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 बस ट्रेंड बदला, ठगी तो सदियों से है!   अब "टच" के उलट पूरा खाता "चट"
  डॉ. कमलेश गोगिया 
 कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है। "भारतीय संस्कृति और हिन्दी प्रदेश" के लेखक रामविलास शर्मा ने एक मुद्दे की बात कही है, "जहाँ इतिहास अपने को दोहराता है, वहाँ चक्रगति की धारणा सार्थक होती है।" ब्रह्मांड से लेकर जीवन तक सभी चक्रीय गति का अनुसरण कर रहे हैं, आप और हम भी। यह भी उदाहरण दिया जाता है कि जन्म के बाद विकास, फिर किशोर, युवा, प्रौढ़, बुढ़ापा, बुढ़ापे में फिर बच्चों जैसी हरकतें, अतीत का स्मरण कराते मृत्यु के संकेत और फिर जन्म...। हालाँकि पुनर्वापसी का डिसिजन कर्म के हाथों है। विद्वानों ने कहा है. स्मृति से लेकर शरीर और योनि तक बदल सकती है, लेकिन संस्कार वही रहेंगे, जितने किसी जीवन में सीखकर गए थे। पुन: नया सीखते रहने का दौर फिर शुरू होगा। खैर, इतिहास स्वयं को पूरी तरह ज्यों का त्यों नहीं दोहराता, कुछ समानताएं रहती हैं और इसलिए कहा जाता है कि इतिहास अपने को दोहराता है।
अब ठगी के मामलों को ही देख लें। समय बदलने के साथ तरीके जरूर बदल गये हैं, लेकिन कहानी लगभग सदियों पुरानी है। अनेक प्राचीन ग्रंथों में भी ठगी शब्द का उल्लेख मिलता है। "माया" को महाठगिनी कहा ही गया है।  पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियों में भी ठगी के किस्से-कहानियाँ हैं। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने भी ठगी पर भी कहानी लिखी है। गुरु हरिशंकर परसाई के भी ठगी पर व्यंग्य प्रसिद्ध रहे हैं। इतिहास के पन्नों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौर में भी ठगी के कारनामें हुआ करते थे। 18वीं सदी में ठगों के साम्राज्य का उल्लेख मिलता है।  कहा जाता है कि सन् 1728 में गर्वनर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक का शासनकाल उदारवादी सुधारों का काल था। उन्होंने उत्तर तथा मध्य भारत में ठगों का दमन कराया था। ठगों की अपनी सांकेतिक भाषा और प्रशिक्षण केंद्र थे। ये मार्ग में यात्रियों को धोखे से या मारकर धन लूटते थे। भारत के प्रसिद्ध ठग नटवरलाल की ठगी के किस्से भी मशहूर रहे हैं। ठगी के किस्सों से प्रेरित फिल्म "बंटी और बबली" अधिकांशत: ने देखी ही है। 'फिलिप मेडोव टेलरÓ का 1839 में लिखा 'कन्फेशंस ऑफ ए ठग" प्रसिद्ध उपन्यास रहा है। यह 19वीं सदी में ब्रिटेन में खूब बिका। इस पर आमिर खान और अमिताभ बच्चन अभिनित फिल्म "ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान" बनी थी।
 वैसे ठग पूरे विश्व में रहे हैं। इटली का चाल्र्स पोंजी दुनियाभर के निवेशकों को 45 दिनों में रकम डेढ़ गुनी और 90 दिन में दोगुनी का झांसा देता था। माना जाता है कि इन्हीं कारणों से इनवेस्ट स्कीम को "पोंजी स्कीम" कहा जाने लगा। चिटफंड  कंपनी का उदाहरण प्रत्यक्ष है जिसके शिकार आज भी हर वर्ग के लोग हुआ करते हैं। चाल्र्स शोभराज विख्यात रहे हैं। जॉर्ज सी पार्कर ने अमेरिका की प्रसिद्ध इमारतों और चौराहों तक को बेच दिया था। अनेक भाषाओं के ज्ञाता विक्टर ने फ्रांस के विश्व प्रसिद्ध एफिल टॉवर को बेचा था। बैंकों को भी लोन लेकर ठगा जाता रहा है। 
ठगी के कारनामें तब भी थे जब संचार के माध्यमों ने उतना विकास नहीं किया था और न तो ग्लोबल विलेज की कोई धारणा थी। मोबाइल और इंटरनेट की सेवा के रूप में दुनिया मु_ी में भी नहीं थी। लेकिन ठगी के करानामें जरूर थे जो आज तक अबाध गति से चले आ रहे हैं। कह सकते हैं चक्रगति की तरह। बल्कि डिजिटल युग की ऑनलाइन जिंदगी में तो साल के पूरे 365 दिन सायबर ठगी हो रही है। ठगी के सच्चे किस्से तो आज भी देखने को मिल रहे है, बस ट्रेंड बदल गया है। लोग ऑफलाइन थे तो ऑफलाइन ठगी थी, लोग ऑनलाइन हुए तो ऑनलाइन ठगी। सिर्फ गूगल में ही सायबर ठगी लिख दीजिए, 6 लाख 35 हजार परिणाम निकल आएंगे। कोई लोभ में ठगा जा रहा है तो कोई पुरस्कार के लालच में, कोई अज्ञानता में ठगा जा रहा तो कोई ज्यादा ज्ञान और जीवन की आपाधापी में।
सायबर ठगी का जाल हर तरफ बिछा हुआ है, एक जाल से निकले तो दूसरा नया जाल...जीवन शैली बदली तो ठगी का ट्रैंड भी बदला। अब "फिशिंग लिंक" का नया तरीका चल रहा है। किसी भी अनजान लिंक पर क्लिक किया तो बैंक से पूरे पैसे गायब। टच स्क्रीन के दौर में इंसान के विचार उंगलियों में हैं, मुँह से शब्द नहीं निकलते, हममें से अधिकांशत: एक कोने में बैठकर सिर झुकाए मौन होकर मोबाइल में नजरे गड़ाए रहते हैं, लिंक पर क्लिक करते ही जब ठगे जाने का अहसास होता है तो लुट जाने की चीख के साथ मौनव्रत टूटता है, ''हे राम! मैं लुट गया...!" बदलते ट्रेंड के साथ सायबर ठगी भी हाईटेक हो गई है।
बैंक से कॉल आया, ÓÓआपने क्रेडिट कार्ड तो रिसीव कर लिया है, लेकिन एक्टिवेट नहीं कराया है, अभी एक्टिवेट कराएं। पूरे अधिकार से बात की गई, ठीक बैंक के अधिकारियों की तरह। बैंकों में कामकाज के दौरान होने वाली ध्वनि का वातावरण भी क्रिएट था। ओटीपी भेजी गई, एक बार नहीं कई बार, इससे पहले की ओटीपी बताई जाती, क्रेडिट कार्ड से पहले 9 हजार 999 और फिर 49 हजार, 999 मसनल 60 हजार रुपए उधार लेने का संदेश आ गया। फोन में बात करते-करते बिना ओटीपी बताए क्रेडिट कार्ड से पैसे निकाल लिए गए। एटीएम ब्लॉक करवाया गया, बैंक से एटीएम ब्लॉक कराकर सायबर सेल में शिकायत की गई। 10 हजार तो वापस लौट आए, लेकिन 50 हजार नहीं। बैंक की वसूली का संदेश आज तक उपभोक्ता को आता है। यह बात समझ में नहीं आई कि सायबर ठगों को यह कैसे पता चलता है कि किसने क्रेडिट कार्ड रिसीव कर एक्टिवेट कराया है और किसने नहीं?  जैसे कि ठग ही बैंक अधिकारी बनकर क्रेडिट कार्ड बनवाते हैं। क्रेडिट कार्ड की धोखाधड़ी के इस तरीके में सारा रहस्य है शायद। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि वह अज्ञानी उपभोक्ता मैं ही था। तब मेरा भी मौनव्रत टूटा था, लेकिन मैं काम की आपाधापी में व्यस्त था। समय के साथ अब यह सोचकर कुंठा नहीं होती कि अच्छे-अच्छे लोगों को ठगा गया है, पुलिस के बड़े अधिकारियों से लेकर बैंकों के प्रबंधकों तक, हमारी क्या औकात है!
मीडिया के हवाले से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि वर्ष 2019 में सिटीजन फाइनेंशियल साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम की स्थापना के बाद से अब तक सायबर अपराध की छह लाख शिकायतें दर्ज हुई हैं। नेशनल क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट में सर्वाधिक सायबर अपराध धोखाधड़ी से संबंधित हैं। डिजिटल लेनदेन में वृद्धि से डिजिटल ठगी में भी वृद्धि हो रही है। बीते एक साल में लाखों शिकायतें हैं। हर बार तरीके बदल रहे हैं। नोएडा में घर बैठे फिल्मों की रेटिंग देकर पैसे कमाने का लालच देकर एक महिला से 12 लाख रुपए ठग लिए गये। लिंक भेजकर टच करने कहा गया और टच करते ही पूरा खाता "टच" के विपरित "चट" हो गया। बैंक अधिकारी बनकर ठगने के अनेक किस्से हैं। एक शख्स से बिजली बिल न पटाने और बिजली काटने का मैसेज भेजकर 12 लाख रुपए ठग लिए गये। वर्क फ्रॉम होम के जरिए ठगी के अनेक मामले हैं। अश्लील व्हाट्सएप कॉल के जाल में भी लोग फँसकर ठगी का शिकार होते रहे हैं। सायबर ठगी को रोकने के प्रयास भी हो रहे हैं। पुलिस लोगों को जागरुक कर भी रही है। समय-समय पर अभियान भी चलाए जा रहे हैं, लेकिन हर बार ठगी के नए तरीके भी इजाद हो रहे हैं। जितनी ज्यादा सहुलियतें उतनी ज्यादा मुफ्त की दिक्ततें भी हैं। फिर इतिहास में दर्ज है कि ठगों ने तत्कालीन राजा और प्रजा, सभी की नाक में दम कर रखा था। ठगों पर शिकंजा उस दौर में भी कसा जाता था। आज भी वही कहानी है, सायबर वल्र्ड में सायबर ठगों ने राज्यों से लेकर केंद्र सरकार को भी चुनौतियां दी हैं। केंद्र सरकार ने भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र की स्थापना की है और देश के सभी राज्यों से प्रदेश स्तर पर क्षेत्रीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र स्थापित करने का अनुरोध किया है।
अनेक मामले तो लालच से भी जुड़े हुए हैं। संत शिरोमणी कबीर दास जी का यह दोहा आज भी प्रासंगिक प्रतीत होता है,
 माखी गुड़ में गड़ी रही, पंख रही लपटाय।
हाथ मलै और सिर धुनै, लालच बुरी बलाय।।
मक्खी गुड़ के लालच में फँसकर पंख फडफ़ड़ाती रह जाती है, पर मुक्त नहीं हो पाती। लालच बुरी बला है। यह उन पर फिट होता है जो लालच में आकर सायबर जाल में फँस जाते हैं। कबीर दास ने ठगों के लिए भी कहा है,
कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोय
आप ठगा सुख होत है और ठगे दु:ख होय
कबीर दास सरल शब्दों में समझाते हैं, यदि हम ठगे जाएं तो कोई बात नहीं है, इस बात का भय नहीं रहता कि आपने कोई अपराध किया है। वैसे भी प्रार्थी को भय नहीं रहता। दूसरों को ठगने का प्रयास मत करो। दूसरों को ठगने वाले दुखी जरूर रहते हैं। हर वक्त पकड़े जाने का डर अमन-चैन से रहने कहां देता है। हृदय में सदैव शूल की तरह चुभता है और जीवन हमेशा  विचलित रहता है। फिर एक न एक दिन पकड़े ही जाते हैं, तब सिवाए दण्ड और दुख के कुछ नहीं रह जाता। ठगी करके अमीर बनने वाले सुखी जरूर दिखते हैं, लेकिन रोग, शोक और संताप उन्हें हमेशा दुखी ही करते रहते हैं। इतिहास साक्षी है। ठग सर्वत्र हैं, धर्म, कला, संस्कृति, साहित्य, राजनीति, व्यवसाय, शिक्षा...कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा। जरूरत है समय के साथ जागरुक होकर बदलने या कहें अपडेट होने की, क्योंकि हम बदलेंगे तो ही युग बदलेगा।

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