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 ओ रे माझी मेरे माझी, मेरे साजन हैं उस पार.....सचिन दा और उनका मीठा, सुरीला संगीत
जयंती पर विशेष,  आलेख- मंजूषा शर्मा
बंगाल से लेकर त्रिपुरा और देश के विभिन्न हिस्सों के लोक संगीत को फिल्मों में प्रमुखता से महत्व दिलाने का श्रेय जिन संगीतकारों को है, उनमें सबसे पहला नाम सचिन देव बर्मन यानी एस. डी. बर्मन का लिया जाता है। उन्होंने अपने ठेठ लोक अंदाज में फिल्मों में गाने गाए, जो आज भी लोकप्रिय हैं। उनके द्वारा तैयार मीठें धुनों ने न जाने कितने ही साधारण से गीतों को असाधारण बना दिया। 
कोलकाता के संगीत प्रेमियों में सचिन कारता, मुम्बई के संगीतकारों के लिए बर्मन दा, बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के रेडियो श्रोताओं में शोचिन देब बोर्मोन, सिने जगत में एस.डी. बर्मन -उनके गीतों ने हर किसी के दिल में अमिट छाप छोड़ी है। उनके संगीत में विविधता थी। उनके संगीत में लोक गीत की धुन झलकती, वहीं शास्त्रीय संगीत का स्पर्श भी था। उनका अपरंपरागत संगीत जीवंत लगता था। यहां कौन हे तेरा..., सुन मेरे बंधु रे.., काहे को रोए.., ओ रे माझी मेरे माझी मेरे साजन हैं उस पार....जैसे उनके गाए अनेक गानों को भला कौन भुला सकता है। 
नौ भाई-बहनों में एक सचिन देव बर्मन का जन्म 1 अक्तूबर,1906 में त्रिपुरा में हुआ। सचिन देव ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अपने पिता और जाने-माने  सितार-वादक नबद्वीप चंद्र देव बर्मन से ली।  1930 के दशक में उन्होंने कोलकाता में सुर मंदिर नाम से अपने संगीत विद्यालय की स्थापना की। वहां वे गायक के तौर पर प्रसिद्ध हुए और उन्हें महान गायक के.सी. डे की संगत में काफी कुछ सीखने को मिला। उन्होंने राज कुमार निशाने के लिए 1940 में एक बंगाली फिल्म में संगीत भी दिया। 1938 में उन्होंने गायिका मीरा से विवाह किया और एक वर्ष बाद राहुल देव बर्मन का जन्म हुआ।
 अशोक कुमार ने उन्हें कोलकाता जाने नहीं दिया
 
 
1944 में फि़ल्मस्तान के डायरेक्टर शशधर मुखर्जी के आग्रह पर वे दो फिल्म- शिकारी व आठ दिन, करने के लिए अपनी इच्छा के विरुद्ध मुम्बई चले गये, पर मुम्बई में काम आसान नहीं था। शिकारी और आठ दिन व बाद में दो भाई, विद्या और शबनम की सफलता के बाद भी दादा को पहचान बनाने में वक्त लगा। इससे हताश सचिन दा  ने वापस कोलकाता जाने का निश्चय किया। यही वो समय था जब अशोक कुमार ने उन्हें रोक लिया और कहा कि फिल्म मशाल का संगीत दीजिए और फिर आप आजाद हैं। दादा ने फिर मोर्चा संभाला। मशाल का संगीत सुपरहिट हुआ। उसी वक्त देव आनंद ने नवकेतन बैनर की शुरुआत की और एस.डी.बर्मन को बाज़ी फिल्म का संगीत देने को कहा। 1951 की यह फिल्म सुपर हिट रही, और फिर जाल (1952), बहार और लड़की फिल्म के संगीत ने सचिन दा के लिए सफलता की नींव रख दी।
 देवआनंद ने अपनी कंपनी के बैनर तले बनी अनेक फिल्मों में सचिन दा को ही बतौर संगीतकार लिया, जिनमें गाइड, ज्वैलथीफ जैसी फिल्में शामिल हैं।  नवकेतन फिल्म्स की गाइड (1965) में काम करते हुए एक गाने के बाद ही एसडी बर्मन काफी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए थे। इस बात से सबसे ज्यादा निराश देव आनंद थे, जो बाज़ी (1951) से अब तक बर्मन दा के साथ 12 फिल्मों में काम कर चुके थे। एसडी बर्मन ने देव आनंद को किसी और संगीतकार को लेने का सुझाव दिया, जिसमें उनके सहायक जयदेव भी थे, लेकिन किसी और संगीतकार को लेने की बजाय देव आनंद ने फिल्म को एक गाने के साथ ही रिलीज़ करने का फैसला किया। शायद इस समर्पण और दोस्ती ने ही बर्मन दा को जल्द से जल्द ठीक होने की शक्ति दी, और वह जूनून भी जिससे गाइड के संगीत ने नवकेतन की पिछली सभी फिल्मों को भी पीछे छोड़ दिया। फिल्म के हर गाने  'क्या से क्या हो गया, 'दिल ढल जाए रात ना जाए, 'तेरे मेरे सपने, 'पिया तोसे नैना लागे रे, 'मोसे छल किये जाए और 'गाता रहे मेरा दिल बेमिसाल थे और आज तक संगीत प्रेमियों के पसंदीदा हैं। दरअसल गाइड के संगीत ने एसडी बर्मन को अतुलनीय साबित किया।  जल्द ही 'खायी है रे हमने कसम  (तलाश, 1969), 'दिल आज शायर (गैम्बलर, 1971), 'मेघा छाये आधी रात (शर्मीली, 1971) के साथ बर्मन दा का संगीत फिर से उफान चढ़ा। 
 लोकसंगीत का समावेश
 बर्मन दादा तुरंत धुने तैयार करने में माहिर थे, और इन धुनों में लोक और रविन्द्र संगीत के साथ ही शास्त्रीय संगीत का मिश्रण हुआ करता था। वे अपने संगीत में पाश्चात्य संगीत का भी उचित मिश्रण करते थे। वे व्यावसायीकरण में हिचकते थे पर वे ये भी चाहते थे कि गाने की धुन ऐसी हो कि कोई भी इसे आसानी से गा सके। जहां जरूरत पड़ी उन्होंने सुंदर शास्त्रीय संगीत दिया, लेकिन वे कहते थे कि फिल्म संगीत वो माध्यम नहीं है जहां आप शास्त्रीय संगीत का कौशल दिखाएं।
  त्रिपुरा के राजशाही परिवार से ताल्लुक
बर्मन दादा को 1974 में लकवे का आघात लगा जिसके बाद वे 31 अक्तूबर  1975 को हमें छोड़ कर चले गये। एक समय था जब त्रिपुरा का शाही परिवार उनके राजसी ठाठ बाट छोड़ संगीत चुनने के खिलाफ था। दादा इससे दुखी हुए और बाद में त्रिपुरा से नाता तोड़ लिया। आज त्रिपुरा का शाही परिवार एस.डी. बर्मन के नाम से जाना जाता है!!! सचिन दा अपनी फिल्मों में यदि सिचुएशन हो तो एक गीत अपनी आवाज़ में अवश्य रखते थे। उनकी आवाज़ में उनके संगीत को सुनना भी अपने आप में एक शानदार अनुभव है। 
उनके कुछ लोकप्रिय गाने
1. मोरा गोरा अंग लइले (लता मंगेशकर)
2. पिया तोसे नैना लागे रे (लता मंगेशकर)
3.  ओ रे माझी मेरे माझी (सचिन देव बर्मन)
4. चल री सजनी अब का सोचे (मुकेश)
5.  वक्त ने किया क्या हसी सितम (गीता दत्त)
6. शोखियों में घोला जाए थोड़ा सा सबाब (किशोर-लता)
7. ओ मेरी ओ मेरी शर्मिली (किशोर)
8. अब के बरस भेज भैया को बाबुल (आशा भोसले)
9. दिल का भंवर करे पुकार (मो. रफी)
10. पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई (मन्ना डे)
 

 

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