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जोश, जज्बे और जुनून से सजाया बस्तर का खेल जगत

असिस्टेंट डायरेक्टर स्पोर्ट्स राजेंद्र डेकाटे की कहानी
सर्वोदयी पत्रकारिता यानी सेवाभाव से प्रेरित पत्रकारिता की दिशा में एक और कदम उठाते हुए छत्तीसगढ़ आज डॉट कॉम "नई सोच" नामक विशेष वेब पृष्ठ के माध्यम से एक नई शुरुआत कर रहा है। यह स्थानीय से लेकर प्रदेश, देश और विदेश तक की शख्सियतों के जीवन-कर्म के उन सकारात्मक पहलुओं को सामने लाने का एक प्रयास है जिन्होंने जीवन में तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए एक मिसाल कायम की। शुरुआत करते हैं खेल एवं युवा कल्याण विभाग के सहायक संचालक राजेंद्र डेकाटे की कहानी से जिन्होंने बीते तीन साल में बस्तर के खेल जगत की तस्वीर बदलने में अहम भूमिका निभाई।


“तबादले को प्रायः लोग सजा मानते हैं, शुरू-शुरू में मुझे भी यही लगता था। इसकी वजह थी वे परेशानियाँ जो तबादले के बाद प्रायः-प्रायः सभी के साथ होती है। किसी शहर में आप वर्षों तक रहकर अपने परिवार को सेट कर चुके होते हो, बच्चे भी स्कूल से कॉलेज तक पहुँच जाते हैं और पत्नी सहित परिवार के अन्य सभी सदस्य भी उस माहौल में अपने आप को ढाल चुके होते हैं, एकाएक जब तबादला होता है तो घर खाली करने से लेकर परिवार को फिर से दूसरे शहर में सेट करने तक अनेक परेशानियाँ आती हैं। एकल परिवार के साथ यह परेशानियाँ स्वभाविक ही है, लेकिन वास्तव में तबादला तो सरकारी नौकरी का एक अनिवार्य पहलू है जिससे गुजरना ही पड़ता है। मैं कहूँगा कि यह सेवा ही है और यदि आप इसे चुनौति के रूप में स्वीकार कर पूरी ईमानदारी से कर्तव्यनिष्ठ बने रहते हो तो इसमें कोई संदेह नहीं कि परिणाम काफी बेहतर मिलेगा।“


खेल एवं युवा कल्याण विभाग के सहायक संचालक राजेंद्र डेकाटे जब यह बात कहते हैं तो उनके चेहरे पर आत्मविश्वास के भाव उभर आते हैं जिसे हम आम तौर पर अंग्रेजी में कॉन्फिडेंस कहते हैं। 12 अप्रैल की बात है जब प्रदेश के खेल एवं युवा कल्याण मंत्री उमेश पटेल बस्तर प्रवास के दौरान जगदलपुर के इंदिरा प्रियदर्शनी स्टेडियम एवं क्रीडा परिसर की खेल सुविधाओं का जायदा लेने पहुँचे। बस्तर में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की विभिन्न खेलों की बुनियादी अधोसंरचनाओं को देखकर उन्होंने प्रसन्नता के साथ कहा, “काम बोलता है...काम हुआ है“ यह बात दिल को छूने वाली थी, बकौल राजेंद्र डेकाटे, “मुझे मेरे तीन साल के परिश्रम का फल मंत्री जी के यह शब्द सुनकर मिल गया।“
 11 भाइयों से बन गई वॉलीबाल टीम
अविभाजित मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के पैतृक तहसील वारासिवनी में प्राथमिक शिक्षा के दौरान खेल जीवन की शुरुआत हुई। चौथी-पाँचवी तक हॉकी, छठवीं में एथलेटिक्स, सातवीं-आठवीं में वॉलीबाल और  हॉकी  खेलना होता था। स्कूल के दिनों में स्टेट की टीम का भी प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला। मजेदार बात यह है कि हम लोग परिवार में चचेरे भाइयों को मिलाकर कुल 11 भाई थे और हमने वॉलीबाल की टीम  ही बना ली थी और बहुत से मैच जीते  थे।  सन 1987 एवं 88 में कॉलेज के दिनों में सागर विश्वविद्यालय से ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी वॉलीबाल स्पर्धा जयपुर में खेलने का अवसर मिला। 1990 में कनिष्ठ खेल संगठक  के पद पर राजनांदगांव में पहली पोस्टिंग मिली। तब खेल पुलिस विभाग के अंतर्गत हुआ करता था। राजनांगांव में खेल का बेहतर माहोल शुरू से रहा। सभी के सहयोग से ही खेलों का विकास हुआ। यह जिला हॉकी का गढ़ शुरू से रहा है। प्रदेश की पहली अंतरराष्ट्रीय महिला वॉलीबाल खिलाड़ी रेखा पदम राजनांदगांव की ही देन है। मुझे वे दिन याद आते  हैं जब रेखा पदम को चयन ट्रायल के लिए मैं बेंगलूरू लेकर गया था। इंडिया  टीम में सलेक्शन के लिए कड़ा अभ्यास कराया गया था। हमने पुलिस विभाग के साथ परियोजना समन्वयक के रूप में  "शस्त्र से शास्त्र की ओर" नामक साक्षरता अभियान भी चलाया था। सन 1994 से 1995 तक यह पूरे अविभाजित मध्यप्रदेश में अभिनव प्रयास था।
 राजनांदगांव से रायपुर
काफी लम्बा समय लगभग 13 वर्ष राजनांदगांव में बीता। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के बाद वर्ष 2003 में रायपुर में वरिष्ठ खेल अधिकारी के पद पर नियुक्ति हुई। राज्य निर्माण के बाद खेलों का बेहतर माहोल  यहाँ निर्मित  हुआ। तब राज्य  में 16 जिले थे। सबसे ज्यादा 15 विकासखंड  रायपुर  जिले में आते थे। सभी विकासखंडों में महिला खेलों और मैराथन का आयोजन खेल-वातावरण की नींव स्थापित करने का अहम माध्यम बना। नक्सल  प्रभावित विकासखंडों में भी खेलों के सफल  आयोजन हुए। उत्कृष्ट खिलाड़ी, पुरस्कार नियम, खेलवृत्ति, जिला ओलंपिक खेल, क्वींस बेटन रिले, वर्ल्ड हॉकी लीग, 20वां राष्ट्रीय उत्सव, सहित अनेक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजन सफलतापूवर्क कराए गये। हाँ, यह सब कलेक्टर, जिला प्रशासन, खेल संघों और गणमान्य नागरिकों के सहयोग से ही संभव हो सका। वर्ष 2018 तक जीवन के 15 साल रायपुर में बीते। संघर्षों के साथ चुनौतियों के बीच काम करते हुए वरिष्ठ खेल अधिकारी से सहायक  संचालक के पद तक पहुंचा।
अब जगदलपुर में...
जब आपके कार्यों से सभी संतुष्ट हों, एकाएक बिना किसी ठोस वजह के तबादला कर दिया जाए तो यह बात ’सजा’ ही प्रतीत होती है, किस बात की यह नहीं पता! लेकिन, इस अवसर को मैंने कभी निगेटिव नहीं लिया, यह तो हर शासकीय नौकरी का अनिवार्य पहलू ही है। सो इसे भी चुनौति और नए कार्यक्षेत्र के लिए कुछ नया करने का अवसर माना तो विचार आया, क्यों न इस आपदा को अवसर में परिवर्तित कर दें, बस्तर को खेलों की बुनियादी सुविधाओं से ’सजाकर’...! यदि आप अच्छी नियत के साथ एक कदम भी बढ़ाते हैं तो अनेक  कदम और  भी मिलते चले  जाते हैं। सभी का सहयोग मिला। कलेक्टर साहब से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि, उच्च शिक्षा मंत्री श्री उमेश पटेल और मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी का भी।
 दीर्घकालीन खेल परियोजना का पहला पढ़ाव पूरा
मैंने देखा, बस्तर में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कतई कमी नहीं, उन्हें अवसर  भी मिलता है, लेकिन आर्थिक परिस्थितियाँ विवश कर देती हैं। आप ही सोचिए, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं के पूर्व राज्य स्तरीय स्पर्धाओं में हिस्सा लेने के लिए एक खिलाड़ी को बस्तर से रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर आदि शहरों में आने के लिए दो से ढाई हजार रुपए तक का खर्च आता है। एसोसिएशन की भी एक सीमा रहती है। अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए भी खेलों के जो निर्धारित मापदंड हैं, उस पर खरा उतरना जरूरी है। चाहे खेल उपकरण हों या किट, इन्हीं उपकरणों से अभ्यास भी जरूरी है। ऐसे में हम बोलते रह जाते हैं प्रतिभाओं की कमी नहीं लेकिन उन्हें आगे बढ़ाने के लिए दीर्घकालीन खेल योजनाओं की जरूरत है। इसका पहला पढ़ाव हमने पूरा कर लिया है बुनियादी अधोसंरचनाओं का विकास कर।
 इंदिरा प्रियदर्शनी स्टेडियम की बदल गई तस्वीर...
नई सोच के लिए श्री डेकाटे से साक्षात्कार के दौरान मुझे याद आया कि पहली बार मैं 20 साल पहले वर्ष 2003 में जगदलपुर में आयोजित हुए राष्ट्रीय महिला खेल उत्सव के दौरान उनसे मिला था। यह राज्य का पहला राष्ट्रीय महिला खेलों का आयोजन था जिसका कव्हरेज मैंने दैनिक भास्कर के खेल पत्रकार के रूप में किया था। तब यह मिट्टी का मैदान हुआ करता था और वे सारी सुविधाएँ नहीं थी जो खेलों के मापदंडों पर खरी उतरें। बावजूद इसके खेलों के सफल आयोजन हुए और बस्तर में इस उत्सव ने इतिहास रच दिया था। बिना किसी नक्सल घटनाओं के... आज इस स्टेडियम की तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। 15 साल की दीर्घकालीन खेल योजना बनाई गई। पहले चार साल का लक्ष्य निर्धारित किया गया जिसे तीन साल में ही वर्ष 2023 में हासिल कर लिया गया है। श्री डेकाटे के मुताबिक, अब अगला लक्ष्य होगा आने वाले दस वर्षों के भीतर किस तरह खिलाड़ियों को बेहतर प्रशिक्षण, डाइट, मनोविशेषज्ञ, प्रशिक्षक, फिजियो, वीडियो एनालिसिस, रिसर्च आदि की श्रेष्ठ सुुविधाएं मुहैया कराई जाएं जिससे वे पदक हासिल कर बस्तर, राज्य और देश का नाम राष्ट्रीय-अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन कर सकें। यहां फुटबाल, तीरंदाजी, एथलेटिक्स हॉकी और पॉवर गेम में काफी संभावनाएं हैं।


 ऐसी सुविधाएँ रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर में भी नहीं
खेलों की बुनियादी अधोसंचनाओं के मामले में जगदलपुर के इंदिरा प्रियदर्शनी स्टेडियम के साथ ही धरमपुरा और पंडरीपानी ने रायपुर, दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर को पीछे छोड़ दिया है। कभी इन्हीं शहरों तक खेलों की सुविधाएँ केंद्रित हुआ करती थीं। जोश, जज्बा और जुनून हो तो तीन साल में ही तस्वीर बदली जा सकती है, जैसा कि राजेंद्र डेकाटे बताते हैं। ये सुविधाएँ हैं-
 क्रीड़ा परिसर धरमपुरा
1. वर्ल्ड एथलेटिक्स फेडरेशन से मान्य 400 मीटर सिंथेटिक ट्रेक एंड फील्ड विथ 200 मीटर वार्मअप ट्रैक। यह सुविधा अन्य जिलों में नहीं।
2. 130 मीटर लंबी और 50 मीटर चौड़ी आरचरी रेंज जिसमें एक साथ 50 खिलाड़ी अभ्यास कर सकते हैं। यह सुविधा भी अन्य जिलों में नहीं।
3. इनडोर में भी आरचरी की सुविधा।
4. प्रशासनिक भवन में प्रशिक्षकों, खिलाड़ियों के लिए कमरे, टेक्नीकल रूम, स्टोर रूम, कोचेस रूम, की व्यवस्था।
5. मल्टीपरपस हॉल 60 मीटर लंबा, 40 मीटर चौड़ा और 15 मीटर ऊंचा ।
 हॉकी प्रशिक्षण केंद्र पंडरीपानी
1. भारत सरकार की खेलो इंडिया योजना के तहत लघु खेल केंद्र घोषित।
2. हॉकी का चट ग्राउंड निर्माणाधीन।
3. एस्ट्रो टर्फ का प्रस्ताव भारत सरकार को प्रेषित जिसके वर्ष 2023 में स्वीकृति की संभावना।
4. 100 सीटर हॉस्टल तैयार।
 इंदिरा प्रियदर्शनी स्टेडियम जगदलपुर
1. पूर्व में बने मड के एथलेटिक्स ट्रेक और फुटबाल मैदान का उन्नयन।
2. फीफा के मापदंडों के अनुसार फुटबाल ग्राउंड सिंथेटिक रनिंग ट्रैक (400 मीटर) का निर्माण।
3. पीपी टाइल बास्केटबाल कोर्ट।
4. नाइन लेयर रबर कोटेड अत्याधुनिक टर्फ टेनिस दो कोर्ट
5. हैंडबाल ग्राउंड
6. वॉलीबाल ग्राउंड
7. 175 फिट लंबा और 50 फिट चौड़ा अत्याधुनिक हॉल-रबर कोेटेड हॉल में कबड्डी कबड्डी, कराते, जूडो, बॉक्सिंग की सुविधा उपलब्ध हो सकेगी।
8. पैवेलियन में चार चेंजिंग रूम लैटबाथ अटैच, वीडियो एनालीसिस रूम, मीडिया रूम, रेफरी रूम, मंच और गैलरी।
9. इन खेल मैदानों और सुविधाओं को संबंधित खेलों के एसोसिएशन को सौंप दिया गया है।
10. इन सुविधाओं का लाभ लेने के लिए न्यूनतम शुल्क निर्धारित है, शुरू में जरूर विरोध हुआ था लेकिन व्यवस्थाओं और सुरक्षा को देखते हुए सभी ने सहयोग दिया। अब इसी शुल्क से मेंटेनेंस भी किया जाता है।
 अन्य सुविधाएँ
1. हाता ग्राउंड ग्रासी ग्राउंड में तब्दील विथ फ्लड लाइट
2. सिटी ग्राउंड में फुटबाल का फ्लड लाइट ग्राउंड और वार्मअप ग्राउंड
3. माता रुकमणी सेवा संस्थान, डिमरापाल में महिलाओं के फुटबाल मैदान का निर्माण।
4. तीन सौ एकड़ में दो किलोमीटर लम्बा तालाब जहाँ क्याकिंग एंड कैनोइंग का ट्रेनिंग सेंटर स्थापित  है। प्रतिदिन 30 से 40 खिलाड़ी अभ्यास करते हैं। यहीं से पांच खिलाड़ियों ने राष्ट्रीय स्तर पर हिस्सा लिया। क्याकिंग एंड कोनोइंग अकदमी के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने घोषणा की थी। इन घोषणा पर समय पर अमल हुआ।
5. अभ्यास और प्रतियोगिता के लिए अलग-अलग फ्लड लाइट ग्राउंड, फ्लड लाइट फुटबाल मैदान
 भावी योजना
बुनियादी अधोसंरचनाओं के बाद अगला चरण है टेलेंट सर्च और अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रशिक्षण। इसके लिए जिलाधीश के माध्यम से पीपीपी मॉडल (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) के तहत एनएमडीसी को प्रस्ताव प्रेषित किया गया है। यदि यह प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता है तो निकट भविष्य में बस्तर के खिलाड़ी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश और देश का नाम रोशन करेंगे, इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं।

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