ब्रेकिंग न्यूज़

 मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां जिन्होंने जिंदगी के अंतिम क्षणों में बेइंतहा तकलीफ झेली....
पुण्यतिथि पर विशेष, आलेख- मंजूषा शर्मा
आवाज दें कहां है दुनिया मेरी जवां है.... फिल्म अनमोल घड़ी का यह गीत बरसों से लोग सुन रहे हैं। इसकी गायिका मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां को लोग भला कैसे भूल सकते हैं।  अल्ला वसई, मैडम नूरजहां जैसे नामों से जानी जाने वाली अभिनेत्री, गायिका नूरजहां को इस दुनिया से विदा हुए बीस साल हो गए हैं। उनके गाने आज भी भारत और पाकिस्तान में गूंजते हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन नहीं हुआ होता और उनके पति उन्हें लेकर लाहौर नहीं गए होते तो शायद आज भारत में नूरजहां की लोकप्रियता लता मंगेशकर से कम नहीं होती। 
दुनिया में नूरजहां, भले ही पाकिस्तान की मशहूर गायिका के नाम से जानी जाती हों, पर वे कभी दोनों मुल्कों की साझी धरोहर थीं। लता मंगेशकर और नूरजहां की मैत्री काफी प्रसिद्ध रही।  लता ने हमेशा यह स्वीकार किया है, मैं नूरजहां की सबसे बड़ी प्रशंसक हूं। वह मलिका-ए-तरन्नुम थीं और रहेंगी? हर किसी का कोई न कोई आदर्श होता है और मुझे यह स्वीकार करने में कोई गुरेज़ नहीं है कि नूरजहां मेरी रोल मॉडल थीं। 
 वहीं मंटो नूरजहां को लेकर कहते थे, 'मैं उसकी शक्ल-सूरत, अदाकारी का नहीं, आवाज़ का शैदाई थ।  इतनी साफ़-ओ-शफ्फ़़ाफ आवाज़, मुर्कियां इतनी वाजि़ह, खरज इतना हमवार, पंचम इतना नोकीला! मैंने सोचा अगर ये चाहे तो घंटों एक सुर पर खड़ी रह सकती है, वैसे ही जैसे बाज़ीगर तने रस्से पर बग़ैर किसी लग्जि़श के खड़े रहते हैं।
 भारत छोड़ पाकिस्तान जा बसने की उनकी मजबूरी के बारे में उन्होंने 'विविध भारती' में बताया था कि- "आपको ये सब तो मालूम है, ये सबों को मालूम है कि कैसी नफ़सा-नफ़सी थी, जब मैं यहां से गई। मेरे मियां मुझे ले गए और मुझे उनके साथ जाना पड़ा, जिनका नाम सैय्यद शौक़त हुसैन रिज़वी है। उस वक़्त अगर मेरा बस चलता तो मैं उन्हें समझा सकती, कोई भी अपना घर उजाड़ कर जाना तो पसन्द नहीं करता, हालात ऐसे थे कि मुझे जाना पड़ा। और ये आप नहीं कह सकते कि आप लोगों ने मुझे याद रखा और मैंने नहीं रखा, अपने-अपने हालात ही की बिना पे होता है किसी-किसी का वक़्त निकालना, और बिलकुल यकीन करें, अगर मैं सबको भूल जाती तो मैं यहां कैसे आती? 
  'मल्लिका-ए-तरन्नुम' नूरजहां को लोकप्रिय संगीत में क्रांति लाने और पंजाबी लोकगीतों को नया आयाम देने का श्रेय जाता है।   नूरजहां अपनी आवाज़ में नित्य नए प्रयोग किया करती थीं। अपनी इन खूबियों की वजह से ही वे ठुमरी गायिकी की महारानी कहलाने लगी थीं। उनकी गाई गजलें भी काफी मशहूर हुई, जिसमें से एक गजल काफी पसंद की जाती है- मुझसे पहले सी मोहब्बत मेरे महबूूब न मांग....जिसे कई लोगों ने गाया है, लेकिन नूरजहां की बराबरी आज तक कोई नहीं कर पाया। 
 नूरजहां का जन्म 21 सितम्बर, 1926 ई. को  पंजाब के 'कसूर' नामक स्थान पर एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम 'मदद अली' था और माता 'फ़तेह बीबी' थीं। नूरजहां के पिता पेशेवर संगीतकार थे। माता-पिता की ग्यारह संतानों में से नूरजहां एक थीं। संगीतकारों के परिवार में जन्मी नूरजहां को बचपन से ही संगीत के प्रति गहरा लगाव था। उन्होंने बाल कलाकार के रूप में कई फिल्में कीं।  
  वर्ष 1943 में नूरजहां लाहौर से मुम्बई चली आईं। महज चार साल की संक्षिप्त अवधि के भीतर वे अपने सभी समकालीनों से काफ़ी आगे निकल गईं। भारत और पाकिस्तान दोनों जगह के पुरानी पीढ़ी के लोग उनकी क्लासिक फि़ल्मों 'लाल हवेली'Ó 'जीनत', 'बड़ी मां', 'गांव की गोरी' और 'मिर्जा साहिबां' फि़ल्मों के आज भी दीवाने हैं। फि़ल्म 'अनमोल घड़ी' का संगीत  ख्यातिप्राप्त संगीतकार नौशाद ने दिया था। उसके गीत 'आवाज दे कहां है', 'जवां है मोहब्बत' और 'मेरे बचपन के साथी' जैसे गीत आज भी लोगों की जुबां पर हैं।
  नूरजहां देश के विभाजन के बाद अपने पति शौक़त हुसैन रिज़वी के साथ बंबई छोड़कर लाहौर चली गईं। लाहौर में रिजवी ने एक स्टूडियो का अधिग्रहण किया और वहां 'शाहनूर स्टूडियो' की शुरुआत की। 'शाहनूर प्रोडक्शन' ने फि़ल्म 'चन्न वे' (1950) का निर्माण किया, जिसका निर्देशन नूरजहाँ ने किया। यह फि़ल्म बेहद सफल रही। इसमें 'तेरे मुखड़े पे काला तिल वे' जैसे लोकप्रिय गाने थे। उनकी पहली उर्दू फि़ल्म 'दुपट्टा'Ó थी।  
  पाकिस्तान  जाने से पहले भारत में नूरजहां के अभिनय व गायन से सजी दो फि़ल्में 1947 में प्रदर्शित हुई थीं- 'जुगनू' और 'मिर्जा साहिबां'। 'जुगनू' शौक़त हुसैन रिज़वी की कंपनी 'शौक़त आर्ट प्रोडक्शन्स' के बैनर तले निर्मित थी, जिसमें नूरजहां के नायक दिलीप कुमार थे। संगीतकार फिऱोज़ निज़ामी ने मोहम्मद रफ़ी और नूरजहां से एक ऐसा डुएट गीत इस फि़ल्म में गवाया, जो इस जोड़ी का सबसे ज़्यादा मशहूर डुएट सिद्ध हुआ। गीत था "यहां बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है, मोहब्बत करके भी देखा, मोहब्बत में भी धोखा है"। इस गीत की अवधि कऱीब 5 मिनट और 45 सेकण्ड्स की थी, जो उस ज़माने के लिहाज़ से काफ़ी लम्बी थी। कहते हैं कि इस गीत को शौक़त हुसैन रिज़वी ने ख़ुद ही लिखा था, पर 'हमराज़ गीत कोश' के अनुसार फि़ल्म के गीत एम. जी. अदीब और असगर सरहदी ने लिखे थे। नूरजहां अभिनेता प्राण की भी नायिका बनकर सिने परदे पर आईं। 
नूरजहां ने मल्लिका-ए-तरन्नुम  बनने के लिए बहुत मेहनत की थी और अपनी शर्तों पर जिंदगी को जिया था। उनकी जिंदगी में अच्छे मोड़ भी आए और बुरे भी! उन्होंने दो शादियां की, तलाक दिए, नाम कमाया और अपनी जिंदगी के अंतिम क्षणों में बेइंतहा तकलीफ़ भी झेली।  1954 में शौक़त हुसैन रिज़वी से तलाक के बाद  1959 में नूरजहां ने अपने से नौ साल छोटे अभिनेता एजाज़ दुर्रानी से दूसरी शादी की। शादी के चार साल बाद ही नूरजहां ने अपने अभिनय से संन्यास ले लिया क्योंकि दुर्रानी के अभिनय करिअर की दिनों दिन बढ़ती मांग के सामने घर संभालने की जि़म्मेदारी केवल उन पर ही थी। यह शादी भी 1979 तक चली ।  इन दोनों ही शादियों से हुए छह बच्चों के पालन-पोषण की जि़म्मेदारी नूरजहां ने एक अकेली मां के रूप में बखूबी निभाई।  
अपनी दिलकश आवाज़ और अदाओं से दर्शकों को मदहोश कर देने वाली नूरजहां का दिल का दौरा पडऩे से 23 दिसम्बर, 2000 को निधन हुआ। जब वर्ष 2000 में नूरजहां को दिल का दौरा पड़ा, तो उनके एक मुरीद और नामी पाकिस्तानी पत्रकार ख़ालिद हसन ने लिखा था- "दिल का दौरा तो उन्हें पडऩा ही था। पता नहीं कितने दावेदार थे उसके, और पता नहीं कितनी बार वह धड़का था, उन लोगों के लिए जिन पर मुस्कराने की इनायत उन्होंने की थी।" 
 

Related Post

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Chhattisgarh Aaj

Chhattisgarh Aaj News

Today News

Today News Hindi

Latest News India

Today Breaking News Headlines News
the news in hindi
Latest News, Breaking News Today
breaking news in india today live, latest news today, india news, breaking news in india today in english