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 संगीतकार नौशाद  की क्लासिकल फिल्म- बैजू बावरा जिसके गाने आज भी दिल तक पहुंचते हैं....
  नौशाद साहब के  जन्मदिन पर विशेष, आलेख -मंजूषा शर्मा
 भारतीय सिनेमा जगत में जब भी क्लासिक फिल्मों के नाम लिए जाएंगे, उसमें बैजू बावरा भी शामिल की जाएगी। फिल्म के लिए संगीतकार नौशाद ने ऐसी प्यारी प्यारी धुनें तैयार की, कि इतने बरसों के बाद आज भी इस फिल्म के गाने सुनो, तो दिल झूम उठता है।  संगीतकार नौशाद साहब के जन्मदिन 25 दिसंबर के मौके पर उनकी इस फिल्म के बारे में हम आज चर्चा कर रहे हैं। 
  वर्ष 1952 में ब्लैक एंड व्हाइट में बनी  फिल्म  बैजू बावरा में भारत भूषण और मीना कुमारी मुख्य भूमिकाओं में थे। यह वह दौर था, जब ज्यादातर फिल्म की कहानियों में या तो देशभक्ति की बात की जाती थी, या फिर जमींदारों या डाकूओं की। गांवों के परिवेश पर बनने वाली फिल्मों की कमी नहीं थी। 
उस वक्त की फिल्मों में रिश्तों में गहनता, मर्यादा को ज्यादा अहमियत दी जाती थी।  बैजू बावरा फिल्म को यदि आज याद किया जाता है, तो नौशाद साहब के खूबसूरत क्लासिकल गानों, भारत भूषण और मीना कुमारी की क्यूट जोड़ी के कारण। कहानी के फिल्मांकन की दृष्टि से भले ही आज के डिजिटलाइज्ड दौर में यह फिल्म कमतर लगे, लेकिन 50 के दशक में ऐसी फिल्में बनना भी बड़ी बात थी। उस वक्त रीमेक या सीक्वल का दौर नहीं थी, कि एक ही कहानी को मसाला डालकर दो या फिर तीन- तीन फिल्में बना ली जाएं।  बल्कि फिल्मों के गाने से लेकर कहानी, कलाकारों के अभिनय और दृश्यों के फिल्मांकन ,सभी में मौलीकता और इससे जुड़े लोगों की कड़ी मेहनत नजर आती थी। 
 बैजू बावरा जैसा की फिल्म के नाम से जाहिर है कि यह फिल्म पुराने जमाने में शास्त्रीय गायक रहे बैजू बावरा के जीवन पर आधारित है।  हालांकि फि़ल्म की कहानी और बैजू बावरा पर प्रचलित दन्तकथाओं में काफ़ी असमानताएं हैं। फिल्म में भारत भूषण और मीना कुमारी मुख्य भूमिकाओं में थे।  यह वो फिल्म है जिसके बाद नौशाद की संगीत दुनिया में  पहचान बनी। फिल्म 1952 में बनी थी और इसी फिल्म के लिए नौशाद साहब ने पहला फिल्म फेयर अवार्ड जीता था।   
ये फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में अपना अलग महत्व रखती है खासकर शास्त्रीय रागों के इस्तेमाल में। इसका मशहूर भजन  मन तरपत हरि दर्शन.. को आज भी सबसे बढिय़ा भक्ति गीतों में शुमार किया जाता है। गौर करने वाली बात यह है कि इस गीत के बोल लिखें हैं मोहम्मद शकील ने, इसको गाया है मोहम्मद रफी ने और धुन बनाई है नौशाद ने, जो यह साबित करता है कि संगीत की दुनिया किसी भी मजहब से नहीं बंधी है।  
फिल्म के अन्य मशहूर गानों में शामिल है राग दरबारी पर आधारित -ओ दुनिया के रखवाले..  जिसे गाया था नौशाद के पसंदीदा गायक रफी ने।  झूले में पवन के , गीत को लता और रफी दोनों ने अपनी आवाज़ दी, में राग पीलू का इस्तेमाल किया गया।  राग भैरवी में  तू गंगा की मौज..  को कौन भूल सकता है... जिसके सुंदर बोल,कोरस एफैक्ट और ओर्केस्ट्रा सब मिलकर इस गीत को एक नया रूप देते हैं।  फिल्म में कुल 13 गाने थे। आज गावत मन मेरो झूम के.. गीत राग देसी पर आधारित था और इसमें नौशाद  साहब ने  उस्ताद आमिर खान  और डी. वी. पल्सुकर जैसे ढेढ शास्त्रीय गायकों का इस्तेमाल किया। वहीं दूर कोई गाये गीत राग देस पर आधारित था।  मोहे भूल गए सावरिया गीत लता ने गाया और इसमें नौशाद ने राग भैरवी और राग कालिन्गदा का मिला जुला रूप पेश किया।  बचपन की मोहब्बत  गीत-राग मान्द, इंसान बनो...  और लंगर कन्हैया जी ना मारो-राग तोड़ी,    घनन घनन घना गरजो रे - राग मेघ और एक सरगम में नौशाद साहब ने राग दरबारी का प्रयोग किया। एक प्रकार से नौशाद साहब ने फिल्म के पूरे ही गानों में शास्त्रीय रागों का बड़ी खूबसूरती के साथ इस्तेमाल किया, इसलिए ये गाने आज भी लोकप्रिय हैं। आवाज की मिठास साथ हो तो शास्त्रीय रागों की कठिनता भी सहजता बन जाती है, इसके सभी गानों में ये बात स्पष्ट नजर आती है। नौशाद साहब ने साबित किया कि शास्त्रीय राग के साथ यदि लोकसंगीत का मेल हो  जाए, तो जो संगम सामने आता है, वह कालजयी बन जाता है।  उस वक्त शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत का ऐसा मधुर मिश्रण  किसी भी फिल्म में नहीं हुआ। 
विजय भट्ट की इस फिल्म ने मीना कुमारी को स्टार बना दिया था। यह बतौर नायिका पहली फिल्म थी। इससे पहले मीना कुमारी बाल कलाकार के रूप में मजहबी नाम से फिल्मों में काम किया करती थीं। निर्देशक विजय भट्ट ने ही उन्हें मीनाकुमारी नाम दिया और अपनी फिल्म बैजू बावरा में नायिका के रूप में कास्ट किया। गौरी की भूमिका में मीना कुमारी ने सबका दिल जीत लिया।  वहीं भारत भूषण भी बैजू बावरा की भूमिका में खूब जमे।  इस फिल्म के संगीत के लिए नौशाद को पहला फिल्म फेयर अवार्ड मिला और मीना कुमारी ने भी सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार हासिल किया।  एक प्रकार से 1952 का साल बैजू बावरा के लिए समर्पित रहा। फिल्म के निर्माता थे प्रकाश और निर्देशन विजय भट्ट का था। फिल्म में भारत भूषण और मीना कुमारी के अलावा सुरेन्द्र और अभिनेत्री कुलदीप ने भी काम किया था। अभिनेता सुरेन्द्र ने तानसेन की भूमिका निभाई थी, तो डाकू रूपमती के रोल में अभिनेत्री कुलदीप कौर थीं।   मीना कुमारी के बचपन का रोल बेबी तबस्सुम ने निभाया था। फिल्म के अंत में दिखाया गया है कि नायक बैजू और नायिका गौरी की नदी में डूबने से मौत हो जाती है।  कुल मिलाकर बैजू बावरा 1952 की श्रेष्ठतम संगीतमय फिल्म रही।
कुछ बातें विजय भट्ट के बारे में। वे  अपने दौर के जाने-माने फिल्म निर्माता , संवाद लेखक और निर्देशक रहे हैं।  विजय भट्ट ने कुल 65 फिल्में बनाई  जिसमें रामराज्य (1943), बैजू बावरा (1952), गूंज उठी शहनाई (1959) और हिमालय की गोद में (1965) प्रमुख थी। विजय भट्ट ने प्रकाश पिक्चर प्रोडक्शन कंपनी और प्रकाश स्टुडियो की स्थापना की थी। उन्होंने ही  फिल्म एंड टेलीविजन प्रोड्यूसर गिल्ड ऑफ इंडिया  संस्था की स्थापना की। उनके पोते विक्रम भट्ट आज हॉरर फिल्मों के निर्माण-निर्देशन  के लिए जाने जाते हैं।
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