अपने आदर्श वाक्य गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ को साकार रूप दे रही है।
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श्रीमती दिव्या वैष्णव
श्रावण माह की अमावस्या एक ऐसा दिन जो विशेष भी है और महत्वपूर्ण भी। इस दिन से छत्तीसगढ़ महतारी के आंगन में त्यौहारों का आगमन शुरू हो गया है।
अगर आपका बचपन छत्तीसगढ़ की मिट्टी में गुजरा है तो आज के दिन का महत्व आपने जरूर देखा और समझा होगा लेकिन अगर आप आज के इस विशेष दिन के बारे में नहीं जानते हैं तो आज आपका परिचय छत्तीसगढ़ के पहले त्यौहार 'हरेली तिहार' से होगा।हरेली एक कृषि त्यौहार है और हरियाली शब्द से जुड़ा है।गौर कीजिए,आज आपने जगह जगह घर के दरवाजे पर नीम के पत्तों की डालियां खोंचते (लगाते) हुए बच्चों के झुंड को जरूर देखा होगा।जरा देखिए, आज कैसे हमारे सियान(बुजुर्ग) भी बच्चों और युवा साथियों के साथ बांस की गेड़ी चढ़कर बचपने का आनंद ले रहे हैं।आज घरों में चढ़ी तेलई से गुलगुला भजिये की खुशबू भी आ रही,तो कहीं गुरहा चीला के लिए तवा भी सिझाया जा रहा है।पतरी में अंगाकर रोटी,बरा-पूरी भी सजाई जा रही है।जरा गांव की ओर तो चलिए....हल,नागर,फावड़ा,कुल्हाड़ी,गेंती और भी कृषि उपकरण आज देव तुल्य विराजमान है और हमारे किसान-मितान अपने सभी कृषि औजारों की पूजा कर रहे हैं,सब मिलकर छत्तीसगढ़ राज्य की कृषि संस्कृति के पल्लवन और अच्छी पैदावार के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।दईहान में पशुधन की विशेष पूजा कर उन्हें आटे की लोंदियां खिलाई जा रही है।
हमारे लोहार साथी घरों के दरवाजे पर पाती(लोहे की नुकीली कील)ठोंक रहे हैं ताकि अनिष्ट शक्तियों से घर की रक्षा की जा सके।
घरों की दीवार पर गोबर से बनी ये जो आकृति और पाती आपको दिख रही है, माना जाता है कि ये आकृतियां श्रावण अमावस्या को सिद्ध होने वाली अनिष्ट और नकारात्मक शक्तियों के दुष्प्रभाव से सबकी रक्षा करती हैं।
स्थानीय परंपराएँ एवं लोकाचार उस स्थान विशेष की भौगोलिक और सामाजिक परिवेश पर आधारित होती है,पीढ़ी-दर-पीढ़ी संस्कृति के पालन के साथ साथ इन परम्पराओं के पीछे वैज्ञानिक कारण भी अवश्य होता है।
हरेली त्यौहार मनाए जाने के तरीके को अगर गौर से अवलोकन किया जाए तो कुछ बातें व्यवहारिक रूप से हमें समझ आएंगी।जैसे-
मौसम परिवर्तन(ग्रीष्म से वर्षा) के दौरान घर के प्रवेश द्वार पर कड़वे नीम की पत्तियां एवं गोबर की आकृतियां वातावरण को कीटाणुरहित बनाती है।कड़वे नीम के फायदेमंद गुणों के बारे में तो हर कोई जानता है।
बड़ी फसल लेने के पूर्व आवश्यक उपकरणों, पशुधन आदि की पूजा करना कृषि संस्कृति का द्योतक है।
बांस की बनी गेड़ी चढ़ना जीवन मे संतुलन बनाने की सीख को प्रदर्शित करता है।बच्चे बार बार प्रयास करते हैं, गिरते हैं,सम्हलते हैं,फिर गेड़ी चढ़ते हैं और इस खेल का आनंद लेते हैं।जीवन का भी यही सार है-संतुलित रहते हुए जीवन रूपी गेड़ी का आनंद लेना।
गुड़ स्वास्थ्यवर्धक है,छत्तीसगढ़ के पारंपरिक व्यंजनों में शक्कर की तुलना में गुड़ के प्रयोग का प्रचलन अधिक है।त्यौहारों में घर के भंडार(रसोई) में तेल चढ़ना अनिवार्य होता है ,गेहूं आटे और गुड़ को मिलाकर गुलगुला भजिया बनाया जाता है।गेंहूँ के साथ गुड़ मिलाकर बनाया गया गुरहा चीला हरेली त्यौहार का विशेष व्यंजन है।
हरेली त्यौहार के विशेष महत्व को समझते हुए वर्तमान छ.ग. सरकार द्वारा इस दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है ,ताकि हम सभी छत्तीसगढ़वासी पूरे हर्षोल्लास के साथ हरेली त्यौहार मना सकें।कृषि संस्कृति एवं गोधन के संरक्षण,संवर्द्धन एवं परिवर्द्धन को सर्वोच्च प्राथमिकता में लेते हुए छ.ग. सरकार विभिन्न महत्वपूर्ण योजनाओं का क्रियान्वयन कर रही है।वर्तमान समय में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक तीज-त्यौहार की प्रासंगिकता और जागरूकता को बढ़ाने के लिए छ. ग. सरकार द्वारा विभिन्न स्तर पर सार्थक एवं सराहनीय प्रयास किये जा रहे हैं।पिछले कुछ वर्षों से हरेली से सम्बंधित विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा,ताकि आज की पीढ़ी भी हरेली त्यौहार के महत्व को समझ सके,लोक-परंपराओं को जीवित रख सके। आज आपने गौर किया...अखबारों,सोशल मीडिया के पोस्ट,चौक चौराहों में आयोजनों ,न्यूज़ चैनल प्रसारण आदि के माध्यम से हरेली त्यौहार की जानकारियां एवं विभिन्न गतिविधियां आप तक जरूर पहुंच रही होंगी।अब आप समझ चुके होंगे कि हरेली त्यौहार छत्तीसगढ़ राज्य के लिए कितना महत्वपूर्ण है।वर्षा ऋतु के दौरान प्रकृति स्वयं को साफ करती है,चारों ओर साफ सुथरी हरियाली दिखाई देती है,प्रकृति का नया संस्करण प्रस्तुत होता है....हर्षोल्लास और लोक-परम्परा के साथ प्रकृति की इस धुली हुई हरियाली का स्वागत करना ही हरेली है।
आप सभी को छत्तीसगढ़ के पहिली तिहार-हरेली तिहार की गाड़ा गाड़ा बधई।
जय जोहार
जय छत्तीसगढ़
---श्रीमती दिव्या वैष्णव (रा.प्र.से.)
विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी
कार्यालय मंत्री गृह, जेल, लोक निर्माण, पर्यटन, धर्मस्व एवं धार्मिक न्यास -
--श्री मीर अली मीर
छत्तीसगढ़ में अपनी मेहनत से उपजी हरियाली को हरेली के रूप में मनाने का संस्कार है। कृषि युग की शुरूआत के बाद से हरियाली ने हमारे शरीर और दिमाग को ढक लिया है। प्रकृति चक्र जेठ-बसाख के तेज गर्मी, आषाढ़ की बूंद पर, मिट्टी की सुंगध और हरियाली कल्पना को याद करने के लिए सारा ज्ञान मन में समा जाता है। यह हमारे किसानेां और पौनी- पसारियों भाईयों, बैसाख की अक्ती, आषाढ़ की रथयात्रा और सावन की हरेली की तरह लगता है, जहां वे भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए मेहनत करते है। हर समय, कड़ी मेहनत के बाद किसान उत्साह की कामना करते है। मंगल का उत्साह समृद्धि लाता है। तन और मन में खुशहाली लाती हैं। खेती जीवन का सार है। जो मेहनतकश है, वह अपने मातृत्व में एक अलग स्थान का आनंद लेता है। खेती करते हुए किसान जीवन भर जमीन की जुताई करते रहेंगे। हरेली का दिन अमावस्या के अंधेरा मिटाकर प्रकाश में जाने का संदेश देता है। सब कुछ सबके मन में हरियाली लाता है। मवेशी हमारी कृषि संस्कृति का आधार हैं। हमें बुवाई के लिए धान रखने और खलिहान में सम्मान के साथ भंडारण करने की परंपरा को जीवित रखना है।
(1) हरेली में गौधन की पूजा करने की रस्म के साथ चावल आटे की लोंदी एवं जड़ी-बूटियों को मिलाकर मवेशियों को खिलाया जाता है, ताकि बारिश के मौसम में मवेशियां बीमार न हो। अंडे के पौधे की पत्तियों में नमक रखकर मवेशियों को चटाई जाती है।
(2) जीवन का आधार है किसानी और पशुधन- कृषि और पशुधन जीवन का आधार है, जहाँ पृथ्वी है, वहाँ हवा है, वहाँ पानी है, वहाँ हरियाली है, तभी हरी मिट्टी में नए अंकुरों की पूजा एक रस्म बन गई।
(3) कृषि उपकरण- हल, रापा, कुदाल, कांटा को तालाब में धोते हैं, फिर तेल लगाकर तुलसी चौरा के सामने सजाकर रखा जाता है। पूजन के लिए चीला प्रसाद बनाया जाता है। पूजा में सादगी छत्तीसगढ़ की संस्कृति की पहचान है। चंदन का तिलक लगाते हैं और पूजा करते हैं।
(4) पांच पर्वों का महत्व- राउत, नाई, लोहार, धोबी और कोटवार का महत्व हरेली त्योहार में बढ़ जाता है। नीम पत्ते को घर के सामने लगाकर हरियाली का संदेश देते है। लोहार घर के मुख्य दरवाजे पर किला ठोककर घर में किसी प्रकार के विपदा न आए करके पूजा करते है।
(5) वर्षा ऋतु की बीमारी से बचाने के लिए घर और गौठान में गोबर से घेरे बनाए जाते है।
(6) हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला कार्यक्रम होता। गेड़ी के पीछे एक महत्वपूर्ण पक्ष है जिसका प्रचलन वर्षा ऋतु में होता है। वर्षा के कारण गांव के अनेक जगह कीचड़ भर जाती है, इस समय गाड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता। बच्चे गेड़ी के सहारे कहीं से भी आ जा सकते हैं। गेड़ी का संबंध कीचड़ से भी है। कीचड़ में चलने पर किशोरों और युवाओं को गेड़ी का विशेष आनंद आता है। रास्ते में जितना अधिक कीचड़ होगा गेड़ी का उतना ही अधिक आनंद आता है।
(7) हरेली के दिन विभिन्न खेलकूद का आयोजन किया जाता है, जिसमें नारियल फेंक बड़ों का खेल है इसमें बच्चे भाग नहीं लेते। प्रतियोगिता संयोजक नारियल की व्यवस्था करते हैं, एक नारियल खराब हो जाता है तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है। खेल प्रारंभ होने से पूर्व दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा। प्रतिभागी शर्त स्वीकारते हैं, जितनी बात निश्चित किया गया है उतने बार में नारियल दूरी पार कर लेता है तो वह नारियल उसी का हो जाता है। यदि नारियल फेंकने में असफल हो जाता है तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है। नारियल फेंकना कठिन काम है इसके लिए अभ्यास जरूरी है। पर्व से संबंधित खेल होने के कारण बिना किसी तैयारी के लोग भाग लेते है।
(8) हरियाली के दिन घरों में चीला चौंसेला, बोबरा जैसे पकवान तैयार किए जाते है।
(9) छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के बाद से प्रदेश सरकार हमारे संस्कृति और संस्कार को फैला रहे हैं, तभी गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ के कल्पना को सकार कर सकते है।----लेखकः छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध कवि हैं।
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हरेली तिहार ले ‘गौमूत्र खरीदी’ के होही सुरूआत
’आत्मनिर्भरता अउ रोजगार बढ़ाए बर एक अउ प्रयास’
----लेखकः- तेजबहादुर सिंह भुवाल, सहायक सूचना अधिकारी
छत्तीसगढ़ के गांव-गवई के मनखे मन के जिन्दगी मा रचे-बसे हे खेती किसानी। अउ इही खेती किसानी से जुड़े हे हमर पहली तिहार हरेली। छत्तीसगढ़ मा लोक संस्स्कृति, परम्परा ले जुड़े अउ सहेजे बर ये तिहार ला सब्बो लोगन मन हंसी, खुसी, आस्था, प्रेम व्यवहार अउ धूमधाम से मनाथे। इही दिन ले तिहार के सुरूआत हो जथे। सावन के आये ले चारो मुड़ा हरियर-हरियर रूख, राही, पेड़, झाड़, खेत-खलियान हा मन ला मोह डारथे। ये तिहार ला किसान मन खेती के बोआई, बियासी के बाद मनाथे। जेमा जुड़ा, नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा ला चक उज्जर करके रखथे अउ गौधन के पूजा-पाठ करथे संग मा कुलदेवी-देवता, इन्द्र देवता, ठाकुर देव ला घलो सुमरथे। ये दिन किसान मन हवा, पानी अउ भुईयां ला सुघ्घर बनाये राखे बर और सुख-सांति बनाये रखे के प्रार्थना करथे। बैगा मन रात में गांव के सुरक्षा करे बर पूजा-पाठ करथे। धान के कटोरा छत्तीसगढ़ महतारी ला किसान मन खेती-किसानी के बढ़त और बिकास बर सुमरथे। येखर सेती तो हमर छत्तीसगढ़ के बात ही कुछ अलग हे-
‘‘अरपा पैरी के धार
महानदी हे अपार
इंद्रावती ह, पखारय तोर पईयां
महू पांवे परव तोरे भुइया
जय हो जय हो छत्तीसगढ़ मईयां’
ऐसे लागथे जैसे कि हमर छत्तीसगढ़ महतारी हा हरियर लुगरा पहिन के रंग-बिरंगी फूल, माला में सजे, अंग-अंग मा नदिया-नरवा समाए, धन-धान्य ले धरे हवये, अउ आसीरबाद देवत हे।
छत्तीसगढ़ मं ये बखत हरेली तिहार म खुसहाली कई गुना बढ़ही। राज्य सासन हा अपन महत्वाकांक्षी योजना ‘‘गोधन न्याय योजना’’ के सुरूआत 2020 में करे रिहिस। इहीं योजना ला आगे बढ़ावत हरेली तिहार ले ‘‘गो-मूत्र खरीदी’’ करे के सुरूआत करत हवए। प्रदेस के मुख्यमंत्री हा ग्रामीण अर्थव्यवव्था का सुदृढ़ करे बर ‘‘सुराजी गांव योजना’’ चालू करके किसान मन बर उखर नदाये लोक संस्कृति अउ पारंपरिक चिन्हारी ला वापस लाए के प्रयास करत हे। सासन के प्रयास हे कि प्रदेस के लईका मन हा अपने भुईया, संस्कृति, आस्था, परम्परा ला जानय, समझये अउ बचा के राखे राहय।
सासन हा ‘‘गोधन न्याय योजना’’ ले किसान मन ला रोजगार के अवसर अउ आर्थिक रूप ले लाभ पहुचावत हे। सासन हा राज्यभर के गोठान म गोवंसीय पसु के पालक मन ले गोबर ला सासकीय दर 2 रूपया किलो में लेवत हे। इही गोबर ला बने सुघ्घर खातू बनाके 10 रूपया किलो में किसान मन ला बेचे जावत हे। गोबर ले गमला, पेंट अउ कतको सामान बना के बेचत हे। सासन हा हरेली तिहार ले योजना ला आगे बढ़ावत ‘‘गोमूत्र खरीदी’’ करे के निर्णय लेहे। गौठान मन में गौ-मूत्र ला 4 रूपया लीटर में खरीदे जाही। ये गौ-मूत्र ले जीवामृत अउ खेती-किसानी के बउरे बर दवई बनाए जाही। येखर ले किसान अउ मजदूर मन ला काम-बूता अउ ज्यादा कमाये के नफा घलो मिलही। येखर ले जैविक खेती ला बढ़ावा मिलही अउ किसान मन ला खेती-किसानी करे बर खरचा कम लगही। खेत में पैदावारी घलोक बढ़ही।
अवईया साल मा योजना ले अउ जैविक खेती ला बढ़ावा मिलही, सासन के प्रयास ले गांव अउ सहर म रोजगार बढ़त जाही। गौपालन अउ गौ-सुरक्षा ला प्रोत्साहन के संगे-संग पसुपालक मन ला आर्थिक लाभ घलोक होही। सासन के प्रयास से ऐसे लगथे कि हमर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम-स्वराज के सपना अब आत्मनिर्भर गांव के रूप मा छत्तीसगढ़ में साकार होवत दिखत हे।
सासन ह ‘‘गोधन न्याय योजना’’ लागू करके पसुपालक मन के आय म वृद्धि, पसुधन विचरण अउ खुल्ला चरई म रोक, जैविक खाद के उपयोग ला बढ़ावा अउ रासायनिक खातू के उपयोग म कमी, गांव-गांव म जैविक खाद के उपलब्धता बनाये बर, स्थानीय स्व सहायता समूह ला रोजगार दे बर, भुइंया ल अउ उपजाउ बनाए बर, जहर रहित अन्न उपजाए बर अउ सुपोषण ल बढ़ाए बर जोर देवत हे।
राज्य के महत्वाकांक्षी योजना ‘‘नरवा, गरूवा, घुरूवा व बाडी’’ के माध्यम से मनरेगा अउ स्व सहायता समूह में सबे झन ला जोड़ के काम करत हे। ऐखरे सगे-संग ‘‘गोधन न्याय योजना’’ से गोठान मा बड़े संख्या मा रोजगार उपलब्ध कराये जात हे। कोनो मजदूर, किसान ला गांव-सहर छोड़ के जाए के जरूरत नई पड़ये। सब्बो झन ला सुघ्घर काम-बूता मिलत हे।
त बताओ संगवारी हो ये सब खुसी मिलही त हमर पहिली हरेली तिहार ला बने मनाबो ना। तिहार ला खेती-किसानी के बोअई, बियासी के बाद बने सुघ्घर मनाबो। जेमा नागर, गैंती, कुदारी, फावड़ा ला चक उज्जर करके अउ गौधन के पूजा-पाठ करके संग मा कुलदेवी-देवता ला सुमरबो। धान के कटोरा छत्तीसगढ़ महतारी ला, हमर खेती-किसानी के उन्नति अउ विकास बर सुमरबो।
तिहार में गांव मा घरो-घर गुड़-चीला, फरा के संग गुलगुला भजिया, ठेठरी-खुरमी, करी लाडू, पपची, चौसेला, अउ बोबरा घलो बनही। जेखर ले हरेली तिहार के खुसी अउ बढ़ जाही। ये साल हरेली अमावस्या गुरूवार के पड़त हे। सब किसान भाई मन अपन किसानी औजार के पूजा-पाठ कर गाय-बैला ला दवई खवाही, ताकि वो हा सालभर स्वस्थ अउ सुघ्घर रहाय। ये दिन गाय-गरवा मन ला बीमारी ले बचाय बर बगरंडा, नमक खवाही अउ आटा मा दसमूल-बागगोंदली ला मिलाके घलो खवाये जाथे। ये दिन शहर के रहईयां मन घलो अपन-अपन गांव जाके तिहार ला मनाथे।
हरेली तिहार मा लोहार अउ राऊत मन घरो-घर दुआरी मा नीम के डारा अउ चौखट में खीला ठोंकही। ऐसे केहे जाथे कि अइसे करे ले घर के रहैय्या मन के संकट ले रक्षा होथे। ये दिन लईका मन बांस ले गेड़ी बनाथे। गेड़ी मा चढ़के लईका मन रंग-रंग के करतब घलो दिखाते। राज्य सासन हा गांव-गांव अउ स्कूल मा विसेस आयोजन करत हे, जेमा गांव मा लईका मन बर गेड़ी दउड़, खो-खो, कबड्डी, फुगड़ी, नरियल फेक अउ नाचा के आयोजन घलो करे जाथे। ये प्रयास के उद्देश्य हे कि प्रदेस के लईका मन ला हमर लोक संस्कृति, परम्परा ला जानये, समझये, जुड़ये अउ सहेज के राखये राहेय।
छत्तीसगढ़िया मन ल हरेली तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधई, जय छत्तीसगढ़ महतारी। -
हरेली तिहार छत्तीसगढ़ का सबसे पहला त्यौहार है, जो लोगों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति और आस्था से परिचित कराता है। हरेली का मतलब हरियाली होता है, जो हर वर्ष सावन महीने के अमावस्या में मनाया जाता है। हरेली मुख्यतः खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है। इस त्यौहार के पहले तक किसान अपनी फसलों की बोआई या रोपाई कर लेते हैं और इस दिन कृषि संबंधी सभी यंत्रों नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि के काम आने वाले सभी तरह के औजारों की साफ-सफाई कर उन्हें एक स्थान पर रखकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। घर में महिलाएं तरह-तरह के छत्तीसगढ़ी व्यंजन खासकर गुड़ का चीला बनाती हैं। हरेली में जहाँ किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं, आपस में नारियल फेंक प्रतियोगिता करते हैं, वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते हैं।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के लिए शासन द्वारा बीते साढ़े तीन वर्षों के दौरान उठाए गए महत्वपूर्ण कदमों के क्रम में स्थानीय तीज-त्यौहारों पर भी अब सार्वजनिक अवकाश दिए जाते हैं। इनमें हरेली तिहार भी शामिल है। जिन अन्य लोक पर्वों पर सार्वजनिक अवकाश दिए जाते है - तीजा, मां कर्मा जयंती, मां शाकंभरी जयंती (छेरछेरा), विश्व आदिवासी दिवस और छठ। अब राज्य में इन तीज-त्यौहारों को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है, जिसमें शासन भी भागीदारी बनता है। इन पर्वों के दौरान महत्वपूर्ण शासकीय आयोजन होते है तथा महत्वपूर्ण शासकीय घोषणाएं भी की जाती है। वर्ष 2020 में हरेली पर्व के ही दिन मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने गोधन न्याय योजना की शुरूआत की थी जो केवल 02 वर्षों में अपनी सफलता को लेकर अन्य राज्यों के लिए नजीर बन गई है। इस योजना का देश के अनेक राज्यों द्वारा अनुसरण किया जा रहा है। आगामी हरेली तिहार 28 जुलाई से इस योजना में और विस्तार करते हुए अब गोबर के साथ-साथ गोमूत्र खरीदी करने की भी निर्णय लिया गया है।
हरेली के दिन गांव में पशुपालन कार्य से जुड़े यादव समाज के लोग सुबह से ही सभी घरों में जाकर गाय, बैल और भैंसों को नमक और बगरंडा का पत्ता खिलाते हैं। हरेली के दिन गांव-गांव में लोहारों की पूछपरख बढ़ जाती है। इस दिन गांव के लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीष देते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है। इसके बदले में किसान उन्हे दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि देते हैं। ग्रामीणों द्वारा घर के बाहर गोबर से बने चित्र बनाते हैं, जिससे वह उनकी रक्षा करे।
हरेली से तीजा तक होता है गेड़ी दौड़ का आयोजन
हरेली त्यौहार के दिन गांव के प्रत्येक घरों में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, मुख्य रूप से यह पुरुषों का खेल है घर में जितने युवा एवं बच्चे होते हैं उतनी ही गेड़ी बनाई जाती है। गेड़ी दौड़ का प्रारंभ हरेली से होकर भादो में तीजा पोला के समय जिस दिन बासी खाने का कार्यक्रम होता है उस दिन तक होता है। बच्चे तालाब जाते हैं स्नान करते समय गेड़ी को तालाब में छोड़ आते हैं, फिर वर्षभर गेड़ी पर नहीं चढ़ते हरेली की प्रतीक्षा करते हैं। गेड़ी के पीछे एक महत्वपूर्ण पक्ष है जिसका प्रचलन वर्षा ऋतु में होता है। वर्षा के कारण गांव के अनेक जगह कीचड़ भर जाती है, इस समय गाड़ी पर बच्चे चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर आते जाते हैं उसमें कीचड़ लग जाने का भय नहीं होता। बच्चे गेड़ी के सहारे कहीं से भी आ जा सकते हैं। गेड़ी का संबंध कीचड़ से भी है। कीचड़ में चलने पर किशोरों और युवाओं को गेड़ी का विशेष आनंद आता है। रास्ते में जितना अधिक कीचड़ होगा गेड़ी का उतना ही अधिक आनंद आता है। वर्तमान में गांव में काफी सुधार हुआ है गली और रास्तों पर काम हुआ है। अब ना कीचड़ होती है ना गलियों में दलदल। फिर भी गेड़ी छत्तीसगढ़ में अपना महत्व आज भी रखती है। गेड़ी में बच्चे जब एक साथ चलते हैं तो उनमें आगे को जाने की इच्छा जागृत होती है और यही स्पर्धा बन जाती है। बच्चों की ऊंचाई के अनुसार दो बांस में बराबर दूरी पर कील लगाते हैं और बांस के टुकड़े को बीच में फाड़कर दो भाग कर लेते हैं, फिर एक सिरे को रस्सी से बांधकर पुनः जोड़ देते हैं इसे पउवा कहा जाता है। पउवा के खुले हुए भाग को बांस में कील के ऊपर फंसाते हैं पउवा के ठीक नीचे बांस से सटाकर 4-5 इंच लंबी लकड़ी को रस्सी से इस प्रकार बांधते है जिससे वह नीचे ना जा सके लकड़ी को घोड़ी के नाम से भी जाना जाता है। गेड़ी में चलते समय जोरदार ध्वनि निकालने के लिए पैर पर दबाव डालते हैं जिसे मच कर चलना कहा जाता है।
नारियल फेंक प्रतियोगिता
नारियल फेंक बड़ों का खेल है इसमें बच्चे भाग नहीं लेते। प्रतियोगिता संयोजक नारियल की व्यवस्था करते हैं, एक नारियल खराब हो जाता है तो तत्काल ही दूसरे नारियल को खेल में सम्मिलित किया जाता है। खेल प्रारंभ होने से पूर्व दूरी निश्चित की जाती है, फिर शर्त रखी जाती है कि नारियल को कितने बार फेंक कर उक्त दूरी को पार किया जाएगा। प्रतिभागी शर्त स्वीकारते हैं, जितनी बात निश्चित किया गया है उतने बार में नारियल दूरी पार कर लेता है तो वह नारियल उसी का हो जाता है। यदि नारियल फेंकने में असफल हो जाता है तो उसे एक नारियल खरीद कर देना पड़ता है। नारियल फेंकना कठिन काम है इसके लिए अभ्यास जरूरी है। पर्व से संबंधित खेल होने के कारण बिना किसी तैयारी के लोग भाग लेते है।
बस्तर क्षेत्र में हरियाली अमावस्या पर मनाया जाता है अमुस त्यौहार
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में ग्रामीणों द्वारा हरियाली अमावस्या पर अपने खेतों में औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ तेंदू पेड़ की पतली छड़ी गाड़ कर अमुस त्यौहार मनाया जाता है। इस छड़ी के ऊपरी सिरे पर शतावर, रसना जड़ी, केऊ कंद को भेलवां के पत्तों में बांध दिया जाता है। खेतों में इस छड़ी को गाड़ने के पीछे ग्रामीणों की मान्यता यह है कि इससे कीट और अन्य व्याधियों के प्रकोप से फसल की रक्षा होती है। इस मौके पर मवेशियों को जड़ी बूटियां भी खिलाई जाती है। इसके लिए किसानों द्वारा एक दिन पहले से ही तैयारी कर ली जाती है। जंगल से खोदकर लाई गई जड़ी बूटियों में रसना, केऊ कंद, शतावर की पत्तियां और अन्य वनस्पतियां शामिल रहती है, पत्तों में लपेटकर मवेशियों को खिलाया जाता है। ग्रामीणों का मानना है कि इससे कृषि कार्य के दौरान लगे चोट-मोच से निजात मिल जाती है। इसी दिन रोग बोहरानी की रस्म भी होती है, जिसमें ग्रामीण इस्तेमाल के बाद टूटे-फूटे बांस के सूप-टोकरी-झाड़ू व अन्य चीजों को ग्राम की सरहद के बाहर पेड़ पर लटका देते हैं। दक्षिण बस्तर में यह त्यौहार सभी गांवों में सिर्फ हरियाली अमावस्या को ही नहीं, बल्कि इसके बाद गांवों में अगले एक पखवाड़े के भीतर कोई दिन नियत कर मनाया जाता है। -
छत्तीसगढ़ में जैविक खेती और आर्थिक सशक्तिकरण का नया अध्याय
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जन-जीवन में रचा-बसा खेती-किसानी से जुड़ा पहला त्यौहार है, हरेली। सावन मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह त्यौहार वास्तव में प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण का लोकपर्व है। हरेली के दिन किसान अच्छी फसल की कामना के साथ धरती माता का सभी प्राणियों केे भरण-पोषण के लिए आभार व्यक्त करते हैं। सभी लोग बारिश के आगमन के साथ चारो ओर बिखरी हरियाली और नई फसल का उत्साह से स्वागत करते हैं।
हरेली पर्व को छोटे से बड़े तक सभी उत्साह और उमंग से मनाते हैैं। गांवों में हरेली के दिन नागर, गैती, कुदाली, फावड़ा समेत खेती-किसानी से जुड़े सभी औजारों, खेतों और गोधन की पूजा की जाती है। सभी घरों में चीला, गुलगुल भजिया का प्रसाद बनाया जाता है। पूजा-अर्चना के बाद गांव के चौक-चौराहों में लोगों को जुटना शुरू हो जाता है। यहां गेड़ी दौड़, नारियल फेक, मटकी फोड़, रस्साकशी जैसी प्रतियोगिताएं देर तक चलती रहती हैं। लोग पारंपरिक तरीके से गेड़ी चढ़कर खुशियां मनाते हैं। माना जाता है कि बरसात के दिनों में पानी और कीचड़ से बचने के लिए गेड़ी चढ़ने का प्रचलन रहा है, जो समय के साथ परम्परा में परिवर्तित हो गया। इस अवसर पर किया जाने वाला गेड़ी लोक नृत्य भी छत्तीसगढ़ की पुरातन संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है। हरेली में लोहारों द्वारा घर के मुख्य दरवाजे पर कील ठोककर और नीम की पत्तियां लगाने का रिवाज है। मान्यता है कि इससे घर-परिवार अनिष्ट से बचे रहते हैं।
गढ़बो नवा छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर माटी से जुड़ी अपनी गौरवशाली संस्कृति और परम्परा को सहेजने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने की पहल की गई है। छत्तीसगढ़ सरकार ने मुख्यमंत्री निवास सहित पूरे राज्य में लोकपर्वों के धूम-धाम से सार्वजनिक आयोजन कर इसकी शुरूआत की है। इससे नई पीढ़ी के युवा भी अपनी पुरातन परम्पराओं से जुड़ने लगे हैं। सरकार ने हरेली त्यौहार के दिन सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया है। इस साल से प्रदेश के स्कूलों में हरेली तिहार को विशेष रूप से मनाने की शुरूआत की जा रही है। इससे बच्चे न सिर्फ अपनी कृषि संस्कृति को समझेंगे, उसका सक्रिय हिस्सा बनेंगे बल्कि अपनी संस्कृति के मूल भाव को आत्मसात भी कर सकेंगे। साथ ही स्कूलों में गेड़ी दौड़, वृक्षारोपण, पर्यावरण संरक्षण पर संगोष्ठी जैसे आयोजनों से बच्चों में अपनी संस्कृति और प्रकृति के प्रति प्रेम विकसित होगा।
छत्तीसगढ़ में पारंपरिक लोक मूल्यों को सहेजते हुए गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की परिकल्पना को साकार रूप दिया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में पारंपरिक संसाधनों के उपयोग से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने का काम किया जा रहा है। इसके चलते राज्य सरकार ने दो साल पहले सन् 2020 में हरेली के दिन ‘गो-धन न्याय योजना‘ शुरू की थी। शुरूआत में किसी ने कल्पना नहीं की थी, कि गोबर खरीदी की यह योजना गांवों की अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत आधार तैयार करेगी। आज यह ग्रामीण अंचल की बेहद लोकप्रिय योजना साबित हुई है। इस अनूठी योजना के तहत सरकार ने गोबर को ग्रामीणों की आय का नया जरिया बनाया और किसानों और पशुपालकों से दो रूपए की दर से गोबर खरीदी शुरू की। पशुपालक ग्रामीणों ने गोबर बेचकर पिछले दो सालों में 150 करोड़ रूपये से अधिक की कमाई की है। खरीदे गए गोबर से गौठानों में स्व-सहायता समूहों ने 20 लाख क्विंटल से अधिक वर्मी कम्पोस्ट तैयार किया है, जिससे प्रदेश में जैविक खेती को बढ़ावा मिल रहा है। अब तक महिला समूह और गौठान समितियां 143 करोड़ से अधिक की राशि वर्मी खाद के निर्माण और विक्रय से प्राप्त कर चुकी हैं। इसके साथ ही गौठानों में गोबर से दिए, गमले सहित विभिन्न सजावटी समान बनाने से स्थानीय महिलाओं को रोजगार का नया साधन मिला है।
गोधन न्याय योजना को विस्तार देते हुए राज्य सरकार इस साल हरेली तिहार से गौठानों में 4 रूपए प्रति लीटर की दर से गो-मूत्र की खरीदी की शुरूआत करने जा रही है। इस गो-मूत्र से महिला स्व-सहायता समूह द्वारा जीवामृत और कीट नियंत्रक उत्पाद तैयार किये जाएंगे। इससे रोजगार और आय का नया जरिया मिलने के साथ जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और कृषि लागत कम होगी। गौ-मूत्र से बने कीट नियंत्रक उत्पाद का उपयोग किसान भाई रासायनिक कीटनाशक के बदले कर सकेंगे, जिससे खाद्यान्न की विषाक्तता में कमी आएगी और महंगे रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम होगी। इन नवाचारों ने हरेली को प्रदेश में जैविक खेती और आर्थिक सशक्तिकरण के नए अध्यायों का प्रतीक बना दिया है। इससे लगता है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम-स्वराज का सपना अब आत्मनिर्भर गांवों के रूप में छत्तीसगढ़ में साकार हो रहा है। छत्तीसगढ़ में परंपराओं को सहेजते हुए उसे आधुनिक जरूरतों के अनुसार ढालने की जो शुरूआत की गई है, उसे जरूरत है सबके सहयोग से आगे बढ़ाने की। प्रकृति से जुड़कर पर्यावरण अनुकूल विकास की दिशा में आगे बढ़ने का हमारा यह कदम बेहतर कल के लिए सर्वोत्तम योगदान होगा। - लंदन। असहनीय गर्मी के कारण कई भारतीय और पाकिस्तानियों के लिए, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, बाहर काम करने के लिए उपलब्ध मूल्यवान घंटे कम हो जाते हैं। लैंसेट द्वारा प्रकाशित शोध के अनुसार, अत्यधिक तापमान और आद्र्रता के कारण 2018 में 150 अरब से अधिक कार्य घंटों का नुकसान हुआ। इस प्रवृत्ति के वैश्विक परिणाम होंगे।यूसीएल में अर्थ सिस्टम साइंस के प्रोफेसर मार्क मास्लिन कहते हैं, ''दुनिया का आधा भोजन छोटे किसानों के खेतों में उगता है, जहां किसान कड़ी मेहनत करके फसल तैयार करते हैं। जैसे-जैसे दुनिया गर्म होगी, ऐसे दिन ज्यादा होते जाएंगे, जब बाहर काम करना शारीरिक रूप से असंभव होगा, जो उत्पादकता और खाद्य सुरक्षा को कम करेगा।'' शहरों में, जहां वैश्विक आबादी का एक बड़ा हिस्सा रहता है, अत्यधिक गर्मी के दौरान सड़कों को और अधिक आरामदायक बनाने के अवसर हैं। इनमें सबसे लोकप्रिय में से एक, शहरी हरियाली को बढ़ाना है, जिससे आवास की तलाश में भटकते वन्य जीवों को भी काफी फायदा होगा। या कंक्रीट के फैलाव के बीच पेड़ों और अन्य वनस्पतियों के लिए अधिक जगह बनाई जाए।कार्डिफ यूनिवर्सिटी के मार्क ओ. कथबर्ट के नेतृत्व में फरवरी में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि विस्तारित पार्कलैंड के बीच हरियाली लगाने के साथ छतों और दीवारों को हरा भरा करने से या तो बाढ़ को कम किया जा सकता है या गर्मी को कम किया जा सकता है, लेकिन यह दोनों एक शहर में नहीं हो सकता। कथबर्ट और उनके सह-लेखकों, ऑस्ट्रेलिया में यूएनएसडब्ल्यू सिडनी के डेनिस ओ'कारोल और जर्मनी में कार्लज़ूए इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के गेब्रियल सी राउ के अनुसार, शहरों के गर्म मौसम में गर्म होने और भारी वर्षा के दौरान बाढ़ का कारण एक ही है। कंक्रीट और स्टील की प्रचुरता गर्मी को अवशोषित और बरकरार रखती है, जबकि वही सीलबंद सतहें ''एक स्पंज की तरह काम नहीं कर सकती हैं कि बारिश को सोख लें और स्टोर कर लें, जैसे मिट्टी करती है, जिसकी जगह इन्होंने ले ली है''। शोधकर्ताओं का तर्क है कि उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में हरियाली वाले शहर - जैसे कि उत्तरी यूरोप और भूमध्य रेखा के आसपास - मजबूत हीटवेव को कमजोर कर सकते हैं क्योंकि पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान जल वाष्प छोड़ते हैं, जिसका शीतलन प्रभाव होता है। शोध दल को उम्मीद है कि शहरी हरियाली के लाभ सूखे क्षेत्रों में कम होंगे जहां धूप से भरपूर ऊर्जा होती है, लेकिन भारत और पाकिस्तान के शहरों की तरह वर्षा अधिक सीमित होती है। लेकिन इन स्थानों में हरे भरे स्थानों का विस्तार करना अभी भी सार्थक है, क्योंकि यह वह जगह है जहाँ मिट्टी द्वारा जल प्रतिधारण की सबसे बड़ी संभावना है, जो बाढ़ को रोकने में मदद कर सकती है। नवंबर 2021 में संयुक्त राष्ट्र के सबसे हालिया जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन सीओपी26 के दौरान प्रकाशित एक रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि अफ्रीका दुनिया के अन्य क्षेत्रों की तुलना में तेजी से गर्म हो रहा है।केन्या में आगा खान विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर अब्दु मोहिद्दीन का कहना है कि 2030 तक 11 करोड़ 80 लाख अत्यधिक गरीब लोग सूखे और भीषण गर्मी के विनाशकारी प्रभावों की गिरफ्त में होंगे। मोहिद्दीन का कहना है कि गर्म वातावरण के अनुकूल होने के लिए महाद्वीप को तत्काल वित्तीय और तकनीकी सहायता की आवश्यकता है, साथ ही यह आकलन करने के लिए अनुसंधान निधि की आवश्यकता है कि कौन और कहाँ सबसे कमजोर है। इन क्षेत्रों और अन्य क्षेत्रों में, पारंपरिक वास्तुकला से प्राप्त डिजाइन और निर्माण तकनीकें राहत के कुछ सबसे सस्ते और सबसे टिकाऊ रूपों की पेशकश कर सकती हैं। नॉटिंघम ट्रेंट यूनिवर्सिटी में इंटेलिजेंट इंजीनियरिंग सिस्टम के प्रोफेसर अमीन अल-हबेबेह ने उन तरीकों का अध्ययन किया है, जिन्होंने फारस की खाड़ी में सदियों से लोगों को ठंडा रखने में मदद की है (गर्मी बढ़ाने का एक और हॉटस्पॉट)। यहां, चूना पत्थर और अन्य प्राकृतिक सामग्रियों से बने घर नमी होने पर नमी को अवशोषित करते हैं और गर्म और धूप वाले दिनों में वाष्पीकरण के माध्यम से इसे छोड़ते हैं। अल-हबैबेह कहते हैं, यह थोड़ा ठंडा प्रभाव प्रदान करता है। इमारतों की रेतीली बनावट और रंग भी बहुत सारे सौर विकिरण को दर्शाता है। उनके अनुसार संकरी सड़कें और गलियां छाया को अधिकतम करती हैं, जबकि कांच दुर्लभ हैं और हवा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए खिड़कियां छोटी हैं लेकिन सूर्य की गर्मी को दूर रखती हैं। अंदर की तरफ का प्रांगण दोपहर के समय (जब सूरज अपने चरम पर होता है) गर्म हवा को ऊपर की ओर फऩल करता है और इसे आसपास के कमरों से ठंडी हवा से बदल देता है। टॉम मैथ्यूज और कॉलिन रेमंड, किंग्स कॉलेज लंदन और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के जलवायु वैज्ञानिक कहते हैं। ''मौसम की सीमा, जिसका पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य सामना कर सकते हैं ग्रह के गर्म होने के साथ बदल रही है,'' वे चेतावनी देते हैं। ''सभ्यता के लिए पूरी तरह से नई स्थितियां आने वाले दशकों में उभर सकती हैं।'' इसका मतलब है कि गर्मी उस चरम सीमा को पार कर जाएगी, जिसमें मनुष्य जीवित रह सकता है। 2021 के एक अध्ययन में बताया गया है कि 1991 के बाद से अत्यधिक गर्मी के कारण होने वाली तीन मौतों में से एक को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा सकता है। यदि आप अपने आप को प्रचंड गर्मी में पाते हैं, तो क्लो ब्रिमिकोम्बे, पीएचडी उम्मीदवार, जो कि यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग में जलवायु परिवर्तन और मानव स्वास्थ्य के लिए इसके परिणामों का अध्ययन कर रही हैं, आपको सुरक्षित रहने के लिए कुछ सलाह दे रही हैं: ''शांत रहें। अगर घर के अंदर है, अपने पैरों को ठंडे पानी से धोते रहें या शॉवर लें ... जिस तरफ धूप न हो उस तरफ के पर्दे बंद कर दें और खिड़कियां खोल दें,"। अन्य उपाय जो पूरे भवन में हवा का प्रवाह बनाए रखते हैं, उनमें दरवाजे खोलना और पंखे चालू करना शामिल हैं। ब्रिमिकोम्बे इस बात पर जोर देती हैं कि हाइड्रेटेड रहना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि हीटवेव के दौरान पसीने के कारण बहुत सा पानी आपके शरीर से निकल जाता है। वह कहती हैं, ''आप बार बार पानी पीते रहें, सामान्य तौर पर जितना पीते हैं, उससे ज्यादा, तब भी जब आपको प्यास न लगे,'' वह कहती हैं। और उन लोगों पर ध्यान देते रहें, जिन्हें अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता हो सकती है। "65 वर्ष से अधिक आयु के लोग, गर्भवती महिलाओं, पांच साल से कम उम्र के बच्चों और बीमार लोगों का विशेष ख्याल रखें। ये सभी समूह गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। आपको दोपहर 12 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच सीधी धूप में रहने से भी बचना चाहिए, जब सूर्य अपने सबसे प्रचंड रूप में होता है।
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--1 मई - श्रमिक दिवस पर विशेष (बोरे-बासी दिवस)
छत्तीसगढ़ में एक प्रसिद्ध कहावत है - ‘बासी के नून नइ हटय’, इसका कहावत का हिन्दी भावार्थ है कि, बासी में मिला हुआ नमक नहीं निकल सकता। इस कहावत का उपयोग सम्मान के परिपेक्ष्य में किया जाता है। सवाल उठ सकता है कि आखिर यहां बात ‘बासी’ की क्यों हो रही है, तो बात जब किसी प्रदेश की होती है तो साथ में बात वहां के खान-पान की भी होती है। छत्तीसगढ़ में खान-पान के साथ जीवनशैली का एक अहम हिस्सा है ‘बासी’। शायद इसलिए भी छत्तीसगढ़ी फिल्मों में छत्तीसगढ़ी परिवेश को दिखाने के लिए फिल्म के पात्रों को ‘बासी’ खाते दिखाया जाता है।
छत्तीसगढ़ियों के जीवन में ‘बासी’ इतना घुला-मिला है कि समय बताने के लिए भी सांकेतिक रूप से इसका उपयोग किया जाता है। जब सुबह कहीं जाने की बात होती है तो बासी खाकर निकलने का जवाब मिलता है, इससे पता चल जाता है कि व्यक्ति सुबह 8 बजे के बाद घर से निकलेगा। वहीं दोपहर के वक्त बासी खाने के समय की बात हो तो मान लिया जाता है कि लगभग 1 बजे का समय है। ‘बासी खाय के बेरा’, से पता चल जाता है कि यह लंच का समय है। छत्तीसगढ़ में बासी को मुख्य आहार माना गया है। बासी का सेवन समाज के हर तबके के लोग करते हैं। रात के बचे भात को पानी में डूबाकर रख देना और उसे नाश्ता के तौर पर या दोपहर के खाने के समय इसका सेवन आसानी से किया जा सकता है। इसलिए इसे सुलभ व्यंजन भी माना गया है। विशेषकर गर्मी के मौसम में बोरे और बासी को बहुतायत लोग खाना पसंद करते हैं।
बोरे और बासी बनाने की विधि :
जहां बाकी व्यंजनों को बनाने के कई झंझट हैं, वहीं बोरे और बासी बनाने की विधि बहुत ही सरल है। न तो इसे सीखने की जरूरत है और न ही विशेष तैयारी की। खास बात यह है कि बासी बनाने के लिए विशेष सामग्री की भी जरूरत नहीं है। बोरे और बासी बनाने के लिए पका हुआ चावल (भात) और सादे पानी की जरूरत है। यहां बोरे और बासी इसलिए लिखा जा रहा है मूल रूप से दोनों की प्रकृति में अंतर है।
बोरे से अर्थ, जहां तत्काल चुरे हुए भात (चावल) को पानी में डूबाकर खाना है। वहीं बासी एक पूरी रात या दिनभर भात (चावल) को पानी में डूबाकर रखा जाना होता है। कई लोग भात के पसिया (माड़) को भी भात और पानी के साथ मिलाने में इस्तेमाल करते हैं। यह पौष्टिक भी होता है और स्वादिष्ट भी। बोरे और बासी को खाने के वक्त उसमें लोग स्वादानुसार नमक का उपयोग करते हैं।
प्याज, अचार और भाजी बढ़ा देते हैं स्वाद :
बासी के साथ आमतौर पर प्याज खाने की परम्परा सी रही है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में प्याज को गोंदली के नाम से जाना जाता है। वहीं बोरे या बासी के साथ आम के अचार, भाजी जैसी सहायक चीजें बोरे और बासी के स्वाद को बढ़ा देते हैं। दरअसल गर्मी के दिनों में छत्तीसगढ़ में भाजी की बहुतायत होती है। इन भाजियों में प्रमुख रूप से चेंच भाजी, कांदा भाजी, पटवा भाजी, बोहार भाजी, लाखड़ी भाजी बहुतायत में उपजती है। इन भाजियों के साथ बासी का स्वाद दुगुना हो जाता है। इधर बोरे को दही में डूबाकर भी खाया जाता है। गांव-देहातों में मसूर की सब्जी के साथ बासी का सेवन करने की भी परंपरा है। कुछ लोग बोरे-बासी के साथ में बड़ी-बिजौरी भी स्वाद के लिए खाते हैं।
बोरे-बासी खाने से लाभ :
बोरे-बासी के सेवन से नुकसान तो नहीं लाभ कई हैं। इसमें पानी की भरपूर मात्रा होती है, जिसके कारण गर्मी के दिनों में शरीर को शीतलता मिलती है। पानी की ज्यादा मात्रा होने के कारण मूत्र उत्सर्जन क्रिया नियंत्रित रहती है। इससे उच्च रक्तचाप नियंत्रण करने में मदद मिलती है। बासी पाचन क्रिया को सुधारने के साथ पाचन को नियंत्रित भी रखता है। गैस या कब्ज की समस्या वाले लोगों के लिए यह रामबाण खाद्य है। बासी एक प्रकार से डाइयूरेटिक का काम करता है, अर्थ यह है कि बासी में पानी की भरपूर मात्रा होने के कारण पेशाब ज्यादा लगती है, यही कारण है कि नियमित रूप से बासी का सेवन किया जाए तो मूत्र संस्थान में होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है। पथरी की समस्या होने से भी बचा जा सकता है। चेहरे में ताजगी, शरीर में स्फूर्ति रहती है। बासी के साथ माड़ और पानी से मांसपेशियों को पोषण भी मिलता है। बासी खाने से मोटापा भी दूर भागता है। बासी का सेवन अनिद्रा की बीमारी से भी बचाता है। ऐसा माना जाता है कि बासी खाने से होंठ नहीं फटते हैं। मुंह में छाले की समस्या नहीं होती है।
बासी का पोषक मूल्य :
बासी में मुख्य रूप से संपूर्ण पोषक तत्वों का समावेश मिलता है। बासी में कार्बोहाइड्रेट, आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम, विटामिन्स, मुख्य रूप से विटामिन बी-12, खनिज लवण और जल की बहुतायत होती है। ताजे बने चावल (भात) की अपेक्षा इसमें करीब 60 फीसदी कैलोरी ज्यादा होती है। बासी को संतुलित आहार कहा जा सकता है। दूसरी ओर बासी के साथ हमेशा भाजी खाया जाता है। पोषक मूल्यों के लिहाज से भाजी में लौह तत्व प्रचुर मात्रा में विद्यमान रहते हैं। इसके अलावा बासी के साथ दही या मही सेवन किया जाता है। दही या मही में भारी मात्रा में कैल्शियम मौजूद रहते हैं। इस तरह से सामान्य रूप से बात की जाए तो बासी किसी व्यक्ति के पेट भरने के साथ उसे संतुलित पोषक मूल्य भी प्रदान करता है। -
विशेष लेख- सौरभ शर्मा
अक्षय तृतीया के अवसर को इस बार पूरे प्रदेश में माटी पूजन दिवस के रूप में मनाया जाएगा। संस्कृति से वैज्ञानिक सोच को जोड़ने की यह मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की अद्भुत सोच है। अमूमन यह होता है कि हम वर्तमान की समस्याओं अथवा आने वाले पांच-दस साल की समस्याओं को सुलझाने की दिशा में योजनाएं बनाते हैं। भविष्य के संकट से निपटने की कोई कारगर योजना शायद ही बनाते हैं, इससे होता यह है कि तात्कालिक रूप से या अगले कुछ बरसों के लिए हमने संकट हल कर लिया लेकिन दशक भर बाद वो समस्या इतनी विकराल हो जाएगी कि किसी भी तरह से उस समय उसका निदान संभव नहीं हो सकेगा। पेयजल की बात लें, गर्मी में संकट आया तो आपने राइजिंग पाइप बढ़ा दी। पानी कुछ और फीट नीचे से ऊपर आ गया। फिर अंततः कुछ सालों बाद क्या होगा, अंततः भूमिगत जलस्रोत सूख जाएगा और ये ऐसी स्थिति होगी कि जिसका निराकरण बेहद कठिन होगा।
यह सुखद बात है कि छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ऐसी योजनाएं चला रहे हैं जो हमारी समस्या कुछ बरसों के लिए नहीं दूर करती, अपितु स्थायी रूप से दूर करती हैं। नरवा योजना को लें, लोगों की पेयजल की दिक्कत की अस्थायी तैयारी तो सरकार करती ही है स्थायी रूप से संकट को दूर करने नालों के रिचार्ज पर काम किया जा रहा है। जिस तेजी से नरवा योजना पर काम हो रहा है आगामी कुछ सालों में प्रदेश में भूमिगत जल का स्तर तेजी से बढ़ेगा, सिंचाई का संकट भी दूर हो सकेगा।
भविष्य की एक दूसरी भयावह समस्या मिट्टी को लेकर दिखती है। जिस तरह पंजाब और हरियाणा में रासायनिक खाद का अतिशय प्रयोग हुआ और भूमि की ऊर्वरा शक्ति बुरी तरह प्रभावित हुई, उसी तरह की आशंका अन्य प्रदेशों के लिए है जहां धीरे-धीरे रासायनिक खाद का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। रासायनिक खाद उसी तरह हैं जिस तरह से हम शरीर में बाहरी सप्लीमेंट्स विटामिन या प्रोटीन आदि लेते हैं। कोई भी डाक्टर यह नहीं कहेगा कि आप सीधे सप्लीमेंट्स ले लें, वो इसे अत्याधिक जरूरत पड़ने पर ही लेने कहेगा, सामान्य स्थितियों में वो कहेंगे कि आप नैचुरल सप्लीमेंट भोजन में बढ़ाएं। इसी तरह की बात साइल हेल्थ के लिए भी है। रासायनिक खाद आर्टिफिशियल सप्लीमेंट्स की तरह हैं वे फसल की वृद्धि जरूर करेंगे लेकिन भूमि की अपनी प्रतिरोधक क्षमता की कीमत पर। इससे होता यह है कि कीटों का हमला फसल पर बढ़ जाता है और कीटनाशकों का खर्च बढ़ जाता है। कीटनाशक का प्रभाव पुनः मिट्टी पर नकारात्मक होता है इस प्रकार एक दुष्चक्र जो मिट्टी को झेलना पड़ता है। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि रासायनिक खाद से उत्पादन तो अधिक होता है लेकिन पोषक तत्व काफी कम होते हैं। उदाहरण के लिए सौ साल पहले एक संतरा किसी पौधे में उगा, उसकी तुलना आज के किसी पौधे में उगे संतरे से करें तो पाएंगे कि इसमें पोषक तत्व लगभग 10 प्रतिशत ही रह गये हैं। इस प्रकार हमने 10 संतरे का उत्पादन जरूर कर लिया लेकिन इसका पोषक मूल्य पहले के एक संतरे के बराबर ही है।
केवल खतरा मिट्टी का नहीं है। मिट्टी से रिसते पानी से भी है। भूमिगत जल प्रदूषित हो रहा है। यदि मिट्टी में कार्बनिक तत्व पर्याप्त मात्रा में हों तो मिट्टी पानी का अवशोषण भी अधिक करती है और भूमिगत जल रिचार्ज होता जाता है। यही नहीं, मिट्टी का संरक्षण नहीं करते हैं तो ग्लोबल वार्मिंग का भी बड़ा खतरा है। मिट्टी में कार्बन जीवित पौधों की तुलना में तीन गुना और वातावरण में मौजूद कार्बन की तुलना में दोगुना होता है। इसका मतलब साफ है कि मिट्टी से कार्बनिक तत्व समाप्त हुए तो यह वातावरण में पहुंचेगी, ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाएगी और दुनिया का संकट अभूतपूर्व स्तरों तक पहुंचता रहेगा।
ऐसी गंभीर परिस्थितियों से निपटने बड़े बदलाव कदम दर कदम उठाये जाते हैं ताकि किसानों के आय का संतुलन प्रभावित हुए बगैर मिट्टी की ऊर्वरता सुरक्षित रखी जा सके। तेजी से जैविक खाद का निर्माण छत्तीसगढ़ में हो रहा है। किसान रासायनिक खाद के साथ उचित अनुपात में जैविक खाद का उपयोग भी कर रहे हैं। धीरे-धीरे जैविक खाद का प्रयोग बढ़ता जाएगा। लगातार जैविक खाद के उपयोग से मिट्टी पुनः अपनी ऊर्वरा शक्ति के उच्चतम स्तर पर पहुंचेगी और यह किसानों के लिए बहुत बेहतर स्थिति होगी।
अक्ती जैसे पर्व पर माटी पूजन की परंपरा जो शुरू की गई है उससे मिट्टी की सेहत से जुड़ी बारीकियों को समझाने में सफलता मिलेगी। इस पवित्र पर्व के अवसर पर शुरू किया गया यह अभियान मिट्टी की सेहत के लिए जनअभियान में शीघ्र ही बदल जाएगा। अभियान की बड़ी खूबी यह है कि केवल इसमें किसान शामिल नहीं हैं इसमें विद्यार्थी भी शामिल हैं। छत्तीसगढ़ का हर तबका इस अभियान से जुड़ेगा और तब अभियान का सार्थक संदेश जनजन तक पहुँच जाएगा।
- माता शबरी की नगरी शिवरीनारायण का बदला स्वरूपरायपुर/ पौराणिक मान्यता के अनुसार 14 वर्ष के वनवास के दौरान प्रभु राम ने लगभग 10 वर्ष का समय छत्तीसगढ़ में गुजारा था। वनवास काल में उन्होंने छत्तीसगढ़ में प्रवेश कोरिया के सीतामढ़ी हरचौका से किया था। उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ते हुए वे छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों से गुजरे। सुकमा का रामाराम उनका अंतिम पड़ाव था। प्रभु राम वनवास काल के दौरान लगभग 2260 किलोमीटर की यात्रा की थी। ऐसे में छत्तीसगढ़ से जुड़ी भगवान राम के वनवास काल की स्मृतियों को सहेजने तथा संस्कृति एवं पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना शुरू की गई है। चंदखुरी के बाद अब शिवरीनारायण में भी विकास कार्य पूरा हो जाने से राज्य में पर्यटन तीर्थों की नयी श्रृंखला आकार ले रही है।परियोजना के अंतर्गत 75 स्थानों को चिन्हांकन किया गया है। इसके अंतर्गत प्रथम चरण में चयनित 9 पर्यटन तीर्थों का तेजी से कायाकल्प कराया जा रहा है। इस परियोजना में इन सभी पर्यटन तीर्थों की आकर्षक लैण्ड स्कैपिंग के साथ-साथ पर्यटकों के लिए सुविधाओं का विकास भी किया जा रहा है। 138 करोड़ रूपए की इस परियोजना में उत्तर छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले से लेकर दक्षिण छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले तक भगवान राम के वनवास काल से जुड़े स्थलों का संरक्षण एवं विकास किया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने चंदखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर में वर्ष 2019 में भूमिपूजन कर राम वनगमन पर्यटन परिपथ के निर्माण की शुरूआत की थी। माता कौशल्या की जन्मभूमि चंदखुरी के बाद अब माता शबरी की नगरी शिवरीनारायण में भी विकास कार्य पूरा हो चुका है, जिसका लोकार्पण मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल 10 अप्रैल को करेंगे।छत्तीसगढ़ की संस्कृति एवं परम्परा में प्रभु श्री राम रचे-बसे है। जय सिया राम के उद्घोष के साथ यहां दिन की शुरूआत होती है। इसका मुख्य कारण है कि छत्तीसगढ़ वासियों के लिए श्री राम केवल आस्था ही नहीं है बल्कि वे जीवन की एक अवस्था और आदर्श व्यवस्था भी हैं। छत्तीसगढ़ में उनकी पूजा भांजे के रूप में होती है। रायपुर से महज 27 कि.मी. की दूरी पर स्थित चंदखुरी, आरंग को माता कौशल्या की जन्मभूमि और श्रीराम का ननिहाल माना जाता है। छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कोसल है।रघुकुल शिरोमणि श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या है लेकिन छत्तीसगढ़ उनकी कर्मभूमि है। वनवास काल के दौरान अयोध्या से प्रयागराज, चित्रकूट सतना गमन करते हुए श्रीराम ने दक्षिण कोसल याने छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के भरतपुर पहुंचकर मवई नदी को पार कर दण्डकारण्य में प्रवेश किया। मवई नदी के तट पर बने प्राकृतिक गुफा मंदिर, सीतामढ़ी-हरचौका में पहुंचकर उन्होनें विश्राम किया। इस तरह रामचंद्र जी के वनवास काल का छत्तीसगढ़ में पहला पड़ाव भरतपुर के पास सीतामढ़ी-हरचौका को माना जाता है। छत्तीसगढ़ की पावन धरा में रामायण काल की अनेक घटनाएं घटित हुई हैं, जिसका प्रमाण यहां की लोक संस्कृति, लोक कला, दंत कथा और लोकोक्तियां हैं।कोरिया जिले का सीतामढ़ी रामचन्द्र जी के वनवास काल के पहले पड़ाव के नाम से भी प्रसिद्ध है। पौराणिक और ऐतिहासिक ग्रंथों में रामगिरि पर्वत का उल्लेख आता है। सरगुजा जिले का यही रामगिरि-रामगढ़ पर्वत है। यहां स्थित सीताबेंगरा-जोगीमारा गुफा की रंगशाला को विश्व की सबसे प्राचीन रंगशाला माना जाता है। मान्यता है कि वन गमन काल में रामचंद्र जी के साथ सीता जी ने यहां कुछ समय व्यतीत किया था, इसीलिए इस गुफा का नाम सीताबेंगरा पड़ा।राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अंतर्गत प्रथम चरण में सीतामढ़ी-हरचौका (जिला कोरिया), रामगढ़ (जिला सरगुजा), शिवरीनारायण (जिला जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (जिला बलौदाबाजार-भाटापारा), चंदखुरी (जिला रायपुर), राजिम (जिला गरियाबंद), सप्तऋषि आश्रम सिहावा (जिला धमतरी), जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (जिला सुकमा) को विकसित किया जा रहा है।राम वन गमन पथ : कॉन्सेप्ट प्लान के लिए 138 करोड़ रूपए का प्रावधान -राम वन गमन कॉन्सेप्ट प्लान में प्रभु राम के छत्तीसगढ़ में वनवास काल में भ्रमण से संबंधित 75 स्थानों को धार्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनायी गई है। इनमें प्रथम चरण में 9 स्थलों को चिन्हित कर वहां श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। इसके लिए 138 करोड़ रूपए की कार्ययोजना तैयार की गई है। चयनित स्थानों पर आवश्यकता अनुसार पहुंच मार्ग का उन्नयन, संकेत बोर्ड, पर्यटक सुविधा केन्द्र, इंटरप्रिटेशन सेंटर, वैदिक विलेज, पगोड़ा वेटिंग शेड, मूलभूत सुविधा, पेयजल व्यवस्था, शौचालय, सिटिंग बेंच, रेस्टोरेंट, वाटर फ्रंट डेव्हलपमेंट, विद्युतीकरण आदि कार्य कराए जाएंगे। राम वन गमन मार्ग में आने वाले स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का काम रायपुर जिले के आरंग तहसील के गांव चंदखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर से शुरू हुआ है।शिवरीनारायण : जहां प्रभु राम ने खाए थे शबरी के जूठे बेरछत्तीसगढ़ में जांजगीर-चांपा जिले में प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण शिवनाथ, जोंक और महानदी का त्रिवेणी संगम स्थल शिवरीनारायण है। शिवरीनारायण धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। इस विष्णुकांक्षी तीर्थ का संबंध शबरी और नारायण होने के कारण इसे शबरी नारायण या शिवरीनारायण कहा जाता है। यहां नर-नारायण और माता शबरी का मंदिर है जिसके पास एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसके पत्ते दोने के आकार के हैं। इस स्थान की महत्ता इस बात से पता चलती है कि देश के चार प्रमुख धाम बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम के बाद इसे पांचवे धाम की संज्ञा दी गई है। यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान है इसलिए छत्तीसगढ़ के जगन्नाथपुरी के रूप में प्रसिद्ध है। यहां प्रभु राम का नारायणी रूप गुप्त रूप से विराजमान है इसलिए यह गुप्त तीर्थधाम या गुप्त प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता है।शिवरीनारायण रामायण कालीन घटनाओं से जुड़ा है। मान्यता के अनुसार वनवास काल के दौरान यहां प्रभु राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। रामायण काल की स्मृतियों को संजोने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राम वन गमन पर्यटन परिपथ के विकास के लिए कॉन्सेप्ट प्लान बनाया गया है। इस प्लान में शिवरीनारायण में मंदिर परिसर के साथ ही आस-पास के क्षेत्र के विकास और श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधाओं के लिए यहां 39 करोड़ रूपए की कार्य योजना तैयार की गई है। प्रथम चरण में 6 करोड़ रूपए के विभिन्न कार्य पूर्ण कर लिए गए हैं, इससे यहां आने वाले लोगों को नई सुविधाएं मिलेंगी।स्थापत्य कला एवं मंदिरशिवरीनारायण का मंदिर समूह दर्शनीय है। यहां की स्थापत्य कला और मूर्तिकला बेजोड़ है। यहां नर-नारायण मंदिर है, इसका निर्माण राजा शबर ने करवाया था। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। केशवनारायण मंदिर ईंटों से बना है, यह पंचरथ विन्यास पर भूमि शैली पर निर्मित है। यहां चंद्रचूड़ महादेव मंदिर, जगन्नाथ मंदिर भी दर्शनीय है। यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सदृश्य है। शिवरीनारायण शहर से लगे ग्राम खरोद में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के अनेक मंदिर हैं इनमें मुख्य रूप से दुल्हादेव मंदिर, लक्ष्मणेश्वर मंदिर, शबरी मंदिर प्रसिद्ध है।प्रसिद्ध है यहां की रथ यात्राशिवरीनारायण शैव, वैष्णव धर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान होने के कारण यहां रथयात्रा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से जगन्नाथपुरी ले जाया गया था। यहां पुरी की तर्ज पर रथ यात्रा का आयोजन होता है। इसमें छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के साधु संत और श्रद्धालु शामिल होते हैं।छत्तीसगढ़ है प्राचीन दक्षिणापथ-शोधार्थियों के अनुसार त्रेतायुगीन छत्तीसगढ़ दक्षिण कोसल एवं दण्डकारण्य के रूप में विख्यात था। दण्डकारण्य में प्रभु राम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है। शोधकर्ताओं के शोध से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रभु श्रीराम के द्वारा उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने के बाद छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों का भ्रमण करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया गया था। अतः छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है।शिवरीनारायण में नई सुविधाएं-मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण में राम वन गमन परिपथ के अंतर्गत विकसित की गई नई सुविधाओं और विभिन्न कार्यों का लोकार्पण करेंगे। इनमें शिवरीनारायण के मंदिर परिसर का उन्नयन एवं सौदर्यीकरण, दीप स्तंभ, रामायण इंटरप्रिटेशन सेन्टर एवं पर्यटक सूचना केन्द्र, मंदिर मार्ग पर भव्य प्रवेश द्वार, नदी घाट का विकास एवं सौंदर्यीकरण, घाट में प्रभु राम-लक्ष्मण और शबरी माता की प्रतिमा का निर्माण किया गया है। इसी प्रकार घाट में व्यू पाइंट कियोस्क, लैण्ड स्केपिंग कार्य, बाउंड्रीवाल, मॉड्यूलर शॉप, विशाल पार्किंग एरिया और सार्वजनिक शौचालय का निर्माण शामिल है।
- -घनश्याम केशरवानी, सहायक संचालकछत्तीसगढ़ में राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अंतर्गत वनवास काल में प्रभु राम जिन स्थानों पर गए उन स्थानों को धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है। इन स्थानों में सबसे पहले माता कौशल्या की जन्मभूमि चंदखुरी में स्थित कौशल्या माता के मंदिर का जीर्णाेद्धार सहित मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण कर इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। राज्य सरकार द्वारा माता शबरी की नगरी शिवरीनारायण को भी उसी तर्ज पर विकसित किया जा रहा है।मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल की पहल पर राम वन गमन पर्यटन परिपथ को विकसित करने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। परियोजना के अंतर्गत 75 स्थानों को चिन्हांकन किया गया है। प्रथम चरण में 9 स्थानों को विकसित करने का काम शुरू किया गया है। प्रदेश के पौराणिक और पुरातात्विक विरासतों को नई पहचान एवं उन्हें भव्य बनाने की दिशा में काम हो रहा है। छत्तीसगढ़ और यहां के लोगों के लिए गर्व की बात है कि भगवान राम ने अपने वनवास काल का लंबा समय छत्तीसगढ़ में गुजारा था।राम वन गमन पर्यटन परिपथ योजना के तहत जिन स्थलों को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने के लिए चयन किया है। इनमें रायपुर जिले का चंदखुरी जांजगीर चांपा जिले के शिवरीनारायण के साथ ही कोरिया जिले का सीतामढ़ी हर चौका, सरगुजा का सप्तऋषि आश्रम, बलौदाबाजार भाटापारा का तुरतुरिया, गरियाबंद जिले का राजिम, बस्तर का जगदलपुर, सुकमा का रामाराम और सहित अन्य स्थल शामिल हैं।मान्यता के अनुसार 14 वर्ष के वनवास के दौरान प्रभु राम ने लगभग 10 वर्ष का समय छत्तीसगढ़ में गुजारा था। वनवास काल में उन्होंने छत्तीसगढ़ में प्रवेश कोरिया के सीतामढ़ी हरचौका से किया था। उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ते हुए वे छत्तीसगढ़ के अनेक स्थानों से वे गुजरे। सुकमा का रामाराम उनका अंतिम पड़ाव था। प्रभु राम वनवास काल के दौरान लगभग 2260 किलोमीटर की यात्रा की थी। जिस मार्ग को हरा-भरा बनाने का काम छत्तीसगढ़ सरकार के वन विभाग के द्वारा किया जा रहा है। इस मार्ग में हरे-भरे वृक्ष के साथ-साथ फलदार पौधों को रोपण किया जा रहा है।हर युग में शिवरीनारायण नगर का अस्तित्व रहा है, यह नगर मातंग ऋषि का गुरूकुल आश्रम और माता शबरी की साधना स्थली भी रही है। यह महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के त्रिधारा संगम के तट पर स्थित प्राचीन नगर है। शिवरीनारायण प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण नगर है, जो छत्तीसगढ़ के जगन्नाथपुरी धाम के नाम से विख्यात है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु राम ने शबरी के जूठे बेर यहीं खाये थे और उन्हें मोक्ष प्रदान किया था। शबरी की स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिए शबरी-नारायण नगर बसा है। प्रचलित किंवदंती के अनुसार प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ यहां विराजते हैं।शिवरीनारायण में राम वन गमन पर्यटन परिपथ के अतर्गत पर्यटन सुविधाओं के विकास के लिए 39 करोड़ रूपए के कार्य होंगे। इसके तहत प्रथम चरण में 6 करोड़ के विकास कार्य पूर्ण कराए गए हैं। इनमें शिवरीनारायण के मंदिर परिसर का उन्नयन एवं सौदर्यीकरण, दीप स्तंभ, रामायण इंटरप्रिटेशन सेन्टर एवं पर्यटक सूचना केन्द्र, मंदिर मार्ग पर भव्य प्रवेश द्वार, नदी घाट का विकास एवं सौंदर्यीकरण, घाट में प्रभु राम-लक्ष्मण और शबरी माता की प्रतिमा का निर्माण किया गया है। इसी प्रकार घाट में व्यू पाइंट कियोस्क, लैण्ड स्केपिंग कार्य, बाउंड्रीवाल, मॉड्यूलर शॉप, विशाल पार्किंग एरिया और सार्वजनिक शौचालय का निर्माण शामिल है।
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राम वन गमन पर्यटन परिपथ: श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए तैयार है नयी सुविधाएं
छत्तीसगढ़ में महानदी, शिवनाथ और जोंक नदी के संगम पर बसा शिवरीनारायण धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। इस स्थान की महत्ता इस बात से पता चलती है कि देश के चार प्रमुख धाम बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथपुरी और रामेश्वरम के बाद इसे पांचवे धाम की संज्ञा दी गई है। यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान है इसलिए छत्तीसगढ़ के जगन्नाथपुरी के रूप में प्रसिद्ध है। यहां प्रभु राम का नारायणी रूप गुप्त रूप से विराजमान है इसलिए यह गुप्त तीर्थधाम या गुप्त प्रयागराज के नाम से भी जाना जाता है।
शिवरीनारायण रामायण कालीन घटनाओं से जुड़ा है। मान्यता के अनुसार वनवास काल के दौरान यहां प्रभु राम ने शबरी के जूठे बेर खाए थे। रामायण काल की स्मृतियों को संजोने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राम वन गमन पर्यटन परिपथ के विकास के लिए कॉन्सेप्ट प्लान बनाया गया है। इस प्लान में शिवरीनारायण में मंदिर परिसर के साथ ही आस-पास के क्षेत्र के विकास और श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधाओं के लिए यहां 39 करोड़ रूपए की कार्य योजना तैयार की गई है। प्रथम चरण में 6 करोड़ रूपए के विभिन्न कार्य पूर्ण कर लिए गए हैं, इससे यहां आने वाले लोगों को नई सुविधाएं मिलेंगी।
राम वन गमन पथ: कॉन्सेप्ट प्लान के लिए 133 करोड़ रूपए का प्रावधान -
राम वन गमन कॉन्सेप्ट प्लान में प्रभु राम के छत्तीसगढ़ में वनवास काल में भ्रमण से संबंधित 75 स्थानों को धार्मिक और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनायी गई है। इनमें प्रथम चरण में 9 स्थल चिन्हित कर वहां श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। इसके लिए 133 करोड़ रूपए की कार्ययोजना तैयार की गई है। चयनित स्थानों पर आवश्यकता अनुसार पहुंच मार्ग का उन्नयन, संकेत बोर्ड, पर्यटक सुविधा केन्द्र, इंटरप्रिटेशन सेंटर, वैदिक विलेज, पगोड़ा वेटिंग शेड, मूलभूत सुविधा, पेयजल व्यवस्था, शौचालय, सिटिंग बेंच, रेस्टोरेंट, वाटर फ्रंट डेव्हलपमेंट, विद्युतीकरण आदि कार्य कराए जाएंगे। राम वन गमन मार्ग में आने वाले स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का काम रायपुर जिले के आरंग तहसील के गांव चंदखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर से शुरू हुआ है।
शिवरीनारायण में नई सुविधाएं-
मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जांजगीर-चांपा जिले के शिवरीनारायण में राम वन गमन परिपथ के अंतर्गत विकसित की गई नई सुविधाओं और विभिन्न कार्यों का लोकार्पण करेंगे। यहां प्रथम चरण में 6 करोड़ के विकास कार्य पूर्ण कराए गए हैं। इनमें शिवरीनारायण के मंदिर परिसर का उन्नयन एवं सौदर्यीकरण, दीप स्तंभ, रामायण इंटरप्रिटेशन सेन्टर एवं पर्यटक सूचना केन्द्र, मंदिर मार्ग पर भव्य प्रवेश द्वार, नदी घाट का विकास एवं सौंदर्यीकरण, घाट में प्रभु राम-लक्ष्मण और शबरी माता की प्रतिमा का निर्माण किया गया है। इसी प्रकार घाट में व्यू पाइंट कियोस्क, लैण्ड स्केपिंग कार्य, बाउंड्रीवाल, मॉड्यूलर शॉप, विशाल पार्किंग एरिया और सार्वजनिक शौचालय का निर्माण शामिल है।
स्थापत्य कला एवं मंदिर
शिवरीनारायण का मंदिर समूह दर्शनीय है। यहां की स्थापत्य कला और मूर्तिकला बेजोड़ है। यहां नर-नारायण मंदिर है, इसका निर्माण राजा शबर ने करवाया था। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। केशवनारायण मंदिर ईंटों से बना है, यह पंचरथ विन्यास पर भूमि शैली पर निर्मित है। यहां चंद्रचूड़ महादेव मंदिर, जगन्नाथ मंदिर भी दर्शनीय है। यह पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सदृश्य है। शिवरीनारायण शहर से लगे ग्राम खरोद में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के अनेक मंदिर हैं इनमें मुख्य रूप से दुल्हादेव मंदिर, लक्ष्मणेश्वर मंदिर, शबरी मंदिर प्रसिद्ध है।
प्रसिद्ध है यहां की रथ यात्रा
शिवरीनारायण शैव, वैष्णव धर्म का प्रमुख केन्द्र रहा है। यह स्थान भगवान जगन्नाथ का मूल स्थान होने के कारण यहां रथयात्रा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की विग्रह मूर्तियों को यहीं से जगन्नाथपुरी ले जाया गया था। यहां पुरी की तर्ज पर रथ यात्रा का आयोजन होता है। इसमें छत्तीसगढ़ के अलावा अन्य राज्यों के साधु संत और श्रद्धालु शामिल होते हैं।
सबसे बड़ा मेला: साधु संत का शाही स्नान
माघी पूर्णिमा को यहां छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा 15 दिवसीय मेला लगता है। महाशिवरात्रि के दिन मेले का समापन होता है। माघी पूर्णिमा के दिन यहां साधु संत शाही स्नान करते हैं। यहां बहुत दूर-दूर से श्रद्धालु आते है ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ एक दिन के लिए शिवरीनारायण मंदिर में विराजते हैं।
प्रभु राम महानदी मार्ग से यहां पहुंचे
जनश्रुति के अनुसार प्रभु राम वनवास काल में मांड नदी से चंद्रपुर ओर फिर महानदी मार्ग से शिवरीनारायण पहुंचे थे छत्तीसगढ़ में कोरिया जिले के भरतपुर तहसील में मवाई नदी से होकर जनकपुर नामक स्थान से लगभग 26 किलोमीटर की दूर पर स्थित सीतामढ़ी-हरचौका नामक स्थान से प्रभु राम ने छत्तीसगढ़ में प्रवेश किया था। प्रभु राम ने अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष से अधिक समय छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर व्यतीत किया था।
छत्तीसगढ़ है प्राचीन दक्षिणापथ-
शोधार्थियों के अनुसार त्रेतायुगीन छत्तीसगढ़ दक्षिण कोसल एवं दण्डकारण्य के रूप में विख्यात था। दण्डकारण्य में प्रभु राम के वनगमन यात्रा की पुष्टि वाल्मीकि रामायण से होती है। शोधकर्ताओं के शोध से प्राप्त जानकारी अनुसार प्रभु श्रीराम के द्वारा उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने के बाद छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों का भ्रमण करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया गया था। अतः छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है। -
‘हमारा ग्रह हमारा स्वास्थ्य’ की थीम पर मनाया जा रहा है इस बार का विश्व स्वास्थ्य दिवस
लोगों तक सस्ती और सुलभ चिकित्सा सेवाएं पहुंचाने राज्य शासन ने शुरू की हैं कई योजनाएं
संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्थापना दिवस पर 7 अप्रैल को पूरी दुनिया में विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना 7 अप्रैल 1948 को की गई थी। वर्ष 1950 में 7 अप्रैल को पहली बार विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया गया था। तब से हर साल दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच के महत्व को रेखांकित करने यह दिवस मनाया जाता है।
छत्तीसगढ़ में भी यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज और स्वास्थ्य सेवाओं के सुदृढ़ीकरण के लिए बुनियादी अधोसंरचना को मजबूत करने के साथ ही मानव संसाधन को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। विभिन्न योजनाओं के माध्यम से लोगों को उनके घर के नजदीक ही निःशुल्क या सस्ती चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना के दायरे में प्रदेश के करीब 68 लाख परिवारों को लाया गया है। इसके तहत शासकीय और अनुबंधित निजी अस्पतालों में बीपीएल के लगभग 58 लाख परिवारों को सालाना पांच लाख रूपए तक एवं दस लाख से अधिक एपीएल परिवारों को 50 हजार रूपए तक के निःशुल्क इलाज की सुविधा दी जा रही है।
मुख्यमंत्री विशेष स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत जटिल एवं गंभीर रोगों के इलाज के लिए 20 लाख रूपए तक की आर्थिक सहायता भी जरूरतमंद मरीजों को उपलब्ध कराई जा रही है। मुख्यमंत्री हाट-बाजार क्लिनिक योजना के माध्यम से गांवों और दूरस्थ अंचलों में जांच व उपचार के साथ ही मरीजों को निःशुल्क दवाईयां भी प्रदान की जा रही हैं। शहरी क्षेत्रों में मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना, दाई-दीदी क्लिनिकों और जन औषधि केंद्रों के माध्यम से स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार किया गया है। हर इंसान का स्वास्थ्य अच्छा हो और बीमार होने पर हर व्यक्ति को अच्छी चिकित्सा की अच्छी सुविधा मिल सके, इसके लिए लगातार पहल की जा रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल विश्व स्वास्थ्य दिवस के लिए एक नई थीम जारी करता है। इस बार का विश्व स्वास्थ्य दिवस ‘हमारा ग्रह हमारा स्वास्थ्य (Our Planet Our Health)’ की थीम पर मनाया जा रहा है। हमारे ग्रह और उस पर रहने वाले मनुष्यों की अच्छी सेहत के प्रति पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करना इस थीम का मकसद है। संपूर्ण विश्व इस समय कोरोना वायरस के संक्रमण, जलवायु संकट, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण और कई खतरनाक बीमारियों से जूझ रहा है। ऐसे में अपनी और अपने ग्रह की सेहत के प्रति जागरूक होना बहुत जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होना ही मानव स्वास्थ्य की परिभाषा है।
विश्व स्वास्थ्य दिवस का उद्देश्य वैश्विषक स्तार पर सेहत के प्रति जागरूकता फैलाना और सभी के लिए स्वा स्य्थ् सेवाएं मुहैया कराना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य एक ऐसी दुनिया का निर्माण है जहां स्वा स्य्थ् सेवाओं तक सभी की पहुंच हो, इलाज के लिए किसी को कर्ज न लेना पड़े और न ही इसके लिए जीवन की किसी और अन्य जरूरत से समझौता करना पड़े। वर्तमान में दुनिया को बुरी तरह से प्रभावित करने वाले कोविड-19 के साथ ही पोलियो, टीबी, एड्स, कुष्ठ रोग, उच्च रक्तचाप, नेत्रहीनता, दिल की बीमारी, मलेरिया जैसी बीमारियों की रोकथाम, इनके इलाज की समुचित व्यवस्था और इनके बारे में जन-जागरूकता फैलाना भी विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व स्वास्थ्य दिवस के प्रमुख उद्देश्यों में शामिल हैं। सेहत से जुड़े मुद्दों और समस्याओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्वग में हर साल दुनिया भर में कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
(कमलेश साहू) - अभिनेत्री नूतन किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने एक से बढ़कर एक हिट फिल्में दी । एक अच्छी एक्ट्रेस के रूप में वे हमेशा जानी जाती रही । नूतन ने अपने फि़ल्मी जीवन की शुरुआत 1950 में की थी जब वह स्कूल में ही पढ़ती थीं। वे पहली मिस इंडिया रहीं। सबसे ज्यादा फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने का रिकॉर्ड भी लंबे समय तक उनके नाम रहा। सन् 1974 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया।नूतन की पुरकशिश आवाज के तो लोग प्रसंशक थे ही, मगर बहुत कम लोगों को मालूम है कि नूतन एक प्रशिक्षित गायिका भी थी और उन्होंने कई गाने भी गाए हैं। उनका एक गाना हेमंत कुमार के साथ है- लहरों पे लहर, उलफत है जवां। यह फिल्म छबीली का गाना है, जो 1960 में बनी थी। इसका निर्माण नूतन की मां शोभना समर्थ ने ही किया था। इसमें उन्होंने अपनी दोनों बेटियों नूतन और तनुजा को लिया था। दोनों बहनों की साथ में यह पहली और आखिरी फिल्म थी। अभिनय को महत्व देने के कारण वो संगीतकारों की कोशिशों के बावजूद ज्यादा नहीं गा सकीं। उन्होंने हमारी बेटी , छबीली और मयूरी जैसी फिल्मों मे गीत गाए। उन्होंने कुछ भजन भी रिकॉर्ड करवाए थे। फिल्म छबीली में उनका गाया गाना - ले रोक अपनी नजर ना देख इस कदर भी... लोकप्रिय हुआ है। उन्होंने कुछ भजन भी रिकॉर्ड करवाए थे।संगीतकार कल्याणजी आनंद जी के कई स्टेज शो में नूतन ने गाने गाए। फिल्म छलिया में कल्याणजी-आनंद जी ने गाना-तेरी राहों में खड़े हैं दिल थाम के, नूतन की आवाज में ही रिकॉर्ड करवाया था। बाद में लता मंगेशकर की आवाज में इसे फिर से रिकॉर्ड किया गया। इसका कारण क्या था किसी को नहीं पता चल पाया। आज भी यू ट्यूब पर नूतन के गाये गाने देखे जा सकते हैं।अस्सी के आखिरी सालों मे नूतन पहले ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित हुईं जो बाद में फेफड़े तक फैल गया। वह दर्द से घबराती थीं इसलिए उन्होने अपने पति से कहा था कि बस इस बात का ध्यान रखा जाए कि उन्हें दर्द कम हो। पूरा ध्यान रखा गया लेकिन 21 फरवरी 1991 को महज 54 साल की उम्र में नूतन अपना शरीर छोड़ गईं. और साथ ही छोड़ गईं वह खाली स्थान जो सिर्फ वही भर सकती थीं। (छत्तीसगढ़ आज डॉट कॉम विशेष)--
- पुण्यतिथि पर विशेषआलेख-मंजूषा शर्माअंग्रेजी कवि लार्ड बायरन ने कहा था - ईश्वर जिन्हें प्यार करता है, वे जवानी में मर जाते हैं। नूतन के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। नूतन अभी सक्रिय ही थीं, कि ऊपर से बुलावा आ गया। वे बॉलीवुड में हर तरह की भूमिकाएं निभा रही थीं। फिल्मकार और अभिनेता विजय आनंद उन्हें सबसे अच्छी अभिनेत्री मानते थे। वे उन अभिनेत्रियों में थीं, जिन्हें अभिनय जन्मजात मिला हुआ था।वर्ष 1956 में नूतन स्टार बनीं और उसी वर्ष उन्हें फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार फिल्म सीमा (1956) के लिए मिला। उसके बाद पांच बार उन्होंने यह पुरस्कार जीता। बिमल राय की सुजाता और बंदिनी, सुब्बा राव की मिलन और राजखोसला की फिल्म मैं तुलसी तेरे आंगन की, के साथ ही फिल्म मेरी जंग में शानदार काम के लिए विशेष प्रशस्ति पत्र मिला।युवा दिलीप कुमार की नायिका न बन पाने का अफसोसनूतन की युवा दिलीप कुमार की नायिका न बन पाने का अफसोस हमेशा रहा। उनकी मौसी नलिनी जयवंत फिल्म शिकस्त में दिलीप कुमार की नायिका थीं। नूतन फिल्म शिवा में उनकी नायिका बनने जा रही थी, पर रमेश सहगल की इन दो फिल्मों से केवल शिकस्त बन पाई और नूतन की इच्छा अधूरी रह गई। हालांकि इस फिल्म के लिए दो गीत लता मंगेशकर की आवाज में रिकॉर्ड भी किए जा चुके थे। बाद में फिर नूतन को कोई भी फिल्म दिलीप साहब के साथ नहीं मिली, जबकि वे उस दौर की लोकप्रिय और सफल नायिका थीं। जब सुभाष घई की फिल्म कर्मा में उन्हें दिलीप कुमार की पत्नी का रोल निभाने का मौका मिला, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसके बाद दोनों ने फिल्म कानून अपना अपना में भी साथ काम किया।अनारकली नहीं बन पाईं नूतनबहुत कम लोगों को यह मालूम है कि मधुबाला ने अनारकली की जिस भूमिका से लोगों के दिलों में जो अमिट जगह बनाई , उसकी हकदार पहले नूतन ही थीं। के. आसिफ जब मुगल-ए-आजम फिल्म की योजना बना रहे थे, तब उन्होंने अनारकली की भूमिका के लिए नूतन का ही चयन किया था, लेकिन आखिरकार यह रोल मधुबाला को मिला और मधुबाला ने इस भूमिका के साथ पूरा न्याय किया। इसमें कोई शक नहीं कि मधुबाला बेहद खूबसूरत थीं। पर इसका ये मतलब नहीं है कि फिल्म में मोहे पनघट पर नंद लाल ,.. गीत गाती नूतन भी कहीं से बुरी लगती। यह भूूमिका तो नूतन को मात्र 15 साल की उम्र में मिली थी। दरअसल अगर नूतन ने अनारकली (मुगल-ए-आजम फिल्म का उस समय यही नाम था) की भूमिका 1951 में निभाई होती, तो वे पांच वर्षों के अंदर गीतों पर बेहतरीन अभिनय करने वाली यह अभिनेत्री रुपहले परदे की अनारकली, लैला और हीर बन जाने का कीर्तिमान स्थापित कर लेती। पर नूतन ने जवानी में अनारकली की उस भूमिका को हाथ से जाने दिया।फिल्मकार के. आसिफ ने सबसे पहले 1944 में नरगिस को अनारकली की भूमिका के लिए चुना था। तब नौशाद नहीं , अनिल बिश्वास इसके संगीतकार थे। पर यह फिल्म बीच में ही अटक गई , क्योंकि उसके लेखक शिराज अली हकीम पाकिस्तान में जाकर बस गए थे। 1951 में जब के. आसिफ ने फिर से अनारकली बनाने का विचार किया तो अनिल बिश्वास की जगह नौशाद और नरगिस की जगह नूतन को चुना। नूतन के लिए यह शानदार मौका था , क्योंंिक अगर नूतन ने यह भूमिका स्वीकार कर ली होती तो उनकी तुलना बीना राय से की जाती। बीना राय एस. मुखर्जी की फिल्म अनारकली में अनारकली की भूूमिका निभा रही थीं। उस समय एक ही साथ तीन फिल्में अनारकली के नाम से शुरू हो रही थीं। के.आसिफ की अनारकली , मीनाकुमारी-कमाल अमरोही की अनारकली और बीना राय -एस. मुखर्जी की अनारकली। पर शायद नूतन में अभी वह आत्मविश्वास नहीं आया था जो अमिय चक्रवर्ती की फिल्म सीमा के साथ स्टार बनने के बाद आया। इसलिए उन्होंने जोर दिया कि वे इस भूमिका के लिए ठीक नहीं रहेंगी और चाहा कि यह भूमिका फिर से नरगिस को ही मिले। जब तक कमाल अमरोही अनारकली पर अपना पहला सेट लगाते, तब तक एस. मुखर्जी ने अपने प्रसिद्ध फिल्मस्तान बैनर के तले बीना राय को अनारकली के रूप में परदे पर पेश कर दिया।कॅरिअर की शुरूआत में ही पीछे जाने से नूतन को नुकसान तो हुआ। लेकिन बाद में वे फिल्म लैला मजनूं में शम्मी कपूर के साथ लैला बनकर आई। फिल्मकार के. आसिफ के उच्च स्तर से सीधे उतरकर उन्हें एन. अरोड़ा के स्तर तक आना पड़ा।अभिनेत्री बीना राय को -ये जिंदगी उसी की है, जैसा खूबसूरत गीत देने वाले एस. मुखर्जी ने नूतन की प्रतिभा को महसूस किया और अनारकली के हीरो प्रदीप कुमार के साथ फिल्म हीर में लिया। पर लैला मजनूं और हीर , दोनों ही असफल फिल्में साबित हुईं। इस तरह नूतन के हाथ से परदे पर अमर होनेे के दो मौके फिसल गए। इससे यही साबित होता है कि नूतन को सजा सजाया सौभाग्य नहीं मिलना था। उन्हें मेहनत और कड़ी मेहनत करके ही खुद को श्रेष्ठï अभिनेत्री के रूप में साबित करना था। अनिल बिश्वास ने हीर में नूतन के लिए अनेक खूबसूरत रचनाएं रची। पर फिल्म द्वितीय विश्व युद्ध के दस साल प्रदर्शित हुई और अनिल बिश्वास के कॅरिअर की शुरूआत भी इसी के साथ हुई।फिल्म सीमा में बलराज साहनी के गीत -पंख हैं कोमल , आंख हैं धुंधली , जाना है सागर पार (मन्ना डे) गीत में नूतन ने किस कदर गहरे भाव दिए हैं। यह गीत संगीतकार शंकर ने राग दरबारी में तैयार किया था।सुजाता का रोमांटिक गीतनूतन के अभिनय के विस्तार को 1956 में आई फिल्म सुजाता में भी देखा जा सकता है। इस फिल्म में सुनील दत्त फोन पर अपना प्रेम - जताते हैं और दूसरी तरफ नूतन की खामोश प्रतिक्रियां हैं।इस फिल्म में शुरू में बिमल राय को एक साधारण से अभिनेता सुनील दत्त पर फोन पर गाए रोमांटिक गीत को फिल्माने का खयाल बिल्कुल पसंद नहींं आया। जबकि एस. डी. बर्मन परेशान हो गए थे। वे उम्र में बड़े थे और उन्होंने बिमल राय को लगभग डांटते हुए कहा था- कैसे निर्देशक हो तुम। तुम में इतना आत्मविश्वास नहीं है कि अपने हीरो से एक कोमल गीत को फोन पर गाते हुए नहीं दिखा सकते। क्या तुम प्यार समझते हो? तुम नहीं जानते, क्योंकि तुमने कभी प्यार नहीं किया है। तुम जीवन के सुंदर अनुभव से वंचित हो। तुम कल्पना नहीं कर सकते कि कोई लड़का किसी लड़की को फोन पर प्रेम गीत सुनाए। शेक्सपियर ने कहा था - प्यार आंखों से नहीं दिखता। पर शेक्सपियर की यह बात तुम नहीं समझ सकते हो।बर्मन दा ने मजरूह के इस गीत को इतना सुंदर तैयार किया कि यह गीत तलत महमूद के सर्वश्रेष्ठ गीतों में से माना जाता है। वैसे दादा चाहते थे कि यह गीत रफी साहब गाए, लेकिन बिमल राय ने साफ कह दिया कि फोन वाला गीत वे फिल्म में तभी रखेंगे, जब उसे सुनील दत्त के लिए तलत गाएंगे। बर्मन दादा तब भी रफी को ही चाहते थे, पर उनकी जिद टल गई और बर्मन दादा अंत तक तलत के प्रति अनिश्चय की भावना लिए रहे। यहां तक उन्होंने रिकॉर्डिंग के समय भी कह दिया कि तलत मेरे इस गीत को बरबाद मत करना।तलत ने यह गीत दिल लगाकर गाया और गीत लोगों के दिलों में बस गया। आज भी जब फोन पर गीत फिल्माए जाते हैं, तो लोगों के दिलों में सुनील दत्त पर और नूतन पर फिल्माए इस गीत की ही याद ताजा हो जाती है। सचिन दा को इस गीत को फिल्माने की ज्यादा चिंता नहीं थी, क्योंकि वे जानते थे कि इसमें वह अभिनेत्री है, जिसे भावपूर्ण भूमिकाएं करने के लिए कभी ग्लिसरीन की जरूरत नहीं पड़ी।नूतन के सूक्ष्म अभिनय ने जादू किया और इसी फिल्म मेेंं नूतन ने काली घटा छाए , मेरा जिया तरसाए गाने में भी कितना सुंदर अभिनय किया है। हो सकता है कि इस गीत के लिए बिमल दा को अपनी प्रिय गायिका लता की कमी महसूस हुई हो, लेकिन आशा भोंसले ने भी अपनी आवाज का वो जादू दिखाया कि लोगों ने इसे केवल आशा का ही गीत माना। नूतन के अभिनय ने जो इसे सजीव बना दिया था।
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माँ ने मेरा हाथ खूब ज़ोर से पकड़ा और कहा, देख लेना !! यह तो थे माँ के अन्तिम शब्द । क्या इन शब्दों का अर्थ विश्वास जताना था, या कुछ और..
माँ का स्वर्गवास हुए अभी कुछ ही दिन हुए, लेकिन लगता नहीं कि अब माँ नहीं है। मैं तो ससुराल में हूँ ना, बेटी जो हूँ। वैसे तो मैं भी अब माँ हूँ, लेकिन इसकी अनुभूति अब हो रही है। ममत्व का अहसास हाथ हटने के बाद ही होता है। कहते हैं ना किसी के होने का अहसास उसके चले जाने के बाद होता है, सच है। मां है तो मायका भी है उसके जाने के बाद शायद ही वैसा हो. एक विश्वास की कमी.. मेरे पिता की मृत्यु से क्षति का अहसास हुआ, बहुत बड़ी कमी भी रही, जिसे भी माँ ने सम्हाल रखा था। माँ ने अपने रहते पिता की कमी को अपने दोहरे किरदार से शायद संजो रखा था, लेकिन अब तो माता-पिता दोनों ही नहीं हैं।लेकिन मेरे चार भैया-भाभी हैं न, तीन मुझसे बड़े भी हैं। चारों ही मेरे लिए तो समकक्ष भी हैं और सक्षम भी। चारों ही ने मुझे फूल की तरह रखा है और खुशबू की तरह समझा भी हाँ, यह भी कि मैं पत्नी और माँ भी हूँ। ये सभी प्यार, भरपूर प्यार के ही रिश्ते हैं। माँ के उपचार के चलते शायद मैंने इन रिश्तों की सूक्ष्मता को महसूस किया । मातृत्व की परिभाषा अंतर्मन से पहचानी भी ।माता-पिता की भूमिका वैसे तो जानी-पहचानी सी है, ससुराल जाने के बाद भी उनकी मृत्यु पर जो बड़ा सा शून्य बनता है,उसे भाई- भाभी हटा कर लगाव की निरंतरता दे पाएँगे ? यह एक बड़ा सा प्रश्न दबी आवाज़ से पहले भी होता था और अब वह सामने दिखाई देता है।वही पुरानी बचपन की अठखेलियाँ, नटखट उत्पात आगंतुकों के वार्तालाप, कुछ प्रश्न कुछ अनमने और कुछ रोचक उत्तर मन ही मन लगातार आते रहते हैं। लेकिन, मां के द्वारा उनकी मृत्यु पूर्व आत्म विश्वास को बढ़ाने वाली पकड़, अभी भी मन को झकझोर देती है। माँ ने मुझे मेरे ब्याह के बाद से लगातार जो प्यार, बढ़ाने की राह दी, जो जीवन के प्रति और सभी संबंधों के प्रति जिम्मेदारी की सीख दी, मेरा जीवन उनके आशीर्वचन से उपकृत हो गया। उनके ईश्वरीय दृष्टिकोण को क्या लिखूँ, अप्रतिम भक्ति-भाव आसक्ति मेरे लिए तो समझना भी मानो पूजा ही है। सामाजिक ढांचा और उससे हमारा सरोकार, नैतिकता, सामंजस्य को नारीत्व के भाव से जोडऩा अतुलनीय रहा है। उनका मंदिरों में जाना वहाँ की सुविधा-असुविधा समझना और यथा संभव सहयोग, वाह... पुन: नि:शब्द..माँ, हमने आपको शायद पूरा जाना ही नहीं, समझा ही नहीं, एक बार और मौका देना माँ इसी रूप में। शत् शत् नमन.. मैं पूरा लिख नहीं पाई एक बार फिर से कलम पकडऩा सिखाना माँ, प्रणाम माँ।शजिन्ता(स्मृति)शुक्ला - -शासकीय गुण्डाधुर कॉलेज, कोंडागांव में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष व नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्र का व्याख्यानकोंडागांव । अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष व नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्र ने शासकीय गुण्डाधुर स्नातकोत्तर महाविद्यालय कोंडागांव द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अंधविश्वास विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि देश में अंधविश्वास और सामाजिक कुरीतियों के कारण अक्सर अनेक निर्दोष लोगों को प्रताडऩा का शिकार होना पड़ता है, जिसके निदान के लिए आम जन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की अत्यंत आवश्यकता है।डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कुछ लोग अंधविश्वास के कारण हमेशा शुभ-अशुभ के फेर में पड़े रहते हंै। यह सब हमारे मन का भ्रम है। शुभ-अशुभ सब हमारे मन के अंदर ही है। किसी भी काम को यदि सही ढंग से किया जाये, मेहनत, ईमानदारी से किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है। उन्होंने कहा कि 18वीं सदी की मान्यताएं व कुरीतियां अभी भी जड़े जमायी हुई हैं जिसके कारण जादू-टोना, डायन, टोनही, बलि व बाल विवाह जैसी परंपराएं व अंधविश्वास आज भी वजूद में हैं। जिससे प्रतिवर्ष अनेक मासूम जिन्दगियां तबाह हो रही हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे में वैज्ञानिक जागरूकता को बढ़ाने और तार्किक सोच को अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने आगे कहा कि अंधविश्वास को कुरीतियों के विरूद्ध समाज के साथ विद्यार्थियों को भी एकजुट होकर आगे आना चाहिए।डॉ. मिश्र ने कहा प्राकृतिक आपदायें हर गांव में आती है, मौसम परिवर्तन व संक्रामक बीमारियां भी गांव को चपेट में लेती है, वायरल बुखार, मलेरिया, दस्त जैसे संक्रमण भी सामूहिक रूप से अपने पैर पसारते है। ऐसे में ग्रामीण अंचल में लोग कई बार बैगा-गुनिया के परामर्श के अनुसार विभिन्न टोटकों, झाड़-फूंक के उपाय अपनाते हैं। जबकि प्रत्येक बीमारी व समस्या का कारण व उसका समाधान अलग-अलग होता है, जिसे विचारपूर्ण तरीके से ढूंढा जा सकता है। उन्होंने कहा कि बिजली का बल्ब फ्यूज होने पर उसे झाड़-फूंक कर पुन: प्रकाश नहीं प्राप्त किया जा सकता और न ही मोटर सायकल, ट्रांजिस्टर बिगडऩे पर उसे ताबीज पहनाकर सुधारा जा सकता। रेडियो, मोटर सायकल, टी.वी., ट्रेक्टर की तरह हमारा शरीर भी एक मशीन है जिसमें बीमारी आने पर उसके विशेषज्ञ के पास ही जांच व उपचार होना चहिए। डॉ. मिश्र ने विभिन्न सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों की चर्चा करते हुए कहा कि बच्चों को भूत-प्रेत, जादू-टोने के नाम से नहीं डराएं क्योंकि इससे उनके मन में काल्पनिक डर बैठ जाता है जो उनके मन में ताउम्र बसा होता है, बल्कि उन्हें आत्मविश्वास, निडरता के किस्से कहानियां सुनानी चाहिए। जिनके मन में आत्मविश्वास व निर्भयता होती है उन्हें न ही नजर लगती है और न कथित भूत-प्रेत बाधा लगती है। यदि व्यक्ति कड़ी मेहनत, पक्का इरादा का काम करें तो कोई भी ग्रह, शनि, मंगल, गुरू उसके रास्ता में बाधा नहीं बनता।डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा — देश में जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, झाड़-फूँक की मान्यताओं एवं डायन (टोनही )के संदेह में प्रताडऩा तथा सामाजिक बहिष्कार के मामलों की भरमार है। डायन के सन्देह में प्रताडऩा के मामलों में अंधविश्वास व सुनी-सुनाई बातों के आधार पर किसी निर्दोष महिला को डायन घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू-टोना कर बच्चों को बीमार करने, फसल खराब होने, व्यापार-धंधे में नुकसान होने के कथित आरोप लगाकर उसे तरह-तरह की शारीरिक व मानसिक प्रताडऩा दी जाती है। कई मामलों में आरोपी महिला को गाँव से बाहर निकाल दिया जाता है। बदनामी व शारीरिक प्रताडऩा के चलते कई बार पूरा पीडि़त परिवार स्वयं गाँव से पलायन कर देता है। कुछ मामलों में महिलाओं की हत्याएँ भी हुई हंै अथवा वे स्वयं आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती हंै। जबकि जादू-टोना के नाम पर किसी भी व्यक्ति को प्रताडि़त करना गलत तथा अमानवीय है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति के पास ऐसी जादुई शक्ति नहीं होती कि वह दूसरे व्यक्ति को जादू से बीमार कर सके या किसी भी प्रकार का आर्थिक नुकसान पहुँचा सके। जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, टोनही, नरबलि के मामले सब अंधविश्वास के ही उदाहरण हैं। महाराष्ट्र छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश ओडीसा, झारखण्ड, बिहार, असम सहित अनेक प्रदेशों में प्रतिवर्ष टोनही/डायन के संदेह में निर्दोष महिलाओं की हत्याएँ हो रही हैं, जो सभ्य समाज के लिये शर्मनाक है। नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो ने सन् 2001 से 2015 तक 2604 महिलाओं की मृत्यु डायन प्रताडऩा के कारण होना माना है। जबकि वास्तविक संख्या इनसे बहुत अधिक है। अधिकतर मामलों में पुलिस रिपोर्ट ही नहीं हो पातीं। हमने जब आर टी आई से जानकारी प्राप्त की तब हमें बहुत ही अलग आंकड़े प्राप्त हुए। झारखंड में 7000 ,बिहार में 1679 छत्तीसगढ़ में 1357,ओडिशा 388 में ,राजस्थान 95 में,आसाम में 75 मामलों की प्रमाणिक जानकारी है। जबकि कुछ राज्यों से जवाब ही नहीं मिला। पर समाचार पत्रों में लगभग सभी राज्यों से ऐसी घटनाओं के समाचार मिलते हैं।डॉ. मिश्र ने कहा आम लोग चमत्कार की खबरों के प्रभाव में आ जाते हैं। हम चमत्कार के रूप में प्रचारित होने वाले अनेक मामलों का परीक्षण व उस स्थल पर जाँच भी समय-समय पर करते रहे हैं। चमत्कारों के रूप में प्रचारित की जाने वाली घटनाएँ या तो सरल वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के कारण होती हैं तथा कुछ में हाथ की सफाई, चतुराई होती है जिनके संबंध में आम आदमी को मालूम नहीं होता। कई स्थानों पर स्वार्थी तत्वों द्वारा साधुओं को वेश धारण चमत्कारिक घटनाएँ दिखाकर ठगी करने के मामलों में वैज्ञानिक प्रयोग व हाथ की सफाई के ही करिश्में थे।डॉ. मिश्र ने कहा भूत-प्रेत जैसी मान्यताओं का कोई अस्तित्व नहीं है। भूत-प्रेत बाधा व भुतहा घटनाओं के रूप में प्रचारित घटनाओं का परीक्षण करने में उनमें मानसिक विकारों, अंधविश्वास तथा कहीं-कहीं पर शरारती तत्वों का हाथ पाया गया। आज टेलीविजन के सभी चैनलों पर भूत-प्रेत, अंधविश्वास बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित हो रहे हैं। ऐसे धारावाहिकों का न केवल जनता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि छोटे बच्चों व विद्यार्थियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इस संबंध में हमने राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वेक्षण कराया है जिसमें लोगों ने ऐसे सीरियलों को बंद किये जाने की मांग की है। ऐसे सीरियलों को बंद कर वैज्ञानिक विकास व वैज्ञानिक दृष्टिकोण बढ़ाने व विज्ञान सम्मत अभिरूचि बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित होने चाहिए। भारत सरकार के दवा एवं चमत्कारिक उपचार के अधिनियम 1954 के अंतर्गत झाड़-फूँक, तिलस्म, चमत्कारिक उपचार का दावा करने वालों पर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है। इस अधिनियम में पोलियो, लकवा, अंधत्व, कुष्ठरोग, मधुमेह, रक्तचाप, सर्पदंश, पीलिया सहित 54 बीमारियाँ शामिल हैं। लोगों को बीमार पडऩे पर झाड़-फूँक, तंत्र-मंत्र, जादुई उपचार, ताबीज से ठीक होने की आशा के बजाय चिकित्सकों से सम्पर्क करना चाहिए क्योंकि बीमारी बढ़ जाने पर उसका उपचार खर्चीला व जटिल हो जाता है।डॉ. मिश्र ने कहा अंधविश्वास, पाखंड एवं सामाजिक कुरीतियों का निर्मूलन एक श्रेष्ठ सामाजिक कार्य है जिसमें हाथ बंटाने हर नागरिक को आगे आना चाहिए।