दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी, अंखियां प्यासी रे .........
गुजरा जमाना- आलेख मंजूषा शर्मा
आज हम एक ऐसे गीत की चर्चा कर रहे हैं, जो अपने दौर का एक लोकप्रिय भजन है, इसे बने 63 साल हो गए हैं। हालांकि इसके रचनाकार को लेकर मत विभाजन रहा है।
भजन है- दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे। इसे वर्ष 1957 में बनी फिल्म नरसी भगत में शामिल किया गया था। गाने के बोल गोपाल सिंह नेपाली ने लिखे और धुन बनाई संगीतकार रवि ने। गाने को आवाज दी हेमन्त कुमार, सुधा मल्होत्रा और मन्ना डे साहब ने।
नरसी भगत फिल्म जैसा कि इसके नाम से जाहिर है, एक व्यक्तिपरक फिल्म थी। नरसी भगत पन्द्रहवीं शताब्दी में गुजरात के प्रसिद्ध भक्त कवि हुए हैं। उन्हें नरसी या नरसिंह मेहता के नाम से भी जाना जाता है। उनके कृष्ण भक्ति के पद गुजरात में जनमानस के बीच आज भी लोकप्रिय हैं। उनकी सारी रचनाएं गुजराती भाषा में हैं। गुजराती में होने पर भी उनका एक भजन पूरी दुनिया में महात्मा गांधी की वजह से लोकप्रिय हुआ...
वैष्णव जन तो तैने कहिये
जे पीड परायी जाणे रे
पर दु:खे उपकार करे तो
ये मन अभिमान न आणे रे।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह प्रिय भजन था। कई गायकों ने इसे अपने अपने ढंग से गाया है - एम एस सुब्बुलक्ष्मी, लता मंगेशकर, मन्ना डे, जगजीत सिंह जिनमें प्रमुख हैं। इसे कई फि़ल्मों में भी शामिल किया गया है जैसे गांधी (1982), वाटर (2005), रोड टू संगम (2009 ), हे राम (2000), नरसी भगत (1940, 1957) आदि। हम बात कर रहे हैं नरसी भगत फिल्म के भजन दर्शन दो घनश्याम..... की। हिन्दी में नरसी भगत के नाम से दो बार फि़ल्में बनी हैं। विजय भट्ट (निर्देशक विक्रम भट्ट के पिता) के निर्देशन में बनी 1940 की फि़ल्म में दुर्गा खोटे, विष्णु पंत पगनीस, अमीर बाई कर्नाटकी ने अभिनय किया था। वहीं 1957 में इसी नाम से एक और फिल्म बनी जिसमें शाहू मोडक, निरूपाराय जैसे कलाकारों ने काम किया। फिल्म के निर्देशक देवेन्द्र गोयल थे। इसी फिल्म में गीतकार गोपाल सिंह नेपाली और संगीतकार रवि ने कुछ बड़े प्यारे भक्ति गीत बनाये थे - सबकी नैया पार लगैया कृष्ण कन्हैया सांवरे, रामधुन लागी गोपाल धुन लागी (मन्ना डे, आशा भोंसले), जय गोविन्दा गोपाला (मोहम्मद रफी), राधा के रसिया गोकुल के बसिया (सुधा मल्होत्रा)। इनके साथ नरसी मेहता का भजन वैष्णव जन तो तैने कहिये (मन्ना डे) और दर्शन दो घनश्याम नाथ (हेमन्त कुमार, सुधा मल्होत्रा, मन्ना डे) जैसे गाने भी शामिल किए गए। दर्शन दो घनश्याम गीत के दो वर्शन हैं - पहला वर्शन हेमन्त कुमार, मन्ना डे, सुधा मल्होत्रा की आवाज़ों में है तथा दूसरा सोलो वर्शन मन्ना डे के स्वर में है। दोनों की अपनी अलग विशेषताएं हैं।
राग केदार पर आधारित भजन
संगीतकार रवि ने इस भजन को शास्त्रीय राग केदार में स्वबद्ध किया। राग केदार भारतीय शास्त्रीय संगीत इतना पौराणिक है कि इसके विकास के साथ साथ कई देवी देवताओं के नाम भी इसके साथ जुड़ते चले गए हैं। शिवरंजनी और शंकरा की तरह राग केदार भी भगवान शिव को समर्पित है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की रागदारी में जितने भी मौलिक स्तंभ हैं, राग केदार के अलावा शायद ही कोई राग होगा जिसमें ये सारी मौलिकताएँ समा सके। राग केदार की खासियत है कि यह हर तरह के जौनर में आसानी से घुलमिल जाता है जैसे कि ध्रुपद, धमार, खय़ाल, ठुमरी वगैरह। पारंपरिक तौर पर राग केदार के प्रकार हैं शुद्ध केदार, मलुहा केदार और जलधर केदार। इनके अलावा केदार के कई वेरियशन्स् हैं जैसे कि बसंती केदार, केदार बहार, दीपक केदार, तिलक केदार, श्याम केदार, आनंदी केदार, आदम्बरी केदार, और नट केदार। केदार राग केवल उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका प्रसार दक्षिण में भी हुआ, कर्नाटक शैली में यह जाना गया हमीर कल्याणी के नाम से। फि़ल्म संगीत में इस राग का प्रयोग बहुत सारे संगीतकारों ने किया है। 1971 की फि़ल्म गुड्डी में वाणी जयराम की आवाज़ में संगीतकार वसंत देसाई ने गाना बनाया- हमको मन की शक्ति देना । वहीं संगीतकार ओ. पी. नय्यर ने 1961 की फि़ल्म एक मुसाफिऱ एक हसीना में आप युंही अगर हम से मिलते रहे देखिए एक दिन प्यार हो जाएगा ....गीत को इसी राग पर स्वरबद्ध किया, जो आज भी लोकप्रिय है। संगीतकार सचिन देव बर्मन दादा ने फि़ल्म मुनीमजी में इसी राग पर आधारित गीत- साजन बिना नींद ना आए... लता मंगेशकर से गवाया था। इसी तरह उनके बेटे पंचम दा यानी राहुल देव बर्मन ने फि़ल्म घर के लिए राग केदार पर आधारित गाना कम्पोज़ किया -आपकी आंखों में कुछ महके हुए से राज़ हैं (गीतकार गुलजार)। जब केदार राग की चर्चा चल रही है, तो संगीतकार नौशाद साहब को कैसे भुलाया जा सकता है। उन्होंने 1949 की फि़ल्म अंदाज़ में इसी राग को लेकर एक गीत बनाया उठाए जा उनके सितम , यह गीत लता मंगेशकर की आवाज में है। यह भी अपने दौर का सुपरहिट गाना है।
जब दर्शन दो घनश्याम भजन का उल्लेख हो रहा है, तो फिल्म स्लमडाग मिलियेनेयर ( 2008 ) का जिक्र भी लाजिमी होगा। इस फि़ल्म में अनिल कपूर, इरफ़ान खान, देव पटेल, फ्रिडा पिण्टो, मधुर मित्तल ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थी। स्लमडाग मिलियेनेयर फि़ल्म में कौन बनेगा करोड़पति जैसी प्रश्नोत्तर की प्रतियोगिता में एंकर अनिल कपूर प्रतियोगी देव पटेल से प्रश्न पूछते जाते हैं । अनिल कपूर द्वारा पूछे गये प्रश्नों में एक प्रश्न था कि दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अंखियां प्यासी रे भजन किसने लिखा है? फि़ल्म में इस भजन को भक्त सूरदास द्वारा रचित बताया जाता है। दरअसल यह जवाब ग़लत था। इस भजन के असली गीतकार गोपाल सिंह नेपाली हैं जिन्होंने फि़ल्म नरसी भगत (1957) के लिए इस गीत को लिखा था। कुछ जगह इस भजन को स्वयं नरसी मेहता द्वारा लिखित बताया गया है। लेकिन नरसी मेहता केवल गुजराती भाषा में गीत रचना किया करते थे। अमीन सयानी के एक इंटरव्यू में संगीतकार रवि ने इस बात की पुष्टि की थी कि इस भजन को गोपाल सिंह नेपाली ने लिखा था। फिल्म के रिकॉर्ड में भी इस गीत के गीतकार का नाम गोपाल सिंह नेपाली है।
खैर हम लौटते हैं अपने आज के गीत-भजन दर्शन दो घनश्याम...पर। हालांकि इस पूरे भजन के रचयिता का नाम सूरदास लिखा हुआ है। अब इसमें कहां तक सच्चाई है.. यह शोध का विषय है। फिलहाल आप पूरा भजन पढि़ए....
दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी, अंखियां प्यासी रे
मन मंदिर की जोत जगा दो, घाट घाट वासी रे
मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी न दीखे सूरत तेरी
युग बीते ना आई मिलन की पूरनमासी रे
द्वार दया का जब तू खोले, पंचम सुर में गूंगा बोले
अंधा देखे लंगड़ा चल कर पहुंचे काशी रे
पानी पी कर प्यास बुझाऊं, नैनन को कैसे समझाऊं
आंख मिचौली छोड़ो अब तो मन के वासी रे
निर्ब$ल के बल धन निर्धन के, तुम रखवाले भक्त जनों के
तेरे भजन में सब सुख़ पाऊं, मिटे उदासी रे
नाम जपे पर तुझे ना जाने, उनको भी तू अपना माने
तेरी दया का अंत नहीं है, हे दु:ख नाशी रे
आज फैसला तेरे द्वार पर, मेरी जीत है तेरी हार पर
हर जीत है तेरी मैं तो, चरण उपासी रे
द्वार खडा कब से मतवाला, मांगे तुम से हार तुम्हारी
नरसी की ये बिनती सुनलो, भक्त विलासी रे
लाज ना लुट जाए प्रभु तेरी, नाथ करो ना दया में देरी
तिन लोक छोड़ कर आओ, गंगा निवासी रे
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