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 उरूजे कामयाबी पर अपना बाग़बाँ हिन्दोस्ताँ...
बीते 76 वर्षों से आजाद भारत के खुले गगन में कितनी आसानी से हम अमन-चैन की साँसें ले रहे हैं, लेकिन इस आजादी की बहुत बड़ी कीमत हमारे पूर्वजों ने चुकाई है!  हमें आसानी से नहीं मिली  है यह आजादी! वृहद इतिहास है आजादी की गाथाओं का, जिसकी अनुगूँज देश के कोने-कोने की मिट्टी में समाई है! निःसंदेह इनमें अनगिनित वे वीर सपूत भी होंगे जो गुमनाम हो गए। जलियांवाला बाग की घटना की कहानी आज भी रोंगटे खड़े कर देती है। इस तरह की अनेक घटनाएँ हैं। कितनी नृशंस हत्याएँ अंग्रेजों ने की…! कितने जुल्म हमारे पूर्वजों ने सहन किए…! आज तरक्की के जिस मुकाम पर स्वतंत्र भारत खड़ा है, उसमें हमारे वीर जवानों की शहादत के योगदान को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। इस समय भी देश की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर करने को तैयार खड़ा हर एक फौजी और उनका परिवार अहम योगदान दे रहा है।
स्वतंत्रता दिवस और आजादी के अमृत महोत्सव के समापन के मौके पर देश के क्रांतिकारी लोकप्रिय शायर और महान कवि जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ की लिखी प्रसिद्ध गजल की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-
 शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले 
 उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा 
 रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा 
 चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को 
 बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा
यह पंक्तियाँ आजादी के 31 साल पहले लिखी गईं थीं। आजादी के 76 साल  हो चुके हैं और यह 77वां स्वतंत्रता दिवस है। देशवासियों के मन में देशप्रेम की अखण्ड ज्योति प्रज्वलित करने वाली उपर्युक्त पंक्तियाँ अटल देशभक्ति, बरसों पहले देखे गए स्वतंत्र भारत के साकार होते स्वप्न और मिश्र जी की दूरदर्शिता का प्रत्यक्ष प्रमाण है। इतिहास के पन्नों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि सन 1916 में प्रकाशित ‘अमेरिका को स्वतंत्रता कैसे मिली’ नामक पुस्तक में हितैषी जी की उपर्युक्त गज़ल छपी थी। कहीं-कहीं यह भी उल्लेख मिलता है कि शुरुआत की पंक्ति में ‘’शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे मेले’’ की जगह ‘’शहीदों मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले’’ लिखा गया है। खैर, ‘’वतन पर मरने वालों का यही बाकी होगा...’’ इन दो पंक्तियों ने उस समय पूरे देश में क्रांतिकारी आंदोलन को गति प्रदान की थी। ये पंक्तियाँ जन-जन की जुबाँ पर बस गईं थीं। कहा जाता है कि जब किसी शहीद को फाँसी लगती थी तो भी यह पंक्ति गाई जाती थी। आज स्वतंत्र भारत में भी यह जन-जन की जुबां पर मौजूद है। वास्वत में उनकी गज़ल आजादी के बाद से लेकर आज डिजिटल युग तक में भी प्रासिंगक प्रतीत होती हैं। शहीदों की चिताओं पर हर बरस मेले जुड़ते रहे हों या नहीं, यह शोध का विषय हो सकता है, लेकिन सबसे बड़ा मेला जुड़ा आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में जिसे विश्व का सबसे बड़ा और सबसे लम्बे दिनों तक चलने वाला महोत्सव कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। आजादी की 75वीं वर्षगांठ से 75 सप्ताह पहले 12 मार्च 2021 को अधिकारिक रूप से आजादी के अमृत महोत्सव की शुरुआत हुई थी और 15 अगस्त 2023 को ‘मेरी माटी मेरा देश’ अभियान के अंतर्गत देश के कोने-कोने से लाई गई मिट्टी से स्थापित अमर वाटिका की स्थापना के साथ समापन। 
2 साल 4 माह 230 दिन तक यह उत्सव विभिन्न रचनात्मक गतिविधियों, गुमनाम शहीदों की दास्तां को सामने लाने और देश के लिए जान की बाजी लगाने वाले वीर सपूतों की कहानियों को युवा पीढ़ी से अवगत कराने के साथ मनाया गया। इस दौरान शहीदों की याद में हर दिन मेले जुड़े और सिर्फ भारत ही नहीं, विश्व के अनेक देशों में भी, जहाँ बसे प्रवासी भारतीयों ने आजादी का अमृत महोत्सव मनाया। इस महोत्सव के अंतर्गत देश और विदेश में अनेक नए-नए विश्व रिकार्ड स्थापित हुए।
बीते वर्ष 2022 के अगस्त माह में प्रवासी भारतीयों ने न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वॉयर पर इडिया डे परेड में कीर्तिमान रच दिया। फेडरेशन ऑफ इंडियन एसोसिएशन (FIA) ने न्यूयॉर्क में भारतीय डायस्पोरा की मेजबानी में आयोजित वार्षिक इंडिया डे परेड में दो गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाए। पहला, एक ही समय में सबसे अधिक तिरंगा फहराने का और दूसरा संगीत वाद्ययंत्र में बड़ी संख्या में डमरू और ड्रम के इस्तेमाल के लिए। डेढ़ लाख लोगों की भागीदारी के बीच इस आयोजन ने अमेरिका में भारत को गौरवान्वित कर दिया। देश में भी इस तरह के अनेक विश्व रिकार्ड बने जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी देशभक्ति की भावना को चिरस्थाई बनाए रखने और शहीदों के बलिदान को अविस्मरणीय बनाए रखने का अहम माध्यम रहे।
भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की “पुनः चमकेगा दिनकर” नामक कविता की प्रासंगिक पंक्ति है -
 चीर निशा का वक्ष 
 पुनः चमकेगा दिनकर
अपना बागबाँ जब सैयाद के हाथों रिहा हुआ तो बागबाँ में बहार आने लगी। वतर्मान परिप्रेक्ष्य में विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश भारत विश्व की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत वर्तमान में विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। वर्ष 2013-14 में ग्यारवां स्थान था। हमारा देश विश्व पटल पर एक नये भारत के रूप में उभर रहा है। कोरोना महामारी काल में भारत ने विश्व के सौ से भी ज्यादा देशों की हरसम्भव सहायता कर पूरी दुनिया को प्रमाणित कर दिखाया कि वह पूरे विश्व को एक परिवार मानता है।
भारत को जी-20 की अध्यक्षता का सम्मान मिलना हर देशवासी के लिए गौरव की बात है, क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियाँ जी-20 की सदस्य हैं। वैश्विक जीडीपी में जी-20 का हिस्सा करीब 85 प्रतिशत है और वैश्विक व्यापार में इस समूह का योगदान 75 फीसदी से भी ज्यादा है। शिखर सम्मेलन में दुनिया के तमाम विकसित देशों के राष्ट्र प्रमुख एक साथ जुटते हैं। भारत की जी-20 की अध्यक्षता का सार "वसुधैव कुटुंबकम" अर्थात "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" की थीम में सन्निहित है। भारत को दुनिया को एक साथ लाने का यह अवसर मिलना जगदम्बा प्रसाद मिश्र की लिखी कविता की इस एक पंक्ति को भी सार्थक बनाती है- “बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा।“
भारत आज वर्ल्ड बैंक के लॉजिस्टिक परफॉर्मेंस इंडेक्स में 16वें स्थान पर है। वर्ष 2014 में 54वां स्थान था। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनिया की दृष्टि आज भारत पर है, फिर वह चंद्रयान-3 का ही मिशन क्यों न हो। संयुक्त राष्ट्र संघ के कामकाज और जरूरी संदेश आज हिन्दी में भी जारी किये जाते हैं। पूरे विश्व में प्रवासी भारतीयों की आबादी सबसे ज्यादा है। विश्व में राजभाषा हिन्दी का अपना विशेष महत्व है। विश्व के सौ से भी ज्यादा देश के स्कूलों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा का अध्ययन-अध्यापन कराया जाता है।
दुनिया की अऩेक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में मुख्य कार्यकारी अधिकारी से लेकर अनेक देशों के कानून और अर्थव्यवस्था में निर्णय लेने वाली संस्थाओं का प्रमुख हिस्सा बनने में भारतीयों की भूमिका अहम रही है। गूगल और अल्फाबेट के सीईओ भारतीय मूल के अमेरिकी व्यवसायी पद्मभूषण सुंदर पिचई, दुनिया के सबसे लोकप्रिय वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म यूट्यूब के सीईओ भारतीय मूल के नील मोहन, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नाडेला सहित अनेक महान शख्सियतें इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मार्टिन वूल्फ ‘द फाइनैशल टाइम्स’ में लिखे अपने लेख में लिखते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में तेजी से एक बड़ी ताकत बनने की ओर अग्रसर है और वैश्विक अथवा अमेरिकी अर्थवय्वस्था में कोई विशेष बदलाव नहीं होता है तो 2050 तक भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार अमेरिका के समान होगा। जीवन के हर क्षेत्र में भारत ने विश्व क्षितिज में अपनी पहचान स्थापित की है। जरूरत है देश को विश्व-गुरू की राह पर अग्रसर करने की। यदि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री बॉस कहते हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति भी विश्व स्तर पर उन्हें एक ताकतवर नेता मानते हैं तो यह हमारे देश का गौरव है, हमारे देश का अभिमान है। यह पूरी दुनिया में भारत के बढ़ते कद का संकेत है। दुनिया के इंटरनेशनल फोरम में भारत को अब गंभीरता से लिया जाता है। राजनीतिक चश्मे को उतारकर सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ लिखे गये इस आलेख का समापन मैं भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी की “पड़ोसी से” नामक कविता की चंद पंक्तियों के साथ करना चाहूँगा-
 अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता 
 अश्रु, स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतंत्रता 
 त्याग, तेज, तप, बल से रक्षित यह स्वतंत्रता 
 प्राणों से भी प्रियतर यह स्वतंत्रता।
वीर शहीदों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को शत-शत नमन... स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को और पूरी दुनिया के विभिन्न देशों के कोने-कोने में बसे प्रवासी भारतीयों को हार्दिक शुभकामनाएं...
 जय हिन्द...जय भारत...वन्दे मातरम...

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