कार्तिक पूर्णिमा पर जगन्नाथ मंदिर में हुआ हरि कीर्तन
-हरे रामा, हरे कृष्णा के संकीर्तन से आसपास का क्षेत्र गूंज उठा
-चारों प्रहर चार तरह के लगे भोग, दही हांडी भी लूटी
-गंगा का आह्वान कर निकाली कलश यात्रा
टी सहदेव
भिलाई नगर। सेक्टर 06 स्थित जगन्नाथ मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर सोमवार को उत्कल सांस्कृतिक परिषद के तत्वावधान में बारह घंटे का अखंड हरि कीर्तन किया गया। हरि कीर्तन से पहले आभूषणों से अलंकृत भगवान जगन्नाथ की भक्ति में रास पूर्णिमा भी रचाई गई, जिसे देखकर सभी की आंखें तृप्त हो गईं। ओड़िशा के संबलपुर से आई मंडली द्वारा सुबह सात बजे से शाम सात बजे तक कीर्तन किया गया, जिसमें 25 सदस्यों ने बिना रुके अपनी प्रस्तुति दी। 'हरे रामा, हरे कृष्णा' के कीर्तन से न केवल मंदिर प्रांगण, बल्कि आसपास का पूरा क्षेत्र भक्ति मय हो गया। अनुष्ठान के अंत में विसर्जन कलश यात्रा भी निकाली गई। बताते चलें कि कार्तिक पूर्णिमा पर पिछले तीस वर्षों से यहां हरि कीर्तन का आयोजन किया जा रहा है।
चारों प्रहर चार तरह के लगे भोग, दही हांडी भी लूटी
कार्तिक पूर्णिमा के दिन चारों प्रहर विभिन्न तरह के भोग लगाए गए। प्रथम प्रहर में बाल भोग, द्वितीय में पीठा भोग, तृतीय में राज भोग और चतुर्थ प्रहर में लक्ष्मी भोग लगाया गया। संकीर्तन के समय रात को पूर्णाहुति दी गई। पूर्णाहुति के पश्चात दही हांडी लूट का भी आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। इससे पहले शाम को देव दीपावली आयोजित की गई, जिसमें 1111 दीप प्रज्वलित किए गए। दोपहर को भोग भी वितरित किया गया, जिसे लगभग साढ़े तीन हजार लोगों ने ग्रहण किया। इसके अलावा शनिवार को भगवान राम का 1111 कमल के फूलों से अभिषेक कर अखंड रामायण का पाठ भी कराया गया।
गंगा का आह्वान कर निकाली कलश यात्रा
इस धार्मिक अनुष्ठान में पंडित तुषारकांत महापात्र ने विधि-विधान से यजमान के रूप में उपस्थित नीलमणि नायक दंपति से पूजा- अर्चना कराई। हरि कीर्तन से एक दिन पहले माता गंगा का आह्वान किया गया। इस दौरान 35 महिलाओं ने मंदिर की परिक्रमा करते हुए कलश यात्रा भी निकाली। अनुष्ठान को सफल बनाने में अध्यक्ष दिलीपकुमार महंती, उपाध्यक्ष शरद विस्वाल, रवींद्र साहू, महासचिव अरुण कुमार पंडा, उप सचिव रवींद्र मुनि, कोषाध्यक्ष जीतेंद्र कुमार भुइयां तथा दानदाताओं सुभाष प्रसाद, नारायणी देवी अग्रवाल, वीणादेवी अग्रवाल, सुशील जैन एवं पी पापाराव का योगदान रहा।











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