ब्रेकिंग न्यूज़

अब रिश्ते टेक्नोलॉजी से चलते हैं....!
- युग-चेतना-3

-डॉ. कमलेश गोगिया
काफी दिनों बाद श्याम से मुलाकात हुई, जिसे हम लोग रेमटा कहा करते थे। उसे देखते ही 90 का दशक याद आ गया। उसकी स्क्रीन प्रिटिंग की छोटी सी दुकान हुआ करती थी। वह शादियों के कार्ड स्क्रीन प्रिंट करने में माहिर हुआ करता था। दिन-रात व्यस्त रहा करता था। कुछ लोग शादी-कार्ड का संग्रह करने के भी शौकीन हुआ करते थे। कार्ड की रूप-रंगत, कागज की मोटाई, कव्हर और आकार देखकर मेजबान की आर्थिक स्थिति और समारोह की भव्यता का भी अनुमान लगाया जाता। घर-घर जाकर कार्ड दिया जाता था। खास मित्रों, परिचितों और रिश्तेदारों के यहाँ कार्ड के साथ उपहार भी दिया जाता था।
सविनय निवेदन रहता,
’’आपके बिना तो शादी ही नहीं होगी, आपको आना ही होगा भाई साहब!’’
जबाव मिलता-’’हाँ क्यों नहीं, जरूर, कोई काम हमें भी बता दीजिए।’’
इस बहाने मेल-मुलाकात हो जाया करती थी। किसे कौन कार्ड देने जाएगा, यह मुद्दा भी प्रतिष्ठा का प्रश्न हुआ करता था।
’’खुद नहीं आ सकते थे, तुम्हें भेज दिया निमंत्रण देने...!’’
’’असल में पिताजी की तबीयत नासाज़़ है फूफा जी।’’
’’चलो ठीक है, कितने दिन पहले आना है?’’
’’जी...आपका घर है, जब आ जाएँ...!’’
पास-पड़ोस से लेकर दूर-दराज तक कार्ड वितरण बड़ा परिश्रम का काम हुआ करता था। शहर की गलियों से गुजरते हुए पता पूछते हुए जाना हो या गाँव की पगडंडी पार करते हुए रिश्तेदार के घर पहुँचना... इसका भी अपना आनंद था। इस बहाने मेल-मुलाकात हो जाया करती थी। हाल-चाल भी पता चल ही जाता था। पूरे कार्ड बंटने के बाद ही शांति मिलती। उबाऊ-सी लगने वाली इस तरह की फ़िजुल-सी बातों में ’प्रेम’ के छिपे ’भाव’ किसे बताएँ...? सो श्याम की तरफ लौट आया।
अरे, स्क्रिन प्रिटिंग से मोबाइल की दुकान में! कब से श्याम...? मैंने अचरज़ से पूछा।
श्याम ने कहा-’’जब से लोगों ने शादी का ई-कार्ड मोबाइल में भेजना शुरू कर दिया!
अच्छा....तो अब स्क्रिन प्रिटिंग में शादी के कार्ड नहीं छापते ?
कहाँ यार वो दौर गया, अब नई टेक्नोलॉजी से छपते हैं। आकर्षक ग्राफिक्स के साथ पीडीएफ, जेपीजी, एनिमेशन के साथ कार्ड  भेज दिए जाते है। ऑडियो-वीडियो के साथ ई-कार्ड का भी चलन है। खुद ही बना लो एप से और कार्ड भेज दो। आने-जाने की जी-तोड़ मेहनत, कार्ड और छपाई का पैसा, सब कुछ बच गया। मोबाइल और इंटरनेट की टेक्नोलॉजी में कौन भटकता-फिरता है कार्ड बांटने! शादी-ब्याह, जन्मदिन, गृहप्रवेश, नामकरण, वर्षगांठ सबका निमंत्रण चुटकियों में रेडीमेड बनता है। व्हाट्सएएप कर दो और मोबाइल में बता दो। रिश्ते तो टेक्नोलॉजी से चलते हैं दोस्त आज। ऑनलाइन दोस्ती से लेकर विवाह तक।
हाँ, सो तो है...।
घर के एड्रेस और नंबरों के आदान-प्रदान के साथ विदाई ली। उसकी मोबाइल दुकान से विदा होते वक्त ख़्याल आया, अपनी शादी का कार्ड उसने खुद ही स्क्रिीन प्रिंट किया था और घर भी आया था देने। खूब बातें हुई थीं। कुछ दिनों बाद उसने अपनी मैरिज एनिवर्सरी का ई-कार्ड भेजा। समय के साथ वह अपडेट हो गया था। ई-कार्ड स्वीकार करने की विवशता के साथ जवाब में थम्ब्स-अप का इमोजी भेजकर मैं भी। यह विचार संतोष देता रहा कि कम से कम व्हाट्सएप में वर्षगांठ का कार्ड सेंड कर दिया। तेज भागती जिंदगी की आपाधापी में कई लोग .यह भी भूल जाते हैं। दूसरा पहलू यह भी है कि मोबाइल ने हमारे अनेक काम आसान कर दिए हैं जिसकी लंबी फेहरिस्त है। मोबाइल-कल्चर ने कितना बदल दिया है हम सबको। ऐसे में भला हम अमेरिका के महान इंजीनियर मार्टिन कूपर महोदय को कैसे न याद करें जिन्होंने 3 अप्रैल 1973 को मोबाइल का अविष्कार किया था। पूरा आधा युग बीत चुका है इस अविष्कार को। उनके इस अविष्कार ने हमारा पूरा जीवन बदल दिया है।
12 साल पहले की बीबीसी हिन्दी की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र आया है कि तब मोबाइल का वजन पूरा दो किलो था और इसे बनाने में आज की कीमत के हिसाब से खर्च आए थे 10 लाख डॉलर। इस अविष्कार के बादं मोबाइल फोन की अपार सफलता और विश्व की आधी आबादी के पास मोबाइल देखकर वे भी दंग रहे गये थे। अब वे इस बात से परेशान हैं कि लोग बेतहाशा उपयोग कर रहे हैं। जैसा कि देश के नंबर वन अखबार होने का दावा करने वाले प्रतिष्ठित समाचार पत्र में प्रकाशित एक इंटरव्यू में मार्टिन कूपर ने कहा, ’’मैं तो दिन का सिर्फ पाँच प्रतिशत वक्त ही मोबाइल को देता हूँ, समस्या यह है कि लोग जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक है।’’ उनका यह कथन अनेक शोध-पत्रों में समय-समय पर प्रमाणित किया जा चुका है। चाणक्य नीति के चौथे अध्याय में ’अति सर्वत्र वर्जयेत’ की बात कही गई है।
 समस्या सेहत की ही नहीं, रिश्तों की भी है। मोबाइल ने रिश्तों को बनाया भी है, लेकिन बिगाड़ने में भी कोई कमी नहीं की है। मीडिया रिपोर्ट बताती है कि स्मार्ट फोन के अत्याधिक इस्तेमाल से भारत में पति-पत्नी के रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं। मोबाइल के जरूरत से ज्यादा उपयोग के दुष्परिणामों और जोखिम पर अनेक शोध किये जाते रहे हैं। स्मार्ट उपकरण विनिर्माता ’वीवो’ के वर्ष 2022 में किये गए अध्ययन में 67 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि अपने जीवन साथी के साथ समय बिताने के दौरान भी वे अपना मोबाइल देखने में व्यस्त रहते हैं। मोबाइल टेक्नोलॉजी ने रिश्तों को तरह-तरह से प्रभावित किया है। स्मार्टफोन का दीवाना कौन नहीं है। अमेरिका के ऐरन शरवेनक को अपने स्मार्टफोन से इतना प्यार था कि उन्होंने अपने ही स्मार्टफोन से शादी कर ली थी। दमोह में मोबाइल से बात करने को लेकर पति ने अपनी पत्नी की चाकू से नाक काट दी। मोबाइल की वजह से पारिवारिक विवाद के अनगिनत मामले थाने पहुँचते हैं। सिक्के के दो पहलू के अनेक किस्से-कहानियाँ हैं। बात वही है, चाकू से सब्जी और फल भी काटे जाते हैं तो गला भी, मामला सदुपयोग और दुरुपयोग का है। सदुपयोग करने वालों ने भरोसा जीतकर कामयाबी भी हासिल की है और रिश्तों को बनाया भी है।

Related Post

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Chhattisgarh Aaj

Chhattisgarh Aaj News

Today News

Today News Hindi

Latest News India

Today Breaking News Headlines News
the news in hindi
Latest News, Breaking News Today
breaking news in india today live, latest news today, india news, breaking news in india today in english