लता मंगेशकर ने संगीतकार अनिल बिश्वास को उनकी पुण्यतिथि पर किया याद, पोस्ट किया एक प्यारा सा गाना
मुंबई । लोकप्रिय संगीतकार अनिल बिश्वास की आज पुण्यतिथि है। जानी-मानी गायिका लता मंगेशकर ने अनिल बिश्वास को याद करते हुए उन्हें कोटि - कोटि नमन किया है। साथ ही लता दीदी ने अपने ट्वीटर अकाउंट में उनका संगीतबद्ध किया हुए एक गीत पोस्ट किया है। यह गीत है तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है......। इस गीत को लता मंगेशकर ने गाया है। यह गीत फिल्म लाडली का है जो वर्ष 1949 में प्रदर्शित हुई थी।
भारतीय सिनेमा जगत में अनिल बिश्वास को एक ऐसे संगीतकार के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने मुकेश , तलत महमूद समेत कई पाश्र्व गायकों को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाया।
मुकेश के रिश्तेदार मोतीलाल के कहने पर अनिल बिश्वास ने मुकेश को अपनी एक फिल्म में गाने का अवसर दिया था लेकिन उन्हें मुकेश की आवाज पसंद नहीं आयी बाद में उन्होंने मुकेश को वह गाना अपनी आवाज में गाकर दिखाया। इस पर मुकेश ने अनिल बिश्वास ने कहा, दादा बताइये कि आपके जैसा गाना भला कौन गा सकता है यदि आप ही गाते रहेंगे तो भला हम जैसे लोगों को कैसे अवसर मिलेगा। मुकेश की इस बात ने अनिल विश्वास को सोचने के लिये मजबूर कर दिया और उन्हें रात भर नींद नही आयी। अगले दिन उन्होंने अपनी फिल्म ..पहली नजर ..में मुकेश को बतौर पाश्र्वगायक चुन लिया और निश्चय किया कि वह फिर कभी व्यावसायिक तौर पर पाश्र्वगायन नही करेंगे।
वर्ष 1937 में महबूब खान निर्मित फिल्म जागीरदार अनिल बिश्वास के सिने कॅरिअर की अहम फिल्म साबित हुयी जिसकी सफलता के बाद बतौर संगीत निर्देशक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये। वर्ष 1942 में अनिल बांबे टॉकीज से जुड़ गये और 2500 रुपये मासिक वेतन पर काम करने लगे। वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म अनोखा प्यार अनिल बिश्वास के सिने कॅरिअर के साथ..साथ व्यक्तिगत जीवन में अहम फिल्म साबित हुयी। फिल्म का संगीत तो हिट हुआ ही साथ ही फिल्म के निर्माण के दौरान उनका झुकाव भी पाश्र्वगायिका मीना कपूर की ओर हो गया। बाद में अनिल और मीना कपूर ने शादी कर ली। साठ के दशक में अनिल ने फिल्म इंडस्ट्री से लगभग किनारा कर लिया और मुंबई से दिल्ली आ गये।
इस बीच उन्होंने सौतेला भाई, छोटी छोटी बातें जैसी फिल्मों को संगीतबद्ध किया। फिल्म ,छोटी छोटी बातें हालांकि बॉक्स ऑफिस पर कामयाब नहीं रही लेकिन इसका संगीत श्रोताओं को पसंद आया। इसके साथ ही फिल्म राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित की गयी। वर्ष 1963 में बिश्वास दिल्ली प्रसार भारती में बतौर निदेशक काम करने लगे और वर्ष 1975 तक काम करते रहे। वर्ष 1986 में संगीत के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपने संगीतबद्ध गीतों से लगभग तीन दशक तक श्रोताओं का दिल जीतने वाले इस महान संगीतकार ने 31 मई 2003 को इस दुनिया को अलविदा कहा।
अनिल बिस्वास की पत्र-पत्रिका और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में चर्चा 1994 में हुई, जब म.प्र. शासन के संस्कृति विभाग ने उन्हें लता मंगेशकर अलंकरण से सम्मानित किया। लता मंगेशकर अपने गायन के आरंभिक चरण में गायिका नूरजहां से प्रभावित थीं। अनिल दा ने लता को छवि से मुक्ति दिलाकर शुद्ध-सात्विक लता मंगेशकर बनाया। अनिल दा के संगीत में लताजी के कुछ उम्दा गीतों की बानगी देखिए- मन में किसी की प्रीत बसा ले (आराम), बदली तेरी नजर तो नजारे बदल गए (बड़ी बहू), रूठ के तुम तो चल दिए (जलती निशानी)।
स्वयं लताजी ने इस बात को स्वीकार किया है कि अनिल दा ने उन्हें समझाया कि गाते समय आवाज में परिवर्तन लाए बगैर श्वास कैसे लेना चाहिए। यह आवाज तथा श्वास प्रक्रिया की योग कला है। अनिल दा उन्हें लतिके कहकर पुकारते थे। इसी तरह मुकेश को सहगल की आवाज के प्रभाव से मुक्त कराकर उसे नई शैली प्रदान करने में अनिल दा का ही हाथ है।
तलत महमूद की मखमली आवाज पर अनिल दा फिदा थे। तलत की आवाज के कम्पन और मिठास को अनिल दा ने रेशम-सी आवाज कहा था। किशोर कुमार से फिल्म फरेब (1953) में अनिल दा ने संजीदा गाना क्या गवाया, आगे चलकर इस शरारती तथा नटखट गायक के संजीदा गाने देव आनंद-राजेश खन्ना के प्लस-पाइंट हो गए।
अनिल बिश्वास के हिट गीत-
* 1943 -किस्मत * दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिन्दुस्तान हमारा है
* धीरे-धीरे आ रे बादल धीरे-धीरे जा
* 1945 - पहली नजर * दिल जलता है, तो जलने दे
* 1948 -अनोखा प्यार * याद रखना चाँद-तारों इस सुहानी रात को
* 1948 - गजरे * दूर पपीहा बोला रात आधी रह गई
* 1949 -लाड़ली * तुम्हारे बुलाने को जी चाहता है
* 1950 - आरजू * ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल
* 1950 -लाजवाब * जमाने का दस्तूर है ये पुराना
* 1951 - आराम * शुक्रिया, ऐ प्यार तेरा शुक्रिया
* 1952 -तराना * सीने में सुलगते है अरमाँ
* एक मैं हूँ एक मेरी बेकसी की शाम है
* 1953 - फरेब * आ मोहब्बत की बस्ती बसाएँगे हम
* 1954 - वारिस * राही मतवाले, तू छेड़ एक बार मन का सितार
* 1957- जलती निशानी * रूठ के तुम तो चल दिए अब मैं दुआ को क्या करूँ
* 1957 -परदेसी * रिमझिम बरसे पानी आज मोरे अँगना
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