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 ...तो अपनों पर से भरोसा खत्म कर देगा एआई !
  सायबर ठगी का नया स्वरूप, एडवायजरी जरूरी 
एक शख्स ने अपने मित्र को कॉल किया, “हैलो...धीरेंद्र मैं गोपाल, यह मेरा नया नंबर है, सुनो मेरे दामाद का एक्सीडेंट हो गया है मुझे तत्काल पैसों चाहिए ! तुम्हें एक नए नंबर से एकाउंट डिटेल व्हाट्सएप किया है इसमें तुरंत पैसे भेजो मैं कल तुम्हें लौटाता हूँ, अभी अस्पताल में व्यस्त हूँ !”
“हाँ गोपाल नो टेंशन... मैं तुरंत भेज रहा हूँ तुम फोन रखो।’’ फोन रखते ही गोपाल ने व्हाट्सएप किये गये एकाउंट नंबर में पैसे भेज दिये।
हेमलता को नए नंबर से काल आया, ‘’हाँ मैं बोल रहा हूँ, मेरा मोबाइल बंद हो गया है! सुनो, तुम्हें एक लिंक भेजा है उसे तुरंत टच करो और एक ओटीपी आया होगा, उसे बताना जरा, अर्जेंट है।’’
‘’हाँ जी…’’ कहते हुए हेमलता ने पति के आदेशों का तुरंत पालन किया।
अगले दिन धीरेंद्र और हेमलता को पता चला कि वे सायबर ठगी का  शिकार हुए हैं।  धीरेंद्र के होश यह सोचकर फ़ाख्ता हो गये थे कि आवाज़ तो उसके परम मित्र की ही थी। हेमलता भी यही सोचकर परेशान थी कि वह अपने पति की आवाज को पहचानने की भूल कैसे कर गई। उसका पूरा एकाउंट खाली हो गया था। यह दोनों घटनाएँ और पात्र काल्पनिक हैं, लेकिन वॉयस कॉल फ्रॉड की इस तरह की अनेक घटनाएँ हो रही हैं। हाल ही में घटित इस तरह की घटनाओं को लेकर यूपी सायबर क्राइम ने एडवायजरी जारी की है और इस तरह की घटनाओं की गंभीरता से जाँच भी कर रही है।
यह सारा खेल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई (कृतिम बुद्धि) का है। एआई का नकारात्मक पहलू यह है कि इसका इस्तेमाल सायबर ठगी के रूप में किया जा रहा है। एआई के पहले तक सायबर क्राइम ठगी के मामलों में सोशल मीडिया पर फर्जी प्रोफाइल, अनजान लिंक, ओटीपी, लोन देने के नाम पर लुभावने प्रलोभन और क्रेडिट कार्ड एक्टिवेटशन जैसे अनेक तरीके शामिल थे। सायबर ठग अब एआई की सहायता से दोस्तों, रिश्तेदारों के आवाज की हुबहू नकल कर पैसे मांगने लगे हैं। एआई के वॉयस क्लोनिंग टूल का दुरुपयोग सिर्फ ठगी ही नहीं, अपितु अनेक तरह की गंभीर अपराधिक घटनाओं को भी अंजाम दे सकता है जिस पर सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। वॉयस क्लोनिंग टूल का गलत इस्तेमाल अपनों पर से भरोसा खत्म कर सकता है और वास्तव में जरूरत पड़ने पर अपनों की मदद भी नहीं की जा सकेगी। पंचतंत्र की प्रसिद्ध झूठे गड़रिये की कहानी चरितार्थ होने लगे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रतिदिन भेड़ों को चराने वाला गाँव का गड़रिया मजाक में भेड़िया आया...भेड़िया आया...चिल्लाता था और गाँव वाले उसे भेड़ों को बचाने पहाड़ी की तरफ दौड़ पड़ते थे। वह बार-बार झूठ बोलकर मजे लेता था। एक दिन सही में भेड़िया आया तो उसे बचाने कोई नहीं आया। स्वाभाविक रूप से वॉयस क्लोनिंग टूल के गलत इस्तेमाल की घटनाएँ लोगों पर से अपनों की किसी भी   बात का भरोसा करना छोड़ सकती हैं। जिन्हें तत्काल सहायता की जरूरत होगी, उन्हें एआई का धोखा समझकर दरकिनार किया जा सकता है। वॉयस मैसेज पर भरोसा करना खतरनाक साबित होने जा रहा है।
ठगी के इस तरह के मामलों को लेकर सुर्खियों में अनेक खबरें हैं। अमर उजाला ने यूपी में वॉयस क्लोनिंग से संबंधित ठगी की घटित घटनाओं के आधार पर प्रकाशित रिपोर्ट में बताया है कि वॉयस क्लोनिंग टूल लोगों की आवाज इतने सलीके से नकल करता है कि लोगों के लिए अपनी व टूल की आवाज में अंतर करना संभव नहीं हो पाता। साइबर क्रिमिनल सबसे पहले किसी शख्स को ठगी के लिए चुनते हैं। इसके बाद उसकी सोशल मीडिया प्रोफाइल को सर्च करते हैं और उसके किसी ऑडियो व वीडियो को अपने पास रख लेते हैं। इसके बाद एआई के वॉयस क्लोनिंग टूल की मदद से उसकी आवाज क्लोन करते हैं। फिर उनके परिचित को कोई भी इमरजेंसी स्थिति बताकर ठगी करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, साइबर क्रिमिनल फेसबुक, इंस्टाग्राम या यूट्यूब पर सर्च कर किसी भी आवाज का सैंपल ले लेते हैं। इसके बाद वॉयस क्लोन कर उनके परिचित या फिर रिश्तेदारों को फोन किया जाता है। आवाज की क्लोनिंग ऐसी होती है कि पति-पत्नी, पिता पुत्र तक आवाज नहीं पहचान पा रहे हैं। वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट में कनाडा की एक घटना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। एक वृद्ध दम्पति को को उसके पोते ने फोन कर कहा कि वह जेल में है और उसे बेल के लिए पैसों की जरूरत है। वृद्ध दम्पति ने 18 लाख रुपए भेज दिये। बाद में दूसरे बैंक से और पैसे निकालने पर बैंक मैनेजर ने उन्हें सावधान किया। मामले का खुलासा हुआ तो पता चला कि पोते का वीडियो यूट्यूब पर मौजूद है और वॉयस क्लोनिंग टूल से उसकी आवाज की नकल कर ठगी को अंजाम दिया गया।
यह बात भी हैरान करती है कि इंटरनेट में वॉयस क्लोनिंग टूल की सुविधाएँ उपलब्ध कराने वाली अनगिनत वेबसाइट्स हैं जिस पर कोई नियंत्रण नहीं है। यह तो सिर्फ वॉयस क्लोनिंग टूल की बात है, एआई लोगों के डिजिटल क्लोन बनाकर उनके जैसी ही नकल करने में भी सक्षम हैं। हालीवुड के कलाकार भी इस बात से खासे परेशान हैं। लोगों के डिजिटल क्लोन बनाकर सिर्फ ठगी ही नहीं, अनेक तरह के अपराध करने का अनुमान सहज रूप से लगाया जा सकता है। बीते दिनों केरल के तिरुवनंतपुरम में एआई का सहारा लेकर सायबर ठगों ने एक व्यक्ति को व्हाट्सएप वीडियो कॉल कर उसका पुराना दोस्त बताया और 40 हजार रुपए की धोखाधड़ी की। रायटर्स की खबर के अनुसार, चीन में एक ठग ने फेस स्वैपिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर एक व्यक्ति से 5 करोड़ रुपए ठग लिये। इस मामले में डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल किया गया। डीपफेक का अर्थ है फेक डिजिटल तस्वीर और वीडियो जो दिखने में पूरी तरह असली लगते हैं। इसके माध्यम से गलत सूचनाओं को वायरल करने का भी खतरा है।
एआई के फायदे गिनाये जा रहे हैं तो दूसरी तरफ इसके नुकसान पहले देखने को मिल रहे हैं। 'एआई- ठगी' के बढ़ते मामले ज्यादा सावधानी रखने का संकेत दे रहे हैं। आडियो-वीडियो के माध्यम से पैसों का सहयोग मांगने वाले तथाकथित अपनों पर भरोसा करने से पहले सतर्क रहने की विवशता ही सजगता मानी जा रही है। विशेषज्ञों की मानें तो देश के हर राज्यों को एआई आधारित सायबर अपराधों के संबंध में एडवायजरी जारी करने से लेकर जागरुकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। किसी भी अनजान व्यक्ति की बात पर भरोसा न करने, अपनी निजी जानकारी, बैंक डिटेल्स, आईडी प्रूफ व अन्य दस्तावेज, ओटीपी आदि कभी भी फोन कॉल या ऑनलाइन किसी के साथ शेयर न करना, हर एकाउंट का अलग-अलग मजबूत पासवर्ड रखना ही समय की मांग है। 
 उर्दू साहित्यिक वेब पोर्टल रेख्ता पर अज़हर फ़राग़ का एक शेर है -
 
 ''दीवारें छोटी होती थीं लेकिन पर्दा होता था 
 तालों की ईजाद से पहले सिर्फ़ भरोसा होता था।''

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