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 देवी अहिल्या बाई होल्कर की जयंती के उपलक्ष्य में  संगोष्ठि का आयोजन

भिलाईनगर। शासन के निर्देशानुसार देवी अहिल्या बाई होल्कर की 300वीं जयंती 10 दिन तक निगम भिलाई क्षेत्र में  मनाई जा रही है। इसी तारतम्य में अहिल्या बाई के जीवनी पर संगोष्ठि का आयोजन नेहरू नगर भेलवा तालाब में  किया गया। जिसमें प्रबुद्व लोगो द्वारा राजमाता अहिल्या बाई होल्कर ने 18वीं शताब्दी में किस प्रकार से होल्कर साम्राज्य का विस्तार की, इसके बारे में परिचर्चा की गई।
         नगर निगम भिलाई के जनसम्पर्क अधिकारी अजय शुक्ला ने बताया कि रानी अहिल्या बाई होल्कर  सामान्य परिवार में पैदा होकर अपने कुशल नेतृत्व, संघर्षीलता, ईश्वर के प्रति भक्ति के बल पर होलकर वंश  महारानी  बन गयी। उन्हें दूरदर्शी महिला शासकों में के रूप में जाना जाता है।  चाहे  विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण हो, स्त्रियों की शिक्षा, सब वर्ग का सम्मान, अपने  राज्य में औद्योगीकरण को लागू करना, धर्म  का प्रचार प्रसार उन्होंने कुशलतापूर्वक किया।   रानी पहली शासक थी जिन्होंने भूतपूर्व सैनिकों की पेंशन योजना लागू की उसे समय उनके वेतन से कुछ अंश कट करके रखा जाता था उतना ही राशि जोड़ करके उनके रिटायरमेंट के बाद उन्हें पेंशन प्रदान किया जाता था। अपनी सहेली का विधवा विवाह सर्वप्रथम उन्होंने ही करवाया था। जो पूर्व के राजा सोचने से डरते थे उन कार्यों को संघर्ष करके कर डालती थी। डाॅक्टर ललित पोपट ने कहा 31 मई 1725 को अहमद नगर के चौंड़ी गांव में जन्मी अहिल्या के पिता मनकोजी राव शिंदे ग्राम प्रधान थे, अहिल्या बाई शुरू से ही संस्कारिक, धार्मिक एवं सामाजिक रिती-रिवाजों में पली बढ़ी थी। भगवान शंकर के प्रति उनकी अटूट श्रद्वा थी।
         उद्योगपति सुभाष गुलाटी ने लोगो को समझाते हुए बताया कि देवी अहिल्या आम लोगो की समस्याओं को जानने के लिए रात में भेष बदलकर नगर में घूमा करती थी खुद समस्याओं से और जनता के विचारों से अवगत होती थी और उसका निराकरण करती थी। भारत विकास परिषद के सचिव जितेंद्र सिंह ने बताया कि एक अच्छी कूटनीतिज्ञ थी बड़े-बड़े राजा उनके कूटनीतिक चाल में फंस जाते थे यह सोच करके कहीं महिला रानी से हार गया तो बहुत बेज्जती होगा। उनके राज्य से मित्रता कर लेते थे। राजकाज के  साथ-साथ विभिन्न गतिविधिया जैस  मंदिरो, घाटों, कुओं, तालाबों और विश्राम गृह   तीर्थ स्थलों तक निर्माण   शामिल था। उनकी प्रजा उन्हें  सम्मान से आई कहती थी। 
          संगोष्ठी में शामिल रहे  प्रदीप डालमिया, दुग्गल, संजय भाटिया, सुबोध अग्रवाल, मयंक चतुर्वेदी, एम.पी. सिंह, नरेश गुप्ता, एम राजू, ठाकरे, अनिल डागा, शिवचरण गोयल, शैलेंद्र परिहार, रमेश साहू, शिवनारायण मोदी, राजेश साहू, आदि सहभागी रहे।

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