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 मधुबाला के इस हीरो को पहचाना आपने...
जन्मदिवस पर विशेष- आलेख मंजूषा शर्मा
फिल्म इंडस्ट्री की सबसे खूूबसूरत एक्ट्रेस रही मधुबाला के साथ इस हीरो को बहुत कम लोग पहचान पाएंगे। यह फिल्म सैंया का दृश्य है और यह 1951 में बनी थी। फिल्म में दो हीरो थे अजित और दूसरे थे सज्जनलाल पुरोहित। जी हां, मधुबाला के साथ बतौर हीरो सज्जन नजर आए थे जिन्होंने फिल्म जॉनी मेरा नाम में हेमामालिनी के पिता का रोल निभाया था। आज ही के दिन वर्ष 1921 में राजस्थान के जयपुर में  अभिनेता सज्जन का जन्म हुआ था। उनके जन्मदिन के मौके  उनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातों की हम चर्चा   कर रहे हैं जिसके बारे में कम ही लोग जानते हैं। अभिनेता सज्जन बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। फिल्म अभिनेता, थियेटर कलाका,  संवाद लेखक, डायरेक्टर और गीतकार.. सज्जन के कितने ही रूप देखने को मिले। 
अभिनेता सज्जन ने 40-50 के दशक में कई फिल्मों में हीरो का रोल निभाया।  उन्होंने अपने दौर की टॉप की एक्ट्रेस नर्गिस, मधुबाला, नलिनी जयवंत और नूतन के हीरो बनकर फिल्में की।
बात करें फिल्म सैंया की। वैसे तो  मधुबाला के साथ दो-तीन फिल्मों में सज्जन ने काम किया,  लेकिन  फिल्म सैंया में वो मधुबाला के प्रेमी बने हैं।  यह लव-ट्राएंगल मूवी थी, जिसमें मधुबाला एक अनाथ लड़की की भूमिका में हैं, जिनसे दो भाइयों को प्रेम हो जाता है। इनमें से एक भाई बने हैं सज्जन, तो दूसरे भाई की भूमिका अजीत ने निभाई है। यह  फिल्म अंग्रेजी फिल्म 'डुअल इन द सन' की हिन्दी रीमेक थी, जिसमें सज्जन नेगेटिव भूमिका में थे। फिल्म की शूटिंग महाबलेश्वर में हुई थी। इस फिल्म के बारे में उन्होंने कहा था, 'मुझे फिल्म में कास्ट करके निर्माता-निर्देशक सादिक बाबू ने बड़ा रिस्क लिया था, लेकिन फिल्म कामयाब हो गई। मुझे इस तरह के किरदार दोबारा नहीं मिले। मैं किसी खास किरदार को लेकर टाइपकास्ट नहीं हुआ। हालांकि, फिल्म की सफलता के बाद मैंने अपने घर का नाम बदल कर 'सैंया' ही रख लिया।' हालांकि बाद में उन्होंने यह घर ही छोड़ दिया।
इसके एक साल बाद सज्जन  फिल्म 'निर्मोही' में नूतन के हीरो के रूप में नजर आऐ।  मदन मोहन के संगीत में इंदीवर के गीतों को लता मंगेशकर ने आवाज दी। हालांकि, फिल्म ने कुछ खास कमाल नहीं किया, लेकिन इसके संगीत ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं।
 सज्जन लाल पुरोहित ने अपने करिअर में 150 से अधिक फिल्मों में काम किया, लेकिन उनकी यादगार भूमिकाओं में सस्पेंस थ्रिलर मूवी बीस साल बाद भी है। पूरी फिल्म में वे बैसाखी लिए एक आम इंसान की तरह घूमते नजर आते हैं। साल 1962 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में उनके द्वारा निभाए गए डिटेक्टिव मोहन त्रिपाठी के किरदार को  लोग आज तक याद करते हैं। 
 साल 1964 के दौरान दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने  कहा था, 'अपने पिछले प्रोजेक्ट्स को याद करूं, तो मुझे ऐसा रोल चुनने में मुश्किल होती है, जिसे मैं 'उत्कृष्ट' कहूं। ईमानदारी से कहूं, तो मैंने कभी भी ऐसा कलात्मक प्रदर्शन नहीं किया है, जिसे 'सर्वोत्कृष्टÓ की श्रेणी में रखा जा सके।'  उन्होंने तलाक', 'काबुलीवाला' और 'बीस साल बाद' जैसी फिल्मों का हिस्सा होने पर खुशी भी जाहिर की थी। उनका कहना था कि इन फिल्मों में काम करने की वजह से मेरा नाम स्क्रीन पर हमेशा के लिए दर्ज हो गया, वरना मैं तो भूला दिया जाता और सिर्फ थिएटर के मंच तक ही सिमटा रह जाता। 
 आज़ादी से पहले भारत में 'बैरिस्टर' बनने का एक अलग ही चार्म था। लिहाजा, सज्जन ने भी बैरिस्टर बनने की ठान ली। ग्रेजुशन कर पहुंच गए कलकत्ता। यहां उन्हें  'ईस्ट इंडिया कंपनी' में नौकरी भी मिल गई। यहीं से उन्हें अभिनय का चस्का लगा और फिल्मों में छोटी-मोटी भूमिकाएं भी मिलने लगी।  इसी दौरान 'गल्र्स स्कूल' में उन्हें शशिकला के हीरो का रोल मिल गया।  साल 1949 में रिलीज़ हुई इस फिल्म के गाने कवि प्रदीप ने लिखे थे। इस फिल्म के बारे में सज्जन ने कहा था, 'काश इस तरह के दमदार किरदार वाली फिल्में मुझे और मिली होतीं।' उन्होंने जब मुंबई की राह पकड़ी। रात में फुटपाथ उनका आशियाना होता और दिन में स्टुडियो। काफी मुफलिसी के दिन उन्होंने काटे। इसी दौरान उन्हें मशहूर निर्देशक केदार शर्मा के सहायक का काम मिल गया। तब राज कपूर भी केदार शर्मा के असिस्टेंट हुआ करते थे। गजानन जागीरदार और वकील साहिब के असिस्टेंट का काम भी सज्जन ने पकड़ लिया। इस तरह से वो महीने के 35 रूपये महीना कमा लिया करते थे।  इसी दौरान फिल्म धन्यवाद  में उन्हें हीरो बनने का मौका मिला। फिल्म में उनकी नायिका हंसा वाडकर थीं। 
अभिनेता सज्जन को लिखने का भी शौक था और उन्हें कई फिल्मों के संवाद और गाने लिखे। जब हीरो के रूप में उनकी फिल्में असफल होने लगी तो उन्होंने इसे अपनी किस्मत मानकर चरित्र भूमिकाएं निभाने से परहेज नहीं किया।  
 साल 1968 में आई मल्टीस्टारर मूवी 'आंखेंÓ में सज्जन ने एक छोटा सा रोल किया था। वहीं से वो रामानंद सागर के करीब आ गए। बाद में रामानंद सागर ने 'विक्रम और बेतालÓ में उन्हें विलेन 'बेतालÓ की भूमिका में लिया। उस वक्त 'बेताल' का डायलॉग तब बच्चे-बच्चे की ज़बान पर चढ़ गया था और वो था, 'तू बोला, तो ले मैं जा रहा हूं. मैं तो चला!'
 बाद में उनका एक महत्वपूर्ण काम उनकी एक अद्भुत पुस्तक "रस भाव दर्शन ' के रूप में सामने आया। मशहूर फोटोग्राफर ओ.पी. शर्मा के साथ मिलकर उन्होंने लगभग दो हजार साल पुराने भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित इस पुस्तक की रचना की। इसमें शृंगार रस, करुणा रस जैसे रसों और 49 भावों को सज्जन ने अपनी मुख मुद्रा से दिखाया है। 17 मई 2000 को उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहा। उन्हेें आज लोग भले ही याद न करें... क्योंकि जब जमाना तेजी से रुख बदलता है, तो या तो बहुत सी चीजें धुंधली पड़ जाती हैं या भुला दी जाती हैं। अभिनेता सज्जन भी इनमें से एक हैं।  
 

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