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इन्हें पहचाना.....?  अपनी दमदार आवाज और अदायगी के लिए मशहूर थे ये कलाकार
  जन्मतिथि पर विशेष 
आलेख-मंजूषा शर्मा
इस कलाकार ने मूक फिल्मों से लेकर रंगीन फिल्मों तक का सफर बखूबी तय किया और खूब नाम कमाया।  उन्हें फिल्म इंडस्ट्री का शेर और भीष्म पितामह कहा जाता है।  उनकी चार पीढिय़ों ने भी फिल्म इंडस्ट्री में अपना नाम कमाया। ये हैं पृथ्वीराज कपूर। आज की पीढ़ी के लिए राजकपूर, शम्मी कपूर और शशिकपूर के पिता और रणबीर  कपूर के परदादा।
भारतीय फिल्मों के आदिकाल से रंगीन सिनेमा तक के सफर का हिस्सा रहे पृथ्वीराज कपूर के अभिनय और दमदार आवाज को आज भी याद किया जाता है। अभिनय के ऊंचे पैमाने तय कर गए पृथ्वीराज कपूर के कालजयी किरदार आज भी उतने ही जीवंत और अनोखे हैं कि कोई भी उन्हें देखकर उनके मोहपाश में बंधे बगैर नहीं रह पाता। मुगले आजम फिल्म में मुगल सम्राट अकबर  के रोल में उनकी दमदार आवाज और संवाद अदायगी को भला कौन भूल सकता है। 
पाकिस्तान के मौजूदा फैसलाबाद में 3 नवम्बर 1906 को पुलिस उपनिरीक्षक दीवान बशेश्वरनाथ कपूर के घर जन्मे पृथ्वीराज कपूर ने फिल्म जगत में अलग मुकाम हासिल करने वाले  कपूर खानदान  की नींव रखी और उनकी विरासत को अगली कई पीढिय़ों ने पूरी शिद्दत के साथ जिया। पृथ्वीराज अपने जमाने के सबसे पढ़े-लिखे अभिनेताओं में से थे। उन्होंने पेशावर के एडवर्ड्स कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की और फिर वकालत की पढ़ाई की। हालांकि उनका दिल रंगमंच के लिए ही धड़कता था। उसी दौरान वह प्रोफेसर जयदयाल के सम्पर्क में आए जिन्होंने पृथ्वीराज में अपने नाटकों के अनेक पात्रों को बखूबी निभाने की क्षमता देखी।
वर्ष 1928 में पृथ्वीराज मायानगरी बम्बई चले आए। उस वक्त मूक फिल्मों का दौर था और उन्होंने ऐसी करीब नौ फिल्मों में काम भी किया। वर्ष 1931 में बनी देश की पहली बोलती फिल्म 'आलमआराÓ में किरदार अदा करके उन्होंने भारतीय सिनेमा जगत में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा लिया।  फिल्म में उन्होंने 24 साल की उम्र में अलग-अलग आठ दाढिय़ां लगाई और जवानी से बुढ़ापे तक की भूमिका निभाकर अपने अभिनय की लाजवाब मिसाल पेश की।
पृथ्वीराज कपूर ने करीब 70 बोलती फिल्मों में काम किया जिनमें विद्यापति '1937, पागल '1940, सिकंदर '1941, आवारा '1951 और आनन्द मठ '1952 में उनकी शीर्ष और सहायक भूमिकाओं को खूब तारीफ मिली। साल 1960 में आई फिल्म 'मुगल-ए-आजम में उन्होंने मुगल सम्राट अकबर के किरदार को जीकर अमर बना दिया। उस फिल्म में उन्होंने हिन्दुस्तान के सम्राट के रूप में अपने कर्तव्य और पिता के सीने में भड़कते जज्बात के द्वंद्व को बेहद पुरअसर ढंग से जिया। मुगल-ए-आजम से पहले और उसके बाद भी अकबर के किरदार वाली कई फिल्में बनीं, लेकिन अभिनय के लिहाज से कोई दूसरा अभिनेता मुगल-ए-आजम में दिखे जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की बराबरी नहीं कर सका। इस फिल्म में काम करने के लिए उन्होंने केवल एक रुपया में अनुबंध किया था। 
 
 
 
हिन्दी रंगमंच और फिल्मों की महान हस्ती का दर्जा हासिल कर चुके पृथ्वीराज कपूर का 29 मई 1972 को निधन हो गया। पृथ्वीराज ने अभिनय के अलावा अपनी विरासत से भी हिन्दी सिनेमा जगत को काफी कुछ दिया। वे हिन्दी फिल्म कलाकारों के पहले परिवार यानी कपूर खानदान  के मुखिया हैं और अपनी अगली चार पीढिय़ों के रूप में उनकी विरासत आज भी हिन्दी फिल्म जगत में जिंदा है।
पृथ्वीराज के बेटे राजकपूर ने हिन्दी फिल्मों के पहले  शोमैन  का रुतबा हासिल किया था। राजकपूर ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए अनेक बेहतरीन फिल्मों में काम किया और कई यादगार फिल्में बनाईं। कई फिल्मों में उन्होंने अपने पिता की मदद भी ली।
पृथ्वीराज की अन्य संतानों शशि कपूर और शम्मी कपूर ने भी फिल्मों में अपना अलग मुकाम बनाया। पृथ्वीराज के पौत्र रणधीर कपूर, ऋषि कपूर, राजीव कपूर, करण कपूर और कुणाल कपूर ने भी फिल्मों में काम किया। इनमें से विशेषकर ऋषि कपूर को बतौर अभिनेता खासी सफलता हासिल हुई। रणधीर की बेटी करिश्मा के रूप में कपूर खानदान की पहली लड़की ने अभिनय जगत में कदम रखा। उसके बाद करिश्मा की बहन करीना भी फिल्मों में आ गईं और इस वक्त की शीर्ष अभिनेत्रियों में शुमार हैं। ऋषि कपूर के बेटे रणबीर कपूर ने वर्ष 2007 में आई फिल्म  सांवरिया  से अभिनय क्षेत्र में कदम रखा।  इस तरह पृथ्वीराज द्वारा शुरू की गई अभिनय की समृद्ध परम्परा अब भी बरकरार है और फलफूल रही है। 
 
पृथ्वी थियेटर
 
सफलता की सीढिय़ां चढऩे के दौरान उन्होंने साल 1944 में अपना थियेटर ग्रुप खोला और नाम रखा पृथ्वी थियेटर। यह पहला आधुनिक, पेशेवर और शहरीकृत हिन्दुस्तानी थियेटर था। इस थियेटर ने अपने दौर में ढाई हजार से ज्यादा शो पेश किये जिनमें से ज्यादातर में पृथ्वीराज ने ही प्रमुख भूमिका अदा की।  पहले यह कंपनी घूम-घूमकर नाटकों का मंचन किया करती थीं बाद में मुंबई में एक जानी-मानी थियेटर कंपनी बन गई। पृथ्वीराज कपूर ने  पृथ्वी थिएटर में उन्होंने आधुनिक और शहरी विचारधारा का इस्तेमाल किया, जो उस समय के फारसी और परंपरागत थिएटरों से काफ़ी अलग था। धीरे-धीरे दर्शकों का ध्यान थिएटर की ओर से हट गया, क्योंकि उन दिनों दर्शकों के ऊपर रुपहले पर्दे का क्रेज कुछ ज़्यादा ही हावी हो चला था। सोलह वर्ष में पृथ्वी थिएटर के 2662 शो हुए जिनमें पृथ्वीराज ने लगभग सभी शो में मुख्य किरदार निभाया। पृथ्वी थिएटर के प्रति पृथ्वीराज इस क़दर समर्पित थे कि तबीयत खऱाब होने के बावजूद भी वह हर शो में हिस्सा लिया करते थे। वह शो एक दिन के अंतराल पर नियमित रूप से होता था। एक बार तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उनसे विदेश में जा रहे सांस्कृतिक प्रतिनिधिमंडल का प्रतिनिधित्व करने की पेशकश की, लेकिन पृथ्वीराज ने पंडित नेहरू  से यह कह उनकी पेशकश नामंजूर कर दी कि वह थिएटर के काम को छोड़कर वह विदेश नहीं जा सकते। पृथ्वी थिएटर के बहुचर्चित कुछ प्रमुख नाटकों में दीवार, पठान, 1947, गद्दार, 1948 और पैसा 1954 शामिल है। पृथ्वीराज ने अपने थिएटर के जरिए कई छुपी हुई प्रतिभा को आगे बढऩे का मौक़ा दिया, जिनमें रामानंद सागर और शंकर-जयकिशन जैसे बड़े नाम शामिल हैं। संगीतकार शंकर -जय किशन ने बाद में राजकपूर के साथ खूब काम किया।  
 अपने पिता के जाने के बाद शशिकपूर ने उनकी विरासत पृथ्वी थियेटर की जिम्मेदारी  संभाली और अपनी बेटी संजना के साथ मिलकर इसका काफी विस्तार भी किया। शशि कपूर के निधन के बाद अब संजना ही पृथ्वी थियेटर को संभाल रही हैं। 
फिल्म जगत में पृथ्वीराज कपूर के अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें  मरोणपरांत दादा साहेब फाल्के अवार्ड से भी नवाजा गया। इसके अलावा वे पद्मभूषण से भी सम्मानित किए गए। वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। 
 

 

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