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नौशाद, जिन्होंने अपने  संगीत में जिदंगी के सारे रंग घोल दिए

मंजूषा शर्मा
नौशाद अली, भारतीय सिनेमा की संगीत की दुनिया का का वो नाम है, जो संगीत गढ़ते नहीं थे, बल्कि सुरों का जादू बिखेरते थे। उनके संगीत में एक तरफ जहां ठेठ शास्त्रीय संगीत पुट मिलता है, तो लोक संगीत का भी नौशाद साहब ने अपने गीतों में बखूबी इस्तेमाल किया है।  पहली फिल्म में संगीत देने के 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फिल्मों में ही संगीत दिया, लेकिन उनका कौशल इस बात की जीती जागती मिसाल है कि गुणवत्ता संख्या बल से कहीं आगे होती है।
नौशाद का संगीत काफी संघर्ष के बाद ही लोगों तक पहुंचा है। उन्हें अपने दौर में मुंबई में फुटपॉथ पर रातें गुजारनी पड़ी थीं। दिन में संघर्ष और रात में फुटबॉथ का बसेरा, इन परिस्थितियों के कारण जिदंगी के सारे रंग-रूप एक चलचित्र की तरह नौशाद के दिलो दिमाग में बस गए थे, जो उनके संगीत में साफ दिखाई देते हैं। नौशाद साहब का जन्म 25 दिसंबर 1919 में लखनऊ में मुंशी वाहिद अली के घर में हुआ था। वे 17 साल की उम्र में ही अपनी किस्मत आजमाने के लिए मुंबई चले आए थे।
आज नौशाद साहब के जन्मदिन के अवसर पर मैं उनकी तीन उन फिल्मों का जिक्र कर रही हूं, जो मेरी नजर में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सुरीली कलाकृतियां हैं। 
1. मुगल-ए-आज़म - मुगल ए- आजम, फिल्म को कुछ साल पहले जब रंगीन करके दोबारा रिलीज किया गया, तो किसी ने नहीं सोचा था कि इसे इतना शानदार रिस्पांस मिलेगा। फिल्म के गाने अपने दौर में तो सर्वश्रेष्ठ रहे ही हैं और आज भी जब बजते हैं, तो लोगों के दिलों को सुकून ही देते हैं। इस बारे में शायद ही किसी को शक हो कि फिल्मी इतिहास में इसका संगीत नौशाद का सर्वोत्तम संगीत रहा है। इस फिल्म के ज्यादातर गानों में नौशाद साहब ने कहानी के मूड के लिहाज से अपनी पसंदीदा गायिका लता मंगेशकर की आवाज ली है। हर गाने में शास्त्रीयता की झलक मिलती है। इन गानों में कम से कम म्यूजिक इंस्टूमेंट्स का इस्तेमाल किया गया और कहीं भी तेज ऑर्केस्ट्रा या कम्प्यूटरीकृत तकनीकी या आधुनिकता का आभास नहीं होता। शायद इसीलिए पुराने गानों में गायकों की आवाज ज्यादा स्पष्ट तौर से उभरकर सामने आती थी। फिल्म में लताजी का राग गारा में गाया हुआ गीत -मोहे पनघट पे नंद लाल छेड़ गयो रे.....एक तरह से कव्वाली भी है और लोक परंपरा, मान्यताओं के अनुरूप कान्हा के साथ गोपियों की छेड़-छाड़ भी इसमें नजर आती है। इस गाने में नायिका मधुबाला की खूबसूरती देखते ही बनती है। इस गाने की हर बात उम्दा है- फिर उसका ट्रैक हो या फिर खालिस उर्दू के साथ प्रचलित लोक भाषा का इस्तेमाल और फिर उनको लेकर रचा गया नौशाद का बे-नायाब सुरों का जाल, जिसमें श्रोता अंदर तक घुसता चला जाता है।  
इसी फिल्म में नौशाद साहब ने रागदरबारी में एक गाना रचा- प्यार किया तो डरना क्या..  काफी खूबसूरत है। इसी गाने में शीश महल के साथ मधुबाला की झलक उस जमाने की बेहतरीन तकनीक को पेश करती है। फिल्म का एक और गाना राग यमन में है जिसके बोल हैं- खुदा निगेबान..जिसमें नफीस उर्दू के बोल हैं तो उनमें रची बसी लता की मिठास भी है। फिल्म में नौशाद साहब ने उस्ताद बड़े गुलाम अली साहब से काफी मनुहार करके दो गीत गाने के लिए मना लिया था - प्रेम जोगन बन के और शुभ दिन आयो राज दुलारा...। जिसमें से प्रेम जोगन.. गाना भी पूरी तरह से शास्त्रीय था और इसे दिलीप कुमार और मधुबाला पर फिल्माया गया था, जो फिल्मी इतिहास का सबसे रोमांटिक सीन कहा जाता है। फिल्म में कुल 12 गाने थे। एक गाने में रफी साहब और एक अन्य गाने में शमशाद बेगम की आवाज का इस्तेमाल नौशाद साहब ने किया।
2. बैजू बावरा-  जैसा की फिल्म के नाम से जाहिर है कि यह फिल्म पुराने जमाने में शास्त्रीय गायक रहे बैजू बावरा के जीवन पर आधारित है। फिल्म में भारत भूषण और मीना कुमारी मुख्य भूमिकाओं में थे।  यह वो फिल्म है जिसके बाद नौशाद की संगीत दुनिया में  पहचान बनी। फिल्म 1952 में बनी थी और इसी फिल्म के लिए नौशाद साहब ने पहला फिल्म फेयर अवार्ड जीता था। ये फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में अपना अलग महत्व रखती है खासकर शास्त्रीय रागों के इस्तेमाल में। इसका मशहूर भजन मन तरपत हरि दर्शन.. को आज भी सबसे बढिय़ा भक्ति गीतों में शुमार किया जाता है। गौर करने वाली बात यह है कि इस गीत के बोल लिखे हैं मोहम्मद शकील ने, इसको गाया है मोहम्मद रफी ने और धुन बनाई है नौशाद ने, जो यह साबित करता है कि संगीत की दुनिया किसी भी मजहब से नहीं बंधी है।
फिल्म के अन्य मशहूर गानों में शामिल है राग दरबारी पर आधारित-ओ दुनिया के रखवाले.. जिसे गाया था नौशाद के पसंदीदा गायक रफी ने।  झूले में पवन के, गीत को लता और रफी दोनों ने अपनी आवाज़ दी, इसमें राग पीलू का इस्तेमाल किया गया। राग भैरवी में तू गंगा की मौज...को कौन भूल सकता है...जिसके सुंदर बोल, कोरस इफैक्ट और ऑर्केस्ट्रा सब मिलकर इस गीत को एक नया रूप देते हैं। फिल्म में कुल 13 गाने थे। आज गावत मन मेरो झूम के.. गीत राग देसी पर आधारित था और इसमें नौशाद  साहब ने  उस्ताद आमिर खान  और डी. वी. पल्सुकर जैसे ठेठ शास्त्रीय गायकों का इस्तेमाल किया। वहीं दूर कोई गाये गीत राग देस पर आधारित था।  मोहे भूल गए सांवरिया गीत लता ने गाया और इसमें नौशाद ने राग भैरवी और राग कालिन्दा का मिला जुला रूप पेश किया।  बचपन की मोहब्बत  गीत राग मान्द, इंसान बनो...और लंगर कन्हैया जी ना मारो-राग तोड़ी, घनन घनन घना गरजो रे - राग मेघ और एक सरगम में उन्होंने राग दरबारी का प्रयोग किया। एक प्रकार से फिल्म के पूरे ही गानों में शास्त्रीय रागों का इस्तेमाल नौशाद ने किया।
3. कोहिनूर-नौशाद द्वारा संगीतबद्ध एक और फिल्म थी कोहिनूर। यह फिल्म 1960 में बनी और इसमें दिलीप कुमार तथा मीना कुमारी मुख्य भूमिकाओं में थे। यह फिल्म मेलोडी के अलावा भी और कईं कारण से मील का पत्थर रही।  मधुबन में राधिका नाचे रे.. गाना आज भी पसंद किया जाता है। इस पूर्णतया राग प्रधान गीत के लिए रफी साहब की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। नौशाद जोखिम उठाने में कभी भी नहीं हिचकिचाते थे। नये नये प्रयोग करना उन्हें अच्छा लगता था। इस फिल्म के निर्देशक थोड़े घबराये हुए थे, क्योंकि यह गाना किसी भी लिहाज से पारंपरिक कव्वाली नहीं था और न ही ये सामान्य गानों की तरह अथवा पाश्चात्य रूप  लिए हुए था। फिर भी इस गाने की धुन अपने आप में आधुनिकता समेटे हुए थी जिसको अपनी आवाज़ से रफी साहब ने और सुरीला बना दिया था। नौशाद इस गाने को लेकर इतने विश्वास से भरे हुए थे कि वे कोहिनूर के लिए जो भी पैसे उन्हें मिल रहे थे, वो भी वापस करने को तैयार थे अगर बॉक्स ऑफिस पर ये गीत पिट जाता। लेकिन जो हुआ वो सब ने देखा और सुना। यह गाना पूरे भारत में अपने शास्त्रीय संगीत और रिदम की वजह से कामयाब हुआ। इसी फिल्म के अन्य गीत थे- ढल चुकी शाम-ए-गम..., जादूगर कातिल..तन रंग लो जी..। सभी गानों की खास बात उसका संगीत तो था ही साथ ही बहुत खूबसूरत बोल भी थे। फिल्म में दस गाने थे। एक गाना ही आशा भोंसले की आवाज में था जादूकर कातिल... बाकी सभी में लता और रफी की आवाज नौशाद ने ली थी। फिल्म का एक गाना काफी हिट हुआ और वह था दो सितारों का जमीं पर है मिलन आज की रात... राग पहाड़ी से प्रेरित था।
हालांकि नौशाद के काम को और भारतीय संगीत में उनके योगदान को इन तीन फिल्मों में कतई नहीं समेटा जा सकता। उनका योगदान संगीत की दुनिया में निस्संदेह सराहनीय और अतुलनीय है।
 

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