चिनॉय सेठ, जिनके घर शीशे के बने होते हैं वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते. .......जैसे संवाद से लोगों को दीवाना बनाने वाले राजकुमार
जन्मदिन पर विशेष-आलेख मंजूषा शर्मा
मुंबई। जॉनी, जिनके घर शीशों के होते हैं, वो दूसरों के घरों में पत्थर नहीं फेंका करते (फिल्म वक्त), आपके पैर देखें, बड़े ही खूबसूरत हैं, इन्हें जमीं पर नहीं रखिएगा, मैले हो जाएंगे...(फिल्म पाकीजा) इस जैसे अनगिनत संवादों से लोगों का दिल जीतने वाले अभिनेता राजकुमार का आज जन्मदिन है। उन्हें इस दुनिया से रुखसत हुए 24 साल हो गए हैं।
राजकुमार अपने नाम की तरह ही फिल्मी दुनिया के राजकुमार थे। वे बड़े ठसन के साथ फिल्मी दुनिया में रहे और इसी अंदाज से इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए। अपने दौर में उन्होंने लोगों को दीवाना बना दिया था। अपने अभिनय, अपने संवाद और खास स्टाइल में उनका चुरुट पीना , उनके सफेद जूते, उनके बालों की स्टाइल और बाद में आंखों पर वो मोटा चश्मा, लोगों को बहुत पसंद आया। एक दौर था जब लोग केवल उनके नाम से ही फिल्में देखने पहुंचा करते थे।
आज जब भी हम अभिनेता राजकुमार को याद करते हैं, सबसे पहली बात जो दिमाग में आती है, वो है उनकी आवाज। मगर ये भी दुर्भाग्य है कि राजकुमार अपने जीवन के आखिरी दिनों में गले के कैंसर से जूझ रहे थे और 3 जुलाई 1996 को उन्होंने मौत के आगे हार मान ली। नब्बे के शुरुआती सालों में राजकुमार साहब गले के दर्द से जूझ रहे थे। दर्द इस कदर कष्टकारी था कि बोलना भी दुश्वार हो रहा था। बाद में पता चला कि उन्हें गले का कैंसर है। इस लोकप्रिय अभिनेता का अंतिम संस्कार गुपचुप तरीके से केवल परिवार वालों की मौजूदगी में किया गया। क्योंकि राजकुमार नहीं चाहते थे, उनकी अंतिम यात्रा में परिवार के सिवाय कोई और अन्य शामिल हो। फिल्म इंडस्ट्री के लोगों और प्रशंसकों ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान किया और उन्हें अपनी यादों में हमेशा के लिए संजो कर उन्हें अंतिम विदाई दी।
राजकुमार का जन्म अविभाजित भारत के बलोच प्रान्त में एक कश्मीरी परिवार में 8 अक्टूबर 1929 को हुआ था और उनका असली नाम कुलभूषण पंडित था। राजकुमार पुलिस सेवा में सब इंस्पेक्टर थे और मुंबई के माहीम इलाके के थाने में ड्यूटी किया करते थे। सब इंस्पेक्टर की नौकरी के दौरान ही एक दिन गश्त कर रहे राजकुमार से एक सिपाही ने कहा कि हुजूर आप रंग-ढंग और कद काठी से एकदम हीरो दिखते हैं। आप अगर फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाएं तो लाखों दिलों को आसानी से जीत सकते हैं। संयोग से एक बार निर्माता बलदेव दुबे उन्हीं के थाने पहुंचे और सब इंस्पेक्टर कुलभूषण पंडित के बातचीत के तरीके से काफी प्रभावित हुए। ये वो समय था जब फिल्ममेकर बलदेव दुबे अपनी फिल्म शाही बाजार की तैयारी कर रहे थे। बलदेव दुबे, कुलभूषण पंडित से इतने प्रभावित हुए कि फिल्मों में काम करने का ऑफर दे दिया। राजकुमार ने भी नौकरी से इस्तीफा देकर निर्माता बलदेव दुबे का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इसके बाद राजकुमार ने अपने अभिनय से हिंदी सिनेमाजगत को एक से बढ़कर एक फिल्में दीं। राजकुमार को पहचान मिली सोहराब मोदी की फिल्म नौशेरवां-ए-आदिल से। इसी साल आई फिल्म मदर इंडिया में नरगिस के पति के छोटे से किरदार में भी राजकुमार खूब सराहे गए।
साठ के दशक में राजकुमार की जोड़ी मीना कुमारी के साथ खूब सराही गई और दोनों ने अद्र्धांगिनी, दिल अपना और प्रीत पराई, दिल एक मंदिर, काजल जैसी फिल्मों में साथ काम किया। यहां तक कि लंबे अरसे से लंबित फिल्म पाकीजा में जब काम करने को कोई नायक तैयार न हुआ, तब भी राजकुमार ने ही हामी भरी। वे मीना कुमारी के प्रशंसक थे और मीना जी के अलावा वह किसी नायिका को अदाकारा मानते भी नहीं थे। उनकी एक और फिल्म अपने अलहदा संवाद के कारण मशहूर हुई - हीर रांझा, जिसमें उनकी जोड़ी बनी प्रिया राजवंश के साथ । फिल्म के सारे गाने लोकप्रिय हुए। फिल्म खास इसलिए थी, क्योंकि इसके सारे संवाद काव्यात्मक थे।
अभिनेता सोहराब मोदी के साथ फिल्मी जीवन शुरू करने के कारण उनका असर राजकुमार पर भी पड़ा और वे संवादों पर विशेष ध्यान देते। बुलंद आवाज और खालिस उर्दू बोलने वाले राजकुमार की पहचान एक संवाद प्रिय अभिनेता के रूप में बनी। उनके लिए खास तौर से संवाद लिखे जाते थे। यहीं नहीं यदि उन्हें संवाद पसंद नहीं आते थे, तो वे उसमें बदलाव लाने के लिए अड़ भी जाते थे। राजकुमार अनुशासनप्रिय इंसान थे और अपने हिसाब से जिंदगी जीना पसंद करते थे। इसीलिए फिल्म की शूटिंग के दौरान काफी हठ किया करते थे, जिसके कई किस्से काफी मशहूर हैं। ऐसा ही एक किस्सा फिल्म पाकीजा का है। फिल्म के एक दृश्य में राजकुमार, मीना कुमारी से निकाह करने के लिए उन्हें तांगे पर लेकर जाते हंै। तभी एक शोहदा उनका पीछा करता हुआ आता है। स्क्रिप्ट के अनुसार राजकुमार उतर कर शोहदे के घोड़े की लगाम पकड़ लेते हैं और उसे नीचे उतरने को कहते हैं। शोहदा उनके हाथ पर दो-तीन कोड़े मारता है और फिर राजकुमार लगाम छोड़ देते हैं। इस दृश्य को लेकर राजकुमार अड़ गए। उनका कहना था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि एक मामूली गली का गुंडा राजकुमार को मारे! होना तो यह चाहिए कि मैं उसे घोड़े से खींच कर गिरा दूं और बलभर मारूं। निर्देशक ने समझाया कि आप राजकुमार नहीं आपका किरदार सलीम खान का है। राजकुमार नहीं माने। निर्देशक ने भी शोहदे को तब तक कोड़े चलाने का आदेश किया, जब तक राजकुमार लगाम न छोड़ दें। अंतत: बात राजकुमार की समझ में आ गई।
वहीं राजकुमार ने फिल्म जंजीर महज इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि फिल्म की कहानी सुनाने आए निर्देशक प्रकाश मेहरा के बालों में लगे चमेली के तेल की महक उन्हें नागवार गुजरी थी। प्रकाश मेहरा ने फिर नए हीरो अमिताभ बच्चन को लेकर दांव खेला और इस फिल्म ने अमिताभ और प्रकाश मेहरा, दोनों की जिंदगी ही बदल कर रख दी। राजकुमार लोगों पर कमेंट्स करने के लिए भी मशहूर थे। एक बार तो उन्होंने अमिताभ बच्चन के सूट की तारीफ करते हुए यहां तक कह दिया था कि वे ऐसे कपड़े के परदे अपने घर में लगाना चाहते हैं। जब उनकी कोई फिल्म नहीं चलती थी तो वे कहा करते थे- राजकुमार फेल नहीं होता। फिल्में फेल होती हैं। अभिनेता राजकुमार जब तक जिंदा रहे , अपनी शर्तों पर फिल्में की और अपनी शर्तों पर ही इस दुनिया से विदा हुए।
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