घर की मुर्गी दाल बराबर न समझिए, यह विश्व में हो रही है लोकप्रिय!
- डॉ. कमलेश गोगिया
यह सर्वविदित है कि स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी भाषा ने अपना अमूल्य योगदान दिया है। अतीत के पन्ने इस बात की भी गवाही देते हैं कि तत्कालीन समय में हिन्दी ने पूरे देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोये रखा था। हिन्दी ने राष्ट्रीय एकीकरण में विशेष भूमिका निभाई और निभाती आ रही है, बावजूद इसके कि हिन्दी के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार भी होता रहा। कुछ राज्यों में विरोध के स्वर गूंजते रहे हैं और राजनीतिक सत्ता की सीढ़ी के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता रहा, लेकिन हर चुनौतियों का सामना पूरी तटस्थता के साथ करने वाली भाषा के रूप में हिन्दी अडिग रही। यह विशेषता किसी अन्य भाषा में नहीं है।
बिजनेस स्टेंडर्ड में दिव्य प्रकाश की एक रिपोर्ट के मुताबिक "30 से अधिक देशों के करीब 100 विश्वविद्यालयों में हिंदी अध्यापन केंद्र खुले हैं और सैकड़ों विदेशी स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। विदेशों में हिंदी में ’पुरवाई’ सहित कई पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन और मौलिक लेखन हो रहा है। मॉरीशस, सूरीनाम, फिजी और त्रिनिडाड जैसे देशों में भारतीय मूल के लोगों की अच्छी-खासी संख्या है और इसी वजह से वहां हिंदी के प्रति लोगों में प्रेम हैं। इसके अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड और कई यूरोपीय देशों में भी हिंदी बोलने वालों की कमी नहीं है।"
डॉ. महेशचंद्र गुप्त अपने शोध आलेख में लिखते हैं, "हिन्दी विश्वव्यापी रूप ग्रहण कर रही है। जिन-जिन देशों में मैं गया हूँ वहाँ मुझे प्रायः अंग्रेजी या अन्य कोई भाषा बोलने की जरूरत ही नहीं पड़ी। दुनिया के लोग हिन्दी की स्वाभाविकता, सरलता, सद्भावना और ह्रदयस्पर्शी विश्व मानव की एकता की भावनात्मक संस्कृति से प्रभावित है। आज हिन्दी विश्व भाषा बन गई है। दुनिया के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में इसका अध्ययन-अध्यापन हो रह है। इंग्लैंड के कैंब्रिज, आक्सफोर्ड, लंदन, यार्क विश्वविद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई काफी समय से होती आ रही है।" प्रो. नन्दलाल कल्ला के अऩुसार, "हिन्दी को मात्र राष्ट्रीय भाषा ही नहीं बल्कि उसे वैश्विक भाषा का भी सम्मान प्रदान करें तो अनुचित नहीं होगी। यह कहने में कोई संशय नहीं कि यूरोपीय महाद्वीप से लेकर अमेरिका तक एवं सम्पूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया के सभी देशों में हिन्दी की प्रायोगिक लोकप्रियता निरंतर विस्तारित होती जा रही है।
बीते 47 वर्षों से संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को अधिकारिक भाषा बनाए जाने के प्रयास किये जाते रहे हैं। इस मुहिम की शुरुआत 10 जनवरी 1975 को नागपुर में हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी में ही संबोधन देते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के 75वें सत्र को उन्होंने हिन्दी में संबोधित किया था। अंतराष्ट्रीय मंच में प्रधानमंत्री हिन्दी में ही संबोधन देते रहे हैं। हाल ही में आस्ट्रेलिया दौरे में भी उन्होंने भारतवंशियों को हिन्दी में संबोधित किया था। आज से 45 साल 7 माह 23 दिन पहले भारत रत्न स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने 4 अक्टूबर 1977 को विदेश मंत्री के रूप में संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिन्दी में संबोधित किया था। तब पहली बार हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ में पहुंची थी। यह संयुक्त राष्ट्र महासभा का 32वां सत्र था। वर्ष 2019 की बात ले लीजिए, जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने ट्विटर पर हिंदी में अपना अकाउंट बनाया और हिंदी भाषा में ही पहला ट्वीट किया। पहले ट्वीट में लिखा संदेश पढ़कर हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ ने फेसबुक पर भी हिंदी पेज बनाया है। यह देश के लिए सम्मान और गौरव की बात है।
पिछले वर्ष 10 जून 2022 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भारत के हिंदी भाषा के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। यह दिन हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के लिए एक ऐतिहासिक दिन साबित हुआ। प्रस्ताव में बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए आधिकारिक भाषाओं के अतिरिक्त हिंदी, बांग्ला, उर्दू, पुर्तगाली, स्वाहिली और फारसी को संयुक्त राष्ट्र की सहकारी कामकाज की भाषा के रूप में स्वीकार किया गया। यह संयुक्त राष्ट्र के कामकाज के तरीके में एक बड़े परिवर्तन का संकेत है। संयुक्त राष्ट्र के सभी कामकाज और जरूरी संदेश इन भाषाओं में भी पेश किए जाएंगे। भारत ने इस फैसले कि सराहना की। इसके अलावा अरबी, चीनी, अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश संयुक्त राष्ट्र की 6 आधिकारिक भाषाएं हैं, जिसमें अंग्रेजी और फ्रेंच मुख्य हैं।
हिन्दी की यह भी विशेषता है कि इसने भूमंडलीकरण में भी अहम भूमिका निभाई। डॉ. विनोद सेन के अनुसार, "भूमण्डलीकरण ने हिन्दी के बाज़ार को विकसित किया है।
हिंग्लिश शब्द हिन्दी और इंग्लिश से उत्पन्न हुआ, जो कि भूमण्डलीकरण और बाज़ारवाद की देन है। आज हिन्दी बाज़ार एवं व्यापार की भाषा बन गयी है। हिन्दी की शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारतवर्ष में ही नहीं अपितु दुनिया की कई जगहों पर हिन्दी व्यापार की भाषा बन गयी है। हिन्दी की क्रय-विक्रय की शक्ति को अब बाहर के लोग भी, इस भूमण्डलीकरण के दौर में समझने लगे है। हिन्दी का बाज़ार लगभग 33 राष्ट्रों में फैला है। अंग्रेजी में यह ताकत अभी भी नहीं है।" भारत के इस बड़े बाजार की संभावनाओं के आधार पर ही बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बड़े-बड़े अधिकारी अब हिन्दी सीख रहे हैं।
विश्व में हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका प्रवासी भारतीयों की है जो विश्व के सौ से भी ज्यादा देशों में निवासरत हैं। विश्व के विभिन्न देशों मॉरिशस, दक्षिण अफ्रीका, फिजी, जर्मनी, हंगरी, मलेशिया, ब्रिटेन, अमेरिका, इंग्लैंड, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद (वेस्टइंडिज़) सहित अऩेक देशों में बसे भारतवंशियों ने हिन्दी भाषा और साहित्य को गौरवान्वित किया है।
’हिन्दी का विश्व संदर्भ’ में करुणाशंकर उपाध्याय लिखते हैं, "जो भाषाएं बहुभाषिक कम्प्यूटर, इंटरनेट एवं सूचना प्रोद्योगिकी की एकदम नवीनतम आविष्कृतियों में अपने सम्पूर्ण शब्दकोश, विश्वकोश, व्याकरण, साहित्य तथा ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों की तमाम उपलब्धियों के साथ दर्ज होगी और कम्प्यूटर लाइब्रेरी तथा ई-बुक की दुनिया में अपनी उपस्थिति का गहरा अहसास कराएगी, उनकी प्रगति निर्विवाद है।"
विश्वनाथ सचदेव की नवनीत के सितंबर 2022 की संपादकीय का उल्लेख करना लाजिमी प्रतीत होता है जिसमें उन्होंने लिखा है कि, “आजादी के दौरान हमारे नेताओं ने यह पाया था कि एक मिली-जुली भाषा हमारा एकमात्र निदान है। उन्होंने हिन्दी में इस भाषा को देखा था और यह हिन्दी किसी शब्दकोश की भाषा नहीं थी। गांधीजी ने इसे हिन्दुस्तानी कहा था। इस हिन्दुस्तानी में उर्दू समेत बाकी भारतीय भाषाओं के शब्द भी शामिल थे। यही किसी भाषा की ताकत भी होती है। भारत जैसे बहुधर्मी, बहुभाषी, बहुसंस्कृति वाले देश की राष्ट्रभाषा वही हो सकती है जो सहज ग्राह्य हो। सबको कुछ-कुछ अपनी लगे।
हिन्दी ने तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए पत्रकारों, विद्वानों, साहित्यकारों, स्थानीय से लेकर राज्य, राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, तकनीकी अविष्कार, बॉलीवुड, टेलीविजन धारावहिक, पारंपरिक-आधुनिक संचार माध्यमों, रियेल्टी शो, कलाकारों आदि सभी के सम्मिलित प्रयासों से अपनी वैश्विक पहचान बनाई है। वर्ष 2022 में हिन्दी की लेखिका गींताजलि श्री को ’रेत समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ’टूंब ऑफ सेंड’ के लिए मिले बुकर पुरस्कार से भी हिन्दी ने विश्व में नया मुकाम हासिल किया है। हालांकि सूर, तुलसी, जायसी, मीरा से लेकर, भारतेंदु हरिशचंद्र, प्रेमचंद, निराला, अज्ञेय. मुक्तिबोध, महादेवी वर्मा,. मन्नू भंडारी, कृष्णा सोबती, यशपाल, कमलेश्वर, निर्मल वर्मा, श्रीलाल शुक्ल, काशीनाथ सिंह सहित हिन्दी के अनेक प्रख्यात लेखकों ने विश्वस्तरीय कृतियों की रचना कर हिन्दी को विश्व में शोभायमान किया है।
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