अपने जमाने के सबसे महंगे संगीतकार थे ओपी नैय्यर ...जिन्होंने कभी लता मंगेशकर के साथ काम नहीं किया....
मंजूषा शर्मा
गुजरे जमाने के संगीतकारों में ओंकार प्रसाद नैय्यर यानी ओ. पी. नैय्यर ने अपने अलहदा संगीत की वजह से फिल्म संगीत की दुनिया में एक अलग ही पहचान बनाई थी। 'इशारों इशारों में दिल लेने वाले...', 'जाने कहां मेरा जिगर गया जी...', 'लेके पहला पहला प्यार...' इन गानों की पंक्तियां पढऩे के बाद पूरा गाना सुनने का मन कर रहा है न? हो भी क्यों न? ये गाने दशकों से हमारे दिल और दिमाग पर छाए हुए हैं। इन्हें हम कहीं भी सुन लें तो बिना गुनगुनाए नहीं रह सकते। आज उनकी बर्थ एनिवसिरी पर हम उनके बारे में कुछ रोचक जानकारी लेकर आए हैं।
ओपी नैय्यर का जन्म पाकिस्तान के लाहौर में 16 जनवरी साल 1926 को हुआ था। वे अपने जमाने के सबसे महंगे संगीतकार थे। उन्होंने सबसे ज्यादा मौका आशा भोंसले को दिया। उस वक्त लता मंगेशकर सबसे सफल गायिका मानी जाती थी, लेकिन ओ. पी. नैय्यर ने उनके साथ कभी काम नहीं किया। कहा जाता है कि ओ. पी. नैयर ने कसम खाई थी कि वे कभी भी लता मंगेशकर से अपने गाने नहीं गवाएंगे।
दरअसल, ओपी नैय्यर 50 और 70 के दशक में अपनी ही शर्तों पर काम करने के लिए मशहूर थे। उन्हें जिद्दी किस्म का इंसान भी कहा जाता था। अपने काम को लेकर वह बहुत अडिग रहते थे और बहुत जल्दी ही गुस्सा हो जाते थे। बस यही वजह बन गई लता मंगेशकर से उनकी लड़ाई की। दरअसल, यह मामला है फिल्म 'आसमान' के समय का। 'आसमान' में सहनायिका के किरदार के लिए ओपी नैय्यर ने एक गाना लिखा और चाहते थे कि लता मंगेशकर इस गाने को अपनी आवाज दें। जब यह बात लता मंगेशकर के कानों तक पहुंची तो उन्हें यह अच्छा नहीं लगा। उन्हें यह प्रस्ताव पसंद नहीं आया, क्योंकि उस समय कि वह एक बड़ी गायिका थीं और यह नहीं चाहती थीं कि वह मुख्य नायिका की जगह किसी सहनायिका के लिए गाना गाए।
कहा जाता है कि लता मंगेशकर ने वह गाना गाने से इनकार कर दिया। बस यही बात ओपी नैय्यर को चुभ गई। उन्होंने उसी वक्त एलान कर दिया कि वह लता मंगेशकर के साथ कोई गाना नहीं बनाएंगे और इस तरह एक महान गायक और संगीतकार की जोड़ी बनते बनते रह गई। हालांकि, मीडिया के सामने कभी उन दोनों ने अपने लड़ाई की बात को नहीं माना, लेकिन उनके बीच के मतभेद के किस्से बहुत मशहूर हुए। 1990 में जब ओपी नैय्यर को 'लता मंगेशकर अवॉर्ड' के लिए चुना गया तो उन्होंने इस अवॉर्ड को भी लेने से मना कर दिया था। खैर ओ. पी. नैयर ने आशा भोंसले को खूब मौका दिया और एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए।
आर-पार, सी. आई. डी., तुमसा नहीं देखा आदि एक के बाद एक लगातार हिट फि़ल्में देते हुए ये सिने जगत् में सबसे महंगे संगीतकार बने। 1950 में एक फि़ल्म में संगीत देने के 1 लाख रुपये लेने वाले पहले संगीतकार थे। "नया दौर" इनकी सबसे लोकप्रिय फि़ल्म रही। इस फि़ल्म के लिए उन्हें 1957 में फि़ल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला। सिर्फ़ कुछ ही फि़ल्मों में अपनी कला का लोहा मनवा देने वाले ये संगीतकार एकांतप्रिय स्वभाव के कारण भी चर्चा में रहे। कुछ लोग इन्हें घमंडी, दबंग और निरंकुश स्वभाव के भी कहते थे, हालाँकि नये एवं जूझते हुए गायकों के साथ ये बहुत उदार रहे। पत्रकार हमेशा से ही इनके खिलाफ रहे और इनको हमेशा ही बागी संगीतकार के रूप में पेश किया गया। पचास के दशक के दौरान आल इंडिया रेडियो ने इनके संगीत को आधुनिक कहते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया और इनके गाने रेडियो पर काफ़ी लंबे समय तक नहीं बजाए गये। इस बात से उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ बल्कि वे अपनी धुन बनाते रहे और वे सभी देश में बड़ी हिट रही। उस समय सिर्फ़ श्रीलंका के रेडियो पर ही इनके नये गाने सुने जा सकते थे। बहुत जल्दी ही अंग्रेज़ी अख़बारों में इनकी तारीफ के चर्चे शुरू हो गये और इन्हें हिन्दी संगीत में उस्ताद कहा जाने लगा, तब ये बहुत जवान थे।
गीता दत्त, आशा भोंसले और मोहम्मद रफ़ी के साथ इन्होंने सबसे ज़्यादा काम किया। मोहम्मद रफ़ी से अलग होने के बाद ओपी महेंद्र कपूर के साथ काम करने लगे। महेंद्र कपूर जी ओपी के लिए दिल से गाते थे। उनकी आवाज़ और एहसास की गहराई ने ओपी के गानों में भावनाओं को उभारा और लोगों के दिलों तक ओपी के विचारों की गहराई पहुँचाई। आशा भोंसले के साथ ओपी ने लगभग सत्तर फि़ल्मों में काम किया। सिने जगत् के लोगों ने आशा भोंसले को उनकी ही खोज बताया। ऐसा लगता था कि नैय्यर साहब आशा जी के लिए विशेष धुन बनाते हों, जिन्हें आशा बिना किसी मेहनत के गा लेती। वे ज़्यादातर पंजाबी धुन के साथ मस्ती भरे गाने बनाते थे। लेकिन मुकेश के द्वारा गाया हुआ बहुत गंभीर गाना 'चल अकेला, चल अकेला, चल अकेलाÓ ओ. पी नैय्यर की चहुँमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।
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