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प्राचीन धरोहरों की नगरी धमधा,  जहां के महामाया मंदिर में एक साथ विराजती हैं त्रिशक्ति  महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती
-त्रिमूर्ति महामाया मंदिर धार्मिक आस्था का अद्वितीय केंद्र
- कभी रतनपुर राज्य का सबसे महत्वपूर्ण स्थान था धमधा
-गोविंद पटेल
छत्तीसगढ़ के इतिहास में धमधा का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। यहां का त्रिमूर्ति महामाया मंदिर धार्मिक आस्था का अव्दितीय केंद्र है। लोग यहां संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगने आते हैं। एक दिवसीय पर्यटन की दृष्टि से धमधा एक आदर्श पर्यटन केंद्र है। यहां कई प्राचीन मंदिर, तालाब एवं ऐतिहासिक इमारतें हैं। महामाया मंदिर की मान्यता शक्तिपीठ के रूप में है। धर्मधाम के नाम से विख्यात इस नगर में कभी छह कोरी छह आगर (126) तरिया (तालाब) हुआ करते थे। यहां की प्राचीनता इतिहासकारों और पुरातत्वविदों को अपनी ओर सहसा आकर्षित करती है।
1. धमधा से होती थी रायपुर की पहचान 
धमधा के विषय में ब्रिटिश अधिकारी ए.ई. नेल्सन ने दुर्ग जिला गजेटियर (1910) में लिखा है कि गोंड़ भाईयों ने धमधा को अपना निवास बनाया और यह ग्राम बसाया। बाद में यह रतनपुर राज्य का सबसे महत्वपूर्ण स्थान समझा जाने लगा। गजेटियर के अनुसार  रायपुर को धमधा-रायपुर कहा जाता था जिससे इसका महत्व प्रकट होता है। उपलब्ध स्थानीय पाण्डुलिपि के अनुसार धमधा अति प्राचीन नगर है। आज से एक हजार साल पहले यह खंडहर के रूप में विद्यमान था। बियावान जंगल में प्राचीन सिंहद्वार, मंदिरों के अवशेष, किला और ढेरों कलात्मक पत्थर बिखरे पड़े थे। पाण्डुलिपि के अनुसार सन् 1145 में सरदा के गोंड जमींदार दो भाई (सांड और विजयी) को शिकार खेलते समय यह स्थल मिला था, जिसे उन्होंने अपनी राजधानी बनाई। तब से 1832 ईस्वी तक गोंड राजाओं का यहां पर राज्य था। अधिकांश लोग धमधा को 36 गढ़ों में से एक गढ़ कहते हैं, लेकिन इतिहास की पुस्तकों में दी गई 36 गढ़ों की सूची में धमधा का गढ़ के रूप में नाम का उल्लेख नहीं है। शायद सरदा गढ़ के राजा सांड ने इसे स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित किया था, तभी तो इतने प्राचीन अवशेष होने के बाद भी यह गढ़ों की सूची में नहीं है। 1857 से पहले धमधा तहसील मुख्यालय था, बाद में धमधा तहसील को दुर्ग में स्थानांतरित कर दिया गया।
 श्री त्रिमूर्ति महामाया मंदिर- धमधा का त्रिमूर्ति महामाया मंदिर आदिशक्ति का प्रतीक है । यहां एक ही गर्भगृह में तीन देवियों- महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की स्थापना है। तीन देवियों के साकार रूप एकसाथ देश में बिरले स्थानों पर ही दिखाई देते हैं। जम्मू-कश्मीर के वैष्णोदेवी मंदिर में ये तीनों देवियां पिंड रूप में विद्यमान हैं, जबकि यहां साकार रूप में हैं। महामाया मंदिर के गर्भगृह के मुख्य दरवाजे में शिलालेख अंकित है। इसमें मंदिर स्थापना और उसके काल का उल्लेख है। 
पांडुलिपियों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना सन् 1589 में राजा दशवंत सिंह ने की थी। उनकी मां को महाकाली ने स्वप्न में कहा कि मैं सिंहव्दार में भूमिगत हूं। शिवनाथ नदी के किनारे जोगीगुफा में महालक्ष्मी की प्रतिमा है तथा तीसरी प्रतिमा एक इमली के वृक्ष के नीचे है, तीनों की प्रतिष्ठा मंदिर में करो। महामाया मंदिर के ठीक सामने प्राचीन सिंहद्वार है, जो धमधा के प्राचीन और वैभवशाली इतिहास का अहसास कराते हैं। छत्तीसगढ़ में जितने भी किले या गढ़ हैं, उनमें इस तरह का भव्य प्रवेशद्वार नहीं मिलता है। बलुआ पत्थरों से निर्मित इस प्रवेशव्दार में भगवान विष्णु के दशावतारों की प्रतिमाएं अंकित हैं। शिल्प की दृष्टि से छत्तीसगढ़ के दशावतार प्रतिमाओं में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। प्रवेशद्वार के दाईं ओर कच्छप, वराह, नरसिंह, वामन और बाईं ओर परशुराम, राम-बलराम, बुद्ध और कल्कि अवतार का सुंदर अंकन मिलता है। इस तरह की दशावतार प्रतिमाएं लक्ष्मण मंदिर सिरपुर, राजीव लोचन मंदिर राजिम, बंकेश्वर मंदिर तुम्माण (कोरबा), रामचंद्र मंदिर राजिम में भी हैं, जो अलग-अलग कालखंड का प्रतिनिधित्व करती हैं।
 राजा किला- महामाया मंदिर के पीछे गोंड़ राजा का किलानुमा महल आज भी खंडहर के रूप में विद्यमान है। इस दो मंजिला इमारत के निर्माण में पत्थरों का उपयोग किया गया है। दरवाजों के चौखट और मेहराब अत्यंत आकर्षक और राजसी वैभव के प्रतीक हैं। ऊपर जाने के लिए सीढिय़ां बनी हुई हैं, लेकिन छत टूटकर गिर गया है। महल के भीतर एक तलघर भी है, जो छत के मलबे से पट गया है। महल के सामने बूढ़ातालाब में एक सीढ़ी है, जहां तालाब के भीतर एक झाझा (कुंए) के निशान नजर आते हैं। पांडुलिपियों में तालाब के भीतर किले के निर्माण की जानकारी मिलती है। परन्तु उत्खनन से ही इसकी सच्चाई सामने आ सकेगी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सन् 1935 में किला परिसर को संरक्षित स्थल घोषित किया था, किंतु 1962 में इसे संरक्षित स्मारक की सूची से हटा दिया गया। कालान्तर में मध्यप्रदेश पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षण में लिया। 2003 में छत्तीसगढ़ शासन ने किला परिसर को केंद्रीय गोंडवाना महासभा को हस्तांतरित कर दिया।  इसका गजट में प्रकाशन किया गया तथा प्राचीन स्मारक में किसी भी प्रकार का छेड़छाड़ या नवनिर्माण अथवा पुरातत्वीय महत्व को नुकसान न पहुंचाने की शर्त रखी गई, लेकिन वर्तमान में वहां पर सीमेंट-कांक्रीट से हो रहे अव्यवस्थित निर्माण से इसकी ऐतिहासिकता और पुरामहत्व विलुप्त हो रहा है। इसे अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए सबको जागरुकता के साथ काम करने की आवश्यकता है।
 बूढ़ादेव- महामाया मंदिर के ठीक पीछे गोंडवाना समाज के युगपुरुष देवतुल्य बूढ़ादेव का मंदिर निर्मित है। इसके सामने पत्थरों से बने 12 स्तंभों का एक मंडप भी है। गोंडवाना महासभा ने किला परिसर में दो नए भवन भी बनाए हैं, जिससे किला में जाने का रास्ता संकरा हो गया है। राजा किला और महामाया मंदिर परिसर की सुरक्षा हेतु इनके चारों ओर गहरी खाई का निर्माण किया गया था, जो आज बूढा तालाब के नाम से जाना जाता है। 12 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैला यह तालाब अक्सर जल से लबालब भरा रहता है। हवा के थपेड़ों से इनमें बनने वाली लहरें लोगों को आनंदित कर देती हैं।
  प्राचीन शिव मंदिर व चतुर्भुजी मंदिर - चौखडिय़ा तालाब के तट पर दो प्राचीन मंदिर हैं। इनमें से एक मंदिर का शिखर खंडित है। शिव मंदिर में शिललिंग और चतुर्भुजी मंदिर में विष्णु की मूर्ति स्थापित है। ये दोनों प्राचीन स्मारक छत्तीसगढ़ शासन के पुरातत्व विभाग व्दारा संरक्षित हैं। इन दोनों मंदिरों को नगर पंचायत ने पेंट से पुताई करवा दी थी, जिसे पुरातत्व विभाग ने रासायनिक संरक्षण (केमिकल ट्रीटमेंट) कर मंदिरों को उनके मूल स्वरूप में संरक्षित किया है। धमधा नगर के मध्य में चौखडिय़ा नाम का एक कुंड है, जो बहुत प्राचीन है। इसके बीच में एक स्तंभ है, जिसके ऊपर चार सर्पफण का अंकन है जो आपस में कलात्मक ढंग से गुंथे हुए हैं। इनके सिर पर मणि एवं कलश की आकृति बनी है। इस स्तंभ में पहले एक ताम्रपत्र भी जड़ा हुआ था, जिसे शरारती तत्वों ने उखाड़ दिया। ताम्रपत्र के किनारे के टुकड़े स्तंभ में आज भी नजर आते हैं। इस तरह के कृत्यों से न केवल धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचती है, बल्कि पुरातात्विक साक्ष्य भी खत्म हो जाते हैं। इसी तरह दानी तालाब में एक स्तंभ है, जिसमें एक ताम्रपत्र लगा है, जो सुरक्षित है। इन ताम्रपत्रों से तालाबों के निर्माण व जीर्णोद्धार संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
 वायु मार्ग- धमधा से 50 किमी रायपुर निकटतम हवाई अड्डा है ।
रेल मार्ग- हावड़ा-मुंबई मुख्य रेलमार्ग पर दुर्ग 35 किमी व रायपुर 45 किमी समीपस्थ रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग- दुर्ग से 33 किमी, रायपुर से 45 किमी, कवर्धा से 70 किमी व बेमेतरा से 40 किमी दूरी पर स्थित है। कवर्धा के भोरमदेव जाने वाले यात्री धमधा में रूककर पर्यटन कर सकते हैं।
आवास व्यवस्था- धमधा में अच्छे और किफायती लॉज व रेस्टोरेंट हैं। लोक निर्माण विभाग का विश्राम गृह भी है।
 
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