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  वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं - डॉ. दिनेश मिश्र
 - 6 वें इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल में व्याख्यान
 अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष व नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्र ने  इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल 2020 में   वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अंधविश्वास विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास अत्यंत आवश्यक है, जिसके लिए समाज के हर जागरूक नागरिक को  आगे आना चाहिए ।  6 वें इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल  का आयोजन वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) बायोटेक्नोलॉजी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय संयुक्त रूप से किया गया। 
 इस वर्ष 6 वां इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल 22 दिसम्बर से 25 दिसम्बर तक आयोजित किया गया जिनमें प्रथम दिवस देश के  प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ,केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने  सम्बोधित किया।  25 दिसम्बर को समापन  समारोह के मुख्य अतिथि देश के उपराष्ट्रपति  वेंकटैया नायडू  थे ।  इस साइंस फेस्टिवल में 60 से अधिक देशों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।  छत्तीसगढ़ से डॉ. दिनेश मिश्र ने इस आयोजन में भाग लिया एवम आलेख पढ़ा। 
डॉ. दिनेश मिश्र ने  अपने व्याख्यान में  कहा-
अंधविश्वास का शाब्दिक अर्थ आंख मूंद कर विश्वास करना, या किसी भी बात, सूचना ,तथ्य पर  बिना जाने समझे पूरी तरह विश्वास करना है। जबकि वहीं दूसरी ओर विज्ञान सीखने की एक प्रक्रिया है एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमें अपने परिवेश को समझने और परखने का अवसर देता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमारे अंदर अन्वेषण की प्रवृत्ति विकसित करता है तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण  की एक शर्त है, बिना किसी प्रमाण के किसी भी बात पर विश्वास न करना या उपस्थित प्रमाण के अनुसार ही किसी बात पर विश्वास करना।  आपसी चर्चा, तर्क और विश्लेषण वैज्ञानिक दृष्टिकोण का एक महत्वपूर्ण अंग है
वैज्ञानिक दृष्टिकोण मूलत: एक ऐसी  सोच है ,जिसका मूल आधार किसी भी घटना की पृष्ठभूमि में उपस्थित मूल कारण को जानने की प्रवृत्ति है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमारे अंदर अन्वेषण की प्रवृत्ति विकसित करता है तथा विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सहायता करता है।
 
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तात्पर्य है कि हम तार्किक रूप से सोचे विचारें
 
डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा जनसामान्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना हमारे संविधान के अनुच्छेद 51, ए के अंतर्गत मौलिक कर्तव्यों में से एक है। इसलिए हम में से  प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए प्रयास करे।
हमारे संविधान निर्माताओं ने यही सोचकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को मौलिक कर्तव्यों की सूची में शामिल किया है कि भविष्य में वैज्ञानिक सूचना एवं ज्ञान में वृद्धि से वैज्ञानिक दृष्टिकोण युक्त चेतनासम्पन्न समाज का निर्माण हो। 
वैज्ञानिक दृष्टिकोण का संबंध तर्कशीलता से है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार वही बात ग्रहण के योग्य है जो प्रयोग और परिणाम से सिद्ध की जा सके, जिसमें कार्य-कारण संबंध स्थापित किये जा सकें।  गौरतलब है कि मानवता और समानता के निर्माण में भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण कारगर सिद्ध होता है।
  डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि कुछ लोग अंधविश्वास के कारण हमेंशा शुभ-अशुभ के फेर में पड़े रहते है। यह सब हमारे मन का भ्रम है। शुभ-अशुभ सब हमारे मन के अंदर ही है। किसी भी काम को यदि सही ढंग से किया जाये, मेहनत, ईमानदारी से किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है। उन्होंने कहा कि 18वीं सदी की मान्यताएं व कुरीतियां अभी भी जड़े जमायी हुई है जिसके कारण जादू-टोना,  डायन,टोनही, बलि व बाल विवाह जैसी परंपराएं व  अनेक अंधविश्वास आज भी वजूद में है। जिससे प्रतिवर्ष अनेक मासूम जिन्दगियां तबाह हो रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे में  वैज्ञानिक सोच को अपनाने की आवश्यकता है।
    डॉ. मिश्र ने कहा प्राकृतिक आपदायें हर गांव में आती है, मौसम परिवर्तन व संक्रामक बीमारियां भी गांव को चपेट में लेती है, वायरल बुखार, मलेरिया, दस्त जैसे संक्रमण भी सामूहिक रूप से अपने पैर पसारते है। ऐसे में ग्रामीण अंचल में लोग बैगा-गुनिया के परामर्श के अनुसार विभिन्न टोटकों, झाड़-फूंक के उपाय अपनाते हैं। जैसा कि कोरोना काल में भी होने लगा था । विश्व स्वास्थ्य संगठन ,स्वास्थ्य मंत्रालय ,प्रशासन की लगातार दी जा रही गाइड लाइन के बाद भी अनेक स्थानों से ,झाड़ फूंक,ताबीज,बलि अनुष्ठान के मामले सामने आए, जबकि चिकित्सा विज्ञान के अनुसार  प्रत्येक बीमारी व समस्या का कारण व उसका समाधान अलग-अलग होता है, जिसे  विचारपूर्ण तरीके से ढूंढा  व समाधान निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि  जैसे एक बिजली का बल्ब फ्यूज होने पर उसे झाड़-फूंक कर पुन: प्रकाश नहीं प्राप्त किया जा सकता न ही मोटर सायकल, ट्रांजिस्टर बिगडऩे पर उसे ताबीज पहिनाकर नहीं सुधारा जा सकता। रेडियो, मोटर सायकल, टी.वी., ट्रेक्टर की तरह हमारा शरीर भी एक मशीन है जिसमें बीमारी आने ,समस्या  होने पर उसके विशेषज्ञ के पास ही जांच व उपचार होना चाहिए। 
डॉ. मिश्र ने  कहा -कुछ अंधविश्वास, रूढि़वादिता एवं कुपरम्पराओं से जन्म लेते हैं और कुछ स्वास्थ्य और बीमारियों के कारण ,लक्षण ,उपचार की वास्तविक जानकारी न होने के कारण बढ़ते हंै ।  उन्होंने  विभिन्न सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों की चर्चा करते हुए कहा कि बच्चों को भूत-प्रेत, जादू-टोने के नाम से नहीं डराएं क्योंकि इससे उनके मन में काल्पनिक डर बैठ जाता है जो उनके मन में ताउम्र बसा होता है, बल्कि उन्हें आत्मविश्वास, निडरता, के वास्तविक  किस्से कहानियां सुनानी चाहिए। जिनके मन में आत्मविश्वास व स्वभाव में निर्भयता होती है।  उन्हें न ही नजर लगती है और न कथित भूत-प्रेत बाधा लगती है। यदि व्यक्ति कड़ी मेहनत, पक्का इरादा का काम करें तो कोई भी ग्रह, शनि, मंगल, गुरू उसके रास्ता में बाधा नहीं बनता।  
 सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ वैज्ञानिक  विनय गद्रे, ने की । व्याख्यान के बाद प्रश्नोत्तर स्तर हुआ जिसमें प्रतिभागियों के प्रश्नों के उत्तर दिये गए। 
 डॉ. दिनेश मिश्र
नेत्र विशेषज्ञ 
अध्यक्ष अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति
 
 

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