पहचाना इन्हें.....पराए मर्द को छूना नहीं था मंजूर, इसलिए नायिका की भूमिका ठुकरा दी...
पुण्यतिथि पर विशेष- आलेख मंजूषा शर्मा
हिन्दी फिल्म एक्ट्रेस की ये काफी पुरानी तस्वीर है और इसे देखकर अंदाज लगाना जरा मुश्किल है कि आखिर ये कौन हैं, पर ये अपने दौर में हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री का काफी लोकप्रिय चेहरा हुआ करता था। ये हैं फिल्मी परदे की सबसे लोकप्रिय मौसी यानी लीला मिश्रा। जिसने भी फिल्म शोले देखी है उसे धर्मेंद्र का टंकी पर चढ़कर मौसी को धमकी देने वाला सीन याद तो होगा ही और वो अमिताभ बच्चन का धर्मेन्द्र की खासियत बताते हुए मौसी को उनकी बेटी हेमामालिनी के लिए शादी का प्रपोजल देना...लोग भूले नहीं हैं। बरसों बीत गए हैं, लेकिन शोले फिल्म का आज भी अपना क्रेज बना हुआ है।
1975 में रिलीज हुई इस फिल्म का निर्देशन रमेश सिप्पी ने किया था और इस फिल्म की कहानी, कलाकार, डायलॉग और गाने सब कुछ अमर हो गए. फिल्म का हर छोटा बड़ा किरदार, सीक्वेंस, गाने और डायलॉग आज भी लोग दोहराते हैं। इसी फिल्म में एक किरदार था मौसी का जिसे निभाया था एक्ट्रेस लीला मिश्रा ने। आज (17 जनवरी) ही के दिन 1988 में लीला मिश्रा का 80 साल की आयु में हार्ट अटैक से निधन हो गया था।
उनकी पुण्यतिथि पर कुछ उनकी बातें....लीला मिश्रा की शादी प्रपातगढ़ के जमींदार घराने के रामप्रसाद मिश्रा के साथ मात्र 12 साल में हो गई थी और 17 साल की उम्र तक वे दो लड़कियों की मां भी बन गई थीं। उनके पति को अभिनय का शौक था। वे कश्मीरी नाटकों में काम किया करते थे। उन्हीं दिनों बोलती फिल्मों का दौर शुरू हुआ था और कलाकारों के लिए नए दरवाजे खुले थे। लीला के पति राम प्रसाद बनारस से मुंबई आते-जाते रहते थे और उन्हें मुंबई में एक फिल्म कंपनी में काम मिल गया।
इसी दौरान दादा साहेब फाल्के के लिए काम करने वाले मामा शिंदे ने लीला को देखा और उनके पति को रोल ऑफर कर दिया। मामा शिंदे और रामप्रसाद में अच्छी दोस्ती भी थीं। पहले तो मिश्रा जी ने इंकार कर दिया लेकिन फिर मान गए...दोनों की पहली फि़ल्म एक साथ आई जिसका नाम था ''सती सलोचना''। इस फिल्म में मिश्रा जी का रोल था रावण का और लीला का रोल था रावण की पत्नी मंदोदरी का...लेकिन कमाल की बात ये रही कि इस फि़ल्म की फ़ीस के तौर पर लीला जी को मिले 500 रुपए और उनके शौहर मिश्रा जी को मिले 150 रुपए...। दरअसल उस वक्त अच्छे घराने की बहू बेटियों को फिल्मों में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था। फिर उन्हें होनहार फिल्म का प्रस्ताव मिला जिसमें उन्हें अभिनेता साहू मोडक की नायिका का रोल निभाना था। लीला मिश्रा ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। इसके लिए लीला मिश्रा की दलील थी कि जिस माहौल में उनकी परवरिश हुई है , वो उन्हें इस बात की इजाज़त नहीं देता कि वो किसी ग़ैर मर्द के समीप जाएं। कंपनी को जब लीला के इंकार की वजह पता चली, तो एक नया रास्ता निकाला गया और उन्हें मोडक की मां का रोल करने का प्रस्ताव दे दिया। यकीन मानिए मात्र 18 साल की उम्र में लीला मिश्रा ने नायक की मां बनना स्वीकार कर लिया। फिर ये जैसे एक सिलसिला चल पड़ा....कभी मां, कभी मौसी, कभी चाची तो कभी नानी... दादी... लीला मिश्रा ने एक के बाद एक फिल्में करनी शुरू कर दी। किसी फिल्म में तो वे नायक की उम्र से भी छोटी रहती, लेकिन मां के रोल में नजर आती।
लीला मिश्रा की उल्लेखीय फिल्म में अनमोल घड़ी (1946), आवारा (1951), नर्गिस-बलराज साहनी की फिल्म लाजवंती (1958), शीशमहल, दाग, शिकस्त, सेहरा, कॉलेज गर्ल, उम्मीद, छोटी छोटी बातें, दोस्ती, राम और श्याम, रात और दिन, धरती कहे पुकार के, तुम से अच्छा कौन है, सुहाना फल, दुश्मन, लाल पत्थर, शोले, गीत गाता चल, महबूबा, पलकों की छांव में , किनारा, दुल्हन वही तो पिया मन भाये, शतरंज के खिलाड़ी, सावन को आने दो, चश्मे बद्दूर, अबोध आदि। उनकी आखिरी फिल्म 1986 में आई तन बदन थी।
लीला मिश्रा एक सहज अभिनेत्री थी और अपने किरदार से पूरी तरह से जुड़ जाती थीं, चाहे उनका रोल ग्रे शेड्स लिए ही क्यों न हो। यही कारण है कि उन्होंने काफी लंबे समय तक काम किया। अपने मिलनसार स्वभाव के कारण वे कलाकारों , निर्माता, निर्देशकों के बीच काफी लोकप्रिय भी थीं। फिल्म इंडस्ट्री में उन्होंने कई रोल निभाए, लेकिन लोग उन्हें आज भी मौसी नाम से ही याद किया करते हैं।
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