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 ओ दूर के मुसाफिर हम को भी साथ ले ले रे.......रफी साहब के गाए इस गीत का सफर कुछ यूं रहा......
आलेख-मंजूषा शर्मा
 महान गायक मोहम्मद रफी साहब की पुण्यतिथि के मौके पर हम आज उनके गाए एक गाने की चर्चा कर रहे हैं।  गाने का मुखड़ा है- ओ दूर के मुसाफिर, हम को भी साथ ले ले रे,  हम को भी साथ ले ले, हम रह गए अकेले। यह गाना फिल्म उडऩ खटोला में शामिल किया गया था। इसे सुरों से संवारा था नौशाद साहब ने और लिखा शकील बदायूनीं साहब ने । 
मोहम्मद रफी शुरुआत से ही नौशाद साहब के फेवरेट गायक थे। एक प्रकार से मोहम्मद रफी का फिल्मी दुनिया में प्रवेश नौशाद साहब की सिफारिशी चिट्ठी के बदौलत ही हुआ था। 1955 में जब फिल्म उडऩ खटोला के संगीत संयोजन की जिम्मेदारी नौशाद साहब को सौंपी गई, तो उन्होंने रफी और लता मंगेशकर की जोड़ी को लिया। फिल्म में उन्होंने शास्त्रीय रागों पर आधारित कई गाने तैयार किए जिसमें से एक गीत ओ दूर के मुसाफिर भी था, जो राग पहाड़ी पर आधारित है। इस फिल्म का निर्माण सनी आर्ट प्रोडक्शन ने किया था। शास्त्रीय संगीत के सरस रुपांतरण में बढ़ते रिद्म का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से नौशाद की इस फिल्म में नजर आता है।   इस फिल्म में लता के गाए गीत मोरे सैंया जी उतरेंगे पार हो ,.. में राग पीलू के साथ लोकरंग की ताल सुनने को मिलती है।  उडऩ खटोले वाले  राही (लता और साथी) , हमारे दिल से न जाना धोखा न खाना ...गीतों में लता की मीठी लोच भरी आवाज सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती है।  दर्द के लिए भैरव राग के  सुर लेकर नौशाद साहब ने इस फिल्म में -सितारों की महफिल सजी..., गीत तैयार किया और उदासी की गहराई  लेकर -न रो ए दिल, राग भैरवी के साथ -न तूफां से खेलो , न साहिल से खेलो जैसे सहाबहार गीत पेश किए। नौशाद जी अपनी कम्पोजिशन  हमेशा फिल्म की कहानी और सिचुएशन को ध्यान में रखकर बनाते थे। उडऩ खटोला फिल्म के साथ भी उन्होंने ऐसा ही किया। 
पूरे गाने के बोल इस प्रकार हैं....
चले आज तुम जहां से, हुई जिंदगी परायी
तुम्हें मिल गया ठिकाना, हमें मौत भी ना आई।
ओ दूर के मुसाफिर, हम को भी साथ ले ले रे
हम को भी साथ ले ले, हम रह गये अकेले।
तू ने वो दे दिया गम, बेमौत मर गये हम
दिल उठ गया जहां से, ले चल हमें यहां से
किस काम की ये दुनियां, जो जिंदगी से खेले।
 सूनी हैं दिल की राहें, खामोश हैं निगाहें
नाकाम हसरतों का, उठने को हैं जनाज़ा
चारों तरफ लगे हैं, बरबादियों के मेले रे..
हम रह गए अकेले.....।
इस गाने के अंत में रफी साहब के स्वर काफी ऊंचे हो जाते हैं। गाने में साजों का शोर नहीं है बल्कि कोरस की आवाज ही काफी अच्छी लगती है। गाने में दिखाया गया है कि  प्रेमी अपनी प्रेमिका को मौत के मुंह में जाता देखकर दुखी है और अपने अकेले होने के अहसास को वह शब्दों में बयां कर रहा है साथ ही उसकी दुनिया से शिकायत भी है कि- किस काम की ये दुनियां, जो जिंदगी से खेले। इस गाने में दिलीप कुमार और निम्मी दोनों नजर आते हैं। गाने के अंत में निम्मी को पहाड़ी नदी में कूदते दिखाया गया है। 
 इस फिल्म के पूरे गाने शकील साहब ने ही लिखे  थे। उस जमाने में ज्यादातर पूरी फिल्म के गाने लिखने का जिम्मा किसी एक गीतकार को ही दिया जाता था। उसे फिल्म की कहानी बता दी जाती थी और कई बार तो शूटिंग के दौरान सेट पर ही गीतकार को बुलाकर गाने तैयार करवा लिए जाते थे। स्टुडियो में एक तरफ गीतकार गाने लिखते थे और वहीं पर संगीतकार उनकी धुन तैयार कर गायकों से गाने भी गवा लिया करते थे। एक गाने के लिए गायक कलाकार कई बार पूरे दिन स्टुडियो पर रियाज कर किया करते थे। आज के जैसे नहीं कि एक गायक आया और अपना वर्जन गा कर चला गया। बाद में दूसरा आया और अपने हिस्से के बोल गाकर चला गया। बाकी काम कम्प्यूटर पर हो रहा है।  उडऩ खटोला फिल्म में 9 गाने थे और सभी एक से बढ़कर एक। इस फिल्म के गानों में नौशाद ने राग जयजयवंती, पहाड़ी, भैरवी, राग पीलू जैसे शास्त्रीय रागों का बखूबी इस्तेमाल किया।  
नौशाद साहब को राग पहाड़ी काफी पसंद था। उन्होंने मोहम्मद रफ़ी से इस राग पर आधारित कई गीत गवाए। रफी की एकल आवाज़ में  गाया फिल्म दुलारी का गीत - सुहानी रात ढल चुकी न जाने तुम कब आओगे ......इसी राग पर आधारित है। इसी फि़ल्म के एक और गीत -तोड़ दिया दिल मेरा.. के लिए भी नौशाद साहब ने इसी राग पर आधारित बंदिशें तैयार कीं।  यह राग जितना शास्त्रीय है, उससे भी ज़्यादा यह जुड़ा हुआ है पहाड़ों के लोक संगीत से। इसलिए इसमें लोक संगीत की झलक मिलती है। यह पहाड़ों का संगीत है, जिसमें प्रेम, शांति और वेदना के सुर सुनाई देते हैं। राग पहाड़ी पर असंख्य फि़ल्मी गानें बने हैं।  जिनमें से नौशाद के स्वरबद्ध किए  कुछ गीत हैं-
1. आज की रात मेरे दिल की सलामी ले ले (राम और श्याम)
2. दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढ़ूंढ रहा है (सन ऑफ़ इंडिया)
3. दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज की रात (कोहिनूर)
4. जवां है मोहब्बत हसीं है ज़माना (अनमोल घड़ी)
5. कोई प्यार की देखे जादूगरी (कोहिनूर)
6.  तोरा मन बड़ा पापी सांवरिया रे (गंगा जमुना) 
 अब फिल्म उडऩखटोला की कहानी के बारे में । इस फिल्म में दिलीप कुमार के अपोजिट निम्मी थीं। फिल्म को निर्देशित किया था एस. यू. सनी ने । फिल्म में जीवन और टुनटुन भी प्रमुख भूमिकाओं में थे। फिल्म की कहानी कुछ इस प्रकार थी- फिल्म का हीरो काशी यानी दिलीप कुमार एक अभिशप्त विमान से  यात्रा कर रहा होता कि वह  विमान क्रेश हो जाता है और एक नगर के बाहर जा गिरता है । इस नगर में एक रानी का शासन है। जिसकी  देवी का नाम संगा है।  काशी को सोनी नाम की एक लड़की बचाती है और उसे अपने घर ले आती है।  जहां वह अपने पिता और भाई हीरा के साथ रहती है। सड़कें ब्लॉक होने की वजह से काशी अपने घर वापस लौटने में असमर्थ है।  वहां पर रहने के लिए उसे रानी की अनुमति लेना अनिवार्य है। ऐसे में वह  राजरानी से मिलता है, तो देखता है कि वह काफी खूबसूरत है। रानी भी काशी से प्रभावित होती है और उसे अपने महल में रहने और उसके लिए गाने के लिए कहती है।  इस बीच काशी और सोनी एक दूसरे को अपना दिल दे बैठते हैं और वे छिपकर एक दूसरे से मिलते हैं।  सोनी एक लड़के शिबु का भेष धरकर काशी से मिलती है। इधर राजरानी के प्यार को काशी ठुकरा देता है।  फिल्म में राजरानी का रोल अभिनेत्री सूर्या कुमारी ने निभाया था। इस फिल्म का तमिल वर्जन भी बना जिसका नाम था वानारथम। 
 यह फिल्म चली तो एक प्रकार से नौशाद के गानों की वजह से ।   उस समय दिलीप कुमार और निम्मी की जोड़ी भी हिट हुई थी। इस जोड़ी ने आन (1952), दीदार, दाग और अमर  (1954) फिल्म में भी काम किया। इनमें से उडऩखटोला इस जोड़ी की आखिरी फिल्म थी।
 
 
 
 

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