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 फिर छिड़ी रात बात फूलों की, रात है या बारात फूलों की

फारुख शेख. पुण्यतिथि. 28 दिसंबर
 मंजूषा शर्मा

बॉलीवुड के एक उम्दा कलाकार रहे फारुख शेख की 28 दिसंबर  को पुण्यतिथि है। इसी दिन वर्ष 2013 को दुबई में उनका दिल का दौरा पडऩे से निधन हो गया था। बात नाटकों की हो या फि र घोर कमर्शियल फिल्में हो या फिर आर्ट फिल्में, सभी में फारुख शेख ने अपनी अदायगी से एक अलग छाप छोड़ी।
फारुख शेख ने हर तरह की फिल्मों में काम किया और थियेटर में तो जैसे उनका मन ही रमता था। तुम्हारी अमृता, नाटक उनका काफी लोकप्रिय हुआ था जिसमें उन्होंने शबाना आजमी के साथ काम किया था। इस नाटक में स्टेज पर वे कुर्सी पर बैठे जब शबाना आजमी के साथ अपने संवाद इतने मनोभावों और संजीदगी से बोलते थे कि मात्र दो कलाकारों वाला नाटक किसी को भी अंत तक बोझिल नहीं लगता था।  
फारुख शेख साहब की पुण्यतिथि पर उन पर फिल्माया गई एक गजल बार.बार याद आ रही है जो फिल्म बाजार में शामिल की गई है।  यह गजल है फि र छिड़ी रात बात फूलों की, रात है या बारात फूलों की...।   शानदार बेमिसाल और अद्भुत है ये गजल  और उतना ही प्यारा खय्याम का संगीत।  फिल्म  बाजार वर्ष 1982 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म निर्देशक थे सागर सरहदी। समर्थ कलाकारों की पूरी फौज थी इस फिल्म में, लेकिन हर कलाकार का अपना अंदाज। नसीरूद्दीन शाह, फारुख शेख, स्मिता पाटिल, सुप्रिया पाठक जैसे मंजे हुए कलाकारों से सजी इस फिल्म ने अपनी अलग ही छाप छोड़ी थी।  फिर छिड़ी रात... गजल को लिखा है  मखदूम मोहिउद्दीन ने।  फूलों पर लिखी गई गजलों में मेरे खयाल से इससे खूबसूरत गजल कोई और नहीं हो सकती फिर लता मंगेशकर और तलत अजीज की पाक और चाशनी में डूबी आवाज का साथ। इस फिल्म में फारुख शेख की जोड़ी सुप्रिया पाठक के साथ बनी थी। रिकॉर्ड कंपनी एचएमवी ने जब इस फिल्म के गानों के रिकॉर्ड और कैसेट्स जारी किए थे, तो इसमें हर गानों के साथ फिल्म के कलाकारों के कुछ संवाद भी थे। और वो भी ऐसे भावुक और असरदार संवाद कि पूछिए, मत । जैसे कि फिर छिड़ी रात.... गजल में फारुख और सुप्रिया की आवाज गूंजती है।  फारुख फिल्म में बेरोजगार युवक के रोल में थे जो  रिक्शा चलाया करता था।  वे सुप्रिया से बहुत प्यार करते थे। इस गाने के फिल्मांकन से पहले दिखाया गया है कि किस तरह से फारुख, सुप्रिया को देखने के बहाने आवाज देते हुए चिल्लाते हैं. चूडिय़ा ले लो चूडिय़ां , रंग बिरंगी चूडिय़ां और उनकी आवाज सुनकर सुप्रिया उन्हें बुलाती है. ओ चूड़ी वाले चूड़ी दिखाओ न। या फिर नसीर का वो संवाद..कभी रास्ते में मिल गयीं तो पहचान लोगी मुझे । तो स्मिता पाटिल जवाब देती हैं..सलाम जरूर करूंगी....और शुरू होता है फिल्म का एक और गाना..करोगे याद तो हर बात याद आएगी।
यह उन दिनों की बात है, जब टेप रिकॉर्डर का जमाना था और लोग अपनी पसंद के गाने रिकॉर्ड कराने के लिए घंटों रिकॉर्ड वाले की दूकान में बैठे रहते थे। घर पर ऐसा ही एक कैसेट आया और फिल्म के गाने सुनने को मिले। स्कूल.कॉलेज का ज़माना और इतने रूमानी गीतों का साथ। हालांकि उम्र का तकाजा था कि उस वक्त इन गानों का अर्थ पूरी तरह से समझ नहीं आया और न ही फिल्म की कहानी ही। लेकिन इसके गानों की सुमधुर धुनें दिल में ऐसे घर कर  गईं कि आज भी  इनके एक-एक शब्द और धुनें याद है। इस फिल्म का कैसेट मैंने आज तक संभाल कर रखा है और मजे की बात है कि 37 साल के बाद भी यह कैसेट अच्छे से बज भी रहा है।
फिर छिड़ी रात गजल को लता मंगेशकर और गजल गायक तलत अजीज ने गाया है। उस समय तलत साहब बॉलीवुड में नए -नए  आए थे और उनकी लीक से हटकर आवाज ने बॉलीवुड के फिल्म निर्माताओं को भी आकर्षित किया था। इस फिल्म के पहले वे 1981 में आई फिल्म  उमराव जान में फारुख शेख के लिए गा चुके थे। बाजार फिल्म का संगीत भी खय्याम साहब ने दिया था और वे तलत साहब की आवाज से खासे प्रभावित थे। फिल्म बाजार के लिए भी उन्होंने तलत को लिया।
गजल थोड़ी लंबी है। मखदूम साहब ने इसे पांच अंतरे में लिखा लेकिन खय्याम साहब ने फिल्म में इसके तीन अंतरों को शामिल किया। लंबी $गजल होने के बाद भी इसका रोमांटिक अंदाज और प्यारी धुन बोरियत का अहसास नहीं कराती।  मखदूम साहब का लिखा पूरा गाना है.
फि र छिड़ी रात बात फूलों की , रात है या बारात फूलों की ।
फू ल के हार, फूल के गजरे, शाम फूलों की रात फूलों की ।
आपका साथ, साथ फूलों का, आपकी बात, बात फूलों की ।
नजरें मिलती हैं जाम मिलते हैं, मिल रही है हयात फूलों की ।
कौन देता है जान फूलों पर, कौन करता है बात फूलों की ।
वो शराफत तो दिल के साथ गई, लुट गई कायनात फूलों की ।
अब किसे है दमागे तोहमते इश्क, कौन सुनता है बात फूलों की ।
मेरे दिल में सरूर.,.सुबह बहार, तेरी आंखों में रात फूलों की ।
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में, रोज निकलेगी बात फूलों की ।
ये महकती हुई गजल मखदूम, जैसे सहरा में रात फूलों की ।
 फिल्म में शामिल की गई $इस गजल में वायलिन पर कुछ अरबी धुन की स्वर लहरियां गाने की रुहानियत बढ़ा देती है। सितार का कितना खूबसूरत इस्तेमाल हुआ है इसमें । धुन के साथ गजल इतनी नाजुक कि सारा रोमांस आंखों पर उतर आए। तसल्ली से आज फिर इस गजल को सुनियेगा और दाद दीजिएगा उस दौर के मौसिकारों, कलाकारों और गीतकारों की मेहनत को जो दिल से निकलने वाले गाने तैयार किया करते थे।
कुछ बरस पहले एक साक्षात्कार में खय्याम साहब ने इस फिल्म की याद करते हुए बताया था कि किस तरह से इसमें उस दौर के उम्दा शायरों की रचनाओं को संगीत में पिरोया गया था। उन्होंने बताया.. वो हमारी फिल्म आपको याद होगी, बाजार । उसमें ये सागर सरहदी साहब हमारे मित्र हैं, दोस्त हैं, तो ऐसा सोचा सागर साहब ने कि खय्याम साहब, कुछ अच्छा आला काम किया जाए, अनोखी बात की जाए। तो सोचा गया कि बड़े शायरों के कलाम इस्तेमाल किए जाएं फिल्म के संगीत में।  हो सकता है कि शायद लोगों की समझ में ना आए।  निर्माता .निर्देशक ने जब  कहा कि आप ने बिलकुल ठीक सोचा है। फिर फिल्म में शायर मीर तकी मीर ;( दिखाई दिए यूंं के बेखुद किया) मिर्जा शौक (देख लो आज हमको जी भर के), बशीर नवाज (करोगे याद तो हर बात याद आएगी), इन सब को इस्तेमाल किया। फिर मखदूम मोहिउद्दीन, फिर छिड़ी रात बात फूलों की ,यह उनकी बहुत मशहूर गजल है, और मखदूम साहब के बारे में कहूंगा कि बहुत ही रोमांटिक शायर हुए हैं। और हमारे हैदराबाद से ताल्लुख, और बहुत रेवोल्युशनरी शायर। जी हां बिलकुल, अपने राइटिंग में भी, और अपने किरदार में भी। वो एक रेवोल्युशनरी, वो चाहते थे कि हर आम आदमी को उसका हक मिले।
चलत-चलते फारुख शेख साहब की बातें। उनके बारे में बॉलीवुड के प्राय: सभी कलाकारों की यही राय थी कि उनसे मिलने के बाद आप उनके प्रशंसक हुए बिना

नहीं रह सकते थे। शालीन, शिष्ट, अदब, इज्जत और नफासत से भरा उनकी बात और व्यवहार हिंदी फिल्मों के आम कलाकारों से उन्हें अलग करता था। उन्हें कभी ओछी, हल्की और निंदनीय बातें करते किसी ने नहीं सुना। विनोदप्रिय, मिलनसार और शेर-शायरी के शौकीन फारुख शेख ने अपनी संवाद अदायगी का लहजा कभी नहीं छोड़ा। पहली फिल्म  गर्म हवा के सिकंदर से लेकर आखिरी फिल्म क्लब 60 तक के उनके किरदारों को पलट कर देखें तो एक सहज निरंतरता नजर आती है। अपनी पहली फिल्म गर्म हवा में फारुख को केवल 750 रुपए मिले थे वो भी 15 बरस के बाद। यह उनकी धैर्यता का ही परिचायक था। ऐसे कलाकार केवल दुनिया को अलविदा कह पाते हैं, लेकिन उनकी फिल्में, उनका काम और उनकी शख्सियत उन्हें हमेशा इतिहास के पन्नों में जीवित रखती हैं।

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