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 निर्माता,निर्देशक, अभिनेता  गुरुदत्त एक बेहतरीन कोरियोग्राफर भी थे
पुण्यतिथि पर विशेष
हिन्दी सिनेमा को प्यासा,  कागज के फूल, साहब बीबी और गुलाम और  चौदहवीं का चांद जैसी क्लासिक फिल्में देने वाले फिल्मकार एवं अभिनेता गुरूदत्त को उनके प्रभावशाली निर्देशन के लिए जाना जाता है। आज ही के दिन 10 अक्टूबर 1964 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा। 
भारतीय फिल्मों के स्वर्णिम दौर में तीन फिल्मकार महबूब खान, राजकपूर और गुरूदत्त ऐसे नाम है जिन्होंने जोखिम लेकर व्यावसायिक सिनेमा में कलात्मक फिल्में बनाने का प्रयास किया। स्वर्ण काल की फिल्मों में कहानी, गीत, संगीत और अभिनय के साथ ही निर्देशन काफी प्रभावशाली होता था। हालांकि गुरूदत्त को उम्दा अभिनेता के तौर फिल्मों के इतिहास में याद तो किया ही जायेगा, लेकिन बतौर निर्देशक उनका कोई सानी नहीं है। उन्होंने सामाजिक संदेश के लिए फिल्मों को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
 गुरुदत्त पहले ऐसे निर्देशक थे, जिन्होंने दर्शकों को फिल्मों की बारीकियों से रूबरू करवाया। गुरुदत्त की स्टोरी टेलिंग की क्षमता अद्वितीय थी। उनकी तारीफ में फिल्मकार अनवर जमाल ने कहा था- क्राइम थ्रिलर फिल्मों के निर्माण में गुरुदत्त ने मानक तय किया था। उनकी फिल्मों में कहानी की कई तहें दिखाई देती हैं। वो सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य को समझकर फिल्म बनाने वालों में से थे। उनकी फिल्मों में कोई चीज बेवजह नहीं मिलती थी।
गुरूदत्त के नाम से लोकप्रिय वसंतकुमार शिवशंकर पादुकोण का जन्म नौ जुलाई 1925 को बेंगलूर में हुआ था। टाइम पत्रिका द्वारा चुनी गयी  100 आल टाइम बेस्ट फिल्मों में गुरूदत्त की  प्यासा और कागज के फूल  को शामिल किया गया। वर्ष 1944 से 1964 के बीच गुरूदत्त सक्रिय रहे और 10 अक्टूबर 1964 में मुंबई के पेडर रोड स्थित अपार्टमेंट में अपने बिस्तर पर गुरूदत्त रहस्यमयी तरीके से मृत पाये गये, उस वक्त उनकी उम्र केवल 39 वर्ष थी। ये भी कहा जाता है कि काफी समय से वे अपनी शराब की लत जूझ रहे थे और अंत में उन्होंने आत्महत्या कर ली, लेकिन उनकी मृत्यु के पीछे उनके अपने पारिवारिक कारण भी थे जिनसे भी दुनिया अनजान नहीं थी फिर भी उनकी मृत्यु कैसे हुई, इस बात का खुलासा कभी नहीं हो पाया। उनके जीवन में दो नायिकाएं थी एक गीता दत्त, जो उनकी पत्नी बनी और एक वहीदा रहमान, जिनका साथ वो दे नहीं पाए।
वर्ष 1944 में प्रभात फिल्म से फिल्म दुनिया में कदम रखने वाले गुरूदत्त ने शुरूआत में बतौर कोरियोग्राफर काम किया। इस दौरान ही रहमान एवं देवानंद उनके करीबी दोस्त बन गये। देवानंद के बैनर नवकेतन तले उनकी पहली फिल्म  बाजी,  1957 में आयी और उनकी आखिरी फिल्म सांझ और सवेरा, मीनाकुमारी के साथ थी। गुरूदत्त नृत्य की बेहतर समझ रखते थे और उन्होंने उदयशंकर के आर्ट ट्रूप में भी काम किया था।
उनके बारे में देवानंद ने कहा कि फिल्मी दुनिया में उनके एकमात्र सच्चे दोस्त गुरूदत्त रहे। प्रभात फिल्म्स में काम करने के दौरान दोनों की दोस्ती गहरी हो गयी। गुरूदत्त को उन्होंने  बाजी में ब्रेक दिया तो गुरूदत्त ने देवसाहब को सीआईडी फिल्म में लीड रोल में लिया था।  

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