मौसम सब आते-जाते हैं...
- गीत
-लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे, दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
कोलाहल करते ये पंछी ,
ईश्वर की शुचि सौगातें हैं ।
शरद ग्रीष्म पावस वसंत ये,
मौसम सब आते-जाते हैं ।।
पात बिना हैं शाखें सूनी ,
सुख आधे ही दुख दूनी है ।
दिवस-निशा हैं आते-जाते ,
आज अमावस कल पूनी है ।
परिवर्तन होता जीवन में ,
सबक सभी को दे जाते हैं ।।
गहन अँधेरा पथ में आया ,
मुश्किलों ने पग को डिगाया ।
गह्वर भटकाते मानव-मन ,
उम्मीदों ने आस बँधाया ।
आकर के मार्तंड भोर में,
धवल रोशनी भर जाते हैं ।।
हिम- शिखरों से सरिता फूटे ,
गिरि गुह पाहन श्रम से टूटे ।
निर्झर निर्भय बहते अविरल,
वन-कांतर से नाते छूटे ।
रोड़े ,कानन ,चट्टानों को ,
राहों को सुगम बनाते हैं।।
खाली हाथ मनुज यह आया,
जंगल ,गिरि को गेह बनाया ।
बुद्धि ज्ञान अनुसंधानों से ,
आदिम को इंसान बनाया ।
कठिन परिश्रम कर जीवन को ,
शुभ सरल सुखद कर जाते हैं ।।
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